बुराई और बेहयाई
बेहद अफ़सोस कि बात है कि आज मुस्लमान एक भीड़ का हिस्सा बनता जा रहा है दौलत कमाने की होड़ में खुद तो दीन इस्लाम से दूर तो हैं ही अपने बच्चो को भी भेड़ बकरियों की तरह छोड़ दिया है।
एक तरफ़ मॉर्डन एजूकेशन के लिए होड़ सी मची है लोग जुनून के हद तक पागल हुए जा रहे हैं दुसरी तरफ़ आम जिन्दगी से दीन गायब हो रहा है और हमारे दिल मुर्दा।
एक तरफ़, इस्लाम दुश्मन तागूत की साजिश मुसलमानो को बदनाम करने इस्लाम को मिटा देने के लिए जी तोड़ मेहनत।
दुसरी तरफ़, गिद्ध मिडिया का झुंड मुसलमानों के मांस नोच खाने को बेताब है।
ऐसे में दीन से बेपरवाही कहां ले जायेगी?
गुनाहों का बोझ सर पर लादे हम गफलत की है सहराओं में कब तक भटकते रहेंगे?
इसका जवाब न मुसलमानो के पास है और न भी इनके रहबर को। इन रहबरों से क्या ही उम्मीद करे कोई, क्यों कि इन्हें तो राजनीतिक चाटुकारिता से ही फुर्सत नहीं।
रहा सवाल आम मुसलमानो का तो इन्हें तो बुराई नज़र ही नहीं आती गुनाह को गुनाह समझ ही नहीं रहे आज हालात ये हैं कि 90% लोग इस सोच में जी रहे है की अगर समाज में कोई बुराई या बेहयाई फैल रही है तो हम क्यों बोले ? हमें क्या गरज पड़ी है हर बंदा यही सोच रहा है हम ऐसे थोड़े न हैं हमारे बच्चे ऐसे नहीं हैं। बेटियों के बारे में वालदेन बेफिक्र हैं अगर कोई कुछ कह भी दे तो जवाब मिलता है "मेरी बेटी ऐसी नहीं है"। स्कूल कॉलेज के नाम पर बेटीयां कहां जाती हैं वालदेन को कुछ ख़बर ही नहीं, मां को पता भी है तो वो इग्नोर करती हैं, नाम दिया जाता है "आज़ाद ख्याल" समाज के लोग बुरा देखें भी तो बोलते नहीं।
इसकी दो वजह है,
एक तो घर वाले मानने को तैयार नहीं उल्टा सामने वाले को ही चार बातें सुना दें।
दूसरी ये की हमारी बेटी थोड़े न है।
फलाने का लड़का गुटखा पान खा रहा है, नशा कर रहा है जुआ खेल रहा है तो समाज के बहुत से लोग देख कर भी इग्नोर कर देते हैं। उन्हें लगता है कि हमारी जिम्मेदारी नहीं किसी बुराई को रोकने का, कोई बिगड़ता है तो बिगड़े, हमारा मुआशरा इस मामले में सीधे तौर पर पल्ला झाड़ लेता है इस तरह और भी बहुत सी बुराइयां हैं जिसे हमारे समाज के अक्सर लोग बुराई देख कर भी आंखें मूंद लेते है या दुसरे की गलती पर पीठ पीछे चुगली करते रहते हैं या फिर कहते हैं,
हम क्यों बोलें, जो हो रहा है होने दो हम क्यों आगे आए ?
