Nikah | matlab, zaroorat aur ahmiyat

Nikah | ahmiyat zaroorat tariqa | islam


निकाह: मतलब, ज़रुरत और अहमियत

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मर्द और औरत के अंदर एक दूसरे के ज़रिए सुकुन हासिल करने की ख़्वाइश रखी है। इस्लाम ने इस ख़्वाइश का एहतराम करते हुए हमे निकाह करने का तरीक़ा बताया ताकि इंसान जाइज़ तरीक़ों से सुकून हासिल करें।


निकाह का मतलब:

निकाह अरबी ज़ुबान के माद्दे  ن ک ح / न क ह से बना है जिसका मतलब है मिलना या जमा करना। इस तरह मिलना जिस तरह नींद आँखों में मिल जाती है या बारिश के कतरे जमीन में जज्ब हो जाते हैं।

इससे यह बात वाज़ेह हुई कि इस्लाम चाहता है कि निकाह के बाद शौहर और बीवी के दरमियान ऐसा ताल्लुक पैदा हो जाये जैसा ताल्लुक आँख और नींद के दरमियान होता है। इसी बात को कुरआन ने एक दूसरी मिसाल में बयान किया :

‎‫هُنَّ لِبَاسٌ لَكَمْ وَأَنْتُمْ لِبَاسٌ‬‎ ‎‫          لَهُنَّ 

"वो तुम्हारे लिबास हैं और तुम उनके लिबास हो।" [कुरआन 2:187]

यानी जिस तरह लिबास और जिस्म के दरमियान कोई दूरी नहीं होती और वे एक दूसरे की हिफाज़त करते है उसी तरह का ताल्लुक शौहर और बीवी के बीच होना चाहिए।


निकाह करने से आधा ईमान मुकम्मल होता है:

हज़रत अनस बिन मालिक़ (रज़ि.) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया, "जब आदमी शादी करता है तो उसका निस्फ (आधा) ईमान मुक़म्मल हो जाता है, अब उसे चाहिये कि बाकी आधे ईमान के बारे में अल्लाह तआला से डरता रहे।" [अल सिलसिला साहिहा 1895]


निकाह एक नेमत है:

अल्लाह पाक की निशानियों में से एक ये भी है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ (जोड़े) पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर सुकून हासिल करो और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये ख़ुदा की यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं,

وَ مِنْ ايْتِهِ أَنْ خَلَقَ لَكُمْ مِّنْ أَنْفُسِكُمْ أَزْوَاجًا لِتَسْكُنُوا إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُمْ مَّوَدَّةً وَرَحْمَةً إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَتٍ لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ

"और उसकी निशानियों में से ये है कि उसने तुम्हारे लिये तुम्हारी ही जिंस से बीवियाँ बनाईं ताकि तुम उनके पास सुकून हासिल करो और तुम्हारे बीच मुहब्बत और रहमत पैदा कर दी। यक़ीनन इसमें बहुत सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिये जो ग़ौर और फ़िक्र करते हैं।" [कुरआन 30:21]

इस आयत में अल्लाह ने इन्सान की पैदाइश के बाद से आज तक जो मियाँ बीवी का रिश्ता चला आ रहा है, उसे अपनी एक बड़ी नेमत के तौर पर बयान किया है।

सबसे पहले आदम अलै. की पैदाइश हुई लेकिन उनके जोड़े को पूरा करने के लिए भी माँ हव्वा को पैदा किया गया, जिससे इस बात की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मियाँ बीवी के बीच इस पाक रिश्ते की शुरुआत अल्लाह ने जन्नत में की, जबकि कोई और रिश्ता उस वक़्त मौजूद न था।


निकाह से नज़रों की हिफाज़त होती है:

कुरआन में नजरों की हिफाजत का साफ साफ हुक्म इन अल्फाज में आया है,

قُلْ لِلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ وَيَحْفَظُوا فُرُوجَهُمْ ذلِكَ أَزْكَى لَهُمْ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا يَصْنَعُوْنَ

"ऐ नबी, ईमानवाले मर्दों से कहो कि अपनी नज़रें बचाकर रखें और अपनी शर्मगाहों कि हिफ़ाज़त करें, ये उनके लिये ज़्यादा पाकीज़ा तरीक़ा है, जो कुछ वो करते हैं अल्लाह उससे बाख़बर रहता है" [कुरआन 24:30]


निकाह में फिज़ूलखर्ची न करें:

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, "बेहतरीन निकाह वो है जो ज़्यादा आसानी वाला हो" [सुन्न अबू दाऊद :2117]

फिजूलखर्ची एक ऐसा अमल है जिसे अल्लाह सख्त नापसन्द करता है, अल्लाह का इरशादे गिरामी है, "खाओ और पियो और फिजूल ख़र्ची मत करो क्योंकि ख़ुदा फिजूल खर्च करने वालों को पसन्द नहीं करता" और फिर निकाह में जब इतना खर्च किया जाये तो जाहिर है कि इसके दूरगामी नतीजे सामने निकल कर आते हैं। 

जैसेः

• सबसे अहम बात ये की इस तरह की शादियों में से बरकत खत्म हो जाती है।

• शादियों के लिये पैसे जमा करने में कई साल लग जाते हैं और लड़के लड़कियों की उम्र इतनी हो जाती है कि उन्हें सही रिश्ता नहीं मिलता। अगर कहा जाये की शादियों में देरी होने की सबसे अहम वजह यही फिजूलखर्ची है तो ये कहना गलत नहीं होगा।

