हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत।
मुहम्मद ﷺ की जिंदगी की गारंटी
अरब में जब से ही मुहम्मद ﷺ ने इस्लाम की दावत पेश करनी शुरू की तब से ही आप ﷺ के मुखलिफीन भी पैदा हो गए और वह अपनी जी जान से यही कोशिश करते थे कि इस इस्लाम की दावत को किसी तरह रोक दें और इसके लिए उन्होंने मुहम्मद ﷺ के साथियों पर जुल्म के पहाड़ ढाए और कई साथियों को कत्ल तक कर डाला ताकि लोग उनका ये अंजाम देखकर इस्लाम कुबूल न करें और उन्होंने इसी पर बस नही किया बल्कि इससे आगे बढ़कर खुद मुहम्मद ﷺ के कत्ल का मंसूबा भी बना डाला और हाथ धोकर आप ﷺ की जान के पीछे पढ़ गए। ऐसे माहौल में अल्लाह की तरफ से ये आयत नाजिल होती है:
یٰۤاَیُّہَا الرَّسُوۡلُ بَلِّغۡ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَیۡکَ مِنۡ رَّبِّکَ ؕ وَ اِنۡ لَّمۡ تَفۡعَلۡ فَمَا بَلَّغۡتَ رِسَالَتَہٗ ؕ وَ اللّٰہُ یَعۡصِمُکَ مِنَ النَّاسِ ؕ اِنَّ اللّٰہَ لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ الۡکٰفِرِیۡنَ ﴿۶۷﴾
"ऐ नबी! जो कुछ आप पर आपके रब की तरफ़ से उतारा है उसको पहुँचा दीजिए, और अगर आपने ऐसा नहीं किया तो आपने अल्लाह के पैग़ाम को नहीं पहुँचाया, और अल्लाह आपको लोगों से बचाएगा, अल्लाह यक़ीनन मुनकिर लोगों को राह नहीं दिखाता।"
[कुरआन 5:67]
इस आयत में मुहम्मद ﷺ को तसल्ली दी गई कि आप लोगों तक इस्लाम का पैगाम पहुंचाते रहे और अल्लाह आपको इंकार करने वाले लोगों से आपकी जान की हिफाजत करेगा। ये आयत इस बात का सबूत है कि मुहम्मद ﷺ अल्लाह के सच्चे पैगम्बर है क्योंकि जिस यकीन के साथ इस आयत में मुहम्मद ﷺ की जान का हिफाजत का जिम्मा लिया गया है उस यकीन के साथ इस बात को सिर्फ इस कायनात का रब ही कह सकता है क्योंकि वह ही मुस्तकबिल की बातों का जानने वाला है और वही सब ताकतों का मालिक है।
अगर मुहम्मद ﷺ अल्लाह के पैगम्बर नही होते तो ये बात अपने लिए बिल्कुल नही कहते क्योंकि उस वक्त माहौल ऐसा था कि आप ﷺ को हर तरफ से जान का खतरा था तो कोई भी झूठा पैगम्बर अपने हक़ में इतनी बड़ी बेवकूफी नहीं करता कि ऐसी पेशनगोई कर दे जिसके इमकान दूर तक नजर न आते हो।
अल्लाह ने इसके साथ ये भी वादा कर दिया था कि ये दीन ए इस्लाम ही गालिब होकर रहेगा चाहे ये मुशरिकों को कितना ही नागवार लगे। और अल्लाह ने ये भी लिख दिया की मुहम्मद ﷺ ही पूरे अरब पर गालिब होकर रहेंगे जोकि इस बात की पेशनगोई है कि जब तक दीन ए इस्लाम अरब पर गालिब नहीं हो जाता मुहम्मद ﷺ इस दुनिया से तशरीफ नही लेकर जायेंगे चाहे काफिर आप ﷺ को कत्ल करने की कितनी ही कोशिश कर लें।
ہُوَ الَّذِیۡۤ اَرۡسَلَ رَسُوۡلَہٗ بِالۡہُدٰی وَ دِیۡنِ الۡحَقِّ لِیُظۡہِرَہٗ عَلَی الدِّیۡنِ کُلِّہٖ ۙ وَ لَوۡ کَرِہَ الۡمُشۡرِکُوۡنَ
"वो अल्लाह ही है जिसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा है, ताकि उसे दीन की पूरी की पूरी जिंस पर ग़ालिब कर दे चाहे मुशरिकों को ये कितना ही नागवार हो।"
[कुरआन 9:33]
کَتَبَ اللّٰہُ لَاَغۡلِبَنَّ اَنَا وَ رُسُلِیۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ قَوِیٌّ عَزِیۡزٌ
"अल्लाह ने लिख दिया है कि मैं और मेरे रसूल ही ग़ालिब होकर रहेंगे। हक़ीक़त में अल्लाह ज़बरदस्त और ज़ोरआवर है।"
[कुरआन 58:21]
अल्लाह ने मुहम्मद ﷺ की जान की हिफ़ाज़त कब कब की?
