Khulasa e Qur'an - surah 26 | surah ash shu'ara

Khulasa e Qur'an - surah | quran tafsir

खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (026) अश शुअरा


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


सूरह (026) अश शुअरा 


(i) आठ नबियों के वाक़िआत

मूसा और हारुन अलैहिमस्सलाम का आयत 10 से 67 तक, इब्राहिम अलैहिस्सलाम का 69 से 86 तक, नूह अलैहिस्सलाम का 105 से 121 तक, हूद अलैहिस्सलाम का 124 से 139 तक, सालेह अलैहिस्सलाम का 141 से 158 तक, लूत अलैहिस्सलाम का 160 से174 तक, शुऐब अलैहिस्सलाम का 176 से 190 तक, 


(ii) मुख़्तलिफ़ क़ौमों की ख़ास ख़ास बुराईयां

शिर्क, आख़िरत का इंकार, ज़मीन में फ़साद फैलाना, कुकर्म (लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम की ख़ास बुराई), नाप तौल में कमी, अमानत में ख़यानत, (क़ौमे शुऐब की ख़ास बुराई)


(iii) अंबिया की दावत में कुछ ख़ास बातें 

● मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का रसूल बन कर आया हूं। 

● अल्लाह से डरो और मेरी दावत क़ुबूल कर लो। 

 ● आख़िरत को याद रखो। 

● मैं इस दावत के बदले कुछ नहीं मांगता। 

وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ

"मेरी उजरत तो अल्लाह के पास है जो सारे संसार का पालनहार है" (107 से 109)


(iv) इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुंदर अंदाज़ में दावत

मेरा रब तो वह है :

● जिसने मुझे पैदा किया और हिदायत दी। 

● जो मुझे खिलाता और पिलाता है। 

● जब मैं बीमार हो जाता हूं तो मुझे शिफ़ा देता है। 

● जो मुझे मौत देगा फिर एक दिन ज़िंदा करेगा। 

● जिस से मुझे उम्मीद है कि आख़िरत के दिन मेरे गुनाहों को बख़्श देगा।  

(78 से 82)


(v) क़ुरआन की हक़्क़ानियत

1, यह क़ुरआन रब्बुल आलमीन का नाज़िल किया हुआ है जिसको रूहुल अमीन (जिब्रील अलैहिस्सलाम) के ज़रिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़ल्ब (दिल) पर उतारा जाता है। 

2, यह स्पष्ट अरबी भाषा में है। 

3, लोगों को डराने और चेतावनी देने के लिए। 

4, इसका तज़किरा पिछली किताबों में भी है। 

5, यह बात तो बनी इस्राईल के (यहूदी) उलेमा भी भली भांति जानते हैं। 

6, शैतान का इस से कोई संबंध नहीं है, यह उनके बस की बात नहीं है, वह तो इसको सुनने से भी दूर रखे गए हैं। शैतान तो झूठे होते हैं, वह सुनी सुनाई बातें कानों में फूंकते हैं और मक्कार व बदकार पर उतरते हैं। 

(192 से 213)


(vi) नबी के लिए आदेश 

(एक दावत देने वाले के अंदर इन सिफ़ात का होना ज़रूरी है)

● क़रीबी रिश्तेदारों को डराए। 

● ईमान लाने वालों के साथ आजिज़ी और नरमी से पेश आए। 

● अगर कोई नाफ़रमानी (अवहेलना) करे तो साफ़ कह दें कि तुम्हारे इस बुरे अमल से मेरा कोई संबंध नहीं। 

● अल्लाह पर ही भरोसा रखें जो उन्हें उठते बैठते और सज्दा करते देख रहा है। (214 से 220)


(vii) शायरों की मुज़म्मत (निंदा)

शायरों के पीछे तो बस भटके हुए लोग ही चलते हैं। यह मुख़्तलिफ़ ख़्याली वादियों में भटकते रहते हैं। ऐसी बातें कहते हैं जो करते नहीं हैं। अलबत्ता वह अलग हैं जो ईमान लाएं, नेक अमल करें और अल्लाह को कसरत से याद करने वाले हों। (224 से 226)


(viii) कुछ अहम बातें

● समलैंगिकता एक भयानक जुर्म है जो शरीर व समाज के लिए नासूर भी है और अल्लाह को नाराज़ करने कारण भी। लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम से पहले यह बुराई मौजूद नहीं थी। (165, 166)

● नाप तौल में कमी बेईमानी की निशानी और अल्लाह को नाराज़ करने वाला अमल है। (181 से 183)

● कोई बस्ती उस वक़्त तक तबाह नहीं की जाती जबतक कि उसमें डराने वाले न भेजे गए हों। (208)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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