एक मुसीबत पर जन्नत की खुशखबरी
जब नबी करीम (सल्ल०) अबू-बक्र उमर और उस्मान (रज़ि०) को साथ ले कर उहुद पहाड़ पर चढ़े तो उहुद काँप उठा आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, ''उहुद! क़रार पकड़ कि तुझ पर एक नबी एक सिद्दीक़ और दो शहीद हैं।''
Vol 5 book 57 Hadith 24
अबू मूसा अल-अशरी (रज़ि०) ने एक दिन अपने घर में वुज़ू किया और इस इरादे से निकले कि आज दिन भर रसूलुल्लाह (ﷺ) का साथ न छोड़ूँगा।
उन्होंने बयान किया कि फिर वो मस्जिदे-नबवी में हाज़िर हुए और नबी करीम (ﷺ) के मुताल्लिक़ पूछा तो वहाँ मौजूद लोगों ने बताया कि नबी करीम (ﷺ) तो तशरीफ़ ले जा चुके हैं और आप इस तरफ़ तशरीफ़ ले गए हैं।
चुनांचे मैं आपके मुताल्लिक़ पूछता हुआ आप के पीछे-पीछे निकला और आख़िर मैंने देखा कि आप (क़ुबा के क़रीब) अरीस कुँए में दाख़िल हो रहे हैं, मैं दरवाज़े पर बैठ गया और उसका दरवाज़ा खजूर की शाख़ों से बना हुआ था।
जब आप ज़रूरत से फ़ारिग़ हो चुके और आप ने वुज़ू भी कर लिया। तो मैं आपके पास गया।
मैंने देखा कि आप अरीस कुँए (उस बाग़ के कूँए) की मुंडेर पर बैठे हुए हैं अपनी पिंडलियाँ आप ने खोल रखी हैं और कूँए में पाँव लटकाए हुए हैं।
मैंने आप (ﷺ) को सलाम किया और फिर वापस आ कर बाग़ के दरवाज़े पर बैठ गया।
मैंने सोचा कि आज रसूलुल्लाह (ﷺ) का दरबान रहूँगा। फिर अबू-बक्र (रज़ि०) आए और दरवाज़ा खोलना चाहा तो मैंने पूछा कि कौन साहिब हैं?
उन्होंने कहा कि अबू-बक्र! मैंने कहा थोड़ी देर ठहर जाइये। फिर मैं आप (ﷺ) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और कहा कि अबू-बक्र दरवाज़े पर मौजूद हैं और अन्दर आने की इजाज़त आप से चाहते हैं।
आप (ﷺ) ने फ़रमाया कि उन्हें इजाज़त दे दो और जन्नत की ख़ुशख़बरी भी।
मैं दरवाज़े पर आया और अबू-बक्र (रज़ि०) से मैंने कहा कि अन्दर तशरीफ़ ले जाइये और रसूलुल्लाह (ﷺ) ने आप को जन्नत की ख़ुशख़बरी दी है।
अबू-बक्र (रज़ि०) अन्दर दाख़िल हुए और उसी कूँए की मुंडेर पर आप (ﷺ) की दाहिनी तरफ़ बैठ गए और अपने दोनों पाँव कूँए में लटका लिये। जिस तरह आप (ﷺ) ने लटकाए हुए थे। और अपनी पिंडलियों को भी खोल लिया था।
फिर मैं वापस आ कर अपनी जगह पर बैठ गया। मैं आते वक़्त अपने भाई को वुज़ू करता हुआ छोड़ आया था। वो मेरे साथ आने वाले थे। मैंने अपने दिल में कहा काश अल्लाह तआला फ़ुलाँ को ख़बर दे देता। उन की मुराद अपने भाई से थी और उन्हें यहाँ पहुँचा देता।
इतने में किसी साहिब ने दरवाज़े पर दस्तक दी मैंने पूछा कौन साहिब हैं?
कहा कि उमर-बिन-ख़त्ताब।
मैंने कहा कि थोड़ी देर के लिये ठहर जाइये चुनांचे मैं आप (ﷺ) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और सलाम के बाद कहा कि उमर-बिन-ख़त्ताब (रज़ि०) दरवाज़े पर खड़े हैं अन्दर आने की इजाज़त चाहते हैं।
आप (ﷺ) ने फ़रमाया कि उन्हें इजाज़त दे दो और जन्नत की ख़ुशख़बरी भी पहुँचा दो।
मैं वापस आया और कहा कि अन्दर तशरीफ़ ले जाइये और आप को रसूलुल्लाह (ﷺ) ने जन्नत की ख़ुशख़बरी दी है।
वो भी दाख़िल हुए और आप के साथ उसी मुंडेर पर बाएँ तरफ़ बैठ गए और अपने पाँव कूँए में लटका लिये।
मैं फिर दरवाज़े पर आ कर बैठ गया और सोचता रहा कि अगर अल्लाह तआला फ़ुलाँ (उन के भाई) के साथ ख़ैर चाहेगा तो उसे यहाँ पहुँचा देगा।
इतने में एक और साहिब आए और दरवाज़े पर दस्तक दी।
मैंने पूछा कौन साहिब हैं?
बोले कि उस्मान-बिन-अफ़्फ़ान।
मैंने कहा थोड़ी देर के लिये रुक जाइये।
मैं आप (ﷺ) के पास आया। और मैंने आप (ﷺ) को उन की इत्तिला दी।
आप (ﷺ) ने फ़रमाया कि उन्हें इजाज़त दे दो और एक मुसीबत पर जो उन्हें पहुँचेगी जन्नत की ख़ुशख़बरी पहुँचा दो।
मैं दरवाज़े पर आया और मैंने उन से कहा कि अन्दर तशरीफ़ ले जाइये।
नबी करीम (ﷺ) ने आप को जन्नत की ख़ुशख़बरी दी है एक मुसीबत पर जो आप को पहुँचेगी।
वो जब दाख़िल हुए तो देखा चबूतरे पर जगह नहीं है इसलिये वो दूसरी तरफ़ आप (ﷺ) के सामने बैठ गए।
Vol 5 book 57 Hadith 23
सबक:
1. नबी करीम (ﷺ) की इता'अत में खैर है।
2. जन्नती वही होगा जो क़ुरआन और सुन्नत को मजबूती से पकड़ कर ज़िन्दगी गुज़ारेगा।
3. हर आज़माइश अल्लाह तआला की तरफ से होती है और ये आज़माइशें हमें अल्लाह के करीब ले जाती हैं, आख़िरत की कामयाबी का सबब बनती हैं।
4. दुःख और सुख ज़िन्दगी का हिस्सा है। दुःख में सब्र से काम लेना चाहिए और सुख के दिनों में इबादत से गाफिल नहीं होना चाहिए।
5. इस्लाम में बिना इजाज़त के किसी के घर में दाखिल होने से मन किया गया है और आम ज़िन्दगी में हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए, अमूमन हम अपने घरों में ही दूसरे भाइयों के कमरों में बिन दस्तक दिए दाखिल हो जाते है जो की गलत है।
Posted By Islamic Theology
1 टिप्पणियाँ
Subhan Allah
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।