Mohabbat: Kyun, Kisse Aur Kaise?

 

Mohabbat: Kyun, Kisse Aur Kaise?

मोहब्बत: क्यों, किससे और कैसे?

जब हम इस बिगड़े हुए और बिगड़ते हुए समाज पे नज़र डालते हैं तो ये ख्याल आता है कि इन्हें कैसे सुधारें क्योंकि आज कल लोग बुराई को बुराई मान ही नहीं रहें हैं बल्कि उसे अपनी तफ़री का सामान समझते हैं आप गौर करें तो समझ आएगा इन सब में सबसे बड़ा हाथ मीडिया का है, मीडिया के लोग बुराई का दिफा (defend) ही नहीं करते हैं बल्कि टीवी debate के ज़रिए उसे popularised कर रहे हैं।

जैसे अभी February का महीना चल रहा है तो इस महीने के कुछ दिनों तक कम उम्र नौजवान बिना गलत सही की तमीज़ किए उस culture को अपनाने लगे हैं जो 15-20 सालों पहले शायद ही कहीं सुना जाता हो और अफसोस की बात ये है कि ये सब कुछ मोहब्बत के नाम पे करते हैं। जिन्हें ना अपने मां बाप की मोहब्बत की कद्र होती है और ना ही उनकी इज़्ज़त का ख्याल रहता है। बल्कि मोहब्बत है क्या इससे भी ला इल्म होते हैं। 

अगर उन्हें पता होता मोहब्बत क्या है तो वो ख़ुद या जिससे मोहब्बत का दावा करते हैं उन्हें यूं बाजारों की ज़ीनत ना बनने देते। किसी की बहन बेटियों को अपनी तफ़री का सामान नहीं समझते और अगर लडकियां भी ख़ुद की इज़्ज़त और हुरमत से बा ख़बर होती तो यूं किसी के भी नहीं चल पड़ती। 


तो आईए जान लेते हैं मोहब्बत क्या है और हम से सबसे ज़्यादा कौन मोहब्बत करता और उसकी मोहब्बत हमें क्या क्या देती है?

मोहब्बत एक एहसास है जो हम महसूस करते हैं जैसे हमारे मां और बाप हम से मोहब्बत है करते हैं और उनकी मोहब्बत हमारे लिए उनसे ना मुमकिन को भी मुमकिन बना देती है। और हमें मां बाप किसने दिय और किसने उनके दिल हमारे लिए unconditional मोहब्बत बेदार की? हम जब अपनी मां के रहम (womb) में होते हैं तो उस हालत को हमल (pregnancy) कहते हैं और हमल का मतलब बोझ। हर मां वो बोझ उठती है कुछ दिनों के नहीं बल्कि 9 महीने तक और बहुत खुशी, मोहब्बत से और उन दिनों मां अपना ख्याल अपने लिए नहीं रखती है बल्की अपने आने वाली औलाद के लिए ये सब करती है। ये मोहब्बत उसके दिल में जिसने पैदा की। और जब हम दुनिया में आए तो हमें वो गिज़ा (mother milk) जो सबसे बेहतरीन है। अब क्या हम उस ज़ात की मोहब्बत का अंदाज़ा कर सकते हैं कि वो हमसे कितनी मोहब्बत करता होगा? उसकी (अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त) की कई सिफात हैं उनमें से एक है:


अल वादूद (most loving/बेहद मोहब्बत करने वाला)

"और वो बख़्शनेवाला है, महब्बत करनेवाला है।" [क़ुरान 85:14]

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपने बंदों और बंदियों से बेहद मोहब्बत करता है और उसके बंदे और बंदियां भी उससे बेहद मोहब्बत करते हैं। लेकिन हम में से बहुत लोगों पता ही नहीं अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मोहब्बत के बारे में, सोचें उसने इतनी खूबसूरत दुनिया बनाई हमारे लिए और हम से कहा ये सिर्फ़ तुम्हारे लिए इम्तेहानगाह है। और जिस दुनिया को हमारे लिए बनाया उसके बारे में,

