Shirk: Ek sagheen gunah

Shirk: Ek sagheen gunah

शिर्क: एक संगीन गुनाह

शिर्क एक संगीन गुनाह है जिसके बारे में अल्लाह तआला का फ़रमान है- 

"और जान रखो कि जो शख़्स अल्लाह के साथ शिर्क करेगा अल्लाह उस पर जन्नत को हराम कर देगा और उसका ठिकाना दोजख़ है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं।" [सूरह मायदा - 72)] 

इस आयत में अल्लाह तआला ने दो टुक फैसला सुना दिया है शिर्क करने वाले के लिए कि उसके ऊपर जन्नत हराम है उसका ठिकाना जहन्नम है। जो लोग शिर्क में मुब्तिला हैं और ये कहते हैं कि हमने कलमा पढ़ा है इसलिए हम जन्नत में जायेंगे वो सोचे कि क्या वाक़ई वो सही हैं?

अल्लाह तआला फ़रमाता हैं : 

"बेशक अल्लाह नहीं बख़्शेगा की उस के साथ शिर्क किया जाए और बख़्श देगा जो इस के इलावा होगा, जिसे वो चाहेगा। और जो कोई अल्लाह के साथ शिर्क करे, तो वो गुमराही मे बहुत दूर निकल गया।" [सूरह निसा आयत 116]

हालांकि शिर्क से मुतअल्लिक़ और भी बहुत सी आयत इस सूरह से पीछे गुज़र चुकी हैं लेकिन ये आयत बहुत ही अहम है जिसमें शिर्क करने वाले की माफ़ी की कोई उम्मीद नहीं। 


शिर्क क्या है?

शिर्क का माने है "साझी बनाना"। शिर्क का लुग़्वी माना होता है "शरीक करना"। 

अल्लाह के सिवा किसी मख़लूक को इबादत, मुहब्बत, ताज़ीम मे, अल्लाह के बराबर समझना। अल्लाह तआला की मख़सूस सिफ़ात मे किसी और को भी शामिल करना। 

मिशाल के तौर पर: ख़ालिक, राज़िक़, हाजत रवा, मुश्किल कुशा।

अल्लाह तआला की इन सिफ़ात मे किसी और को शरीक समझना की कोई और भी (पीर बुजुर्ग) पानी बरसा सकता है, औलाद दे सकता है, मुसीबत से हिफाज़त कर सकता है, वगैरह वगैरह।  

आइए कुछ कुरान की आयत की रोशनी में इसे समझते हैं,

अल्लाह तआला ने फरमाया:

"वही तो है जिसने तुम्हारे लिये ज़मीन का फ़र्श बिछाया, आसमान की छत बनाई, ऊपर से पानी बरसाया और उसके ज़रिए से हर तरह की पैदावार निकालकर तुम्हारे लिये रोज़ी जुटाई। तो जब तुम ये जानते हो तो दूसरों को अल्लाह के मुक़ाबले में न लाओ।" [सूरह बक़रा: 22]

क़यामत के दिन मुशरिकीन कहेंगे,

"अल्लाह की क़सम हम खुली गुमराही मे थे जब हम तुमको रब्बुल आलमीन के बराबर क़रार देते थे।" [सूरह अशुरा: 97-98]

इसका मतलब अल्लाह के बराबर किसी को क़रार देना, उसकी ज़ात में, उसकी सिफ़ात में, उसके हुक़ूक़ में, उसके इख़्तियारात मे, यही शिर्क कहलाता है। 

"और अल्लाह के कुछ हमसर [समकक्ष] ठहरा लिये, ताकि वो उन्हें अल्लाह के रास्ते से भटका दें। इनसे कहो, अच्छा मज़े कर लो, आख़िरकार तुम्हें पलटकर जाना दोज़ख़ ही में है।" [सूरह इब्राहीम: 30]

"सबसे बड़ा गुनाह ये है के तू अल्लाह के साथ किसी को शरीक करे हालांकि उसने तुझे पैदा किया।" [सूरह लुक़मान: 13]

हदीस में आता है कि, 

नबी करीम (सल्ल०) से पूछा गया अल्लाह के नज़दीक कौन-सा गुनाह सबसे बड़ा है? 

