इख़्तिताम ए निकाह सीरीज़
मिल्लत ए इस्लामिया के प्यारे भाईयो और बहनों! निकाह सीरीज में हम ने पाक और अज़ीम नेमत "निकाह" को कुरान की आयातों और अहदीस की रोशनी में जाना और समझा, निकाह के ज़रिए न केवल दो अजनबी ही पाक और मुकद्दस रिश्ते में बंधते बल्कि ये ऐसा रिश्ता है जिसमें दो खानदान को भी जुड़ने का मौका मिलता है।
हम ने इस सीरीज में सुन्नत तरीके से निकाह और इस्लाम में निकाह के मौके पर फैली गैर ज़रूरी रस्मों को समाज से खत्म करने के लिए सभी पहलुओं पर रौशनी डाली ताकि समाज में फैली जहालत का खात्मा हो सके और एक ऐसा समाज वजूद में आए जो कुरान और सुन्नत के मुताबिक़ हो।
कितनी अफ़सोस की बात है आसान और सादगी की जिंदगी जीने वाली कौम आज परेशान हाल नज़र आ रही है। हर मंच पर उम्मत आज बदहाली और परेशानियों से दो चार है वजह है दीन से ला इल्मी और निकाह को मुश्किल बना देना जिसकी वजह से समाज में जिनाकारी के मामलात बढ़ते जा रहे हैं, दिखावे और शोहरत की जिंदगी जीने की होड़ ने हमारे समाज का ताना बाना कमज़ोर कर दिया है। आज मुस्लिम बेटियां लाखों की संख्या में मुर्तद हो कर अपने लिय और अपने वालदेन के लिए जहन्नम खरीद रही हैं, तलाक़ और खुला की घटनाएं बढ़ती जा रही है, मर्द और औरत दोनों सब्र का दामन छोड़ कर गुमराह हो रहे हैं।
महंगे निकाह ने न केवल बेटियों की जिंदगी मुश्किल और जहन्नुम बनाया है बल्कि बेटे भी इसका दंश झेल रहे हैं।
एक तरफ़ जिम्मेदारियों का बोझ दूसरी तरफ़ नेक बीवी न मिलने पर जिंदगी की अज़ीयतों का सामना करते मर्दों का दुःख कम ही लोगों को दिखता है। कई औरतें ऐसी हैं जो छोटी छोटी बातों को लेकर मायके जा बैठती हैं। ऐसे में मर्द हराम ख्वाहिशों की तरफ़ माइल होता है।
खुला की बढ़ती घटनाएं, कुछ औरतें ऐसी हैं जो बातिल निज़ाम का सहारा लेकर मर्दों पर झूठे केस दर्ज़ करती हैं और हालात ये हैं की मर्द बेचारा सालो साल कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहा है, कई ऐसे हैं जो जेलों में दहेज़ प्रथा की सजा काट रहे हैं, ऊपर से औरत को गुजारा भत्ता की डिमांड। सोचें अगर किसी घर में अपने मां बाप का इकलौता बेटा कमाने वाला हो?
अगर आप गौर करें तो देखेंगे की आए दिन छोटी छोटी बातों पर मुस्लिम घरों में पुलिस आई रहती हैं और ये चीजें हिंदू परिवारों में कम है ।
सच कहूं तो आज मुस्लिम औरत ने सब्र और बर्दास्त की कुव्वत खो दी है ये सब देख कर दिल खून के आंसू रोता है खुदारा रहम करे ऐसे ही मुसलमानो की परेशानियां कम हैं क्या?
दूसरी तरफ़ कुछ मुस्लिम मर्द इतने गैर जिम्मेदार हैं कि निकाह कर के अपने बीबी बच्चों को लड़की के मायके छोड़ देते हैं अब बेचारी क्या करे उसके पास दो ही ऑप्शन बचते हैं, अपने वालदेन पर बोझ बन कर मजबूरी में हाथ फैलाती फिरे या फिर अपनी और अपने बच्चो की जरुरत पूरी करने बाहर निकले और दरिंदे भेड़ियों का शिकार बने?
याद रहे निकाह के बाद औरत के नान वा नफ्का की सारी जिम्मेदारी मर्द की है न की औरत की।
अल्लाह ने औरत पर कमाने की जिम्मेदारी नहीं डाली। अल्लाह से डरें हर छोटी बड़ी चीज़ का हिसाब अल्लाह के सामने देना होगा।
वक्त की नज़ाकत कुछ यूं कहती है ऐ मुसलामां, आ दिल से गौर ओ फिक्र करें।
छोड़ दिखावे की चमकती दुनियां, चल ख़ुद को अपने रब के आगे पेश करें।।
दिल रोता है कौम की बदहाली देख, आ दर्श ए क़ुरान पर भी कुछ गौर करें।
ऐ मुसलमां सोच जरा! हम क्या थे और क्या हो गए? क्यूँ ना अब कुछ और करें।।
दिखावे की जिंदगी ने क्या गुल खिलाए, ये दौलत और शोहरत यहा ले आई।
ईमान को जंग लगाई, बता ऐ इब्न ए आदम, तूने नबी की सुन्नते कहां गवाईं?
झूठी शान की चाहत, दिखावे और बेहयाई की महफ़िल मिल कर सजाई।
बस यही तो सबसे बड़ी वजह थी, रफ्ता रफ्ता तागुत ने चिंगारी भड़काई।।
गफलत के आलम में हम सब ने इस्लाम के आशियाने में ख़ुद ही आग लगाई।
नमाज़, जकात, रोजें के फराइज़ छोड़ कर हराम की चाहत दिल मे जगाई।।
अपने रब को नाराज़ किया, मनमानियां की इसीलिए ये उम्मत लड़खड़ाई।
दर्श ए कुरान दे रहा चीख-चीख गवाही, दिल मे मेरी कोई जगह ना बनाई।।
चलो अब गुनाहों से रूजू कर ले, कलाम ए इलाही से दिल मुनव्वर कर लें।
वक्त अभी बाकी है मेरे दोस्त चल अब तू भी अपने गुनाहों से तौबा कर लें।।
जिंदगी आसान हो जाए जो नबी की सुन्नत पर अमल कर जिंदगी गुजारेंगे।
ठान लेंगे, डट जाएगे, किसीसे ना डरेंगे, निकाह कर ज़िना को दूर भगाएंगे।।
सोच ज़रा ऐ गुनाहों के पुतले रोज़ ए महसर अपने रब को क्या मुंह दिखायेंगे।
तौबा कबूल ना हुई तो किस मुंह से जाम ए कौसर की तलब नबी से लगायेगे।।
वक्त की नज़ाकत कुछ यूं कहती है ऐ मुसलामां, आ दिल से गौर ओ फिक्र करें।
आ लौट चलें कुरान व सुन्नत की तरफ़ खौफ ए खुदा से दिल पुर सुकूं कर लें।।
अल्लाह रब्बुल इज़्जत से दुआ गो हूं की हम मुसलमानो को क़ुरआन और सुन्नत के बताये गए तरीके पर अमल करने की तौफीक अता फरमाये और हमें एक मिसाली समाज बनने की तौफीक अता फरमाये।
आमीन या रब्बुल अलामीन
2 टिप्पणियाँ
App bhut achi post karti ho mare bhan main bhut sadki sah sah talaq suda aurat sah nikha kara par us aurat na mari zindagi ajab bana raki hai main aap sah masvara lah na chata ho
जवाब देंहटाएंwhatsapp par contact karein...
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।