अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13o)
अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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9. सुलह हुदैबिया
1. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ख़्वाब और मुसलमानों की मक्का में दाख़िल होने की तैयारी
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़्वाब देखा कि वह मक्के में दाख़िल होकर ख़ाना ए काबा का तवाफ़ कर रहे हैं, आपने अपने सहाबा को इसकी ख़बर दी तो तमाम सहाबा ने आपको मुबारकबाद दी, वह इस ख़बर को सुनकर बहुत ज़्यादा ख़ुश हुए क्योंकि मक्का और काबा को देखे हुए लंबा समय बीत गया था बल्कि उनकी रूहें (आत्मा) तवाफ़ करने के लिए परेशान और बेचैन थीं चूंकि वह वहीं पैदा हुए थे और वहीं पले बढ़े थे इसलिए उन्हें उससे बहुत ज़्यादा मुहब्बत थी लेकिन उनके और काबा के दरमियान कुफ़्फ़ार रुकावट बने हुए थे चुनांचे जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसके बारे में सूचना दी तो साथ जाने को सभी तैयार हो गए और उनमें से शायेद ही कोई पीछे रहा हो।
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2, एक लंबे समय के बाद मक्का का सफ़र
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना से उमरह करने के उद्देश्य से निकले चूंकि उनका मक़सद जंग करना नहीं था इसलिए हुदैबिया के स्थान पर पहुंचे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ 1500 सहाबा थे, क़ुर्बानी के जानवर भी साथ थे और उन्होंने उमरह का अहराम भी बांध रखा था ताकि लोगों को पता चल जाए कि यह लोग अल्लाह के घर की ज़ियारत (दर्शन) और उसकी ताज़ीम (सम्मान) के लिए आये हैं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने जासूस भेजे ताकि उन्हें क़ुरैश के विषय में सूचना मिलती रहे। जब वह उसफ़ान (जूहफ़ा और मक्का के बीच एक स्थान) पहुंचे तो एक जासूस ने बताया कि "मैने काब बिन लोई को देखा है की वह अधिक संख्या में एक जगह ईकट्ठे हो रहे हैं और उनका इरादा आपसे जंग करने तथा ख़ाना ए काबा तक पहुंचने से रोकने का है।" नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आगे बढ़े और हुदैबिया पर पड़ाव डाल दिया, "वहां पानी कम था इसलिए लोगों ने आपसे प्यास की शिकायत की तो आपने तरकश से एक तीर निकाला फिर उसे पानी में डालने का आदेश दिया उसके बाद तो पानी इतना बढ़ा कि लश्कर और जनवारों की पीने के बाद भी बच गया।"
(सुनन अल कुबरा लिल बैहक़ी 18813)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अचानक आने की ख़बर सुनकर क़ुरैश दहशत में आ गए। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बेहतर यह लगा कि अपने सहाबा में से किसी को उनके पास भेजें फिर उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ि अल्लाहु अन्हु को पुकारा और उन्हें क़ुरैश के पास भेजा कि वह जाकर कहें कि हम लोग जंग करने नहीं आए हैं बल्कि उमरह करने के उद्देश्य से आए हैं, उन्हें इस्लाम की दावत दें और यह भी कहें कि मक्का में जो मोमिन मर्द तथा औरतें हैं उनको को वहां से निकलने दें। उस्मान रज़ि अल्लाहु अन्हु क़ुरैश के पास गए, इधर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को जीत की ख़ुशख़बरी सुनाई और सूचना दी कि अल्लाह तआला शीघ्र ही इस्लाम को मक्का पर ग़ालिब करने वाला है यहांतक कि कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसे ईमान छुपाने की ज़रूरत पड़े।
उस्मान रज़ि अल्लाहु अन्हु मक्का गए अबु सुफ़ियान और क़ुरैश के बड़े-बड़े सरदारों से मिले उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पैग़ाम पहुंचाया जिसका दायित्व (ज़िम्मेदारी) उन्हें सौंपा गया था।
