Khulasa e Qur'an - surah 34 | surah saba

Khulasa e Qur'an - surah | quran tafsir

खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (034) सबा


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


सूरह (034) सबा 


(i) तौहीद

आसमान, ज़मीन और तमाम चीज़ों का मालिक अल्लाह है, ज़मीन के अंदर क्या दाख़िल होता है, और उसमें से क्या निकलता है, आसमान से क्या उतरता है या उसपर चढ़ता है। सरसों के दाने से भी छोटी चीज़ हो या बड़ी सब अल्लाह के इल्म में है और किताब में दर्ज है। (1 से 3).


(ii) दाऊद और सुलैमान अलैहिमस्सलाम का वाक़िआ 

दाऊद अलैहिस्सलाम के लिए अल्लाह ने लोहे को मोम की तरह नरम कर दिया था और हुक्म दिया कि वह कुशादा ज़िरह बनाएं और उसकी कड़ियों को मुनासिब अंदाज़ से लगाएं और साथ में ज़िक्र व तस्बीह भी करते रहें। अल्लाह ने उन्हें ऐसी दिलकश आवाज़ अता की थी कि पहाड़ और परिंदे भी अल्लाह के हुक्म से उनके साथ तस्बीह बयान करते थे। 

अल्लाह ने हवा को सुलैमान अलैहिस्सलाम के अधीन कर दिया। उसकी सुबह की रफ़्तार एक महीने की होती थी और शाम की एक महीने की। तांबे को पिघला कर चश्मा जारी कर दिया। जिन्नों को उनके अधीन कर दिया था कि सुलेमान अलैहिस्सलाम को जो बनवाना मंज़ूर होता (जैसे) मस्जिदें, महल, क़िले और तस्वीरें और हौज़ों के बराबर प्याले या (एक जगह) गड़ी हुई (बड़ी बड़ी) देग़ें वग़ैरह, यह जिन्नात उनके लिए बनाते थे। (10 से 13).


(iii) जिन्नात को ग़ैब का इल्म नहीं

कुछ लोगों का ख़्याल है कि जिन्नात ग़ैब का इल्म जानते हैं तो क़ुरआन ने उसका खंडन करते हुए कहा "जब सुलेमान की मौत हो गई तो किसी को उनकी मौत का पता न चला। ज़मीन की दीमक सुलैमान की लाठी को खाती रही। फिर लाठी जब खोखली होकर टूट गई तो सुलैमान की लाश गिर पड़ी तब जिन्नों को सुलैमान अलैहिस्सलाम की मौत का पता चला। अगर वह लोग ग़ैबदां (ग़ैब के जानने वाले) होते तो फिर उनकी मौत से इतने लंबे समय तक बे ख़बर न रहते। (14)


(iv) क़ौमे सबा की तबाही

क़ौमे सबा को अल्लाह ने बड़ी नेअमतों से नवाज़ा था। उन के दोनों जानिब पहाड़ थे जहां से नहरें और चश्मे बह बह कर उनके शहरों में आते थे, उसी तरह नाले और दरया भी इधर उधर से आते थे। यमन की राजधानी सना से तीन मंज़िल दूर मआरिब में एक दीवार थी जो सददे मआरिब के नाम से मशहूर थी। पानी की कसरत और उपजाऊ ज़मीन होने की वजह से यह इलाक़ा बहुत हरा भरा रहता था। बाग़ों की इतनी कसरत थी कि क़तादह के ब क़ौल कोई औरत टोकरा सिर पर रख कर निकलती तो कुछ दूर जाने के बाद टोकरा फलों से भर जाता था। दरख़्तों से इतने फल गिरते थे कि हाथ से तोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी लेकिन जब वहां के लोग अल्लाह के हुक्म की खुली नाफ़रमानी करने लगे तो बांध टूट के सैलाब आ गया। सारी नेअमतें ख़त्म हो गईं, पूरा इलाक़ा वीरान हो गया और झाड़ झनकार और कुछ बेरी के पेड़ के इलावा कुछ नहीं बचा। (15 से 18).


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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