Burai se bhalai tak ka safar ek mushkil kaam

Burai se bhalai tak ka safar ek mushkil kaam

बुराई से अच्छाई की तरफ़ हिजरत

इंसान गुनाहों का पुतला है और जानें अनजाने में हर इंसान कहीं न कहीं गुनहगार ज़रूर होता है मगर बुराई और गुनाह के लेने के बाद कोई शख़्स तौबा कर ले तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त माफ़ करने वाला है। 

अल्लाह तआला का फ़रमान है:

"मगर तौबा उन लोगों के लिये नहीं है जो बुरे काम किए चले जाते हैं, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मौत का वक़्त आ जाता है उस वक़्त वो कहता है कि अब मैंने तौबा की और इसी तरह तौबा उनके लिये भी नहीं है जो मरते दम तक काफ़िर [हक़ के इनकारी] रहें ऐसे लोगों के लिये तो हमने दर्दनाक सज़ा तैयार कर रखी है।" 
[क़ुरआन 4: 18] 

हमारे समाज में एक कहावत कही जाती है "सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को" यह कहावत बहुत मशहूर है और खासकर उनके लिए कही जाती है जो बुराई से अच्छाई की तरफ बढ़ते हैं। 

हमारे समाज में तरह तरह के लोग रहते हैं कोई अच्छा है तो कोई बुरा, किसी में अच्छाइयां ज़्यादा है तो किसी में बुराइयां पर मुकम्मल तौर पर कोई ना अच्छा है और ना ही कोई बुरा। 

कोई इंसान जब तक बुराई करता रहता है लोग उसे सिर्फ एक ही नज़र से देखते हैं कि वह बुरा है सिर्फ और सिर्फ बुरा है। उसकी बुराई पर तंकीद करते रहते हैं लेकिन वही इंसान जब अच्छाई की तरफ बढ़ता है तो भी लोगों को किसी तरह से सुकून नहीं आता वह तब भी उसके पीछे पड़े रहते है, उसका इतना मज़ाक बनाया जाता है कि वह तंग आकर वापस बुराई की तरफ़ पलटने पर मजबूर हो जाता है।

हम ये नहीं समझते की हिदायत सिर्फ अल्लाह के हाथ में है इंसान सिर्फ़ कोशिश कर सकता है अच्छाई की तरफ़ जानें की और बुराई से बचते रहने की ।

अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है और जिसे वह हिदायत दे दे उसे कोई गुनाह या बुराई की तरफ नहीं ला सकता। और अगर वह किसीको बुराई पर लाना चाहे तो उसे कोई अच्छाई की तरफ नहीं ला सकता। किसी भी इंसान का बुराई से अच्छाई की तरफ आना कई बातों पर निर्भर (डिपेंड) करता है-


1. खौफ ए खुदा

सबसे पहले इंसान के दिल में अल्लाह का खौफ होना चाहिए। इंसान बुराई पर तभी अमादा होता है जब उसके दिल से ये डर निकल जाता है। दो लोगों के दरमियान आप फर्क़ देख सकते हैं एक शख़्स जो अल्लाह के गज़ब, क़ब्र के अजा़ब, मौत के बाद की जिंदगी, आख़िरत के दिन, क़यामत वगैरा पर यकी़न रखता है वो कोई भी गलत काम करने से डरता है। आख़िरत मे उसकी पकड़ होगी ये सोच कर बुराई से खुद को रोकने की जी जान से कोशिश करता है और अल्लाह के फज़ल से कामयाब भी हो जाता है वहीं दूसरी तरफ जिसमें इन बातों का खौफ़ नहीं वो और ज़्यादा बुराई मे मुब्तला होता चला जाता है। 

हम में से हर इंसान को चाहिए कि ख़ुद भी बुराई से बचे और दूसरों को भी बचाए और ये तब होगा जब हम अल्लाह के हुक्म की फर्माबरदारी करें। अल्लाह तआला कुरान में फरमाता है: 

"अब दुनिया में वो बेहतरीन गरोह तुम हो जिसे इनसानों की रहनुमाई और सुधार के लिये मैदान में लाया गया है। तुम नेकी का हुक्म देते हो, बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो। ये किताबवाले ईमान लाते तो इन्हीं के हक़ में अच्छा था। हालाँकि इनमें कुछ लोग ईमानवाले भी पाए जाते हैं, मगर इनके ज़्यादातर लोग नाफ़रमान हैं।" [क़ुरआन 3: 110]


2. अल्लाह से मोहब्बत

जब किसी इंसान से मोहब्बत होती है तो जी चाहता है उसको खुश रखने के लिए क्या से क्या कर दिया जाए। उसी छोटी छोटी बातें दिल मे बैठ जाती हैं, दूर रह कर भी उसका ख़याल हमे उससे दूर नहीं होने देता, उसे जो पसंद नहीं होता हमे भी उस चीज़ से नफ़रत हो जाती है और उसकी पसंद हमारी पसंद बन जाती है। 

जब एक मख़लूक (इंसान) की मोहब्बत का ये असर होता है जिसे अल्लाह ने बनाया है तो फिर सोचें अगर यही मोहब्बत ख़ालिक (अल्लाह) से हो तो जिंदगी मे क्या रंग आएगा? 


