Qayamat ki nishaniyan (series-1): Qayamat haqq hai

 

Qayamat ki nishaniyan (series-1): Qayamat haqq hai

क़यामत की निशानियां सीरीज-1 



क़यामत हक़ है:

कयामत को अल्लाह तआला ने क़ुरान में जगह जगह मेंशन किया है ये ऐसा दिन है जो क़ायम होकर ही रहेगा क़ायम से लफ्ज़ कयामत निकला यानी ये क़ायम होगा और ये सब वाक़िये इस दिन होंगे इसलिए इसको (कयामत को) वाक़िया भी कहा गया है अल्लाह ने इस दिन के नाम से पूरी सूरह नाज़िल की है जिसको सूरह वाक़िया का नाम दिया है।


क़यामत का मंज़र:

अल्लाह तआला क़ुरान में फरमाता है:

जब धरती इस प्रकार हिला डाली जाएगी जैसा उसे हिलाया जाना है,

और धरती अपने बोझ बाहर निकाल देगी और 

मनुष्य कहेगा, "उसे क्या हो गया है?"

उस रोज़ वो अपने (ऊपर गुज़रे हुए) हालात बयान करेगी

क्योंकि तेरे रब ने उसे (ऐसा करने का) हुक्म दिया होगा।

उस दिन लोग अलग-अलग निकलेंगे, ताकि उन्हें कर्म दिखाए जाएँ।

फिर जिसने ज़र्रा-बराबर नेकी की होगी वो उसको देख लेगा।

और जिसने ज़र्रा-बराबर बदी की होगी वो उसको देख लेगा।

[सूरह ज़लज़ला 01-08]


यें मुख्तसर सा ब्लरी (धुंधली) झलक अल्लाह तआला ने बयान की है जिसने ज़र्रा बराबर भी नेकी की होगी कयामत के दिन वो भी ज़ाहिर हो जायेगा और जिसने ज़र्रा बराबर बुरा काम किया होगा वो भी ज़ाहिर हो जायेगा। 


क़यामत क़रीब है:

1. पहली आयत

वो कहते हैं, “जब हम सिर्फ़ हड्डियाँ और मिट्टी होकर रह जाएँगे तो क्या हम नए सिरे से पैदा करके उठाए जाएँगे?”

इनसे कहो, “तुम पत्थर या लोहा भी हो जाओ, या और कोई चीज़ जो तुम्हारे ख़्याल में उनसे भी ज़्यादा मुश्किल हो, फिर वे कहेंगे कि वह कौन है जो हमको दोबारा ज़िंदा करेगा, आप कहिए कि वही जिसने तुमको पहली बार पैदा किया है, फिर वे आपके आगे अपने सर हिलाएंगे और कहेंगे कि यह कब होगा, कह दीजिए कि अज़ब नहीं कि उसका वक़्त क़रीब आ पहुँचा हो।"

[सूरह बनी इसराइल: 49-51]


2. दूसरी आयत 

लोग तुम से क़ियामत की घड़ी के बारे में पूछते हैं। कह दो, "उस का ज्ञान तो बस अल्लाह ही के पास है। तुम्हें क्या मालूम? कदाचित वह घड़ी निकट ही हो।"

[सूरह एहज़ाब: 63]


3. तीसरी आयत

तो ऐ नबी करीम ﷺ सब्र करो, शाइस्ता सब्र।

"ये लोग उसे दूर समझते हैं, और हम उसे क़रीब देख रहे हैं।"

[सूरह मुआरिज: 05-07]


4. चौथी आयत

हम ने तुम्हें निकट आ लगी यातना से सावधान कर दिया है। जिस दिन मनुष्य देख लेगा जो कुछ उस के हाथों ने आगे भेजा, और इनकार करने वाला कहेगा, "ऐ काश! कि मैं मिट्टी होता!"

