हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत
हजरत मुहम्मद ﷺ की जिंदगी इस बात की खुली दलील है कि वह अल्लाह की तरफ से पैगम्बर है। इस बात के सबूत में, मैं आपको मुहम्मद ﷺ की ज़िंदगी एक वाकिया बताता हूं जिससे आप पर हक़ (सत्य) खुल जायेगा कि वाकई मुहम्मद ﷺ अल्लाह के पैगम्बर है।
जब मुहम्मद ﷺ ने हिरक़्ल (शाहे-रोम) को खत लिखकर इस्लाम की दावत दी तो हिरक़्ल ने मुहम्मद ﷺ की तहकीक और तसदीक करने के लिए अरब के लोगों को बुलवाया जो मुल्क ए शाम में तिजारत के लिए जाया करते थे और उनमें से उस वक्त इस्लाम के मुखालिफ अबु सूफियान से उनके बारे में पूछा तो उसने भी मुहम्मद ﷺ की सदाकत (सच्चाई) की खुद गवाही दी। जिससे हिरक़्ल ने भी जान लिया था कि मुहम्मद ﷺ अल्लाह के सच्चे पैगम्बर है।
जब हिरक़्ल (शाहे-रोम) को मुहम्मद ﷺ की तरफ से इस्लाम की दावत मिली तो हिरक़्ल (शाहे-रोम) ने उन के पास क़ुरैश के क़ाफ़ले मैं एक आदमी बुलाने को भेजा और उस वक़्त ये लोग तिजारत के लिये मुल्क शाम गए हुए थे। और ये वो ज़माना था जब मुहम्मद (ﷺ) ने क़ुरैश और अबू-सुफ़ियान से एक वक़्ती अहद किया हुआ था। जब अबू-सुफ़ियान और दूसरे लोग हिरक़्ल के पास एलिया पहुँचे, जहाँ हिरक़्ल ने दरबार तलब किया था। उसके पास रोम के बड़े-बड़े लोग (आलिम, वज़ीर, अमीर) बैठे हुए थे। हिरक़्ल ने उनको और अपने तर्जमान को बुलवाया।
फिर उनसे पूछा कि तुममें से कौन शख़्स रिसालत के दावेदार का ज़्यादा क़रीबी अज़ीज़ है?
अबू-सुफ़ियान कहते हैं कि मैं बोल उठा कि मैं उसका सबसे ज़्यादा क़रीबी रिश्तेदार हूं। (ये सुन कर) हिरक़्ल ने हुक्म दिया कि उसको (अबू-सुफ़ियान को) मेरे क़रीब ला कर बिठाओ और उसके साथियों को उसकी पीठ के पीछे बिठा दो। फिर अपने तर्जमान से कहा कि उन लोगों से कह दो कि मैं अबू-सुफ़ियान से उस शख़्स के (यानी मुहम्मद (ﷺ) के हालात पूछता हूं। अगर ये मुझसे किसी बात मैं झूट बोल दे तो तुम उसका झूट ज़ाहिर कर देना।
(अबू-सुफ़ियान का क़ौल है कि) अल्लाह की क़सम ! अगर मुझे ये ग़ैरत न आती कि ये लोग मुझको झुटलाएँगे तो मैं आप (ﷺ) की निस्बत ज़रूर ग़लत-बयानी से काम लेता।
ख़ैर पहली बात जो हिरक़्ल ने मुझसे पूछी वो ये कि उस शख़्स का ख़ानदान तुम लोगों में कैसा है?
मैंने कहा वो तो बड़े ऊँचे नसब वाले हैं।
कहने लगा इससे पहले भी किसी ने तुम लोगों में ऐसी बात कही थी?
मैंने कहा, नहीं!
कहने लगा अच्छा उसके बड़ों मैं कोई बादशाह हुआ है?
मैंने कहा, नहीं!
फिर उसने कहा बड़े लोगों ने उसकी पैरवी इख़्तियार की है या कमज़ोरों ने?