1. गुफा में
हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि०) बयान करते हैं कि,
क़ुरैश ने एक रात मक्का में (दारुन-नदवा में) मशवरा किया तो उन में से किसी ने कहा जब सुबह हो तो उसको क़ैद कर दो। उनकी मुराद मुहम्मद ﷺ थे।
किसी ने कहा: नहीं बल्कि उसे क़त्ल कर दो और किसी ने कहा नहीं बल्कि उसे ( मक्का से) निकाल बाहर करो अल्लाह ने अपने पैगम्बर ﷺ को इस (मंसूबे) की इत्तिला कर दी।
उस रात अली (रज़ि०) ने मुहम्मद ﷺ के बिस्तर पर रात बसर की और मुहम्मद ﷺ वहाँ से चल दिये, यहाँ तक कि आप गुफा में पहुँच गए, जबकि मुशरेकीन पूरी रात अली (रज़ि०) पर पहरा देते रहे और वो समझते रहे कि वो मुहम्मद ﷺ हैं।
जब सुबह हुई तो वो उन पर हमला आवर हुए।
जब उन्होंने देखा कि ये तो अली (रज़ि०) हैं।
अल्लाह ने उन की प्लानिंग को नाकाम बना दिया।
उन्होंने पूछा: तुम्हारा साथी कहाँ है?
उन्होंने फ़रमाया: मैं नहीं जानता।
उन्होंने मुहम्मद ﷺ के क़दमों के निशानात का पता लगाया।
जब वो पहाड़ पर पहुँचे तो उनपर मामला शुबह में पड़ा गया। वो पहाड़ पर चढ़ गए और गुफा के पास से गुज़रे।
[मिश्कात : 5934]
जब मक्का के इस्लाम-दुश्मनों ने मुहम्मद ﷺ के क़त्ल का पक्का इरादा कर लिया था और आप ठीक उस रात को, जो क़त्ल के लिये तय की गई थी, मक्का से निकलकर मदीना की तरफ़ हिजरत कर गए थे। मुसलमानों की बड़ी तादाद दो-दो, चार-चार करके पहले ही मदीना जा चुकी थी। मक्का में सिर्फ़ वही मुसलमान रह गए थे जो बिलकुल बे-बस थे या मुनाफ़िक़ाना (कपटाचारपूर्ण) ईमान रखते थे और उनपर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता था। इस हालत में जब मुहम्मद ﷺ को मालूम हुआ कि आपके क़त्ल का फ़ैसला हो चुका है तो आप ﷺ सिर्फ़ एक साथी हज़रत अबू-बक्र (रज़ि०) को साथ लेकर मक्का से निकले, और इस ख़याल से कि आपका पीछा ज़रूर किया जाएगा, आप ﷺ ने मदीना का रास्ता छोड़कर (जो उत्तर की तरफ़ था) दक्षिण का रास्ता अपनाया। यहाँ तीन दिन तक मुहम्मद ﷺ सौर गुफा में छिपे रहे। ख़ून के प्यासे दुश्मन आपको हर तरफ़ ढूँढते फिर रहे थे। मक्का के चारों तरफ़ की घाटियों का कोई कोना उन्होंने ऐसा नहीं छोड़ा जहाँ मुहम्मद ﷺ को तलाश न किया हो। इसी सिलसिले में एक बार उनमें से कुछ लोग ठीक गुफा के मुँह तक भी पहुँच गए जिसमें आप ﷺ छिपे हुए थे। हज़रत अबू-बक्र (रज़ि०) को बहुत डर लगा कि अगर इन लोगों में से किसी ने ज़रा आगे बढ़कर गुफा में झाँक लिया तो वो हमें देख लेगा। लेकिन मुहम्मद ﷺ के इत्मीनान में ज़रा फ़र्क़ नहीं आया और आप ﷺ ने ये कहकर हज़रत अबू-बक्र (रज़ि०) को तसल्ली दी कि ग़म न करो, अल्लाह हमारे साथ है।