3. बुराई को बुराई जानना

आप कभी भी बुराई को तब तक नहीं छोड़ सकते जब तक आप उसे बुरा ना जाने। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बुराई में इस कदर मुब्तला होते हैं कि वह बुराई को छोड़ना भी चाहे तो वह छोड़ नहीं पाते लेकिन दिल ही दिल सोचते रहते कि वह गलत राह पर है, वह बुराई पर है और इस राह को छोड़ देना चाहिए। वह शख़्स जब भी किसी नेक इंसान के सामने आता हैं तो खुद को बहुत ही ज्यादा कमजो़र और बेबस महसूस करता है और अल्लाह पाक से दुआ करता रहता है कि वह उसे इस बुराई से निकाल दे। एक हदीस में आता है बुराई को दिल में बुरा जानना भी ईमान का हिस्सा है। 

अबू सईद खुदरी (र.अ) से रिवायत है की रसूलअल्लाह (सलअल्लाहू अलैही वसल्लम) ने फरमाया, 

“तुम में से जो शख्स कोई बुरी बात देखे और उसको अपने हाथ से रोक दे तो वो शख्स (ज़िम्मे से) बरी हो गया, अगर उसमें इतनी ताक़त ना हो और वो ज़ुबान से रोके तो वो बरी हो गया , और अगर इतनी भी ताक़त ना हो तो वो दिल से बुरा समझे तो वो बरी हो गया , ये ईमान का सबसे कम दर्जा है।" [सुनन नसाई 1310 सहीह] 


5. अच्छा बनने की कोशिश में लगे रहना

जब हम किसी काम को करने की कोशिश में लगे रहते हैं भले ही वह चाहे कितना मुश्किल क्यों ना हो वह काम एक दिन हम कर ही डालते हैं जैसे मान लीजिए आपको एक मोटरसाइकिल पसंद है और आप उसे लेना चाहते लेकिन आपकी हैसियत इतनी नहीं है कि आप उसे ले सकें। तब आप क्या करेंगे? ज़ाहिर सी बात है आप दिन रात मेहनत करेंगे और ज्यादा पैसे कमाने की कोशिश करेंगे ताकि आप उस मोटरबाइक को खरीद सकें। अब यहां आपने कोशिश की क्यूंकि वो चीज़ आपको पसंद आई और आपने उसे लेने के लिए दिन रात एक कर दिया, आख़िर में आकर आपको वह चीज़ मिल ही गई। 

इसी तरह जब हम दिल में किसी चीज को बुरा जानते हैं और उस चीज से निकलने की कोशिश में लग जाते हैं तो एक ना एक दिन हम उस चीज़ से बाहर निकल ही आते हैं। रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया,

"सारे इंसान खताकार हैं और खताकारों में सब से बेहतर वो हैं जो तौबा करने वाले हैं।" [जामे तिर्मिजी : 2499 )


6. दिल में अच्छे बनने की नियत रखना

आप तब तक अच्छे नहीं बन सकते जब तक आपके दिल मे ये बात ना हो। इंसान अच्छा होने के बावज़ूद गुनाह कर बैठता है क्यूंकि कहीं ना कहीं वो दिल में ये सोच रहा होता है इस से क्या होगा हम तौबा कर लेंगे अल्लाह बड़ा रहीम है माफ़ कर देगा। बस ये मामूली सी दिखने वाली बात इंसान से गुनाह करा देती है पर जो पहले ही गुनाहों मे फंसा हुआ होता है उसका दिल दिन रात इसी फ़िक्र मे होता है के कैसे मैं बुराई से निकलूं और कभी गुनाह ना करूँ। अल्लाह का फ़रमान है: 

"अलबत्ता जो तौबा कर ले और ईमान ले आए और अच्छे काम करें फिर सीधा चलता रहें उसके लिए मैं बहुत माफ करने वाला हूं।" [क़ुरआन 20: 82]

ये तो चंद बातें है अगर तफ़सील मे बात करें तो और भी बहुत कुछ है कहने को मगर बात यहा एक कहावत की है "सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को"। किसी भी इंसान को बुराई से भलाई की तरफ आने मे बहुत मेहनत, निदामत और दुआएँ करनी पड़ती हैं तब कहीं जाकर अल्लाह उससे राज़ी होता है और हम अपने इस मुहावरे से उसके दिल के हजारों टुकड़े कर देते हैं। कभी कभी ये भी होता है के लोग बातों से तंग आकर वापस गुनाहों की दुनिया मे लौट जाते हैं। गौर करने वाली बात ये है कि हम में से कोई ऐसा नहीं है जिसने गुनाह ना किया हो पर अफसोस हम अपने गुनाहों को छुपा लेते है और खुद को तरह सकझते हैं जैसे हम फ़रिश्ते हो पर ये भूल जाते है जिस रब ने हमारे गुनाहों की पर्दापोशी की वही इसे ज़ाहिर करने वाला भी है तो जा़रा सोचे अगर आपके गुनाह दुनिया के सामने आ जाए तो आप खुद को शर्म से कहां छुपायेगे?

मेरा अल्लाह बड़ा मेहरबान है उसने मुझे और आपको वो इज्ज़त बख़्शी है जिसके लायक हम नहीं थे तो फिर क्यूँ हम किसी के लिए "सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को" जैसे मुहावरे कहते हैं। जिसने हमे हिदायत दी, इज्ज़त दी वही सबको हिदायत देने वाला है बस इस बात का खयाल रखें खुद भी खुश रहें और दूसरों को भी खुश रखें। अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया कि, 

"मेरा पैगाम लोगों तक पहुचाओं अगरचे तुम एक ही आयत जानते हो।" [सहीह बुख़ारी 3461]


Posted By Islamic Theology

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