इस्लाम में शिक्षक की एहमियत
टीचर्स डे, मदर्स डे, फादर्स डे और वुमेन्स डे ऐसे तमाम दिन जिन का तसव्वुर हमारे दीन-ए-इस्लाम में नहीं मिलता है, क्या ऐसे दिनो पर दूसरे मज़हब के लोगों की तरह कुछ ख़ास काम जो वो करते हैं हमें भी करना चाहिए?
हमारे वालदेन और हमारे टीचर्स किसी ख़ास दिन के मोहताज नहीं हैं ये हमारे जीवन की आधार शिला हैं। हम सब को अपने वालदैन और उस्ताद (parents or teachers) की रोज़ाना ही हर पल हर लम्हा इज़्जत करनी चाहिए और जब भी मौक़ा मिले अदब और एहतराम के साथ उन से पेश आना चाहिए।
वालदैन और उस्ताद के बारे में हमे जो तालीम इस्लाम देता है उसकी मिसाल हमे किसी और मज़हब में नहीं मिलती।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "आलिम की फ़ज़ीलत आबिद पर ऐसी है जैसे मेरी फ़ज़ीलत तुममें से एक आम आदमी पर है।"
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "अल्लाह और उसके फ़रिश्ते और आसमान और ज़मीन वाले, यहाँ तक कि चींटियाँ अपनी सूराख़ में और मछलियाँ उस शख़्स के लिये जो नेकी और भलाई की तालीम देता है, ख़ैर और बरकत की दुआएँ करती है।"
[सुन्नन तिर्मिज़ी 2685]
इस्लाम की तालीम के लिहाज़ से ऐसे दिनों पर ख़ुशी मनाना जिससे हमे दीन ए इस्लाम ने मना न किया हो कोई हर्ज नहीं है जैसे शादी, या किसी बच्चे का अक़ीक़ा करना और ऐसा ही वो तमाम मुआमलात जिन में दीन ने हमें इजाज़त दी है। और जिन कामों और त्यौहारों से हमे दींन में मना किया गया है वो ऐसे हैं जिन में कोई गुनाह का काम किया जाए या जिन में तागूत के साथ मुशाबिहत हो। जैसा कि उन के त्यौहार नया साल वग़ैराह वग़ैराह। हदीस में भी इस का ज़िक्र आया है के "जिस ने कुफ़्फ़ार के साथ मुशाबिहत की वो क़यामत के दिन उन्हीं में शुमार किया जाएगा"।
अब हम अगर ऐसे दिनो की देखा देखी जिन में टीचर्स, मदर्स और फादर्स डे शामिल हैं या इन से मिलते हैं तो ये तागूत की तरफ़ से है।
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया: "जिस ने किसी क़ौम की मुशाबिहत इख़्तियार की तो वो उन में से है।" [अबू दाऊद: 4031]
रसूलुल्लाह (ﷺ) हमारे लिए बेहतरीन नमूना हैं। फरमान ए इलाही है कि,
"बेशक तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की जिंदगी एक बेहतर नमूना है।” [सूरह अल-अहज़ाब: आयत-21]
नबी करीम (ﷺ) रहमतुल लिल आलमीन हैं, अपनी जिंदगी के तमाम क्षेत्र में आप पूरी दुनियां के लिए नमूना हैं। एक शिक्षक के रुप में , एक समाज सुधारक के रुप में, एक दोस्त के रुप में, एक दार्शनिक के रुप में, एक राजा के रुप में, एक व्यापारी के रुप में, जिंदगी के तमाम क्षेत्र में एक कामयाब शख्शियत रहे और एक मिसाल कायम की। अगर कोई व्यक्ति समाज के सभी आवश्यक पहलुओं को जानना चाहता है तो कृपया नबी करीम ﷺ की सीरत (जीवनी) पढ़े।
नबी सल्लल्लाहु (ﷺ) ने फ़रमाया: "सबसे अच्छी बात अल्लाह की किताब (क़ुरान) है और सब से अच्छा तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीक़ा है और सब से बुरी बिदअत (नई बात) पैदा करना है दीन (धर्म) में और बिलाशुब्हा जिस का तुम से वादा किया जाता है वो आकर रहेगी और तुम परवरदिगार से बच कर नही जा सकते।" [सही बुख़ारी :7277]
फ़िरोज़ा
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