اِلَّا تَنۡصُرُوۡہُ فَقَدۡ نَصَرَہُ اللّٰہُ اِذۡ اَخۡرَجَہُ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا ثَانِیَ اثۡنَیۡنِ اِذۡ ہُمَا فِی الۡغَارِ اِذۡ یَقُوۡلُ لِصَاحِبِہٖ لَا تَحۡزَنۡ اِنَّ اللّٰہَ مَعَنَا ۚ فَاَنۡزَلَ اللّٰہُ سَکِیۡنَتَہٗ عَلَیۡہِ وَ اَیَّدَہٗ بِجُنُوۡدٍ لَّمۡ تَرَوۡہَا وَ جَعَلَ کَلِمَۃَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوا السُّفۡلٰی ؕ وَ کَلِمَۃُ اللّٰہِ ہِیَ الۡعُلۡیَا ؕ وَ اللّٰہُ عَزِیۡزٌ حَکِیۡمٌ
तुमने अगर नबी की मदद न की तो कुछ परवाह नहीं, अल्लाह उसकी मदद उस वक़्त कर चुका है जब इनकार करनेवालों ने उसे निकाल दिया था, जब वो सिर्फ़ दो में का दूसरा था, जब वो दोनों ग़ार [ गुफा] में थे, जब वो अपने साथी से कह रहा था कि “ग़म न कर, अल्लाह हमारे साथ है।” उस वक़्त अल्लाह ने उस पर अपनी तरफ़ से दिल का सुकून उतारा और उसकी मदद ऐसी फ़ौजों से की जो तुमको दिखाई न पड़ती थीं और इनकार करनेवालों का बोल नीचा कर दिया, और अल्लाह का बोल तो ऊँचा ही है, अल्लाह ज़बरदस्त और गहरी सूझ-बूझवाला है।
[कुरआन 9:40]
अबू बक्र रजि० ने कहा:
जब हम गुफा सौर मैं छिपे थे तो मैंने मुहम्मद ﷺ से कहा कि अगर मुशरेकीन के किसी आदमी ने अपने क़दमों पर नज़र डाली तो वो ज़रूर हमको देख लेगा। इस पर आप (ﷺ) ने फ़रमाया, ''ऐ अबू-बक्र! उन दो का कोई क्या बिगाड़ सकता है जिनके साथ तीसरा अल्लाह तआला है।''
[सहीह बुखारी : 3653]
हज़रत अनस-बिन-मालिक (रज़ि०) ने हदीस बयान की कि,
हज़रत अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि०) ने उन्हें बताया, कहा: जिस वक़्त हम गुफा में थे, मैं ने अपने सिरों की जानिब (गुफा के ऊपर) मुशरेकीन के क़दम देखे, मैं ने कहा कि अल्लाह के रसूल! अगर इन में से किसी ने अपने पैरों की तरफ़ नज़र की तो वो नीचे हमें देख लेगा। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : अबू-बक्र ! तुम्हारा उन दो के बारे में क्या गया गुमान है जिन के साथ तीसरा अल्लाह है? (उन्हें कोई नुक़सान नहीं पहुँच सकता।)
[सहीह मुस्लिम : 6169]
2. गुफा से निकलते वक्त सफर में
अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि०) का बयान:
गुफा में आराम करने के बाद मुहम्मद ﷺ मुझसे पूछा: क्या अभी कूच करने का वक़्त नहीं आया?
