इजार या पैन्ट टखने से नीचे पहनने का गुनाह
"और लोगों के सामने (गुरुर से) अपना मुँह न फुलाना और ज़मीन पर अकड़कर न चलना क्योंकि ख़ुदा किसी अकड़ने वाले और इतराने वाले को दोस्त नहीं रखता और अपनी चाल ढाल में मियाना रवी एख्तेयार करो।" [सूरह लुकमान -18]
और कई आयातों में तकब्बुर का जिक्र आया है मैं मुख़्तसर कर रहा हूं।
अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (रज़ि०) से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, "जिसके दिल में राई के दाने के बराबर भी तकब्बुर होगा वो जन्नत में नहीं जाएगा।" [सहीह मुस्लिम: 266]
तो हमें पता चला की तकब्बुर करना बड़ा गुनाह है।
अब्दुल्लाह-बिन-वाक़िद ने हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि०) से रिवायत की, कहा: मैं रसूलुल्लाह (ﷺ) के क़रीब से गुज़रा, मेरी कमर की चादर किसी हद तक लटक रही थी तो आपने फ़रमाया: "अब्दुल्लाह! अपनी चादर ऊपर कर लो।" मैं ने अपनी चादर ऊपर कर ली। आपने फ़रमाया: और ज़्यादा कर लो मैंने और ज़्यादा ऊपर की, फिर मैं उसको ऊपर करता रहा यहाँ तक कि कुछ लोगों ने कहा कि कहाँ तक (ऊपर करे)? आप (सल्ल०) ने फ़रमाया: "पिंडलियों के आधे हिस्सों तक।" [सहीह मुस्लिम 5462]
लेकिन दूसरी रिवायतो में आता है के पिंडलियों के निचे और टखनो से ऊपर तक कर सकते है।
जैसे: हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि०) से रिवायत हुई है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "तहबंद की जगह आधी पिंडली है जहाँ मोटा पुट्ठा होता है। अगर तू वहाँ तक नहीं चाहता तो कुछ नीचा कर ले और अगर तू वहाँ भी नहीं रखना चाहता तो पिंडली से नीचे कर ले। लेकिन तहबंद का टख़नों पर कोई हक़ नहीं।" ये अलफ़ाज़ उस्ताद मुहम्मद (इब्ने-क़ुदामा) के हैं। [सुनन नसाई -5331]
इब्ने हजर असकलानी र.अ फरमाते हैं कि एक हद तक मुस्तहब यह है कि मोमिन इजार लूंगी आधी पिंडलियों तक पहनने पर अमल करें और दूसरी हद यह है कि इजार की आखिरी हद तक टखनों तक है यानी टखनों के ऊपर तक। [फहत उल बारी 10/220]
हज़रत अबू-ज़र (रज़ि०) ने कहा उन्होंने नबी ﷺ से रिवायत की कि आपने फ़रमाया: "तीन (तरह के लोग) हैं अल्लाह उन से बातचीत नहीं करेगा, न क़ियामत के दिन उन की तरफ़ देखेगा और न उन्हें (गुनाहों से) पाक करेगा और उन के लिये दर्दनाक अज़ाब होगा।" अबू-ज़र (रज़ि०) ने कहा: आपने इसे तीन बार पढ़ा। अबू-ज़र (रज़ि०) ने कहा : नाकाम हो गए और नुक़सान से दो चार हुए, ऐ अल्लाह के रसूल! ये कौन हैं? फ़रमाया: "अपना कपड़ा टख़नों से नीचे लटकाने वाला, एहसान जताने वाला और झूटी क़सम खाकर अपने सामान की माँग बढ़ाने वाला।" [सहीह मुस्लिम 293, 294]
नोट: और जब अल्लाह के रसूल किसी बात को तीन बार दोहराए तो वो बड़ी खतरनाक होती है तो हम अंदाजा लगा सकते है की टख़नों से नीचे लटकाने का क्या अज़ाब है।
हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०) से तहबंद के बारे में दरयाफ़्त किया, तो उन्होंने कहा कि इल्म और ख़बर रखनेवाले साहिब से तुम्हारा वास्ता पड़ा है। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है: "मुसलमान का तहबंद आधी पिंडली तक होता है। आधी पिंडली से टख़नों तक के बीच में कोई हरज नहीं और जो टख़नों से नीचे हो वो आग में है जिसने तकब्बुर से अपना तहबंद घसीटा अल्लाह तआला उसकी तरफ़ नहीं देखेगा।" [अबू दाउद 4093]
सैय्यदना खुरैम बिन अशदी र.अ बयान करते है के रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मुझ से फ़रमाया के ए खुरैम तू बड़ा अच्छा आदमी है काश अगर तुझमे ये दो आदते न होती, मैं ने कहा या अल्लाह के रसूल (ﷺ) कौन सी आपने फ़रमाया तुम्हारा तहबन्द तखनो से नीचे लटकाना और बाल ज्यादा लम्बे रखना। [मुसनद अहमद 19246]
नोट: तो साबित हुआ के ज्यादा लंबे बाल भी नही रख सकते।
क्या टख़नों से नीचे कपडा हो तो नमाज होगी?