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

"जन्नत में कूड़ा रखने जितनी जगह दुनिया और इसमें जो कुछ है, सब से बेहतर है।" [सहीह बुखारी: 6415]

जन्नत का तसव्वुर तो इंसानों के बस का नहीं, लेकिन एक अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया खत्म होने की डगर पे है इन्सान ना जाने कितनी तहकीक के बाद भी उसकी ज़्यादातर खिल्कत से बे ख़बर है। और ये उसकी मोहब्बत ही तो है कि उसने दुनिया में बहुत से रिश्ते दिय और एक दूसरे के लिए मोहब्बत दी। अब हमें उसकी मोहब्बत जानने की कोशिश करनी चाहिए है कि वो किस तरह के बंदों और बंदियों से ज़्यादा मोहब्बत करता है?


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त किन लोगों से ज़्यादा मोहब्बत करता है?

ऐ नबी! लोगों से कह दो कि “अगर तुम हक़ीक़त में अल्लाह से मुहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा और तुम्हारी ग़लतियों को माफ़ कर देगा। वो बड़ा माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।" [क़ुरान 3:31]

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की पैरवी करने का मतलब नबी करीम ﷺ की पैरवी करना क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमें अपने अहकमात directly ना पहुंचा कर नबी करीम ﷺ से पहुंचवाया, और नबी करीम ﷺ हमें वही सिखाया जो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की जानिब से उन्हें हुक्म मिला। तो अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की पैरवी करनी चाहिए। फिर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमसे मोहब्बत करेगा और उसकी मोहब्बत बेलौस है। 


दुनियावी मोहब्बत: 

दुनिया अपने गर्ज को मोहब्बत का नाम देती हमें अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करती है। 

जैसे: आज कल चंद रुपयों की चीज़े दे के लोग आपको अपनी तफ़री का सामान समझते हैं।

और कुछ लोगों की बेहीसी की इन्तेहा ये है कि अगर किसी से खूलूस और मोहब्बत से पेश आए तो उसकी भी क़ीमत उसूल लेते हैं।


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तौबा क़ुबूल करने वाला है: 

अगर हमसे कभी जाने अनजाने में कोई गुनाह हो जाता है तो हमारा रब हमें सिर्फ़ माफ़ ही नहीं करता बल्कि उस बिना (तौबा करने) पे हमसे मोहब्बत भी करता है।

"देखो, अपने रब से माफ़ी माँगो और उसकी तरफ़ पलट आओ। बेशक मेरा रब रहम करनेवाला है और अपनी मख़लूक़ (सृष्टि) से मुहब्बत रखता है।" [क़ुरान 11:90]


और दुनिया की मोहब्बत: 

आपकी जिस अदा पे दुनिया आपके क़रीब आती है बाद में वही ऐब बन जाता है। या कोई गलती/बुराई हो तो वो उसे आप में ऐब बता कर आपसे दूरी बना लेते हैं। 

"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अगर तुम में से कोई अपने दीन से फिरता है तो फिर जाए, अल्लाह और बहुतसे लोग ऐसे पैदा कर देगा जो अल्लाह को महबूब होंगे और अल्लाह उनको महबूब होगा, जो ईमानवालों पर नर्म और कुफ़्र करनेवालों पर सख़्त होंगे। जो अल्लाह की राह में जिद्दोजुह्द करेंगे और किसी मलामत करनेवाले की मलामत से न डरेंगे। ये अल्लाह का फ़ज़ल है जिसे चाहता है देता है। अल्लाह वसीअ ज़रिओं (व्यापक संसाधनों) का मालिक है और सब कुछ जानता है।" [क़ुरान 5:54]


जब बंदा अपने रब के दीन फिर जाता है तो उसपे दूसरो (ईमान वालो) का गलबा होता है क्योंकि तब वो ज़ालिम बन जाता है। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त जिससे मोहब्बत करता उसे ताक़तवर बना देता है। और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मोहब्बत पाने का ज़रिए ये है कि हम उसके दीन पे क़ायम रहें और उसे आम करने के लिए संघर्ष करें 


दुनिया की मोहब्बत:

जब हम किसी से मोहब्बत करते हैं तो वो हमारे जज़्बो को अपनी ताक़त और हमारी कमज़ोरी बना लेते हैं और उसी का हवाला दे दे के हमसे अपने ना जायज़ मक़सद/मतलब को पूरा करते हैं।


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मोहब्बत इन्सानों के लिए:

"और ऐ नबी! मेरे बन्दे अगर तुमसे मेरे बारे में पूछें तो उन्हें बता दो कि मैं उनसे क़रीब ही हूँ। पुकारनेवाला जब मुझे पुकारता है, मैं उसकी पुकार सुनता और जवाब देता हूँ, तो उन्हें चाहिये कि मेरी पुकार पर लब्बैक [हम हाज़िर हैं] कहें और मुझपर ईमान लाएँ। ये बात तुम उन्हें सुना दो शायद कि वो सीधा रास्ता पा लें।" [क़ुरान 2:186]

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त, नबी करीम ﷺ से कह रहें हैं कि मेरे बंदों को बता दें कि मैं उनके क़रीब हैं मैं उनकी पुकार सुनता और जवाब भी देता हूं। इंसान को भी चाहिए कि उसकी पुकार पे भी वो हाज़िर हो और ये अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मोहब्बत ही तो है जो अपने सबसे महबूब बंदे (नबी करीम ﷺ) से ये पैग़ाम दिया, मैं उन्हें देखता और सुनता हूं इंसानों से बे ख़बर नहीं हूं वो भी मुझसे बे ख़बर हो के दुनिया में ना मगन हो जाएं और ये उम्मीद जतलाई इन्सान सीधा रास्ता पा ले यानि वो रास्ता जो नबी करीम ﷺ ने दिखाया।

नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया:

"अल्लाह तआला फ़रमाता है कि मैं अपने बन्दे के गुमान के साथ हूँ और जब वो मुझे अपने दिल में याद करता है तो मैं भी उसे अपने दिल में याद करता हूँ और जब वो मुझे मजलिस में याद करता है तो मैं उसे उस से बेहतर फ़रिश्तों की मजलिस में उसे याद करता हूँ और अगर वो मुझसे एक बालिश्त क़रीब आता है तो मैं उस से एक हाथ क़रीब हो जाता हूँ और अगर वो मुझसे एक हाथ क़रीब आता है तो मैं उस से दो हाथ क़रीब हो जाता हूँ और अगर वो मेरी तरफ़ चल कर आता है तो मैं उसके पास दौड़ कर आ जाता हूँ।" [सहीह बुखारी: 7405]

कायनात का खालिक, मालिक और हाकिम हमारी तरफ़ दौड़ कर आता है हमें फरिश्तों की मजलिस में याद करता है।


दुनिया की मोहब्बत: 

जब आप किसी को ज़्यादा याद करना या उसे अहमियत देना शुरू कर देते हैं तो उसे ऐसा लगने लगता है शायद मुझे याद करना और अहमियत देना इसकी ज़रूरत है। और जब आप उसके क़रीब जाने लगेंगे तो वो घबरा जाएंगे। और आपका किसी को ज़्यादा इज़्ज़त अहमियत देना आपकी इज़्ज़त अहमियत कम कर देता है। और आप किसी के लिए हर कुछ करने के लिए तैयार रहते हैं तो फिर आप उसकी ज़रूरत से ज़्यादा कुछ नहीं रह जाते हैं।


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का ऐलान ए मोहब्बत:

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपनी मोहब्बत का ऐलान असमान वालो में करता है और उन्हें हुक्म देता है कि तुम उससे मोहब्बत करो। और ज़मीन पे उनकी इज़्ज़त बढ़ा देता है।

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

"जब अल्लाह किसी बंदे से मोहब्बत करता है तो जिब्राइल (अ०) को बुला कर कहता है, मैं फलां फलां से मोहब्बत करता हूं! आपको इससे मोहब्ब्त करनी चाहिए, फिर जिब्राइल (अ०) उससे मोहब्ब्त करने लगाते हैं फिर वो आसमानों पर ऐलान करते हैं कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फलां से मोहब्बत करता है और तुम भी इससे मोहब्ब्त करो फिर असमान वाले भी इससे मोहब्ब्त करने लगाते हैं और फिर उसे ज़मीन में दी जाती है।" [सहीह मुस्लिम: 2637]