जब उस्मान रज़ि अल्लाहु अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पैग़ाम उनतक पहुंचा दिया तो उन्होंने उस्मान से कहा अगर आप चाहें तो बैतुल्लाह का तवाफ़ कर लें, उन्होंने कहा नहीं! मैं ऐसा नहीं कर सकता, मैं तो तवाफ़ उसी समय करूंगा जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इसका तवाफ़ करेंगे।
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3, बैअत ए रिज़वां
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सूचना मिली की उस्मान रज़ि अल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया गया है तो आपने वहां मौजूद तमाम मुसलमानों को बैअत के लिए बुलाया, मुसलमान तत्काल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास दौड़ते हुए आए उस समय रसूलुल्लाह एक पेड़ के नीचे बैठे थे, सहाबा ने बैअत की कि "वह यहां से हरगिज़ पीछे नहीं हटेंगे।" रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में अपने हाथ को पकड़ा और कहा यह उस्मान की तरफ़ से बैअत है, यही बैअत बैअत ए रिज़वां कहलाई जो कीकर के एक पेड़ के नीचे हुई थी। इसके विषय में क़ुरआन में है,
لَّقَدۡ رَضِيَ ٱللَّهُ عَنِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ إِذۡ يُبَايِعُونَكَ تَحۡتَ ٱلشَّجَرَةِ
"अल्लाह उन मुसलमानों से राज़ी हुआ जब वह एक पेड़ के नीचे तुम्हारे हाथ पर बैअत कर रहे थे।"
(सूरह 48 अल फ़तह आयत 18)
फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु वसल्लम अलैहि के पास क़ुरैश के चार दूत आए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने प्रत्येक दूत से यही कहा कि "हम किसी से लड़ने या जंग करने नहीं आए हैं बल्कि हम उमरह करने आए हैं।" जबकि क़ुरैश दुश्मनी और इनकार पर डटे हुए थे।
उन्हीं दूतों में उरवा बिन मसऊद सक़फ़ी भी था, जब वह अपने साथियों के पास लौट कर गया तो कहा, ऐ मेरी क़ौम के लोगो! "मैं बड़े-बड़े बादशाहों के यहां गया हूं क़िसरा (ईरान के शासक) क़ैसर (रोम के शासक) और नजाशी के दरबार में भी गया हूं लेकिन वह आदर और रुतबा नहीं देखा जैसा कि मुहम्मद के साथियों को मुहम्मद का आदर तथा सम्मान करते हुए देखा है।" फिर उसने वह तमाम विशेषताएं बयान की जो उसने देखा था।
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4, मुआहिदा और सुलह, हिकमत और नरमी
फिर क़ुरैश ने सुहैल बिन अम्र को भेजा जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें आते हुए देखा तो कहा मालूम होता है कि क़ुरैश ने सुलह करने का इरादा बना लिया है इसलिए इस व्यक्ति को भेजा है और हमारे और तुम्हारे दरमियान एक दस्तावेज़ लिखी जाएगी।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अली बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु को दस्तावेज़ लिखने के लिए बुलाया और कहा लिखो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ( بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ)। सुहैल बिन अम्र ने टोका यह "रहमान" क्या है अल्लाह की क़सम हम उसे नहीं जानते इसलिए "बिस्मिका अल्लाहुम्मा" लिखा जाए जैसा कि तुम पहले लिखते थे। मुसलमान एक साथ बोल पड़े ऐसा नहीं होगा हम हरगिज़ नहीं लिखेंगे हम तो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ही लिखेंगे लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ठीक है "बिस्मिका अल्लाहुम्मा" ही लिख दो।