तो मैंने कहा कि आ गया है।
और जब सूरज ढल गया तो वहां से कूच किया।
बाद में सुराक़ा-बिन-मालिक हमारा पीछा करता हुआ यहीं पहुँचा।
मैंने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! अब तो ये हमारे क़रीब ही पहुँच गया है।
आप (ﷺ) ने फ़रमाया कि ग़म न करो। अल्लाह हमारे साथ है।
आपने फिर उसके लिये बद्दुआ की और उसका घोड़ा उसे लिये हुए पेट तक ज़मीन में धँस गया।
मेरा ख़याल है कि ज़मीन बड़ी सख़्त थी। ये शक (हदीस के रावी) ज़ुहैर को था।
सुराक़ा ने कहा: मैं समझता हूँ कि आप लोगों ने मेरे लिये बद्दुआ की है। अगर अब आप लोग मेरे लिये (इस मुसीबत से नजात की) दुआ कर दें तो अल्लाह की क़सम! मैं आप लोगों की तलाश में आनेवाले तमाम लोगों को वापस लौटा दूँगा।
चुनांचे मुहम्मद (ﷺ) ने फिर दुआ की तो वो नजात पा गया।
फिर तो जो भी उसे रास्ते में मिलता उससे वो कहता था कि मैं बहुत तलाश कर चुका हूँ।
क़तई तौर पर वो इधर नहीं हैं। इस तरह जो भी मिलता उसे वो वापस अपने साथ ले जाता।
अबू-बक्र (रज़ि०) ने कहा कि उसने हमारे साथ जो वादा किया था उसे पूरा किया।
[सहीह बुखारी : 3615; सहीह मुस्लिम : 7521]
3. जिहाद के वक्त
अबान-बिन-यज़ीद ने कहा : हम से यहया इब्ने-कसीर ने अबू-सलमा (बिन-अब्दुर्रहमान) से हदीस बयान की और उन्होंने हज़रत जाबिर (रज़ि०) से रिवायत की,
उन्होंने कहा : हम रसूलुल्लाह ﷺ के साथ (जिहाद पर) आए। यहाँ तक कि जब हम (ज़ातिर्रिक़ाअ) (नामी पहाड़) तक पहुँचे तो कहा कि हमारी आदत थी कि जब हम किसी घने साये वाले पेड़ तक पहुँचते तो उसे रसूलुल्लाह ﷺ के लिये छोड़ देते।
एक मुशरिक आया जबकि रसूलुल्लाह ﷺ की तलवार पेड़ पर लटकी हुई थी, उस ने रसूलुल्लाह ﷺ की तलवार पकड़ ली, उसे मियान से निकाला और रसूलुल्लाह ﷺ से कहने लगा : क्या आप मुझ से डरते हैं?
आप ﷺ ने फ़रमाया : नहीं,
उसने कहा : तो फिर आप को मुझ से कौन बचाएगा ?
आप ﷺ ने फ़रमाया : अल्लाह मुझे तुम से महफ़ूज़ फ़रमाएगा।
[सहीह मुस्लिम : 1949]
और अबू-बक्र इस्माईली ने अपनी सहीह में इस तरह रिवायत की है, उसने कहा : तुझे मुझसे कौन बचाएगा?
आप ﷺ ने फ़रमाया : अल्लाह!
तलवार उसके हाथ से गिर गई।
रसूलुल्लाह ﷺ ने तलवार पकड़ कर फ़रमाया : तुझे मुझसे कौन बचाएगा?
उसने कहा : आप बेहतर पकड़ने वाले हैं (यानी माफ़ कर दें)।
आप ﷺ ने फ़रमाया : तुम गवाही देते हो कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं और ये कि में अल्लाह का रसूल हूँ?
