Nabi saw ko akhir mein bheje jane ka maqsad aur hikmat

Nabi saw ko akhir mein bheje jane ka maqsad aur hikmat


हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत।

पिछले पैगंबरों के बाद मुहम्मद ﷺ को भेजे जाने का मकसद और हिकमत


अल्लाह ने शुरू से इंसानों को जिंदगी गुजारने का एक ही तरीका बताया था जिस तरीके का नाम इस्लाम है और जिंदगी का यही सीधा रास्ता है जो अल्लाह ने अपने पहले पैगम्बर आदम अलैहिस्सलाम को देकर भेजा था लेकिन बाद में आने वाले इंसानों ने एक दूसरे पर जुल्म और ज्यादती करने के लिए अल्लाह के बताए तरीके को यानी इस्लाम को छोड़कर अपने अपने जिंदगी गुजारने के तरीके निकाल लिए जिससे दुनिया में फितना और फसाद बरपा हो गया। और इसी फितना और फसाद को खतम करने के लिए अल्लाह ने अपने पैगम्बर भेजना शुरू किए जो इंसानों को एक अल्लाह के बताए हुए तरीके पर जिंदगी गुजारने की दावत देते थे और अल्लाह के बताए हुए तरीके को अपनी कौम में नाफिज करते थे।

दुनिया में जहां जहां भी इंसानों ने अल्लाह के बताए हुए तरीक़े को छोड़कर अपने अपने जिंदगी गुजारने के तरीके निकाले अल्लाह ने वहां वहां अपने पैगम्बर भेजकर उन इंसानों को फिर से अल्लाह के बताए हुए तरीके पर आने की दावत दी। और दुनिया में ऐसी कोई कौम नहीं है जहां अल्लाह ने अपनी तरफ से पैगम्बर ना भेजा हो।

क़ुरआन में सिर्फ 25 पैगंबरों का जिक्र नाम के साथ किया गया है और बाकियों का नहीं।


وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلًۭا مِّن قَبْلِكَ مِنْهُم مَّن قَصَصْنَا عَلَيْكَ وَمِنْهُم مَّن لَّمْ نَقْصُصْ عَلَيْكَ ۗ

"ऐ नबी, तुमसे पहले हम बहुत-से रसूल भेज चुके हैं, जिनमें से कुछ के हालात हमने तुमको बताए हैं और कुछ के नहीं बताए।" 

[क़ुरआन 40:78]


وَرُسُلًۭا قَدْ قَصَصْنَـٰهُمْ عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَرُسُلًۭا لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ ۚ

"हमने उन रसूलों पर भी वही भेजी जिनकी चर्चा हम इससे पहले तुमसे कर चुके हैं और उन रसूलों पर भी जिनकी चर्चा तुमसे नहीं की।" 

[क़ुरआन 4:164]


अल्लाह के भेजे हुए सभी पैगंबरों ने आखिर में आने वाले पैगम्बर मुहम्मद ﷺ के बारे में अपनी अपनी कौम को बताया था ताकि दुनिया की सब कौमें आखिर में आने वाले पैगम्बर पर ईमान लाकर अल्लाह के बताए हुए तरीके पर जिंदगी गुजारें।


चलिए अब बात करते है कि; अल्लाह ने मुहम्मद ﷺ को ही आखिरी पैगम्बर क्यों बनाया है?