मैंने कहा, नहीं! कमज़ोरों ने।
फिर कहने लगा उसके ताबेदार बढ़ते जाते हैं या कोई साथी फिर भी जाता है?
मैंने कहा, नहीं!
कहने लगा कि क्या अपने इस दावाए-(नुबूवत) से पहले कभी (किसी भी मौक़े पर) उसने झूट बोला है?
मैंने कहा, नहीं! और अब हमारी उस से (सुलह की) एक मुक़र्ररा मुद्दत ठहरी हुई है। मालूम नहीं वो उसमें क्या करने वाला है। (अबू-सुफ़ियान कहते हैं) मैं इस बात के सिवा और कोई (झूट) इस बातचीत में शामिल न कर सका।
हिरक़्ल ने कहा, क्या तुम्हारी उस से कभी लड़ाई भी होती है?
हमने कहा कि हाँ।
बोला फिर तुम्हारी और उसकी जंग का क्या हाल होता है?
मैंने कहा लड़ाई डोल की तरह है कभी वो हम से (मैदाने-जंग) जीत लेते हैं, और कभी हम उन से जीत लेते हैं।
हिरक़्ल ने पूछा, वो तुम्हें किस बात का हुक्म देता है?
मैंने कहा वो कहता है कि सिर्फ़ एक अल्लाह ही की इबादत करो। उसका किसी को शरीक न बनाओ और अपने बाप-दादा की (शिर्क की) बातें छोड़ दो और हमें नमाज़ पढ़ने, सच बोलने, परहेज़गारी और सिला-रहमी का हुक्म देता है।
हिरक़्ल का जवाब: (ये सब सुन कर) फिर हिरक़्ल ने अपने तर्जमान से कहा कि अबू-सुफ़ियान से कह दे कि:
मैंने तुमसे उसका नसब पूछा तो तुमने कहा कि वो हममें ऊँचे नसब का है और पैग़म्बर अपनी क़ौम में ऊँचे नसब का ही भेजे जाया करते हैं।
मैंने तुम से पूछा कि (दावाए-नुबूवत की) ये बात तुम्हारे अन्दर इससे पहले किसी और ने भी कही थी तो तुमने जवाब दिया कि नहीं तब मैंने (अपने दिल में) कहा कि अगर ये बात इससे पहले किसी ने कही होती तो मैं समझता कि उस शख़्स ने भी उसी बात की तक़लीद की है जो पहले कही जा चुकी है।
मैंने तुम से पूछा कि उसके बड़ों मैं कोई बादशाह भी गुज़रा है? तुमने कहा कि नहीं। तो मैंने (दिल में) कहा कि उनके बुज़ुर्गों में से कोई बादशाह हुआ होगा तो कह दूँगा कि वो शख़्स (इस बहाने) अपने बाप-दादा की बादशाहत और उनका मुल्क (दोबारा) हासिल करना चाहता है।
और मैंने तुमसे पूछा कि इस बात के कहने (यानी पैग़म्बरी का दावा करने) से पहले तुमने कभी उसको बुरा-भला कहने का इलज़ाम लगाया है? तुमने कहा कि नहीं। तो मैंने समझ लिया कि जो शख़्स आदमियों के साथ बुरा-भला कहने से बचे वो अल्लाह के बारे में कैसे झूटी बात कह सकता है।
और मैंने तुम से पूछा कि बड़े लोग उसके पैरो होते हैं या कमज़ोर आदमी। तुमने कहा, कमज़ोरों ने उसकी पैरवी की है तो (असल में) यही लोग पैग़म्बरों के मुत्तबेईन और पैरोकार होते हैं।
और मैंने तुम से पूछा कि उसके साथी बढ़ रहे हैं या कम हो रहे हैं। तुमने कहा कि वो बढ़ रहे हैं और ईमान की कैफ़ियत यही होती है। यहाँ तक कि वो कामिल हो जाता है।
और मैंने तुम से पूछा कि आया कोई शख़्स उसके दीन से नाख़ुश हो कर मुर्तद (इस्लाम को छोड़ देना) भी हो जाता है? तुमने कहा, नहीं! तो ईमान की ख़ासियत भी यही है जिनके दिलों में उसकी ख़ुशी रच-बस जाए वो उससे लौटा नहीं करते।