हमारा इससे क्या मतलब ? अपने किए की सज़ा ख़ुद भुगतेंगे।
जब की हम समाज का हिस्सा हैं हम इस्लाम के मानने वाले हैं रोज़ ए महसर हम से सवाल होगा इस्लाम की तालीमात यह है कि किसी बुराई को देखे तो उसे रोकने की कोशिश करे।
अल्लाह रब्बुल इज़्जत ने बेहयाई और बुराई को सिर्फ़ हराम नहीं किया बल्कि उसे रोकने का भी हुक्म फरमाया है।
रसूलल्लाह ﷺ ने खबर दी: "तुम में से जो शख्स किसी बुराई को देखे उस पर लाजिम है कि उसे अपने हाथ से बदल दे। और अगर इसकी ताक़त न रखता हो तो अपनी जबान(बयान) से इसको बदल दे और अगर इसकी भी ताक़त न रखता हो तो अपने दिल से (इसे बुरा समझे और लगातार इसे बदलने का जज्बा रखते हुए इसके खात्मे की फिक्र करे) और ये सबसे कमजोर ईमान (का दर्जा) है।" [सहीह मुस्लिम 177/49]
बुराई और बेहयाई के खात्मे की शुरुआत अपने घर खानदान से:
अल्लाह रब्बुल इज़्जत ने अपने आखिरी हिदायत की क़िताब कुरान में तमाम इंसानो को बेहयाई और बेशर्मी के कामों से रोकने का हुक्म कई बार दिया है।
आइए एक नजर डालते हैं,
अल्लाह का फ़रमान है: "बेशक अल्लाह तआला अद्ल-इन्साफ़ और एहसान और रिश्ते जोड़ने का हुक्म देता है और बुराई और बेहयाई और ज़ुल्म व ज़्यादती से मना करता है। वो तुम्हें नसीहत करता है, ताकि तुम सबक़ लो।" [सूरह नहल 16:90]
"ऐ नबी ﷺ ! इनसे कहो कि मेरे रब ने जो चीज़ें हराम की हैं (उनमें से एक है) बेशर्मी के सारे काम चाहे खुले हुए हों या छिपे हुए।" [सूरहआराफ़ 7:33]
"ऐ नबी ﷺ ! इनसे कहो कि आओ मैं तुम्हें बताऊँ कि तुम्हारे रब ने तुम पर क्या पाबन्दियाँ लगाई हैं। उनमें से एक अहम पाबन्दी ये है कि तुम बेशर्मी की बातों के क़रीब भी न जाओ चाहे वो खुली हों या छिपी। ये वो बातें हैं जिनकी हिदायत उसने तुम्हें की है,शायद कि तुम समझ-बूझ से काम लो।" [सूरह अनआम 6:151]
बुराई और बेहयाई के खात्मे की शुरुआत अपने समाज से:
अल्लाह तआला फरमाता है: "ऐ नबी ﷺ ! इनसे कहो कि मेरे रब ने जो चीज़ें हराम की हैं (उनमें से एक है) बेशर्मी के सारे काम चाहे खुले हुए हों या छिपे हुए।" [सूरह आराफ़ 7:33]
आइए कुछ और आहादिस पर गौर करें,
समाज में हर शख्स की जिम्मेदारी बताते हुए मुस्तफा ﷺ ने इरशाद फ़रमाया: "खबरदार हो जाओ! तुममें से हर एक शख़्स हाकिम(निगहबान)है, और हर एक से उसकी रिआया(जो लोग उसके मातहत है) के बारे में पूछा जायेगा। मर्द अपने घर वालों का निगहबान है, और उससे उसकी रिआया के बारे में सवाल होगा। और औरत अपने शौहर के घर वालो और उसके बच्चों की निगहबान है, और उससे उनके बारे में सवाल होगा।" [सहीह बुख़ारी 7138,सहीह मुस्लिम 1829]
नबी करीम ﷺ ने खबरदार किया कि: "तीन तरह के शख्स ऐसे हैं, अल्लाह ने जिनके लिए जन्नत को हराम करार कर दिया है। (उनमें से एक है) दयूस यानी वो बेगैरत शख्स जो अपने घर में बुराई देखता है लेकिन उसे बरकरार रखता है। [मुसनद अहमद 9975/5372]
वजाहत:
ऊपर बयान की गई अहादिसों से ये बात स्पष्ट होती है कि इस्लाम सबसे पहले अपने घर को और अपने अहल व अयाल को बुराइयों से पाक रखने की नसीहत देता है। और फिर समाज में फ़ैल रही बुराई को भी रोकने की ताकीद की है ।
हमारा ये सोच लेना कि हम तो बचे हुए हैं हमारी समाज के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं ये सोच बिल्कुल गलत है जब कोई बुराई फैलती है तो पुरे समाज को अपने जद में ले लेती है और फिर हम और हमारा परिवार भी उस बुराई की गिरफ्त में आ जाता है और फिर हमें आखिरत की भी फिक्र करनी चाहिए।