• शादी के लिये खासतौर पर लड़की के घर वाले सालों पहले से अपना पेट काटकर पैसे जमा करते है।

• शादी की महंगी तैयारियों में कई महीनों का कीमती वक्त खराब होता है।

• निकाह का मैयार पैसा और दिखावा बन जाता है, जिससे दीनदारी का अहमियत मद्दे नजर नहीं रहती।

• शादी में फिजूलखर्ची करने से शादीशुदा जोड़े के घर वालों की जमा बचत पूंजी खत्म हो जाती है, जिस पूंजी से वो कई काम कर सकते थे। मसलनः आने वाली नस्लों का भविष्य बेहतर बना सकते थे, कोई नया कारोबार शुरू कर सकते थे, घर में किसी के बीमार होने पर ये पूंजी काम आ सकती थी, इससे खानदान और समाज के दूसरे जरूरतमंद लड़के लड़कियों का निकाह किया जा सकता था, वगैरह।

• इस तरह फिजूलखर्ची करने से खानदान और समाज में मौजूद गरीब तबके के लिये निकाह करना भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि समाजी दबाव की वजह से उन्हें भी अपने रिश्तेदारों से होड़ करनी होती है।

• कभी कभी तो ऐसा भी है लोग शादी में शान दिखाने के लिए घर तक बेच देते है बेघर हो जाते है सिर्फ अपनी बेटी को शादी करने के लिए। 


निकाह से पहले होने गैर ज़रूरी वाले रसुमात:

मांगनी:

इस का नाम हमने कभी निकाह की ज़रूरी शर्त में नही सुना लेकिन लकड़ी और लड़के वाले बोहोत जोर शोर से इस रस्म को लेकर काफी जोर शोर से अंजाम देते हैं। लड़की वाले लड़के के लिए गोल्ड की रिंग या कोई तो डायमंड की रिंग लड़के की मां के ज्वैलरी फ्रूट्स और ड्राई फ्रूट्स के थाल और भी बोहोत सारे फिज़ूल खर्चे करते है।

हल्दी:

ये भी एक ऐसी रस्म है जिसमें मेहरम गैर मेहरम रिश्ते दार लड़के लड़की को हल्दी लगाते हैं। बोहोत ज़ोर शोर से इस रस्म को अदा करते है देगे बनती है लड़के लड़की वाले इस रस्म को अदा करने एक दूसरे के घर जाते हैं।

मेंहदी:

कुछ वक्त से अब इस रस्म को भी बोहोत एहम माना जाने लगा है लड़की के मेंहदी लगती है बोहोत से मेहमान आते है खाने का एहतमाम किया जाता है फ़ोटो शूट करवाया जाता है।

शादी हॉल:

अपनी शान ओ शौकत दिखाने के लिए अच्छे से अच्छे हॉल बुक किया जाता है फिर चाहे उसकी कीमत ज़्यादा ही क्यों न हो तरह तरह के पकवान बनवाए जाते है 

जहैज़:

आखिर अब वो दिन आ ही गया जिस दिन  लड़की के मां बाप अपनी बेटी के लिए सारी जमा पूंजी उसको जहैज देकर खर्च तो करते ही और बल्कि कर्ज़ दार भी हो जाते है। ताकि हम एक मिसाली शादी कर सके कुछ लोग मजबूरी में कर रहे उनको अपनी बेटी को रुखसत जो लेना है और कुछ अपनी शान अपने नाम के लिए ।


लड़की वालो ने भी शादी को बनाया मुश्किल:

जी हां जिस तरह लड़के वाले चाहते हैं हमें ज़्यादा से ज़्यादा जहैज़ मिले हमारे बरातीओ की खूब खातिर होनी चाहिए हमें तो कुछ भी नहीं चाहिए जो कुछ आप देंगे आपकी बेटी ही इस्तेमाल करेंगी। 

ठीक इसी लड़की वाले डिमांड करते है लड़के एकलौता हो तो ज़्यादा बेहतर है लड़के की मां ज़्यादा तेज़ तो नहीं है। लड़का कमाता कितना है घर अपना है न कितने ग़ज का घर होगा वैसे ज्वैलरी कितनी देंगे अपनी बहु को वगैरा वगैरा।


हमें इन सभी गैर इस्लामी रसूमात का बायकॉट करना है:

हमें हर मुम्किन कोशिश करनी है ऐसी महफिलों में जाने से परहेज़ करना है जहां इस तरह की रस्म की जा रही हैं।  खुद भी इस पर अमल करना है और अपने दोस्त रिश्तेदार से भी गुज़ारिश करनी है कि ये गैर इस्लामी काम न किए जाए। निकाह को जिस तरह अल्लाह पाक ने आसान बनाया था उसी तरह निकाह किया जाए।

अल्लाह पाक हम सभी भाई बहनों को हिदायत दे कि हम अल्लाह को नाराज़ करके अपनी दुनिया न बनाए हम हर वक्त अल्लाह की रज़ा को याद रखे और अपने हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े मामलात में अल्लाह के एहकाम को याद रखें।


आपकी दीनी बहन 
उज़्मा 

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