79. Al-Barr | Asma ul husna - 99 Names Of Allah

 
al barr asma al husna tamaam nekiyon ka zariya

अल बर्र -  ٱلْبَرُّ

अल्लाह ﷻ नाम सर्वशक्तिमान, सारी क़ायनात बनाने वाले ख़ालिक का वो नाम है, जो कि सिर्फ उस ही के लिए है और इस नाम के अलावा भी कई और नाम अल्लाह के हैं जो हमे अल्लाह की खूबियों से वाकिफ़ करवाते हैं। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक नाम है अल बर्र

अल बर्र - इसके रुट है ب ر ر जिसका मतलब है -निहायत एहसान करने वाला, भलाई  पहुँचाने वाला, खैर पहुंचाने वाला, नेकिया करवाने वाला, बेहिसाब फायदा पहुंचाने वाला । अल बर्र  जो अपने बन्दों पर मेहरबान है, मेहरबानियां करने वाला। 


لَنۡ تَنَالُوا الۡبِرَّ حَتّٰى تُنۡفِقُوۡا مِمَّا تُحِبُّوۡنَ
तुम हरगिज़ (भलाई/खैर)नेकी  नहीं पा सकते जब तक तुमअपनी मनपसंद चीज़ अल्लाह की राह में खर्च न कर दो। 
अल क़ुरआन 3:92 

अल बर्र, क़ुरआन में एक ही बार आया है 

إِنَّا كُنَّا مِن قَبۡلُ نَدۡعُوهُۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡبَرُّ ٱلرَّحِيمُ
बेशक हम इससे पहले उसी को पुकारते थे,  वो वाक़ई बड़ा ही मोहसिन और रहीम है। 
अल क़ुरआन 52 : 28 

अल बर्र, अल्लाह सुब्हान व तआला की वो सिफ़ात बताता है के जिसमे अल्लाह की बेशुमार रहमत और फज़ल उसके बन्दों पे करता है, और अल्लाह का हर फैसला हिकमत से भरा और उसके बन्दों की भलाई के लिए ही होता है। अल्लाह की रहमत का अंदाज़ा लगाना और बयां करना मुमकिन ही नहीं। हम कभी भी अल्लाह सुब्हान व तआला की अता की हुई नेमतों का हिसाब लगाना चाहें तो ये इंसान के लिए मुमकिन ही नहीं है। अल्लाह सुब्हान व तआला की नेमतें बेहिसाब हैं, हमारे दिलों में रहमत और शफकत दी के हम अपने आस पास के लोगों पर रहम कर सकें, हमें चलने फिरने रहने सोने और पैदावार करने के लिए ज़मीं दी, हर रोज़ न जाने कितने नुक़सानात से हमारी हिफाज़त करता है, हमारी दुआयें सुनता और क़ुबूल करता है, हमारे गुनाहो को माफ़ करता है और हमारी छोटी छोटी नेकियों का बेहिसाब अजर देता है। हमारी रहनुमाई के लिए अम्बिया भेजें और हक़्क़ और बातिल में फर्क करने के लिए क़ुरआन दिया ताकि हम बेमक़सद ज़िन्दगी न जियें बल्कि एक हमारी ज़िन्दगी का एक बेहतरीन मक़सद हो। यक़ीनन अल्लाह सुब्हान व तआला की रहमत और शफकत बेहिसाब है और हमारे लिए आसानी फ़राहम करने वाली है। सुरह बक़रह की आयत 185 में "अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी करना चाहता है और तुम्हे मुश्किल में डालना नहीं चाहता। 



شَهۡرُ رَمَضَانَ ٱلَّذِيٓ أُنزِلَ فِيهِ ٱلۡقُرۡءَانُ هُدٗى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَٰتٖ مِّنَ ٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡفُرۡقَانِۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ ٱلشَّهۡرَ فَلۡيَصُمۡهُۖ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٖ فَعِدَّةٞ مِّنۡ أَيَّامٍ أُخَرَۗ يُرِيدُ ٱللَّهُ بِكُمُ ٱلۡيُسۡرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ ٱلۡعُسۡرَ وَلِتُكۡمِلُواْ ٱلۡعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُواْ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَىٰكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
रमज़ान वो महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया, जो इन्सानों के लिये सरासर रहनुमाई है और ऐसी वाज़ेह तालीमात पर मुश्तमिल है जो सीधा रास्ता दिखानेवाली और सच और झूठ का फ़र्क़ खोलकर रख देनेवाली हैं। इसलिये अब से जो शख़्स इस महीने को पाए, उसके लिये ज़रूरी है कि इस पूरे महीने के रोज़े रखे। और जो कोई बीमार हो या सफ़र पर हो, तो वो दूसरे दिनों में रोज़ों की गिनती पूरी करे। अल्लाह तुम्हारे साथ नरमी करना चाहता है, सख़्ती करना नहीं चाहता। इसलिये ये तरीक़ा तुम्हें बताया जा रहा है, ताकि तुम रोज़ों की गिनती पूरी कर सको और जिस सीधे रास्ते पर अल्लाह ने तुम्हें लगाया है, उस पर अल्लाह की बड़ाई का इज़हार व एतिराफ़ करो और शुक्रगुज़ार बनो। - अल क़ुरआन 2 : 185


