खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (018) अल कहफ़
सूरह (018) अल कहफ़
(i) सूरह के नाज़िल होने का कारण
यह सूरह मक्का के मुशरिकों के तीन सवालों के जवाब में उतरी है जो उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से किये थे
(2) ख़िज़र के क़िस्से की हक़ीक़त क्या है?
(3) ज़ुल-क़रनैन का क्या क़िस्सा है?
(1) असहाबे-कह्फ़ (गुफावाले) कौन थे?
यह कुछ मोमिन नौजवान थे जिन्हें उस वक़्त का बादशाह दक़यानूस बुत परस्ती पर मजबूर करता था। वह हर उस व्यक्ति को क़त्ल कर देता था जो उसकी शिरकिया दावत को मानने से इंकार कर देता था। इन नौजवानों को एक तरफ़ माल व दौलत के ढेर, ऊंचे ओहदों का लालच, और जीवन स्तर (standard of life) को बेहतर बनाने की पेशकश की गई। तो दूसरी तरफ़ डराया धमकाया गया और जान से मारने की धमकी दी गई लेकिन उन नौजवानों ने हर पेशकश को ठुकरा दिया और ईमान की हिफ़ाज़त की ख़ातिर शहर से बहुत दूर निकल गये और एक पहाड़ की गुफा तक पहुंच गए। रास्ते में एक कुत्ता भी उनके साथ शामिल हो गया। उन्होंने उस गुफा में पनाह लेने का इरादा किया। जब वह गुफा में दाख़िल हो गए तो अल्लाह तआला ने उन्हें गहरी नींद सुला दिया। यहां तक कि वह तीन सौ साल से ज़्यादा सोते रहे। जब नींद खुली तो खाने की फ़िक्र हुई। एक को खाना लेने के लिए बाज़ार भेजा। खाना लेकर जब उसने सिक्का दिया तो दुकानदार ने सिक्का लेने से इंकार कर दिया और इल्ज़ाम लगाया कि सिक्का खोटा है। उस शख़्स ने कहा अभी कल ही तो हम यहां से गये थे एक दिन में यह क्या हो गया? उसने जब बादशाह का नाम लिया तो सब हैरत में पड़ गए और मामला उस समय के बादशाह थ्यूडोर्स (Theodosius) के सामने पेश हुआ। जब उस शख़्स ने तमाम तफ़सीलात से आगाह किया तो उसे पहचान लिया गया। अब हालात बदल चुके थे। अहले तौहीद हुक्मरां थे, मुशरिकों की हुकूमत ख़त्म हुए भी काफ़ी वक़्त हो गया था। इसलिए यह नौजवान बस्ती वालों की नज़र में हीरो बन गए। उस समय के बादशाह Theodosius ने गुफ़ा में पनाह लेने वाले उन ततमाम लोगों से मुलाक़ात की और उनसे बस्ती में आ कर रहने की गुज़ारिश की लेकिन उन लोगों ने कहा हमें नींद आ रही है और वह दोबारा हमेशा के लिए सो गए। (9 से 28)
(2) ख़िज़र के क़िस्से की हक़ीक़त क्या है?
(यह वाक़िआ पंद्रहवीं पारे के आख़िर से शुरू हो कर सोलहवीं पारे के पहले पेज तक है)
दरअस्ल हुआ यूं कि एक दिन मूसा अलैहिस्सलाम ने ख़ुत्बा दिया, उसी दौरान आप से पूछा गया लोगों में सबसे ज़्यादा इल्म वाला कौन है? आप ने फ़रमाया "मैं"यह बात अल्लाह को नागवार गुज़री और उनकी तरफ़ अल्लाह ने वही وحی भेजी कि मेरे बंदों में से एक बंदा दरियाओं के संगम (जहां फ़ारस ईरान और रूम के समुद्र मिलते हैं) पर मिलेगा वह तुझसे बड़ा आलिम है। मूसा अलैहिस्सलाम ने पूछा मेरे रब उन से मेरी मुलाक़ात कैसे होगी? हुक्म हुआ एक मछ्ली ज़नबील में रख लो, जहां यह मछली ज़िंदा होकर निकल भागे वह बंदा तुम्हें वहीँ मिलेगा। मूसा अलैहिस्सलाम ने यूशा बिन नून को साथ लिया, एक मछली ज़नबील में रखी और तलाश में निकल पड़े। जब वह एक चट्टान के पास आराम के लिए रुके और मूसा अलैहिस्सलाम को नींद आ गयी वह मछ्ली ज़िंदा होकर समुद्र में निकल भागी। फिर वह वहां से उठ कर चल दिए, रात भर चलते रहे। जब सुबह हुई तो मूसा अलैहिस्सलाम ने साथी से कहा नाश्ता लाओ, तभी उनके साथी ने कहा कि "जब हम चट्टान के पास ठहरे थे तो मछली ज़िंदा होकर पानी मे चली गयी थी लेकिन शैतान ने मुझे भुला दिया कि मैं आप से इसका तज़किरा करता, यह सुन कर मूसा अलैहिस्सलाम बोले " हमें उसी जगह की तो तलाश थी " चुनाँचे वह वापस हुए। जब उस चट्टान के क़रीब पहुंचे तो एक शख़्स को कपड़ा ओढ़े हुए मौजूद पाया। मूसा अलैहिस्सलाम ने उन्हें सलाम किया और कहा मैं मूसा हूं। क्या मैं आप के साथ चल सकता हूं? ताकि आप मुझे वह बातें सिखाएं जो अल्लाह ने ख़ास तौर पर आप को सिखाई हैं। ख़िज़र अलैहिस्सलाम बोले तुम मेरे साथ सब्र नहीं कर सकोगे। ऐ मूसा मुझे अल्लाह ने वह इल्म दिया है जो तुम नहीं जानते और तुमको जो इल्म दिया है उसे मैं नहीं जानता। मूसा ने कहा इन शा अल्लाह आप मुझे सब्र करने वाला पाएंगे और किसी भी मामले में आप की नाफ़रमानी नहीं करूंगा। ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने वादा लिया कि जबतक मैं ख़ुद ज़िक्र न करूं आप मुझसे कोई सवाल नहीं करेंगे फिर दोनों समुद्र के किनारे किनारे पैदल चले, रास्ते में एक कश्ती मिली उन्होंने ख़िज़र अलैहिस्सलाम को पहचान कर दोनों को बेग़ैर किराया के बिठा लिया। इतने में एक चिड़िया आई और कश्ती के किनारे पर बैठ गई। फिर समुद्र में उसने एक या दो चोंचें मारी। उसे देखकर ख़िज़र अलैहिस्सलाम बोले "ऐ मूसा मे्रे और तुम्हारे इल्म ने अल्लाह के इल्म से इतना भी कम न किया होगा जितना इस चिड़िया ने समुद्र से। फिर ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने कश्ती से उतरते ही उसमें सूराख़ कर दिया। मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़ौरन पूछा "इन लोगों ने हमें किराया लिए बेग़ैर सवार किया और आपने सूराख़ कर दिया कि यह डूब ही जाएं। ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने याद दिलाया कि मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ सब्र नहीं कर सकोगे? मूसा ने कहा आप मेरी भूल पर न पकड़ें। दोनों आगे बढ़े देखा एक लड़का बच्चों के साथ खेल रहा है। ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने उसे क़त्ल कर दिया। मूसा अलैहिस्सलाम से बर्दाश्त नहीं हुआ, बोल पड़े, आप ने एक बे गुनाह बच्चे को नाहक़ मार डाला। ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने फिर याद दिलाया कि मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ सब्र नहीं कर सकोगे। मूसा ने कहा, अब अगर इसके बाद कोई सवाल करूं तो अपने साथ मुझे न रखें। फिर दोनों आगे बढ़े यहां तक कि एक बस्ती से गुज़र हुआ। उनसे अपना मेहमान बनाने की दरख़ास्त की लेकिन बस्ती वालों ने मेहमान बनाने से इंकार कर दिया। वहां उन्हें एक दीवार मिली जी बिल्कुल गिरने के क़रीब थी ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने अपने हाथ के इशारे से उसे सीधा कर दिया। मूसा अलैहिस्सलाम से फिर बर्दाश्त नहीं हुआ और बोल पड़े कि "अगर आप चाहते तो इसकी उजरत ले सकते थे"। ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने कहा अब हमारे दरमियान जुदाई का वक़्त आगया है। (अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "अल्लाह मूसा पर रहम करे कुछ देर और सब्र करते तो कुछ और वाक़िआत (More events) हमारे सामने आते" सही बुख़ारी हदीस 122/ किताबुल इल्म के तहत भी देखा जा सकता है) उसके बाद ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने तीनों सवालों के जवाब दिए:
वह कश्ती (जिसमें मैंने सूराख़ कर दिया था) चन्द ग़रीबों की थी जो दरिया में मेहनत मज़दूरी कर के गुज़ारा करते थे मैंने उसे ऐबदार बना दिया क्योंकि उनके पीछे एक ज़ालिम बादशाह था जो तमाम कश्तियां ज़बरदस्ती बेगार में पकड़ लेता था। वह लड़का जिसको मैंने क़त्ल कर दिया था उसके माँ बाप दोनों मोमिन और नेक हैं तो मुझे ये अन्देशा हुआ कि यह कहीं उनको अपने सरकशी और कुफ़्र में फँसा न दे। हमारी ख़्वाहिश है कि उनका परवरदिगार इसके बदले में ऐसी औलाद अता फ़रमाए जो उससे पाक नफ़सी और पाक क़राबत में बेहतर हो। और वह दीवार (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे ख़ज़ाना दफ़न था। उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुँचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाना निकाल लें और मैंने कुछ भी अपनी मर्ज़ी से नहीं किया। यह हक़ीक़त है उन वाक़िआत की जिन पर आप सब्र न कर सके। (60 से 82)
(3) ज़ुल-क़रनैन का क्या वाक़िआ है?