पैगम्बर मुहम्मद ﷺ के आखिर में भेजे जाने के कारण:


1. एक कौम का दूसरी कौम की जबान से नावाकिफ होना


पहले एक कौम का दूसरी कौम से ताल्लुक बिलकुल ना की बराबर हुआ करता था और एक कौम दूसरी कौम की जबान से भी नावाकिफ रहती थी जिसकी वजह से एक कौम से दूसरी कौम में कोई बात पहुंचाना मुमकिन नहीं हुआ करता था इसलिए अल्लाह ने हर कौम के लिए अलग अलग पैगम्बर भेजे थे। ताकि वह हर कौम को उसकी अपनी जबान में अल्लाह का पैग़ाम सुनाए।


وَ مَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا بِلِسَانِ قَوۡمِہٖ لِیُبَیِّنَ لَہُمۡ ؕ فَیُضِلُّ اللّٰہُ مَنۡ یَّشَآءُ

"हमने अपना पैग़ाम देने के लिये जब कभी कोई रसूल भेजा है, उसने अपनी क़ौम ही की ज़बान में पैग़ाम दिया है, ताकि वो उन्हें अच्छी तरह खोलकर बात समझाए।"

[क़ुरआन 14:4]


लेकिन मुहम्मद ﷺ को अल्लाह ने जिस दौर में भेजा उस दौर में कौमें एक दूसरे की जबान को जानने और समझने लगी थी जिससे की एक कौम से पैगाम दूसरी कौमों तक पैग़ाम पहुंचाना आसान हो गया। और यही वो दौर हो सकता था जिसमे सब कौमों के लिए एक पैगम्बर ही काफ़ी था इसलिए अल्लाह ने इसी दौर में अपने आखिरी पैगम्बर मुहम्मद ﷺ सारी इंसानियत की तरफ भेजा।


2. कौमों की भौगोलिक स्थिति

पहले दुनिया की कौमों की भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि एक कौम का दूसरी कौम से ताल्लुक हुआ ही नहीं करता था दुनिया के एक महाद्वीप के इंसान दूसरे महाद्वीप के इंसानों को जानते तक नहीं थे इसलिए अल्लाह ने पहले सब कौमों के लिए अलग अलग पैगम्बर भेजे लेकिन मुहम्मद ﷺ जिस दौर में भेजे गए वो दौर ऐसा था कि दौर में कौमें एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक भी आसानी से पहुंचने लगी थी और दुनिया की सब कौमों का तिजारत के जरिए आपस में ताल्लुक बहुत ज्यादा बढ़ गया था जिससे कौमें एक दूसरे से घुल मिलने लगी थी और बहुत तेजी से एक दूसरों की अच्छी और बुरी बातों से मुतास्सिर भी हो जाया करती है। यानी उस दौर से ही दुनिया ग्लोबल विलेज बनने के रास्ते पर निकल गई थी और यह दौर ऐसा था कि इंसानियत खुद पूरी दुनिया के लिए एक पैगम्बर की कमी महसूस कर रही थी। इसलिए अल्लाह ने इसी दौर का इंतखाब करके अपने आखिरी पैगम्बर मुहम्मद ﷺ सारी इंसानियत की तरफ भेजा।


3. इंसानों के मसाईल 

जबसे इंसान ने इस दुनिया में कदम रखा है तब से लेकर आज तक अल्लाह इंसानों को तरक्की दिए जा रहा है और शुरू में इंसानों की आबादी कम थी लेकिन वक्त के साथ साथ इंसानों की आबादी बढ़ती रही यहां तक कि आज 8 अरब इंसान दुनिया में मौजूद है। और शुरू में आबादी कम होने की वजह से इंसानों के मसाईल कुछ और थे लेकिन जैसे जैसे आबादी बढ़ती रही इंसानों के मसाईल भी बदलते रहे। और हर कौम के तौर तरीके भी अलग अलग थे यानी हर दौर में इंसानों और कौमों के अलग अलग मसाईल थे जिनको ध्यान में रखकर ही अल्लाह अपने पैगंबरों को जिंदगी गुजारने का तरीका देता था और वह उसे अपनी कौम पर नाफिज करता था। किसी एक दौर के इंसानों के मसाईल हर दौर के इंसानों के लिए काफी नहीं हो सकते थे। इसलिए अल्लाह ने सब कौमों में अपने अलग अलग पैगम्बर भेजे। लेकिन जब इंसानियत तरक्की करते करते एक ऐसे मुकाम पर आ पहुंची जहां से सब इंसानों के लिए एक ही जिंदगी गुजारने का तरीका काफी था तो अल्लाह ने ऐसे दौर में अपने आखिरी पैगम्बर मुहम्मद ﷺ को भेजकर इंसानों को वो तरीका बता दिया जो उनको कयामत तक के लिए काफी है और इंसानियत के आने वाले हर दौर के मसले भी कुरआन और मुहम्मद ﷺ के जरिए अल्लाह ने हमे बता दिए है। और कुरआन इस बात का आज भी सबूत है कि इसमें आज के दौर के लिए भी रहनुमाई है और आने वाले सब दौरों के लिए भी।


