Khulasa e Qur'an - surah 12 | surah yusuf

Khulasa e Qur'an - surah | quran tafsir


खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (012) यूसुफ़


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


सूरह (012) यूसुफ़ 


इस सूरह में यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के वाक़ये को बड़ी तफ़सील से बयान किया गया हैं।

● "तमाम अंबिया ए कराम के वाक़िए क़ुरआन में जगह जगह बिखरे पड़े हैं मगर यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का वाक़िआ इसी सूरह में मुकम्मल बयान हुआ है। उसकी वजह यह है कि उस ज़माने में मक्के के कुछ काफ़िरों ने (यहूदियों के इशारे पर) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की परीक्षा लेने के लिए आप से सवाल किया था कि बनी इस्राईल मिस्र कैसे पहुंचे? चूंकि अरब के लोग इस वाक़िए से नावाक़िफ़ थे, बल्कि उसका नाम व निशान तक उनके यहां नहीं पाया जाता था, ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान से भी इस से पहले कभी न सुना गया था इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम या तो इसका विस्तारपूर्वक जवाब न दे सकेंगे या उस वक़्त टाल मटोल करने के बाद किसी यहूदी से पूछने की कोशिश करेंगे और इस तरह आप का भ्रम खुल जायेगा। लेकिन इस परीक्षा में उन्हें उल्टी मुंह की खानी पड़ी। अल्लाह तआला ने सिर्फ़ यही नहीं किया कि फ़ौरन उसी वक़्त यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का यह पूरा वाक़िआ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान पर जारी कर दिया बल्कि इस क़िस्से को क़ुरैश के उस मामले पर चस्पां भी कर दिया जो वह यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाईयों की तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ कर रहे थे।

لَّقَدۡ كَانَ فِي يُوسُفَ وَإِخۡوَتِهِ ءَايَٰتٞ لِّلسَّآئِلِينَ
"यूसुफ़ और उसके भाइयों के क़िस्से में पूछने वालों के लिए बड़ी निशानियां हैं"

हक़ीक़त यह है कि यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के क़िस्से को मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और क़ुरैश के मामले पर चस्पां कर के क़ुरआन मजीद ने गोया स्पष्ट भविष्यवाणी कर दी थी कि जिसे आने वाले 10 वर्ष के वाक़िआत ने बिल्कुल सही साबित करके दिखा दिया। इस सूरह के नाज़िल हुए अभी डेढ़ दो वर्ष भी नहीं गुज़रे थे कि क़ुरैश के लोगों ने बिरादराने यूसुफ़ की तरह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़त्ल की साज़िश की और आप को मजबूरन अपनी जान बचा कर मक्का से निकलना पड़ा। फिर उनकी उम्मीदों के उलट आप को भी जिला वतनी की ज़िंदगी मे भी ऐसा ही उरूज और इक़्तेदार नसीब हुआ जैसा यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को हुआ था। फिर जिस तरह यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई मिस्र में उनके सामने सिर झुकाए शर्मिंदा, हाथ फैलाये खड़े विनती कर रहे थे: 

 وَتَصَدَّقۡ عَلَيۡنَآۖ إِنَّ ٱللَّهَ يَجۡزِي ٱلۡمُتَصَدِّقِينَ 
"हमें सदक़ा दीजिए, बेशक अल्लाह सदक़ा करने वालों को बड़ा अज्र देता 
है।"

तो यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने क़ुदरत रखने के बावजूद उन्हें माफ़ कर दिया और कहा,  

لَا تَثۡرِيبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡيَوۡمَۖ يَغۡفِرُ ٱللَّهُ لَكُمۡۖ وَهُوَ أَرۡحَمُ ٱلرَّٰحِمِينَ
आज तुम्हारी कोई पकड़ नहीं, अल्लाह तुम्हारी मग़फ़िरत करे वही सब रहम करने वालों से बढ़ कर रहम करने वाला है।" (आयत 92) 

यही हाल मक्के के लोगों का भी हुआ। मक्का फ़तह होने के बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने कुरैश शिकस्त खाये और सिर झुकाए खड़े थे और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक एक ज़ुल्म का बदला लेने पर क़ादिर थे। आपने पूछा तुम्हारा क्या ख़्याल है? तुम्हारे साथ क्या सुलूक किया जाय? उन्होंने जवाब दिया

 خَيْرًا، أَخٌ كَرِيمٌ، وَابْنُ أَخٍ كَرِيمٍ،
"आप एक आली ज़र्फ़ भाई और आली ज़र्फ़ भाई के बेटे हैं।" 

इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया,

 فَإِنِّي أَقُولُ كَمَا قَالَ أَخِي يُوسُفُ ، لَا تَثۡرِيبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡيَوۡمَۖ اذْهَبُوا فَأَنْتُمْ الطُّلَقَاءُ
"मैं तुम्हें वही जवाब देता हूँ जो यूसुफ़ ने अपने भाइयों को दिया था आज तुम्हारी कोई पकड़ नहीं जाओ तुम सब आज़ाद हो।" (सीरत इब्ने हिशाम)


● यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का वाक़िआ

याक़ूब अलैहिस्सलाम के बारह बेटे थे यूसुफ़ अलैहिस्सलाम उनमें सूरत और सीरत दोनों लिहाज़ से बेहद हसीन थे यही वजह है कि याक़ूब अलैहिस्सलाम उनसे ज़्यादा मुहब्बत करते थे। एक बार यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने एक ख़्वाब देखा और अपने वालिद को बताया कि "ग्यारह सितारे, सूरज और चांद मुझे सज्दा कर रहे हैं" उनके वालिद ने भाइयों से ख़्वाब का ज़िक्र करने से मना किया। बाप की बेपनाह मुहब्बत की वजह से दूसरे बेटे यूसुफ़ से हसद करने लगे। उन्होंने आपस में मशविरा किया और अपने वालिद को राज़ी कर तफ़रीह का बहाना करके जंगल ले गये और वहां एक अंधे कुंएं में गिरा दिया, शाम को अपने वालिद से झूठ बोल दिया कि उसे भेड़िया खा गया। इधर यूसुफ़ कुएं में पड़े थे कि एक क़ाफ़िला गुज़रा। उन्होंने पानी निकालने के लिए कुएं में जो डोल डाला तो आप निकल आए। क़ाफ़िले वाले ख़ुश हुए और मिस्र ले जाकर अज़ीज़ ए मिस्र को बेच दिया, अज़ीज़ ए मिस्र ने अपने घर में रखा, उनका हुस्न देख कर अज़ीज़ ए मिस्र की बीवी का दिल उनपर आ गया, उसने बुराई की दावत दी जिसे आप ने ठुकरा दिया। चूंकि शहर में चर्चा होने लगा इसलिए अज़ीज़ ए मिस्र ने बदनामी के डर से आप को जेल में डलवा दिया। जेल में भी आप ने तौहीद की दावत का सिलसिला जारी रखा, यही वजह थी कि तमाम क़ैदी आप की इज़्ज़त करने लगे। उसी दौरान दो कैदियों ने ख़्वाब देखा और उनसे ताबीर पूछी आप ने अल्लाह के हुक्म से ठीक ठीक बता दिया। फिर बादशाह ने ख़्वाब देखा कि "सात मोटी गायें हैं जिन्हें सात दुबली गायें खा रही हैं और अनाज की सात बालें हरी हैं और सात सूखी" बादशाह बहुत परेशान हुआ और उसने दरबारियों को इकट्ठा कर उन से ताबीर चाही लेकिन कोई ताबीर न बता सका। इत्तेफ़ाक़ से उस वक़्त वह भी मौजूद था जिसे यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने जेल में ख़्वाब की ताबीर बताई थी, उसने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास जाने की इजाज़त तलब की और उन्होंने ताबीर बताई तो बादशाह ने आश्चर्य से कहा ऐसा ज़हीन और माहिर व्यक्ति जेल में कैसे है, उसने आज़ाद कर के ख़ज़ाने, व्यापार, और राज्य का स्वतंत्र मंत्री (خود مختار وزیر) बना दिया। मिस्र और आस पास में अकाल (قحط) की वजह से आप के भाई अनाज हासिल करने के लिए मिस्र आए। आपने उन्हें पहचान लिया लेकिन वह न पहचान सके। फिर आख़िर में एक बार उनके भाई आए तो बहुत ख़स्ता हालत थी और उन्होंने सदक़े की मांग की तो यूसुफ़ को रहम आ गया। उन्होंने उनसे पूछा तुम्हें पता है कि तुमने यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्या किया था? अब उनके समझ में आया तो उन्होंने तअज्जुब से पूछा क्या तुम यूसुफ़ हो? जब यूसुफ़ ने कहा हां मैं यूसुफ़ हूं और यह मेरा भाई है तो सभी भाई उनके सामने नादिम व शर्मिंदा खड़े थे। फिर उन्होंने अपने वालिदैन और तमाम परिवार को मिस्र बुला लिया और इस तरह बनी इस्राईल मिस्र महुँच कर आबाद हो गए।


कुछ अनमोल बातें

(i) अल्लाह के फ़ैसले के सामने कोई तदबीर काम नहीं करती।
(ii) दावत देने वाले को जहां भी मौक़ा मिलता है तौहीद की दावत जारी रखता है।
(iii) हसद और जलन घर, ख़ानदान और समाज के लिए एक नासूर से कम नहीं।
(iv) नफ़्स अम्मारह इंसान को बुराई की तरफ़ ले जाती है।
(v) अच्छे अख़लाक़ की कद्र हर जगह होती है।
(vi) नामहरम मर्द और औरत को तन्हाई में एक दूसरे से नहीं मिलना चाहिए। 
(vii) जहां इल्ज़ाम आने का ख़तरा हो ऐसी जगह और माहौल से भी होशियार रहना चाहिए।
(viii) गुनाह पर मुसीबत को तरजीह (Priority) देनी चाहिए
(ix) पाकदामनी तमाम भलाइयों का स्रोत है।
(x) अगर ईमान मज़बूत हो तो मुसीबतें ख़ुद आसान हो जाती हैं।
(xi) मुसीबत और परेशानियों के बाद राहत और सुकून नसीब होता हैं
(xii) सत्य परेशान हो सकता पराजित नहीं (यूसुफ़ की नेकी की गवाही ख़ुद उनके हासिदीन ने दी यानी अज़ीज़ ए मिस्र की बीवी और उसके ख़ानदान वालों ने)।
(xiii) बिना वजह ख़तरे को दिल में जगह नहीं देना चाहिए।


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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