आप (सल्ल०) ने फ़रमाया ये कि तुम अल्लाह के साथ किसी को बराबर ठहराओ हालाँकि अल्लाह ही ने तुमको पैदा किया है। मैंने कहा ये तो वाक़ई सबसे बड़ा गुनाह है फिर उसके बाद कौन-सा गुनाह सबसे बड़ा है? 

आप (सल्ल०) ने फ़रमाया ये कि तुम अपनी औलाद को इस ख़ौफ़ से मार डालो कि वो तुम्हारे साथ खाएँगे। 

मैंने पूछा और उसके बाद? 

आप (सल्ल०) ने फ़रमाया ये कि तुम अपने पड़ौसी की औरत से ज़िना करो।

[सहीह  बुख़ारी 4477, सहीह मुस्लिम 86]


शिर्क की सज़ा क्या है?

शिर्क को ज़ुल्म भी कहा गया है। ज़ुल्म किसी के हक़ में कमी के लिए इस्तेमाल होता है। अल्लाह का हक़ ये है कि उसके बराबर किसी को ना समझा जाए, किसी भी चीज़ में, उसकी किसी भी सिफ़ात में, उसकी हस्ती के किसी भी पहलू में। 

और अगर कोई ऐसा करे तो वो ऐसा गुनाह कर रहा है जिसकी माफ़ी नहीं। हमें इस बात का ख्याल होना चाहिए कि गुनाह कई क़िस्म के होते हैं। कुछ गुनाह ऐसे हैं जो इंसान भूल-चूक मे ख़ता कर जाता है और फ़िर उस के बाद नेकी करता है तो हर नेकी ख़ता को मिटा देती है। 

और कुछ गुनाह ऐसे है कि जिन के लिए सिर्फ़ नेकी करना काफ़ी नहीं बल्कि उनकी बातौर ए ख़ास माफ़ी मांगा भी ज़रूरी है। जब इंसान उन गुनाहों पर माफ़ी मांगता है तो वो माफ़ हो जाता हैं। कुछ गुनाह ऐसे है जिन पर सिर्फ़ माफ़ी भी काफ़ी नहीं जब तक कि इंसान उन हक़ों की अदायगी न करे जो वो किसी के हक़ में मार रहा है। 

जैसे: किसी ने चोरी की या किसी पर इल्ज़ाम-तराशी की तो ऐसे में जब तक कि वो चीज़ साहिब ए हक़ को वापस ना की जाए, या उसके नुक़सान की क्षतिपूर्ति पूरा ना किया जाए, उस शख़्स से माफ़ी न मांगी जाए।

तो शिर्क भी उन गुनाहो में से एक गुनाह है जिस पर इंसान अल्लाह रब्बुल इज़्जत से जब तक सच्चे दिल से तौबा व इस्तग़फ़ार करे फिर आइंदा के लिए वो काम छोड़ नहीं देता उस वक़्त तक माफ़ी नहीं हो सकती।

आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, "जो शख़्स इस हालत में मर जाए कि वो अल्लाह के सिवा औरों को भी उसका शरीक ठहराता रहा हो तो वो जहन्नम में जाता है और कहा कि जो शख़्स इस हालत में मरे कि अल्लाह का किसी को शरीक न ठहराता रहा तो वो जन्नत में जाता है।" [सहीह बुख़ारी 4497]


शिर्क की किस्में

शिर्क के दो अक़साम हैं-

  1. शिर्क ए अकबर
  2. शिर्क ए असगर

1. शिर्क ए अकबर:

i. अल्लाह के वजूद मे शिर्क: जो शख़्स अल्लाह तआला के सिवा किसी को वाजिबुल वजूद (हमेशा से होना या हमेशा से रहना) ठहराये वो मुशरिक है।

ii. ख़ल्क़ियत मे शिर्क: जो शख़्स अल्लाह के सिवा किसी को हक़ीक़तन ख़ालिक (बनाने वाला पैदा करने वाला) जाने या कहे या मानें वो मुशरिक हैं।