दुनिया की मोहब्बत:

दुनिया वाले जब किसी से नाम निहाद मोहब्बत करते हैं तो उसे किसी पे ज़ाहिर होने नहीं देते हैं क्योंकि उन्हें पता है ये कोई मोहब्बत नहीं और ना इस ताल्लुक का कोई नतिजा है तो ज़ाहिर क्यों करना ख़ामोशी से किसी की ज़िंदगी से खेलो और जब ज़ाहिर हो जाती है तो ज़िल्लत और रुसवाई उसका मुकद्दर होती है।


खुलासा: 

हमें उससे सबसे ज़्यादा मोहब्बत करनी चाहिए जो हमसे बिना किसी मतलब के मोहब्बत करता है और उसकी मोहब्बत हमारा मुकाम बुलंद करती है, ताक़तवर बनाती है, किसी के आगे झुकने नहीं देती है और उसकी मोहब्बत में रुसवाई नहीं है। बल्कि दोनों जहांनो की कामयाबी है।


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मोहब्बत कैसे हासिल हो:

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मोहब्बत हासिल करने का एक ही फलसफा है, अल्लाह और उसके रसूल की पैरवी की जाए और उसकी रजा में राज़ी हो जाया जाए।

1. अपने अंदर तकवा (fear) पैदा करें। तकवा से इंसान ख़ुद को गुनाहों से बचाता है और उससे वो अपने रब महबूब बन जाता है। 

2. सब्र करें हर हाल में, यानि जब कभी कोई बुरी ख़बर सुने या कुछ बुरा हो जाए या आपको कोई बुरा भला कह दे या तकलीफ़ दे या माली तंगी हो। 

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

"बेशक अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तुम में दो खसलाते बहुत पसंद है; तहम्मूल (सब्र) और तदब्बुर (गौर वा फिक्र)।" [सुन्न तिर्मीजी: 2011]

जैसे: अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के अंबिया (अलैहिससलाम) ने हर सूरते हाल में सब्र किया।

3. अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त पे तक्कवल करें, यानि कोई मुश्किल हो तकलीफ़ हो तो ये यक़ीन हो ये सब अल्लाह की तरफ़ से एक अजमाइश है जो कुछ वक्त के बाद खत्म हो जाएगी। 

जैसे: इब्राहिम (अलैहिससलाम) का तक्कवल आग को गुलज़ार बना देता है।

और फिर अल्लाह अपने महबूब बंदों को ही आज़माता है। 

4. अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मोहब्बत हासिल करने के लिए हमें दूसरो (all living beings) के साथ अच्छा सुलूक करना चाहिए।

"यक़ीनन जो लोग ईमान ले आए हैं और भले काम कर रहे हैं, बहुत जल्द रहमान उनके लिये दिलों में मुहबत पैदा कर देगा।" [क़ुरान 19: 96]

अच्छा सुलूक भी ये हैं कि दुसरो को बुराई से बचाए और ख़ुद भी उन्हीं चीज़ों को अपनाए जिसका हुक्म दिया गया है।

"अल्लाह उन लोगों को पसन्द करता है, जो बुराई से रुके रहें और पाकीज़गी अपनाएँ।" [क़ुरान 2: 222]


करते हैं मुहब्बत तुझसे सिर्फ रज़ा ए इलाही के लिए, 

बनाया है मुझको रब ने तेरी खैर ख़्वाही के लिए। 

यूँ ना आज़मा मुझको, है मुहब्बत मुझे रब से, 

तू बनी ही है मेरी हौसला अफज़ाई के लिए।    


लोगों के शर से जो लोग मोहब्बत के नाम पे कर रहे हैं उन सबसे हम सब की हिफाज़त फरमा। या अल्लाह हमें कहने सुनने और लिखने पढ़ने से ज़्यादा अमल की तौफीक अता करे।

आमीन या रब्बुल आलमीन


~ बज़्मी


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