फिर फ़रमाया लिखो, यह मुआहिदा है जिसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तय किया है। सुहैल बिन अम्र ने फिर टोका अगर हम तुम्हें रसूलुल्लाह ही मान लेते तो फिर तुम्हें इस घर से रोकते ही क्यों और फिर जंग भी क्यों करते इसलिए मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह लिखो।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा तुम मानो या मत मानो मैं वास्तव में अल्लाह का रसूल हूं फिर अली से कहा अली ऐसा करो पिछले लिखे हुए को मिटाकर उसके स्थान पर मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह लिख दो, अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने कहा अल्लाह की क़सम मैं यह काम नहीं कर सकूंगा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा अच्छा मुझे दिखाओ कहां लिखा है उन्होंने आपको दिखाया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिटा दिया।
फिर कहा यह मुआहिदा है जिसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू वसल्लम ने तय किया है कि तुम हमारे और बैतुल्लाह के दरमियान रुकावट न बनो, हमें उसका तवाफ़ करना है।
सुहैल बिन अम्र ने कहा, अरब यह कहने लगेंगे कि हमने हसद के कारण ऐसा किया है इसलिए आप अगले वर्ष उमरह करने आएं, इसे भी लिखा गया।
फिर सुहैल ने कहा हमारे यहां का जो व्यक्ति भी तुम्हारे पास जाएगा चाहे वह तुम्हारे दीन पर ही क्यों न हो उसको हमारे पास वापस लौटाना होगा, मुसलमानों ने कहा सुब्हान अल्लाह वह जो हमारे पास मुसलमान होकर आएगा उसे भला कैसे लौटा देंगे।
इसी दौरान सुहैल बिन अम्र के बेटे अबु जंदल वहां घिसटते हुए पहुंचे, वह ज़ंजीरों में जकड़े हुए थे, मक्का से निकलकर भागे थे और ख़ुद को मुसलमानों के बीच लाकर डाल दिया था।
सुहैल बिन अम्र ने कहा, यह पहला व्यक्ति है जिसके संबंध में आप से मैं मामला करता हूं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अभी दस्तावेज़ नहीं लिखी गई है। सुहैल ने कहा तब तो मैं किसी भी मामले में सुलह नहीं करूंगा। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने निवेदन किया इसको मेरे लिए छोड़ दो, सुहैल ने कहा मैं आपके ख़ातिर भी नहीं छोड़ सकता, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर कहा नहीं नहीं, बल्कि तुम ऐसा कर लो, सुहैल ने कहा, ऐसा कभी नहीं होगा।
अबु जंदल बोल पड़े, ऐ मुसलमानो! क्या आप लोग मुझे फिर मुशरेकीन के हवाले कर देंगे जबकि मैं मुसलमान हूं, तुम उन मुसीबतों के बारे में नहीं जानते जो मुझपर ढाई गई हैं, उन्हें अल्लाह के रास्ते में बहुत अज़ाब दिया गया था। मगर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को न चाहते हुए भी उन्हें लौटाना पड़ा।
दोनों गिरोहों की तरफ़ से दस वर्ष तक जंगबंदी का मुआहिदा हुआ और उसमें यह तय हो गया कि इस दौरान क़ुरैश का कोई व्यक्ति अपने गार्जियन की अनुमति के बग़ैर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास चला जाएगा तो उसे क़ुरैश को वापस कर दिया जाएगा जबकि क़ुरैश के पास मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के यहां से कोई व्यक्ति आएगा तो उसे वापस नहीं किया जाएगा। जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जानिब से या क़ुरैश की जानिब से इस मुआहिदे में शामिल होना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है।
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5, मुआहिदे में मुसलमानों की आज़माइश (अग्निपरीक्षा) और उनकी वापसी
जब मुसलमानों ने सुलह का मुआहिदा, वापसी का इरादा तथा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का धैर्य और संयम (صبر و ضبط) देखा तो उन्हें बड़ा अजीब लगा वह इसमें अपना अपमान और हतक महसूस कर रहे थे उनके दिलों में भिन्न-भिन्न प्रकार के वसवसे आने लगे यहांतक कि उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्हु अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु के पास आए और कहा क्या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमसे कहा नहीं था कि हम शीघ्र ही बैतुल्लाह की ज़ियारत और उसका तवाफ़ करेंगे? अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया क्यों नहीं, लेकिन यह बताओ क्या उन्होंने तुमसे कहा था कि इसी वर्ष जाओगे, उमर ने कहा नहीं यह तो नहीं कहा था, अबु बकर ने दिलासा दिया तुम वहां ज़रूर जाओगे और बैतुल्लाह का तवाफ़ करोगे।
