Baitul khala jaane, bahar nikalne ki dua aur sunnatein

Baitul khala/ toilet jaane, bahar nikalne ki dua aur sunnatein


Table of Contents
1. बैतुल ख़ला जाने से पहले की दुआ
2. बैतुल ख़ला से निकलने के बाद की दुआ
3. बैतुल ख़ला की सुन्नतें
4. 
बैतुल ख़ला से मुताल्लिक़ कुछ अहादीस
5. नोट 

बैतुल ख़ला (टॉयलेट) जाने की दुआ और सुन्नतों

जैसा के हम जानते हैं हमारी आँखें जिन्नातों को नहीं देख सकती पर जिन्नात हमें देख सकते हैं। अल्लाह तआला फरमाता है,

"वो और उसके साथी तुम्हें ऐसी जगह से देखते हैं जहाँ से तुम उन्हें नहीं देख सकते।" [क़ुरआन 7:27]"

जिस तरह से इंसान अच्छा, बुरा, मोमिन, काफिर, सरकश होता है उसी तरह जिन्न भी होते हैं। शैतान जिन्न गन्दी और वीरान जगहों पर रहते हैं जैसे बैतुल ख़ला, कूड़े करकट का ढेर, खंडर, ख़ाली घर, जंगल वगैरह। ये गंदे जिन्न/शैतान हमारे घरों के बैतुल ख़ला में ये कसरत से आते हैं क्यों की ये ऐसी जगह है जहाँ इंसान अपने आपको रहत पहुंचाता है और ये इस जगह इंसानो को नुकसान पहुँचाने की कोशिश में रहते हैं।  


1. बैतुल ख़ला जाने से पहले की दुआ


اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْخُبُثِ وَالْخَبَائِثِ ‏

"Allah-umma inni a`udhu bika minal khubuthi wal khaba'ith"
"ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह चाहता हूँ नापाक जिन्नों और नापाक जिन्नियों से।"
[बुख़ारी 142; तिर्मिज़ी 7; अबु दाऊद 30]


2. बैतुल ख़ला से निकलने के बाद की दुआ


غُفْرَانَكَ

"Ghufranak"
"ऐ अल्लाह, मैं तेरी बख़्शिश का तलबगार हूँ।"
[तिर्मिज़ी 7; अबु दाऊद 30]


3. बैतुल ख़ला की सुन्नतें

1. ऐसी जगह का इंतेखाब करना जहाँ कोई न हो/ बैतुल ख़ला चरों तरफ से बंद हो। [अबु दाऊद 2]

2. जूता चप्पल वग़ैरह पहन कर जाना। [ज़ईफ़ उल जामे 4393]

3. दुआ पढ़ने के बाद अंदर जाना। [बुख़ारी 142; तिर्मिज़ी 7; अबु दाऊद 30]

4. पहले बायां पैर अन्दर रखना और दायें पैर से बाहर आना। [बुख़ारी 168, 5855]

5. क़िब्ला की तरफ न मुह करना न पीठ करना। [बुखारी 144; मुस्लिम 265]

6. अल्लाह का नाम लिखी अंगूठी या किताब को बैतुल ख़ला के अंदर नहीं ले जाना। [इब्ने माजह 303]

7. बिलकुल बात न करना। [अबु दाऊद 16]

8. खड़े होकर पेशाब न करना। [इब्ने माजह 307]

9. पेशाब की बूंदों/छींटों से खुद को बचाना। [बुख़ारी 216]

10. बाएं हाथ से इस्तिंजा करना। [बुखारी 153; मुस्लिम 615]

11. फ़ारिग़ होने के बाद पानी से शर्मगाह को धुलना। [बुख़ारी 217]

12. इस्तिंजा के बाद मिट्टी या साबुन वगैरह से अच्छी तरह हाथ धो लेना। [मुस्लिम 630]

13. बाहर आने के बाद दुआ पढ़ना। [तिर्मिज़ी 7; अबु दाऊद 30]


शेख इब्न उसैमीन (रहीमुल्लाह) फरमाते हैं, 
"बिस्मिल्लाह कहने का फ़ायदा यह है कि इससे इंसान छुप जाता है। अल्लाह तआला की पनाह मांगने का फ़ायदा ये है की अल्लाह तआला की तरफ बुराईयों से और नर और मादा शैतानों से अल्लाह की ओर फिरता है, क्योंकि यह जगह गंदी (खबीथ) है और गंदी जगह बुरे लोगों का घर है। तो यह शैतानों का घर है। इसलिए अगर कोई बैतुल ख़ला में दाखिल होना चाहे तो ये कहे की 
"عوذ باللہ من الخبثی والخبائث" 
"ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह चाहता हूँ नापाक जिन्नों और नापाक जिन्नियों से।" 
बुराई या बद रूहों से नुक़सान न पहुँचाया जाये। 
[अल-शरह अल-मुमती', 1/83]