[सूरह नबा: 40]


5. हदीस

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

''मैं और क़ियामत इतने नज़दीक-नज़दीक भेजे गए हैं और नबी करीम ﷺ ने अपनी दो उँगलियों के इशारे से (उस नज़दीकी को) बताया फिर उन दोनों को फैलाया।"

[सहीह बुखारी: 6503]


एक इशकाल का जवाब:

ऊपर की दलीलो से ये बात का शेबा होता है कि ये बात 1400 साल पहले कही गई थी कि क़यामत क़रीब है मगर यह कैसी करीब है कि 14 सदियां बीत जाने के बावजूद भी क़यामत क़ायम नहीं हुई और अभी भी कोई ये पता नहीं कि कितनी दूर है अलावा इस (क़यामत) की बड़ी बड़ी निशानियां (इमाम मेहदी, हज़रत ईसा, दज्जाल का फितना वगेरह) जो अभी ज़ाहिर नहीं हुए जिनसे ज़ाहिर होता है कि क़यामत अभी दूर है मगर क़ुरान क़रीब क्यों कह रहा है?

मुफस्सिरीन ने इस शुबा के कई जवाब दिए हैं जिनमें से चंद एक आपके सामने पेश करता हूं! 

(01) क़रीब व बईद (दूर) जिस तरह दूर नज़दीक के लिए इस्तेमाल होते हैं उसी तरह किसी चीज़ के क़ायम और क़ायम ना होने के लिए भी इस्तेमाल होते हैं यानी क़यामत क़रीब है का माना ये हुआ के उसका क़ायम होना यक़ीनी है।


हाफ़िज़ इब्ने कसीर रहीमाउल्लाह फरमाते हैं:

"जो चीज़ आने वाली हो उसे क़रीब कहते हैं लिहाज़ा उसका क़ायम होना ज़रूरी है।"

[तफसीर इब्ने कसीर 04/657]


इमाम क़ुरतबी रहिमाउल्लाह कहते हैं:

"हर वह चीज़ जिसका कायम होना यकीनी हो उसे करीब कहा जाता है।"  

[तफसीर ए क़ुरतबी]


इसके अलावा इस आयत से भी मज़ीद वज़ाहत होती है-


अल्लाह फरमाता है:

"वो (काफिर) उसे दूर समझते हैं हालांकि हम उसे करीब समझते हैं।"

[सूरह मुआरिज 06-07]


इस आयत में दूर का यह माना नहीं है कि काफिर कयामत के कायम होने पर यकीन रखते थे मगर उसके कायम होने को क़द्र ए बईद (दूर) और मुअखखर (delay) समझते थे जब यह करीब होगी तो उसकी तैयारी कर लेंगे बल्कि वह कयामत के कायम होने को इंपॉसिबल समझते थे और यहां दूर नामुमकिन के माना में है और करीब मुमकिन के माने में यानी काफिर कयामत की कायम होने को नामुमकिन समझते हैं और हम उसे मुमकिन समझते हैं। 


(02) क़यामत का क़रीब होना क़ायनात की उम्र के साथ मोक़ूफ़ है जबसे दुनिया बनी है उसका ज़्यादा हिस्सा बीत चुका है जैसा कि सहीह हदीस में आता है,


मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना आप ﷺ मिम्बर पर खड़े फ़रमा रहे थे:

"तुम्हारा ज़माना पिछली उम्मतों के मुक़ाबले में ऐसा है जैसे अस्र से सूरज डूबने तक का वक़्त होता है।"

[सहीह बुखारी: 7467]


खुलासा ये है कि क़यामत क़रीब है इसका मतलब ये है वो यक़ीनी है होकर रहेगी इसमें कितना वक़्त लगेगा हक़ीकी इल्म सिर्फ़ अल्लाह तआला को है। वल्लाहु आलम


जुड़े रहें मज़ीद वज़ाहत आने वाली तहरीर में नश्र करेंगे। (इंशा अल्लाह)


आपका दीनी भाई
मुहम्मद

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