और मैंने तुमसे पूछा कि आया वो कभी अहद तोड़ते हैं? तुमने कहा, नहीं! पैग़म्बरों का यही हाल होता है कि वो अहद की ख़िलाफ़ वर्ज़ी नहीं करते।
और मैंने तुम से कहा कि वो तुमसे किस चीज़ के लिये कहते हैं। तुमने कहा कि वो हमें हुक्म देते हैं कि अल्लाह की इबादत करो। उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ और तुम्हें बुतों की पूजा से रोकते हैं। सच बोलने और परहेज़गारी का हुक्म देते हैं। इसलिये अगर ये बातें जो तुम कह रहे हो सच हैं तो बहुत जल्द वो उस जगह का मालिक हो जाएगा कि जहाँ मेरे ये दोनों पाँव हैं।
मुझे मालूम था कि वो (पैग़म्बर) आने वाला है। मगर मुझे ये मालूम नहीं था कि वो तुम्हारे अन्दर होगा। अगर मैं जानता कि इस तक पहुँच सकूँगा तो उससे मिलने के लिये हर तकलीफ़ गवारा करता। अगर मैं उसके पास होता तो उसके पाँव धोता। हिरक़्ल ने मुहम्मद (ﷺ) का वो ख़त मँगाया जो आप ने दह्या कलबी (रज़ि०) के ज़रिए हाकिमे-बसरा के पास भेजा था और उसने वो हिरक़्ल के पास भेज दिया था। फिर उसको पढ़ा तो उसमें (लिखा था) :
अल्लाह के नाम के साथ जो बहुत ही मेहरबान और रहम वाला है। अल्लाह के बन्दे और उसके पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) की तरफ़ से ये ख़त है शाहे-रोम के लिये। उस शख़्स पर सलाम हो जो हिदायत की पैरवी करे उसके बाद में आपके सामने दावते-इस्लाम पेश करता हूँ। अगर आप इस्लाम ले आएँगे तो (दीन और दुनिया में) सलामती नसीब होगी। अल्लाह आपको दोहरा सवाब देगा और अगर आप (मेरी दावत से) नाफ़रमानी करेंगे तो आपकी रिआया का गुनाह भी आप ही पर होगा। और ऐ अहले-किताब! एक ऐसी बात पर आ जाओ जो हमारे और तुम्हारे बीच बराबर है। वो ये कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी को उसका शरीक न ठहराएँ और न हम में से कोई किसी को अल्लाह के सिवा अपना रब बनाए।
फिर अगर वो अहले-किताब (इस बात से) मुँह फेर लें तो (मुसलमानो!) तुम उनसे कह दो कि (तुम मानो या न मानो) हम तो एक अल्लाह के इताअत गुज़ार हैं।
अबू-सुफ़ियान कहते हैं : जब हिरक़्ल ने जो कुछ कहना था कह दिया और ख़त पढ़ कर फ़ारिग़ हुआ तो उसके आस-पास बहुत शोर-ग़ुल हुआ; बहुत सी आवाज़ें उठीं और हमें बाहर निकाल दिया गया। तब मैंने अपने साथियों से कहा कि अबू-कब्शा के बेटे (मुहम्मद ﷺ) का मामला तो बहुत बढ़ गया (देखो तो) उस से बनी-असफ़र (रोम) का बादशाह भी डरता है। मुझे उस वक़्त से इस बात का यक़ीन हो गया कि मुहम्मद (ﷺ) बहुत जल्द ग़ालिब हो कर रहेंगे। यहाँ तक कि अल्लाह ने मुझे मुसलमान कर दिया।