ज़ुल-क़रनैन बड़ा ज़बरदस्त, इंसाफ़ पसंद, और नेक बादशाह था जिसकी सल्तनत पूरब से पशिम तक और उत्तर से दक्षिण तक फैली हुई थी। वह एक के बाद दूसरा मुल्क अपनी सल्तनत में शामिल करता गया यहां तक कि उसका गुज़र एक ऐसी क़ौम पर हुआ जो एक वहशी क़ौम याजूज माजूज के अत्याचार से पीड़ित थी। ज़ुल-क़रनैन ने याजूज माजूज पर लोहे की सिलों वाली एक बहुत ही मज़बूत दीवार तामीर करा दी। अब वह क़यामत के क़रीब ही दीवार से बाहर निकल सकेंगे। याजूज माजूज का बाहर निकलना क़यामत की दस बड़ी निशानियों में से एक है। (83 से 98)
(iii) कुछ अहम बातें
● किसी के मुसलमान होने के लिए सिर्फ़ ईमान ही काफ़ी नहीं बल्कि नेक अमल होना भी ज़रूरी है। (30)
● ऐ नबी! कह दीजिए कि अगर समुद्र मेरे रब की बातें लिखने के लिए रौशनाई बन जाए तो वह ख़त्म हो जाए, मगर मेरे रब की बातें ख़त्म न हों, बल्कि अगर उतनी ही रौशनाई हम और ले आएँ तो वह भी काफ़ी न हो। (आयत 109)
(ii) शिर्क और घमंड का अंजाम
दो व्यक्ति थे जिनमें से एक के पास खुजूर और अंगूर के बहुत से बाग़ थे और उनके बीच खेती होती थी, ख़ूब फल आते। बाग़ के बीच एक नहर भी जारी थी। एक दिन घमंड में बाग़ के मालिक ने पड़ोसी से कहा मुझे तो यह नहीं लगता कि यह बाग़ कभी नष्ट होगा और कभी क़यामत आएगी? और अगर अपने रब के पास ले जाया भी गया तो इससे शानदार जगह मुझे मिलकर रहेगी। उसके साथी ने कहा क्या तुम उस ज़ात का इंकार कर रहे हो जिसने तुझे मिट्टी से फिर नुत्फ़े से पैदा किया फिर अच्छा ख़ासा इंसान बना कर खड़ा कर दिया। मेरा रब तो अल्लाह ही है और मैं अपने रब के साथ कभी किसी को शरीक नहीं करूंगा। जब तुम खेत में दाख़िल हुए तो "माशाल्लाह और लाहौल वला क़ुव्वत इल्ला बिल्लाह" क्यों न कहा? अगर मेरे पास तुमसे कम माल व औलाद है तो क्या ख़बर अल्लाह तुम्हारे बाग़ से बेहतर मुझे बाग़ अता कर दें और तेरे बाग़ पर कोई आसमानी बला आ जाय और यह समतल मैदान बन जाय या उसका पानी तह में चला जाए (तो तुम उसको निकाल नहीं सकोगे) अंततः वही हुआ जब वह अपने बाग़ में पहुंचा तो देखा उसका बाग़ ऊंधें मुंह उल्टा पड़ा था। वह अपनी लगाई हुई लागत पर हाथ मलता रह गया और पुकार उठा: يَٰلَيۡتَنِي لَمۡ أُشۡرِكۡ بِرَبِّيٓ أَحَدٗا "काश मैंने अपने रब के साथ किसी को शरीक नहीं किया होता" (32 से 42)
(iii) कुछ अहम बातें
◆ किसी काम को करने पर इंशा अल्लाह ان شاء اللہ और काम होने पर माशाअल्लाह ماشآء اللہ ज़रूर कहा जाय क्योंकि कि किसी काम को पूरा करना अल्लाह की तौफ़ीक़ के बग़ैर संभव नहीं। (24)
◆ दुनया की ज़िंदगी की मिसाल ऐसी है जैसे आसमान से पानी बरसा ज़मीन हरी भरी हो गई। कुछ वक़्त के बाद सब कुछ सूख कर चूरा चूरा हो गया। (45)
◆ माल व औलाद दुनियावी ज़िंदगी का सामान हैं। आख़िरत में तो नेक अमल ही काम आएगा (46)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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