बहुत ही अफ़सोस का मक़ाम है गैरों के हाथ को हम कितना मजबूत कर रहे हैं आज हाल ये है की अल्लाह और रसूल ﷺको, क़ुरान को, दीने इस्लाम को मानने वाले भी, आँखे बंद किये हुए चल रहे हैं, और शैतानी चाल कामयाब हो रही है।
इल्तिज़ा मुस्लिम मुआशरा के भाइयों से:
मेरे भाइयों बड़े ही गौर करने का मकाम है कि आज हमारी कौम गुमराही का शिकार हो रही है बेहयाई और फहाशि इसका नसीब बनता जा रहा है मेरी आप से इल्तेजा है कि बुराई से ख़ुद भी बचें और दूसरों को भी बचाने की कोशिश करें।
अपने दोस्त, रिश्तेदार, गांव और समाज से बुराई को मिटाने का प्रयास करें,हराम रिश्ते से बचें दूसरे की बहन बेटियों की इज्ज़त वैसे ही करें जैसा आप अपनी बहन बेटियों की करते हैं। मुहब्बत करें तो हलाल रिश्ता कायम करें, निकाह करें किसी भी लड़की के जिस्म और जज़्बात से न खेलें।
एक इल्तिज़ा मुस्लिम बहनों से:
ऐ बिंत-ए-हव्वा! तुम इस्लाम की शहजादी हो अल्लाह ने तुम्हें बेशकीमती बनाया है इसलिए पर्दे का एहतराम करो हिजाब कोई चॉइस नहीं बल्कि अल्लाह का हुक्म है जब बाहर निकलें तो हिजाब पहनें अगर आप हिजाब नहीं पहनती हैं तो घर से बाहर जाते वक्त एक चादर जरुर लें और आप चेहरे का पर्दा नहीं कर सकती तो कम से कम सर तो कवर करें अपनी कीमत को समझें गौर करें जरा।
सर्दी और गर्मी से बचने का इंतज़ाम तो हम और आप करते हैं पर जहन्नम की आग से बचने के लिए अल्लाह के हदों को क्यों तोड़ कर अपनी आखिरत खराब कर रहे हैं ? कुछ बच्चियां बातिल निज़ाम के बहकावे में आकर स्कूल और कॉलेजों में डांस कर रही हैं मूर्तियों के सामने हाथ जोड़ कर पूजा कर रही हैं जो कि शिर्क है और अफ़सोस की बात है कि घर वाले रोकने की बजाए इस बेहयायी में उसे प्रमोट कर रहे हैं और मुस्लिम मुआश्रे के नौजवान खड़े होकर तमासा देख रहे हैं ये निहायत ही अफ़सोस की बात है याद रखें म्यूजिक और डांस इस्लाम में सख़्त गुनाह है।
मेरी इल्तिज़ा है बहनों से कि किसी भी गैर मेहरम से दूर रहें आप का वक्त और इज़्ज़त दोनों कीमती है। मेरी कौम की बहनों यकीन जानों अल्लाह के यहा जर्रे - जर्रे का हिसाब तुमकों देना पड़ेगा अब भी वक्त हैं अपने गुनाहों से तौबा कर लो।
अल्लाह तआला का फ़रमान है: "ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, बचाओ अपने-आपको और अपने अहलो-अयाल को उस आग से जिसका ईंधन इन्सान और पत्थर होंगे , जिस पर बहुत ही बहुत ग़ुस्सेवाले और सख़्ती करनेवाले फ़रिश्ते मुक़र्रर होंगे जो कभी अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म भी उन्हें दिया जाता है उसे पूरा करते हैं।" [सूरह तहरीम 6]
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: "उस जात की कसम जिसके हाथ में मेरी जान हैं तुम लोग नेकी का हुक्म देते रहो और बुराई से मना करते रहो वरना अल्लाह तुम पर ऐसा अजाब मुसल्लत कर देगा कि तुम अल्लाह से दुआए करोगें लेकिन तुम्हारी दुआए कुबूल न होगी। [तिर्मिज़ी 2169]
अब उम्मत-ए-मुस्लिमा को गौर करना चाहिए,
क्या हम नेकी का हुक्म देते हैं?
क्या हम बुराई से रोकते हैं?
फ़िरोज़ा
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