Kya aurat farz aur nafil namazon ki imamat kara sakti hai?

Kya aurat farz aur nafil namazon ki imamat kara sakti hai?


क्या औरत इमामत करा सकती है?

फराइज़ और नवाफिल में औरत, औरतों की जमा'अत करा सकती है, सफ के दरमियान में खड़ी होगी -

रईताता अल हानाफिया रहीमहुल्लाह बयान करती हैं :

أَمَّتْنَا عَائِشَةُ فَقَامَتْ بَيْنَهُنَّ فِي الصَّلَاةِ الْمَكْتُوبَةِ

"हमें आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने सफ के दरमियान खड़े होकर फर्ज़ नमाज़ की इमामत कराई।" [सुनन दारकुतनी : 1507 , वा इस्नादुहु सहीह]

हाफिज़ नववी रहीमहुल्लाह ने इसकी सनद को सहीह कहा है। [खुलासतूल एहकाम : 2/680]


इमाम अहमद इब्ने हम्बल, इमाम शफई, इमाम इस'हाक बिन राहवे और हाफिज़ इब्ने हज़म रहीमहुल्लाहू अजमा'ईन, औरत की इमामत के जवाज़ के क़ाइल हैं-


• मौलाना अब्दुल हई लखनवी हनफी (1304 हिजरी) लिखते हैं :

"ये वजह के औरत सफ के दरमियान खड़ी होकर ममनू का इर्तिकाब करेगी इसका ज़ो'अफ मखफी नहीं बल्के इन तमाम की तमाम वाजूह का ज़ईफ होना मखफी नहीं, जो औरत की इमामत के मकरूह होने के हवाले से बयान की जाती है, जैसा की हमने "तोहफतुल नुब्ला" में इसकी तहकीक बयान करदी है। हमने ये रिसाला औरतों की जमा'अत के मस'ले में लिखा है, हमने इसमें ज़िक्र किया है के हक़ ये है के औरत की इमामत माकरूह नहीं है। 

[उम्दातुर रि'आयाह  : 1/152]


• तमबीह :

उम्मे वरक़ा अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हा से मनसूब है : 

أَنَّ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم كَانَ يَقُولُ انْطَلِقُوا بِنَا إِلَى الشَّهِيدَةِ فنَزُورُهَا وَأَمَرَ أَنْ تُؤَذِّنَ لَهَا وَتَؤُمَّ أَهْلَ دَارِهَا فِي الْفَرِيضَةِ

रसूलुल्लाह  (ﷺ) फरमाया करते थे, आप हमारे साथ "शहीदाह" की तरफ चलें, हम उनकी जियारत करें, आप  (ﷺ) ने हुक्म दिया के इनके लिए अज़ान कही जाए, इकामत कही जाए और वो फर्ज़ नमाजो में अपने घर वालो की इमामत करें। 

[मुसनद अल इमाम अहमद : 6/405 , सुनन अबि दाऊद : 592]

इसे इमाम इब्ने खुजैमाह रहीमहुल्लाह (1676) और इमाम इब्नुल जरुद रहीमहुल्लाह (333) ने सहीह करार दिया है। 

• तबसिरह : सनद ज़ईफ है :

(1) लैला बिन्त मालिक और अब्दुर रहमान बिन खालिद दोनो मझूल है। 

(2) अब्दुर रहमान बिन खालिद और लैला बिन्त मालिक का उम्मे वरका से समा नहीं। 

(3) बाज़ रिवायत में अब्दुर रहमान बिन खालिद और लैला दोनो अपने अपने बाप का वास्ता ज़िक्र करते हैं , दोनो के बाप ना मालूम है - जहां बाप का वास्ता नहीं वहा समा की तसरीह भी नहीं की - ये अल मज़ीद फी मुत्तसिल उल असानीद की क़बील से है - नेज़ इस रिवायत की सनादो में शहीद इज्तेराब वा इख्तेलाफ है। 


• अल हासिल :

औरत , औरतों की इमाम बन सकती है, यही हक़ है - कराहत के क़ायिलीन का कौल बे - दलील होने की वजह से ना काबिल ए - इल्तेफात है।  


चुनांचे इब्न अबि शयबा रहीमाहुल्लाह ने अपने मुसन्नफ (4989) में अम अल हसन से रिवायत किया है की उन्होंने नबी (ﷺ) की ज़ोजाह मोहतरमा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को देखा कि वो खवातीन की इमामत करवाते थे , और वो इस दौरान उन्ही की सफ में खड़े होते। 

इस को अल्बानी रहीमाहुल्लाह ने "तिमामि आलीमाना" सफा -154 में सहीह कहा है।  

इस तरह सुनन कुबरा अल बेहकी : (5138) में आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्होंने फर्ज़ नमाज़ो के लिए खवातीन की जमाअत करवाई, तो वो जमाअत करवाते हुए सफ के दरमियान में खड़ी हुई। 

इस को नववी रहीमाहुल्लाह ने "अल खुलासा" में सहीह कहा है जिससे कि "निस्ब अल रायाह" अज़: ज़िल्मी (2/39) में मौजूद है। 

दायमी फतवा कमेटी के उलेमा किराम कहते हैं : "अगर खवातीन घर में बा जमाअत नमाज़ का एहतमाम करे तो ये अफज़ल है, इस के लिए खातून इमाम पहले सफ के विस्त में खड़ी होगी,  इन की इमामत वही करवाएगी जिसके पास सबसे ज़्यादा कुरान का इल्म हो और दीन की अहकामात इसके पास सबसे ज्यादा हो।" 


आपका दीनी भाई 
रुहानिश सलफी

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