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुलह से फ़ारिग़ हुए तो अपनी कुर्बानी के जानवरों के पास गए वही कुर्बानी की और सिर मुंडाया। यह मुसलमानों पर बहुत सख़्त वक़्त था क्योंकि जब वह मदीना से निकले थे और मक्का में दाख़िल होकर उमरह करने में कोई शक उन्हें न था लेकिन जब उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को वहीं कुर्बानी करते और सिर मुंडाते हुए देखा तो उन्होंने भी कुर्बानी की और सिर मुंडाया।
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6, दब कर की गई सुलह या फ़तह ए मुबीन
फिर मदीना लौटे तो रास्ते में अल्लाह तआला ने यह आयात नाज़िल फ़रमाई
إِنَّا فَتَحۡنَا لَكَ فَتۡحٗا مُّبِينٗا لِّيَغۡفِرَ لَكَ ٱللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنۢبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَيُتِمَّ نِعۡمَتَهُۥ عَلَيۡكَ وَيَهۡدِيَكَ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا وَيَنصُرَكَ ٱللَّهُ نَصۡرًا عَزِيزًا
(ऐ नबी) हमने तुमको स्पष्ट जीत (फ़तह ए मुबीन) अता किया, ताकि अल्लाह तुम्हारी अगली-पिछली तमाम ग़लतियों को माफ़ कर दे, तुमपर अपनी नेअमत पूरी कर दे और तुम्हें सीधा रास्ता दिखाए, और तुम्हारी ज़बरदस्त मदद करे।
उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने तअज्जुब से पूछा क्या यह जीत है या रसूलुल्लाह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, हां यह जीत है।
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7, जो तुम्हें नापसंद हो, हो सकता है वही तुम्हारे लिए बेहतर हो।
जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना लौटे तो उनके पास क़ुरैश का एक व्यक्ति (मुसलमान होकर) आया जिनका नाम अबु बसीर उतबा बिन उसैद था क़ुरैश ने उनको वापस लाने के लिए दो लोगों को भेजा और मुआहिदा याद दिलाया चुनांचे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबु बसीर को उन दोनों आदमियों के हवाले कर दिया। वह दोनों उन्हें साथ ले गए लेकिन रास्ते में वह उनसे निकल भागे और समुद्र के किनारे पनाह ली। जब अबु जंदल को पता चला तो वह भी भाग कर अबु बसीर से जा मिले फिर तो क़ुरैश का जो भी व्यक्ति मुसलमान हो जाता वह अबु बसीर के पास पहुंच जाता यहांतक कि उनके पास एक समूह इकट्ठा हो गया। जब उन्हें क़ुरैश के किसी क़ाफ़िले के बारे में पता चलता कि शाम (सीरिया) तरफ़ जाने के लिए निकला है तो वह उससे छेड़छाड़ करते, उनका क़त्ल करके उनका माल लूट लेते। इससे तंग आकर क़ुरैश ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पत्र लिखकर तथा रिश्तेदारी का हवाला देते हुए विनती की कि वह उन्हें अपने पास बुला लें और अब जो उनके पास जाएगा उसे लौटाने की शर्त ख़त्म की जाती है।
बाद के वाक़िआत ने सिद्ध कर दिया कि सुलह हुदैबिया जिसमें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ुरैश की तमाम शर्तों को मान लिया था और मुशरेकीन ने इन शर्तों को अपनी कामयाबी और अपने हित में समझा था तथा मुसलमानों ने मज़बूत ईमान और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बेलाग मुहब्बत के कारण उसे बर्दाश्त किया था वही इस्लाम की नुसरत और अरब महाद्वीप में इस्लाम फैलने का कारण बन गया। उस दौर में इस्लाम इतनी तेज़ी से फैला कि इससे पहले कभी न फैला था।