4. इंसानों के बीच फूट को खत्म करने के लिए

अल्लाह ने हर दौर के इंसानों को सही और सीधा रास्ता बताया था लेकिन इसके बावजूद भी इंसानों में आपस में फूट पढ़ी और झगड़े और फसाद की नौबत आ गई थी इंसानों के बीच आपस में फूट क्यों पढ़ी इसको कुरआन कुछ यूं बयान करता है;


وَ مَا تَفَرَّقُوۡۤا اِلَّا مِنۡۢ بَعۡدِ مَا جَآءَہُمُ الۡعِلۡمُ بَغۡیًۢا بَیۡنَہُمۡ ؕ وَ لَوۡ لَا کَلِمَۃٌ سَبَقَتۡ مِنۡ رَّبِّکَ اِلٰۤی اَجَلٍ مُّسَمًّی لَّقُضِیَ بَیۡنَہُمۡ ؕ وَ اِنَّ الَّذِیۡنَ اُوۡرِثُوا الۡکِتٰبَ مِنۡۢ بَعۡدِہِمۡ لَفِیۡ شَکٍّ مِّنۡہُ مُرِیۡبٍ ﴿۱۴﴾

"लोगों में जो फूट पड़ी, वो इसके बाद पड़ी कि उनके पास ‘इल्म’ (सत्यज्ञान) आ चुका था और इस वजह से कि वो आपस में एक-दूसरे पर ज़्यादती करना चाहते थे। अगर तेरा रब पहले ही ये न फ़रमा चुका होता कि एक तयशुदा वक़्त तक फ़ैसला टाले रखा जाएगा तो उनका झगड़ा चुका दिया गया होता। और हक़ीक़त ये है कि अगलों के बाद जो लोग किताब के वारिस बनाए गए, वो उसकी तरफ़ से बड़े बेचैन करनेवाले शक में पड़े हुए हैं।"

[क़ुरआन 42:14]

 

इस आयत से निम्नलिखित बातें साबित होती है:-


• इल्म आ जाने के बाद फूट 

इंसानों में फूट की वजह ये न थी कि अल्लाह ने पैग़म्बर नहीं भेजे थे और किताबें नहीं उतारी थीं, इस वजह से लोग सीधा रास्ता न जानने की वजह से अपने-अपने अलग मज़हब और नज़रिये और निज़ामे-ज़िन्दगी ख़ुद बना बैठे, बल्कि ये फूट उनमें अल्लाह की तरफ़ से इल्म आ जाने के बाद पड़ी। इसलिये अल्लाह इसका ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि वे लोग ख़ुद इसके ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने दीन के साफ़-साफ़ उसूल और शरीअत के साफ़ हुक्मों से हटकर नए-नए मज़हब और मसलक बनाए।