(रावी का बयान है कि) इब्ने-नातूर एलिया का हाकिम हिरक़्ल का दरबारी और शाम के नसारा का लाट पादरी बयान करता था कि हिरक़्ल जब एलिया आया तो एक दिन सुबह को परेशान उठा; तो उसके दरबारियों ने पूछा कि आज हम आपकी हालत बदली हुई पाते हैं। (क्या वजह है?) इब्ने-नातूर का बयान है कि हिरक़्ल नुजूमी (नक्षत्रशास्त्री) था इल्मे-नुजूम मैं वो पूरी महारत रखता था। उसने अपने साथियों को बताया कि मैंने आज रात सितारों पर नज़र डाली तो देखा कि ख़तना करने वालों का बादशाह हमारे मुल्क पर ग़ालिब आ गया है। (भला) इस ज़माने में कौन लोग ख़तना करते हैं? उन्होंने कहा कि यहूद के सिवा कोई ख़तना नहीं करता। सौ उन की वजह से परेशान न हों। सल्तनत के तमाम शहरों मैं ये हुक्म लिख भेजिये कि वहाँ जितने यहूदी हूँ सब क़त्ल कर दिये जाएँ। वो लोग इन्ही बातों में मशग़ूल थे कि हिरक़्ल के पास एक आदमी लाया गया। जिसे शाहे-ग़स्सान ने भेजा था। उसने मुहम्मद (ﷺ) के हालात बयान किये। जब हिरक़्ल ने (सारे हालात ) सुन लिये तो कहा कि जा कर देखो वो ख़तना किये हुए है या नहीं? उन्होंने उसे देखा तो बतलाया कि वो ख़तना किया हुआ है। हिरक़्ल ने जब उस शख़्स से अरब के बारे में पूछा तो उसने बतलाया कि वो ख़तना करते हैं। तब हिरक़्ल ने कहा कि ये ही (मुहम्मद ﷺ) इस उम्मत के बादशाह हैं जो पैदा हो चुके हैं। फिर उसने अपने एक दोस्त को रूमिया ख़त लिखा और वो भी इल्मे-नुजूम मैं हिरक़्ल की तरह माहिर था। फिर वहाँ से हिरक़्ल हिम्स चला गया। अभी हिम्स से निकला नहीं था कि उसके दोस्त का ख़त (उसके जवाब में) आ गया। उसकी राय भी मुहम्मद (ﷺ) के ज़ुहूर के बारे में हिरक़्ल के मुवाफ़िक़ थी कि मुहम्मद (ﷺ) (वाक़ई) पैग़म्बर हैं। उसके बाद हिरक़्ल ने रोम के बड़े आदमियों को अपने हिम्स के महल मैं तलब किया और उसके हुक्म से महल के दरवाज़े बन्द कर लिये गए। फिर वो (अपने ख़ास महल से) बाहर आया और कहा: ऐ रोम वालो! क्या हिदायत और कामयाबी मैं कुछ हिस्सा तुम्हारे लिये भी है? अगर तुम अपनी सल्तनत की बक़ा चाहते हो तो फिर इस नबी की बैअत कर लो और मुसलमान हो जाओ।
रेफरेंस: [सहीह बुखारी : 7]
इस वाकिया में मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैगम्बर होने के साथ साथ इस बात का भी सबूत है कि बहुत जल्द मुहम्मद ﷺ सब पर गालिब आ जायेंगे। और ये भविष्यवाणी हर्फ वा हर्फ पूरी हुई।
इस वाकिए को पढ़कर कोई भी अकलमंद इंसान मुहम्मद ﷺ की जिंदगी पर गौर ओ फिक्र करेगा तो उसपर हक़ (सत्य) खुल जायेगा कि मुहम्मद ﷺ अल्लाह के सच्चे पैगम्बर है।
मैं जानता हूं कि इस लेख को पढ़ने वाले आप सब भी अकलमंद इंसान है। इसलिए में आप सबको हजरत मुहम्मद ﷺ पर ईमान लाने की दावत देता हूं जिससे आप मुहम्मद ﷺ की तालीमात पर चलकर अपने रब को राज़ी करें और अपने इस दुनिया में आने का मकसद पूरा करें। जिससे आप इस दुनिया के बाद की जिंदगी में कामयाब हो।
By- इस्लामिक थियोलॉजी
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