जी नही।
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) बयान करते हैं कि एक बार एक आदमी नमाज़ पढ़ रहा था और वो अपना तहबन्द टख़नों से नीचे लटकाए हुए था। रसूलुल्लाह ﷺ ने (देखा तो) उससे फ़रमाया: जाओ और वुज़ू करके आओ। चुनांचे वो गया और वुज़ू करके आया। आपने उसे दोबारा फ़रमाया: जाओ और वुज़ू करके आओ। चुनांचे वो गया और वुज़ू करके आया। तो एक आदमी ने आपसे कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! किस वजह से आपने उसे वुज़ू करने का हुक्म दिया? फिर आप इससे ख़ामोश हो रहे? आपने फ़रमाया: "ये शख़्स अपना तहबन्द लटका कर नमाज़ पढ़ रहा था और अल्लाह तआला ऐसे बन्दे की नमाज़ क़बूल नहीं करता जो अपना तह बन्द लटका कर नमाज़ पढ़ रहा हो।" [अबू दाउद 638]
हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (रज़ि०) बयान करते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना आप फ़रमाते थे: "जिसने नमाज़ में तकब्बुर करते हुए अपना तहबंद टख़नों के नीचे लटकाया अल्लाह उसके गुनाह माफ़ नहीं फ़रमाएगा न बुरे कामों से उसे बचाएगा। (या उसके लिये जन्नत को हलाल और जहन्नम को हराम नहीं फ़रमाएगा या जब वो अल्लाह की तरफ़ से किसी हलाल काम में नहीं तो इसके लिये भी कोई एहतिराम न होगा।" [अबू दाउद 637]
क्या टख़नों से निचे कपड़ा लटकाना ही तकब्बुर?
जी हाँ।
हज़रत अबू-जरी जाबिर -बिन- सुलैम (रज़ि०) कहते हैं कि आप ﷺ ने फ़रमाया : "मैं उस अल्लाह का भेजा हुआ हूँ कि जब तुम्हें कोई दुःख पहुँचे और तुम उसे पुकारो तो वो उसे तुम से दूर कर दे अगर तुम्हें ख़ुश्क साली का सामना हो तुम उससे दुआ करो तो वो तुम्हारी खेतियाँ उगा दे। जब तुम किसी रेगिस्तान या वीरान और बंजर ज़मीन में हो और तुम्हारी सवारी गुम हो जाए और तुम उसे पुकारो तो वो उसे तुम्हें वापस लौटा दे।" मैंने कहा कि मुझे कोई वसीयत फ़रमाएँ, आप ने फ़रमाया: "किसी को गाली न देना।" कहते हैं कि इस के बाद मैंने किसी को गाली नहीं दी किसी आज़ाद को न ग़ुलाम को ऊँट को न बकरी को। आप ने फ़रमाया: किसी नेकी को हक़ीर मत जानना अपने भाई से बात करो तो खुले चेहरे से बात किया करो बेशक ये नेकी है और अपनी चादर आधी पिंडली तक ऊँची रखा करो और अगर न कर सको तो टख़नों तक कर सकते हो। (टख़नों से नीचे ) चादर लटकाने से बचना। “बेशक ये तकब्बुर है” और अल्लाह तआला तकब्बुर को पसन्द नहीं करता। और अगर कोई शख़्स तुम्हें बुरा भला कहे और तुम्हें तुम्हारी किसी बात पर जो वो जानता हो शर्म दिलाए तो तुम उसके ऐब पर जो उसमें हो उसे शर्म मत दिलाना बेशक उसका वबाल उसी पर होगा। [अबू दाउद 4084]
औरतें कपड़ा कहाँ रखें?
हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि०) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "जो शख़्स तकब्बुर से अपना कपड़ा लटकाए, अल्लाह उसकी तरफ़ (रहमत की नज़र से) नहीं देखेगा।"
हज़रत उम्मे-सलमा (रज़ि०) ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! औरतें अपने दामनों से क्या सुलूक करें? आपने फ़रमाया: वो (मर्दों से) एक बालिश्त नीचा रख लें। उन्होंने कहा: फिर तो उनके पाँव नंगे होंगे। आपने फ़रमाया: फिर वो एक हाथ लटका लें लेकिन इससे ज़्यादा नहीं। [सुनन नसाई -5338, 5339 5340, 5341 सहीह]
नोट: पता चला कि औरतों का लिबास कैसे होता है अब कोई सवाल नहीं कर सकता कि औरतों का अलग से कोई हदीस या मोहद्दिस ने कोई चैप्टर नही बाँधा या कोई हिकमत अल्लाह के नबी ﷺ ने नहीं बताई है लिहाजा यह साफ हो गया है कि औरतों का लिबास कहां तक होना चाहिए और मर्दों का कहां पर होना चाहिए।
आखिर में आपका शक दूर करना चाहता हूं की तकब्बुर क्या है?
हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (रज़ि०) से रिवायत नबी करीम ﷺ फ़रमाया: "जिसके दिल में ज़र्रा बराबर तकब्बुर होगा, वो जन्नत में दाख़िल नहीं होगा।" एक आदमी ने कहा: इन्सान चाहता है कि उसके कपड़े अच्छे हों और उसके जूते अच्छे हों! आप ने फ़रमाया: "अल्लाह ख़ुद ख़ूबसूरत है, वो ख़ूबसूरती को पसन्द फ़रमाता है। तकब्बुर, हक़ को क़बूल न करना और लोगों को हक़ीर और तुच्छ समझना है।" [सही मुस्लिम 265]
तो पिछली हदीस गुजर चुकी है खुरैम (रज़ि०) वाली जिसकी नबी करीम ﷺ ने तारीफ़ की। और नबी करीम ﷺ का फरमाना और उसको कबूल करना हक बात कबूल करना है और जो इस बात पर अमल करे यानी अपना तहबंद टख़नों से ऊपर करे और दूसरा उसको देख कर घिन करे तो इसका मतलब है वो उसको हकीर समझ रहा है
अल्लाह से दुआ है के हमें तकब्बुर जैसे बड़े गुनाह से महफूज रखे।
आमीन।
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