• इंसान एक दूसरे पर ज्यादती करना चाहता था।

इंसानों को इस फूट के लिये उभारनेवाला कोई नेक जज़्बा न था, बल्कि ये अपनी निराली उपज दिखाने की ख़ाहिश, अपना अलग झंडा बुलन्द करने की फ़िक्र, आपस की ज़िद्दम-ज़िद्दा, एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश और माल और शोहरत की तलब का नतीजा थी। होशियार और हौसला रखने वाले लोगों ने देखा कि ख़ुदा के बन्दे अगर सीधे-सीधे ख़ुदा के दीन पर चलते रहें तो बस एक ख़ुदा होगा जिसके आगे लोग झुकेंगे, एक रसूल होगा जिसको लोग पेशवा और रहनुमा मानेंगे, एक किताब होगी जिसकी तरफ़ लोग रुजू करेंगे और एक साफ़ अक़ीदा और बेलाग ज़ाब्ता होगा, जिसकी पैरवी वे करते रहेंगे। इस निज़ाम में उनकी अपनी ज़ात के लिये कोई ख़ास जगह नहीं हो सकती, जिसकी वजह से उनकी सरदारी चले और लोग उनके आस-पास इकट्ठा हों और उनके आगे सर भी झुकाएं और जेबें भी ख़ाली करें। यही वो असल सबब था जो नए-नए अक़ीदे और फ़लसफ़े, इबादत के नए-नए तरीक़े और नई-नई मज़हबी रस्में और नए-नए निज़ामे-ज़िन्दगी ईजाद करने का सबब बना और इसी ने ख़ुदा के बन्दों के एक बड़े हिस्से को दीन की साफ़ डगर से हटाकर अलग-अलग राहों में भटका दिया। फिर ये भटकाव इन गरोहों की आपसी बहस और झगड़ों और मज़हबी और मआशी और सियासी कशमकश की बदौलत सख़्त कडुवाहटों में तब्दील होता चला गया, यहाँ तक कि नौबत उन ख़ून-ख़राबों तक पहुँची जिनकी छींटों से इन्सानी इतिहास लाल हो रहा है।

इंसानों के बीच पड़ी इसी फूट को खत्म करके मुहम्मद ﷺ सारे इंसानों को जिंदगी गुजारने का सीधा रास्ता बताने के लिए आए थे ताकि इंसान अल्लाह के बताए रास्ते पर चलकर कामयाबी पाए।


فَلِذٰلِکَ فَادۡعُ ۚ وَ اسۡتَقِمۡ کَمَاۤ اُمِرۡتَ ۚ وَ لَا تَتَّبِعۡ اَہۡوَآءَہُمۡ ۚ وَ قُلۡ اٰمَنۡتُ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰہُ مِنۡ کِتٰبٍ ۚ وَ اُمِرۡتُ لِاَعۡدِلَ بَیۡنَکُمۡ ؕ اَللّٰہُ رَبُّنَا وَ رَبُّکُمۡ ؕ لَنَاۤ اَعۡمَالُنَا وَ لَکُمۡ اَعۡمَالُکُمۡ ؕ لَا حُجَّۃَ بَیۡنَنَا وَ بَیۡنَکُمۡ ؕ اَللّٰہُ یَجۡمَعُ بَیۡنَنَا ۚ وَ اِلَیۡہِ الۡمَصِیۡرُ ﴿ؕ۱۵﴾

(चूँकि ये हालत पैदा हो चुकी है) इसलिये (ऐ नबी!) अब तुम उसी दीन की तरफ़ दावत दो और जिस तरह तुम्हें हुक्म दिया गया है, उस पर मज़बूती के साथ क़ायम हो जाओ और इन लोगों की ख़ाहिशों की पैरवी न करो और इनसे कह दो कि “अल्लाह ने जो किताब भी उतारी है, मैं उसपर ईमान लाया। मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं तुम्हारे दरमियान इन्साफ़ करूँ। अल्लाह ही हमारा रब भी है और तुम्हारा रब भी। हमारे आमाल हमारे लिये हैं और तुम्हारे आमाल तुम्हारे लिये। हमारे और तुम्हारे बीच कोई झगड़ा नहीं। अल्लाह एक दिन हम सबको इकट्ठा करेगा और उसी की तरफ़ सबको जाना है।”

[कुरआन 42:15]



By इस्लामिक थियोलॉजी

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