4. बैतुल ख़ला से मुतअल्लिक़ अहादीस

1. नबी अकरम (ﷺ) जब ज़रूरत के लिये टॉयलेट में दाख़िल होते तो पढ़ते : ( اللهم أعوذ بك من الخبث والخبائث) "ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह चाहता हूँ नापाक जिन्नों और नापाक जिन्नियों से।" ज़रूरत के बाद जब टॉयलेट से निकलते तो फ़रमाते: (غفرانك) यानी "ऐ अल्लाह : मैं तेरी बख़्शिश का तलबगार हूँ।" [तिर्मिज़ी 6-7]

2. रसूलुल्लाह (ﷺ) एक बार मदीना या मक्के के एक बाग़ में तशरीफ़ ले गए। (वहाँ) आप (ﷺ) ने दो लोगों की आवाज़ सुनी जिन्हें उन की क़ब्रों मैं अज़ाब किया जा रहा था। आप (ﷺ) ने फ़रमाया कि उन पर अज़ाब हो रहा है और किसी बहुत बड़े गुनाह की वजह से नहीं फिर आप (ﷺ) ने फ़रमाया, बात ये है कि एक शख़्स उन में से पेशाब के छींटों से बचने का एहतिमाम नहीं करता था और दूसरा शख़्स चुग़ल ख़ोरी किया करता था। फिर आप (ﷺ) ने (खजूर की) एक डाली मँगवाई और उसको तोड़ कर दो टुकड़े किया और उन में से (एक एक टुकड़ा ) हर एक की क़ब्र पर रख दिया। लोगों ने आप (ﷺ) से पूछा कि या रसूलुल्लाह! ये आप (ﷺ) ने क्यों किया। आप (ﷺ) ने फ़रमाया, इसलिये कि जब तक ये डालियाँ ख़ुश्क हों शायद उस वक़्त तक उन पर अज़ाब कम हो जाए। [बुख़ारी 216]

3. हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-उमर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) कहते हैं: (एक बार) नबी करीम (ﷺ) पेशाब कर रहे थे कि एक शख़्स आप के पास से गुज़रा उसने आप को सलाम किया तो आप ने सलाम का जवाब नहीं दिया। इमाम अबू-दाऊद कहते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-उमर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) और दूसरों से रिवायत की गई है: नबी ﷺ ने (फ़ारिग़ हो कर) तयम्मुम किया और फिर उसके सलाम का जवाब दिया । [अबु दाऊद 16]

4. हज़रत सलमान फ़ारसी (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) से रिवायत हुई है किसी ने उन से कहा कि तुम्हारे नबी ने तो तुम्हें सभी चीज़ें सिखाई हैं यहाँ तक कि पेशाब-पाख़ाने का तरीक़ा भी!
उन्होंने कहा: हाँ! बेशक (इस में हमारे लिये कोई ऐब की बात नहीं) आप ने हमें पेशाब पाख़ाने के वक़्त क़िबले रुख़ होने और दाएँ हाथ से इस्तिंजा करने से मना फ़रमाया है और ये कि हम में से कोई तीन ढेलों से कम में इस्तिंजा न करे और गोबर या हड्डी से भी इस्तिंजा न करे।। [तिर्मिज़ी 16; अबु दाऊद 7]


नोट: 

1. सर ढकने की कोई वाज़ेह दलील रसूलुल्लाह (ﷺ) से नहीं मिलती लेकिन इसका एक असार हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) से मिलता है। 

हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) फरमाते हैं, 
"ऐ मुसलमानो की जमात, अल्लाह का शुक्र अदा करो। क़सम है उस ज़ात की जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है, जब मैं बैतुल ख़ला जाता हूँ तो अल्लाह से शर्म कर अपना सर ढक लेता हूँ।" 
[मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा 1/105] 


2. पहले बायां पैर अन्दर रखना और दायें पैर से बाहर आना इसकी भी कोई दलील रसूलुल्लाह (ﷺ) से नहीं मिलती पर कई हदीस बाएं तरफ से काम करने के ताल्लुक से आई है जिससे इस्तेदलाल किया जा सकता है। 

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"जब तुम में से कोई शख़्स जूता पहने तो दाएँ तरफ से शुरू करे और जब उतारे तो बाएं तरफ से उतारे ताकि दाहिनी तरफ पहनने में अव्वल हो और उतारने में आखिर हो।"
 [बुख़ारी 5855]

 
"रसूलुल्लाह (ﷺ) जूता पहनने, कंघी करने, वुज़ू करने और अपने हर काम में दाहिनी तरफ से शुरू करने को पसंद फरमाते थे।" 
[बुख़ारी 168]



Posted By Islamic Theology

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...