इस सुलह के द्वारा फ़तह ए मक्का का दरवाज़ा खुल गया और दुनिया के हुक्मरानों जैसे क़ैसर, किसरा, मिस्र के बादशाह मक़ूक़स और दूसरे अरब के सरदारों तक इस्लाम की दावत पहुंचने का माध्यम बन गया।
अल्लाह तआला ने बिल्कुल सच कहा है,
وَعَسَىٰٓ أَن تَكۡرَهُواْ شَيۡـٔٗا وَهُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰٓ أَن تُحِبُّواْ شَيۡـٔٗا وَهُوَ شَرّٞ لَّكُمۡۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ
"हो सकता है तुम्हें एक चीज़ नापसंद हो, हो लेकिन वही तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और तुम्हें एक चीज़ पसंद हो लेकिन उसमें तुम्हारे लिए बुराई हो। अल्लाह जानता है तुम नहीं जानते।"
(सूरह 02 अल बक़रह आयत 216)
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8, ख़ालिद बिन वलीद और अम्र बिन आस का इस्लाम क़ुबूल करना
सुलह हुदैबिया ने लोगों के दिलों को जीत लिया, ख़ालिद बिन वलीद ने इस्लाम कुबूल किया जो क़ुरैश के घुड़सवारों के लीडर थे वह बहुत सी जंगों के हीरो बने उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सैफुल्लाह (अल्लाह की तलवार) की उपाधि दी थी उन्हें अल्लाह के रास्ते में कई तरीक़ों से आज़माया गया, अल्लाह ने उनके द्वारा शाम (सीरिया) की जीत दिलाई। इसी प्रकार अम्र बिन आस जो कि क़ुरैश के बड़े लीडरों में से थे और बाद में मिस्र के विजेता बने। यह दोनों सुलह हुदैबिया के बाद मदीना आए, इस्लाम क़ुबूल किया और अपने इस्लाम पर डटे रहे।
इस सुलह के द्वारा मुसलमानों और मुशरिकों के दरमियान मेल-जोल बढ़ा, मुशरिकों को इस्लाम की विशेषता और मुसलमानों के आचरण और अख़लाक़ के बारे में जानने का अवसर मिला। चुनांचे इस सुलह को एक वर्ष भी नहीं गुज़रा था कि बड़ी संख्या में लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।
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09, बादशाहों और सरदारों के नाम पत्र
i, दावत और हिकमत
जब सुलह मुकम्मल हो गई और वातावरण शांतिपूर्ण हो गया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुनिया के हुक्मरानों तथा अरब के सरदारों को चिट्ठी लिखना आरंभ किया जिसका उद्देश्य उन्हें इस्लाम की दावत देना तथा हिकमत और नसीहत के साथ अल्लाह के रास्ते की तरफ़ बुलाना था। इस सिलसिले में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बहुत एहतेमाम किया चुनांचे प्रत्येक के लिए एक एक संदेशवाहक (क़ासिद) चुना जो उसके लायक़ था। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा गया कि बड़े-बड़े बादशाह बग़ैर मुहर के पत्र स्वीकार नहीं करते, चुनांचे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक चांदी की अंगूठी बनवाई जिसपर मुहम्मदुर् रसूलुल्लाह नक़्श था।
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ii, हिरक़्ल (Hercules) का इस्लाम को समझना लेकिन स्वीकार न करना
जिन बादशाहों के नाम पत्र लिखे गए उनमें रूमी राजा हिरक़्ल, किसरा फ़ारस के राजा ख़ुसरो परवेज़, हब्शा के बादशाह नजाशी और मिस्र के बादशाह मक़ूक़स के नाम थे।
हिरक़्ल, नजाशी और मक़ूक़स ने तो ख़त को सम्मान दिया और जवाब में नरमी दिखाई बल्कि हिरक़्ल ने तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विषय में हक़ीक़त जानने के लिए किसी व्यक्ति को तलाश किया, इत्तेफ़ाक़ से अबु सुफ़ियान उन दिनों ग़ज़्ज़ा में एक व्यापारी क़ाफ़िले के साथ ठहरा हुआ था उसे बुलवाया गया। हिरक़्ल ने एक अनुभवी और अक़लमंद की तरह उससे कई सवाल किए इससे पता चलता है कि वह दीन के इतिहास का ज्ञाता तथा अंबिया अलैहिमुस्सलाम की सीरत और शान के विषय में भली भांति जानता था, वह इस मामले में अल्लाह की सुन्नत से भी वाकिफ़ था। अबु सुफ़ियान ने ठीक ठीक और सच-सच जवाब दिया जैसा