iii. इबादत मे शिर्क: सिर्फ़ अल्लाह तआला ही इबादत के लायक है। जो शख़्स अल्लाह तआला के सिवा किसी दूसरे को मुस्तहिक़ ए इबादत माने या ठहराये या अल्लाह के सिवा किसी दूसरे की इबादत करे वो मुशरिक है।

iv. सिफ़ात मे शिर्क: अल्लाह तआला की जितनी भी सिफतें है वो ज़ाती है जैसे आलिम यानी इल्म वाला, क़ादिर यानी क़ुदरत वाला, इख़्तियार वाला, रज़्ज़ाक़ यानी रोज़ी देने वाला वग़ैरह। अगर अल्लाह तआला के सिवा किसी के लिए एक ज़र्रे पर क़ुदरत, या इख़्तियार, या इल्म साबित करना, अगर बिज़्ज़ात हो यानी ख़ुद अपनी ज़ात से हो तो ये शिर्क है। 

iv. मुख़्तलिफ़ अंदाज़ से शिर्क: इसी तरह अल्लाह तआला के सिवा किसी दूसरे को इल्म क़ुदरत या किसी इख़्तियार मे अल्लाह तआला के बराबर, या बढ़कर मानना, या वो ज़रूरी अक़ीदे जो तौहीद के बुनियाद पर हो उन अक़ीदों के ख़िलाफ़ अक़ीदा रखना शिर्क है।

नोट: शिर्क अकबर करने वाला शख़्स मुशरिक है, और जो ऐसा करने से न बचे बेशक वो इस्लाम व ईमान से ख़ारिज हो जाएगा।

2. शिर्क ए असगर

1. रियाकारी (दिखावा) करना: रियाकारी की नीयत से इबादत करने वाला सवाब पाने के बजाए अज़ाब का हक़दार होता है। अगर कोई शख़्स अपनी इबादत या नेकी के काम मे इख़लास ना करें, बल्कि रियाकारी करे यानी कि दूसरों को दिखावे के लिए करे ताकि लोग उसे नेक, ईमानदार, इबादत गुज़ार समझे, उसकी इबादत सिर्फ़ अल्लाह तआला के लिए ना हो, बल्कि दिखावा करने के लिए हो। ऐसी इबादत शिर्क ए असगर में आती हैं।

शिर्क ए असगर से मुताल्लिक़ हदीस,

हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०) से रिवायत है, उन्होंने फ़रमाया: रसूलुल्लाह ﷺ हमारे पास (घर से) बाहर तशरीफ़ लाए जबकि हम मसीह दज्जाल का ज़िक्र कर रहे थे। आपने फ़रमाया: क्या मैं तुम्हें ऐसी चीज़ न बताऊँ जो मेरे नज़दीक तुम्हारे लिये मसीह दज्जाल से भी ज़्यादा ख़तरनाक है? हमने कहा क्यों नहीं (फ़रमाइये) रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: छिपा हुआ शिर्क (वो ये है) कि आदमी नमाज़ पढ़ने खड़ा होता है जब उसे मालूम होता है कि कोई उसे देख रहा है तो अपनी नमाज़ को ख़ूबसूरत बनाता है।" [सुन्नन इब्ने माजह 4204]

हज़रत सद्दाद बिन औस रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने कहा कि मैंने ﷺ को ये फ़रमाते सुना कि, "जिसने रियाकारी से नमाज़ पढ़ी, उसने शिर्क किया जिसने रियाकारी से रोज़ा रखा उसने शिर्क किया, जिसने रियाकारी से सदक़ा दिया उसने शिर्क किया" [मिश्कातुल मसाबिह, सफ़ा 455]

नोट: ऐसा अमल जो लोगो को दिखाने के लिए किया जाता है उसको नबी ﷺ ने शिर्क करार दिया है, लेकिन ये शिर्क ऐसा नही की जिस से ईमान ख़त्म हो जाये, इसीलिए इसको शिर्क ए असगर फ़रमाया। शिर्क ए असगर का अमल बेशक क़ाबिले मज़म्मत है ऐसा करने वाला सख़्त से सख़्त अज़ाब का हक़दार है।

 

आपकी दीनी बहन 
फ़िरोज़ा 

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