यहाँ तक के इंसान की नेकियों और गुनाहों का बदला भी अल्लाह की रहमत और शफकत पर मब्नी है। हम सोच सकते हैं के जैसा करोगे वैसा भरोगे , यानि अगर नेकी करि तो अच्छा और गुनाह किया तो उसका उतना ही बदला मगर अल्लाह सुब्हान व तआला अर रहमान और अर रहीम हैं तो इसका अजर भी अल्लाह सुब्हान व तआला की बेशुमार रहमत पर मबनि है। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: अल्लाह का इरशाद है: "ऐ फ़रिश्तो! जब मेरा बन्दा किसी बुराई का इरादा करे तो जब तक वो उसपर अमल करे तो फिर उसके बराबर गुनाह लिखो और अगर वो उसके मुताबिक़ अमल करे तो फिर उसके बराबर गुनाह लिखो। अगर वो मेरे ख़ौफ़ से उस बुराई को तर्क कर दे तो उसके लिये एक नेकी लिखो और अगर कोई बन्दा नेकी करना चाहे तो उसके लिये इरादे ही पर एक नेकी लिख दो और अगर उसपर अमल कर ले तो दस गुना से सात सौ गुना तक नेकी लिखो।" बुखारी 7501

एक मोमिन के लिए अल्लाह तआला का नाम अल बर्र के मायने जानने से बहुत फायदा होता है। अपने रब की अज़ीम रहमत और शफकत की सिफ़ात को समझता है और अपने रब का शुक्रगुज़ार बाँदा बनता है और अपने रब से मुहब्बत करता है। इससे हम ये जान पाते हैं के अल्लाह की मदद हर वक़्त हमारे क़रीब है और जब भी हम पुकारते हैं अल्लाह सुब्हान व तआला जवाब देता है। अल्लाह सुब्हान व तआला का वादा सच्चा है और अगर हम अल्लाह के बतये हुए रस्ते पर चलते हैं तो अल्लाह सुब्हान व तआला हमे हमारी ख्वाहिशो से बहुत ज़्यादा अता करता है। अल्लाह सुब्हान व तआला के इस नाम से मोमिन इस बात को सीख सकते हैं के किस तरह हम नेकियों में आगे बढ़ें और ज़्यादा से ज़्यादा नेकियाँ करें। नबी () की बीवी हज़रत आयशा (रज़ि०) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह () ने फ़रमाया: आयशा! अल्लाह नर्मी करनेवाला है और नर्मी को पसन्द फ़रमाता है। और नर्मी की वजह से वो कुछ देता है जो सख़्तमिज़ाजी की वजह से नहीं देता, वो उसके अलावा किसी भी और बात पर इतना नहीं देता। मुस्लिम 6601
   
तो फिर हम नेकियों से और दया करने से पीछे क्यु हटें ? अच्छी करने से क्यों रुकें ? जब अल्लाह सुब्हान व तआला दूसरों के साथ अच्छे अख़लाक़ से पेश आने वाले से मुहब्बत करता है तो हमे अल्लाह सुब्हान व तआला की क़ुरबत हासिल करने के लिए बेहतरीन अख़लाक़ रखने चाहिए। सही वक़्त पर कुछ सही अलफ़ाज़ किसी इंसान की ज़िन्दगी बदलने के लिए काफी होते हैं।  नरम मिज़ाजी और  करने से हम अपने साथ वालों की ज़िन्दगी में मिठास घोल सकते हैं। मगर वहीँ सिक्के का दूसरा पहलु है के हमारे कुछ अलफ़ाज़ किसी की ज़िन्दगी में ज़हर भी घोल सकते हैं।  लड़ाई झगडे , जंगें , कता रहमी और भी बहुत  सकता है अगर हमने अपनी जुबां का सही इस्तेमाल न किया। हमारी जुबां में हमारी उम्मीद से बहुत ज़्यादा ताक़त होती है. लोगों ने पूछा या रसूलुल्लाह! कौन-सा इस्लाम बेहतर है? तो नबी करीम () ने फ़रमाया, वो जिसके मानने वाले मुसलमानों की ज़बान और हाथ से सारे मुसलमान सलामती मैं रहें। बुखारी 11

आपने फ़रमाया: जिस शख़्स को नर्म ख़ूई से महरूम कर दिया जाए, वो भलाई से महरूम कर दिया जाता है। मुस्लिम 6598

ये हमारे नबी ﷺ की शिक्षा है और यही वजह है के हर मोमिन नबी करीम से इतनी मुहब्बत करता है क्युकी नबी ﷺ ने मुहब्बत और नेक अख़लाक़ फ़ैलाने और सीखने का कोई भी मौका जाने न दिया। ये न सोचें के आपके बच्चे जानते हैं के आप उन पर फख्र करते हैं भरोसा करते हैं, बल्कि उन्हें ये बताने के लिए वक़्त निकालें , ये मानकर न चलें के आपके शरीक ऐ हयात (अज़्वाज) जानते हैं के आप उनसे कितनी मुहब्बत करते हैं बल्कि उन्हें ये एह्साह करने और बताने के लिए वक़्त निकालें। दूसरों के लिए अच्छे अलफ़ाज़ और अच्छे अख़लाक़ हमेशा रखें वर्ण शैतान हमारे अच्छे अख़लाक़ की कमी को दुश्मनी , बुग्ज़ और हसद से भर देता है। और हमारे अख़लाक़ की वजह से जो नेकियाँ हम कमाएंगे वो आख़िरत में हमारे काम आएंगे जब कोई किसी के काम न आएगा और किसी भी तरह की सिफारिश या बदला क़ुबूल न किया जायेगा।





अल-मुता’अली             Asma ul Husna         अत तव्वाब 

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