कि पुराने अरबों की आदत थी और इस डर से भी सच बोला कि लोग उसे झूठा न कहने लगें। अब तो हिरक़्ल को यक़ीन हो गया कि मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के सच्चे नबी हैं और अबु सुफ़ियान से कहा "तुमने जो कहा है अगर वह सच और हक़ है तो बहुत जल्द वह समय आने वाला है कि जहां मैं बैठा हूं यहां भी उसकी हुकूमत होगी। मुझे अच्छी तरह पता था कि एक नबी जल्द ही आने वाला है लेकिन मेरा गुमान यह न था कि वह तुम लोगों में आएगा। अगर मैं वहां पहुंच सकता तो उसकी मुलाक़ात के लिए हर तकलीफ़ बर्दाश्त कर लेता और अगर उसके पास होता तो उसके चरणों को धोता। (देखें सही बुख़ारी 51, 2941)
फिर उसने रूम के बड़ों बड़े सरदारों को महल में बुलाया और दरवाज़ा बंद करने का आदेश दिया जब सामने आया तो कहा ऐ रोम के लोगो! अगर तुम कामयाबी और हिदायत चाहते हो कि तुम्हारा मुल्क बाक़ी रहे तो इस नबी की बैअत कर लो। यह सुनकर सभी दरवाज़े की तरफ़ भागे लेकिन दरवाज़ा तो बंद था। जब हिरक़्ल ने उनकी नाराज़गी और नफ़रत देखी तो वह ईमान से मायूस हो गया और उनसे कहा मेरे पास लौट आओ मैंने तो तुमसे एक बात कही थी ताकि मैं जान सकूं कि अपने दीन के मामले में तुम कितने सख़्त हो अब मैंने देख लिया। या सुनकर वह ख़ुश हो गए और फिर उन्होंने उसे सज्दा किया।
हिरक़्ल ने हुकूमत को हिदायत पर प्राथमिकता दी। फिर उसके और मुसलमानों के दरमियान अबु बकर और उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा की ख़िलाफ़त में बहुत सी जंगें और लड़ाइयां हुईं जिसमें उसका मुल्क और इक़्तेदार छिन गया।
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iii, नजाशी और मक़ूक़स का सम्मान
नजासी और मक़ूक़स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के संदेशवाहक को इज़्ज़त दी और उसका जवाब भी निहायत नरमी से दिया। मक़ूक़स ने तो कई एक हदिया (gift) भी भेजा तथा दो बांदिया भी भेजी उनमें से एक मारिया थीं जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बेटे इब्राहीम की मां बनीं।
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iv, किसरा का घमंड और उसका अंजाम
किसरा फ़ारस के सामने जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मकतूब (पत्र) पढ़ा गया तो उसने उसके टुकड़े टुकड़े कर दिये और अकड़ कर बोला "मेरा ग़ुलाम मुझे ऐसे पत्र लिखता है" जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसकी सूचना मिली तो फ़रमाया शीघ्र ही अल्लाह उसके मुल्क को भी ऐसे ही टुकड़े टुकड़े कर देग। फिर ख़ुसरो परवेज़ ने यमन के गवर्नर बाज़ान को उन्हें हाज़िर करने का आदेश दिया, बाज़ान ने आदेश का पालन करते हुऎ दो व्यक्तियों को एक ख़त देकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास भेजा है जिसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आदेश दिया गया था कि वह उनके साथ किसरा के पास चले जाएं। मदीना पहुंचकर उनमें से एक व्यक्ति ने कहा, बाज़ान ने इस काम के लिए मुझे आपके पास भेजा है कि आप मेरे साथ चलें, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे कहा जाओ अल्लाह ने किसरा के तख़्त पर उसके बेटे शैरुया को बिठा दिया है (शैरुया ने अपने बाप ख़ुसरो परवेज़ को क़त्ल करके सिंहासन प्राप्त किया था)
(देखें मुसनद अहमद 2184 , 2781
इस प्रकार अल्लाह तआला ने उसकी सल्तनत के टुकड़े टुकड़े कर दिये उसका मुल्क मुसलमानों के क़ब्ज़े में आ गया तथा ईरान के लोगों को इस्लाम की हिदायत मिली।
अरब के जिन सरदारों को ख़त लिखे गए थे उनमें से कुछ ने तो इस्लाम क़ुबूल कर लिया और कुछ ने इनकर कर दिया।
किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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