उसने कहा : नहीं, लेकिन में आप ﷺ से ये अहद करता हूँ कि में आपसे न तो जंग करूँगा और न आपसे जंग करने वालों का साथ दूँगा।
आप ﷺ ने उसका रास्ता छोड़ दिया (उसे जाने दिया), वो (देहाती) अपने साथियों के पास आया और कहा : में बेहतरीन शख़्स के पास से तुम्हारे पास आया हूँ।
[मिशकात : 5305]
4. मुनाफिकों के हमले से
तबूक की जंग के मौके पर मुनाफिकों ने मुहम्मद ﷺ को जान से मारने की कोशिश की जिसका जिक्र अल्लाह ने कुरआन में यूं कर दिया:
یَحۡلِفُوۡنَ بِاللّٰہِ مَا قَالُوۡا ؕ وَ لَقَدۡ قَالُوۡا کَلِمَۃَ الۡکُفۡرِ وَ کَفَرُوۡا بَعۡدَ اِسۡلَامِہِمۡ وَ ہَمُّوۡا بِمَا لَمۡ یَنَالُوۡا ۚ وَ مَا نَقَمُوۡۤا اِلَّاۤ اَنۡ اَغۡنٰہُمُ اللّٰہُ وَ رَسُوۡلُہٗ مِنۡ فَضۡلِہٖ ۚ فَاِنۡ یَّتُوۡبُوۡا یَکُ خَیۡرًا لَّہُمۡ ۚ وَ اِنۡ یَّتَوَلَّوۡا یُعَذِّبۡہُمُ اللّٰہُ عَذَابًا اَلِیۡمًا ۙ فِی الدُّنۡیَا وَ الۡاٰخِرَۃِ ۚ وَ مَا لَہُمۡ فِی الۡاَرۡضِ مِنۡ وَّلِیٍّ وَّ لَا نَصِیۡرٍ
"ये लोग अल्लाह की क़सम खा-खाकर कहते हैं कि हमने वो बात नहीं कही, हालाँकि उन्होंने ज़रूर वो कुफ़्र की बात कही है। उन्होंने इस्लाम लाने के बाद कुफ़्र किया और उन्होंने वो कुछ करने का इरादा किया जिसे कर न सके। ये उनका सारा ग़ुस्सा इसी बात पर है न कि अल्लाह और उसके रसूल ने अपनी मेहरबानी से उनको धनी कर दिया है! अब अगर ये अपने इस रवैये से बाज़ आ जाएँ तो इन्हीं के लिये बेहतर है, और अगर ये बाज़ न आए तो अल्लाह इनको बड़ी दर्दनाक सज़ा देगा। दुनिया में भी और आख़िरत में भी, और ज़मीन में कोई नहीं जो इनका हिमायती और मददगार हो।"
[कुरआन 9:74]
कुरआन का ये इशारा है उन साज़िशों की तरफ़ जो मुनाफ़िक़ों ने तबूक की मुहिम के सिलसिले में की थीं। उनमें से पहली साज़िश का वाक़िआ मुहद्दिसों ने इस तरह बयान किया है कि,
तबूक से वापसी पर जब मुसलमानों का लश्कर एक ऐसी जगह के क़रीब पहुँचा जहाँ से पहाड़ों के बीच रास्ता गुज़रता था तो कुछ मुनाफ़िक़ों ने आपस में तय किया कि रात के वक़्त किसी घाटी में से गुज़रते हुए मुहम्मद (ﷺ) को खड्ड में फेंक देंगे।
मुहम्मद (ﷺ) को इसकी ख़बर मिल गई। आप (ﷺ) ने तमाम लश्करवालों को हुक्म दिया कि वादी के रास्ते से निकल जाएँ और आप (ﷺ) ख़ुद सिर्फ़ अम्मार-बिन-यासिर (रज़ि०) और हुज़ैफ़ा-बिन-यमान (रज़ि०) को लेकर घाटी के अन्दर से होकर चले।
बीच रास्ते में अचानक मालूम हुआ कि दस-बारह मुनाफ़िक़ ढाटे बाँधे हुए पीछे-पीछे आ रहे हैं।
ये देखकर हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि०) उनकी तरफ़ लपके, ताकि उनके ऊँटों को मार-मारकर उनके मुँह फेर दें। मगर वो दूर ही से हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि०) को आते देखकर डर गए और इस ख़ौफ़ से कि कहीं हम पहचान न लिये जाएँ फ़ौरन भाग निकले।
[मुसनद अहमद : 24202]
इन चार वाकियात के अलावा अल्लाह ने अपने पैगम्बर की जान की हिफ़ाज़त हर जंग के मौके पर की। जिसमे से हर जंग में अरब के मुशरिकों की यही कोशिश होती थी कि कैसे भी करके मुहम्मद ﷺ को कत्ल कर दिया जाए। लेकिन वो आप ﷺ को कभी कत्ल नहीं कर पाए क्योंकि आप ﷺ की जान का हिफ़ाज़त का जिम्मा खुद अल्लाह ने ले रखा था।
By इस्लामिक थियोलॉजी
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