Ghar ki zeenat bazaron mein

 

Ghar ki zeenat bazaron mein

घर की ज़ीनत बाज़ारों में


देख मुसलमान तेरे घर की ज़ीनत बाज़ारों में घूम रही है, 

और अफ़सोस तू अभी भी मदहोश हो कर धुल बजा रहा है। 


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बनाई इस खूबसूरत दुनियां में सबसे खुबसूरत मखलूक औरत है और सबसे नर्म और नाज़ुक भी इसलिए अल्लाह ने उसकी हिफाज़त के लिए उसे ढक कर परदे में रहने का हुक्म फरमाया।

आज हमारा अमल क्या होता जा रहा है वेस्टर्न की तरह दिखना, उन्ही की तरह साजो सिंगार करना, उनकी तर्ज ए ज़िन्दगी तो अपनी ज़िन्दगी में ढालना, अफ़सोस की बात है इसे हम गुनाह नहीं समझते। 

क़ुरान मजीद में ज़िक्र:

"और (ऐ रसूल) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार (के मक़ामात) को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो ख़ुद ब ख़ुद ज़ाहिर हो जाता हो (छुप न सकता हो) (उसका गुनाह नही) और अपनी ओढ़नियों को (घूँघट मारके) अपने गरेबानों (सीनों) पर डाले रहें और अपने शौहर या अपने बाप दादाओं या आपने शौहर के बाप दादाओं या अपने बेटों या अपने शौहर के बेटों या अपने भाइयों या अपने भतीजों या अपने भांजों या अपने (क़िस्म की) औरतों या अपनी या अपनी लौंडियोंया (घर के) नौकर चाकर जो मर्द सूरत हैं मगर (बहुत बूढ़े होने की वजह से) औरतों से कुछ मतलब नहीं रखते या वह कमसिन लड़के जो औरतों के पर्दे की बात से आगाह नहीं हैं उनके सिवा (किसी पर) अपना बनाव सिंगार ज़ाहिर न होने दिया करें। और चलने में अपने पाँव ज़मीन पर इस तरह न रखें कि लोगों को उनके पोशीदा बनाव सिंगार (झंकार वग़ैरह) की ख़बर हो जाए और ऐ ईमानदारों तुम सबके सब ख़ुदा की बारगाह में तौबा करो ताकि तुम फलाह पाओ।” [सूरह नूर, आयत 31]

अब आज फितनों के दौर में औरत नुमाइश का सामान बनती जा रही है। हर जगह, किसी भी प्रोडक्ट्स के एड में औरतों की तस्वीर मानों वो प्रोडक्ट्स नहीं बल्कि औरत का जिस्म बिक रहा है। अब यही हाल मुस्लिम मुआशरे का होता जा रहा है, जिन मुसलमानो ने अपनी औरतों को मस्जिद जाने से इस वजह से रोका की फितना न फैले, मर्दों के संग इख़्तिलात (Mis gathering) न हो, आज उन्ही मुसलमानो ने अपनी औरतों को बाजार की ज़ीनत व रौनक बना कर रखा है। 

आज हर जगह हर काम के लिए देखिए तो औरत नज़र आती है। बैंक का काम है औरत जाएगी, जन सेवा केंद्र पर औरत, साइबर कैफ़े पर औरतों की भीड़, सिम इशू करने औरते ही पहुंची हुई हैं, बच्चों के कपड़ों से लेकर घर का राशन तक उन्ही को लेने जाना है यहां तक की अपने देय्यूस मर्दों के अंडरगारमेंटस (Undergarments) तक औरते खरीदकर ला रही हैं। बजारों में आपको बिना मेहरम के मुसलमानों की लड़कियाँ और औरतें सबसे ज़्यादा नज़र आएंगी, औरत बाज़ार जाएगी तो कामचोर मर्दों को आराम है और औरतों का मज़ा है की घूमने फिरने मिलेगा। 

अब जब इतने सारे काम घर के बहार निकल कर औरत करेगी तो मर्द हज़रात को कुछ करने की जरुरत ही क्या है। इजाज़त तो इन मर्दों ने ही दे रखी है अब हालात ये हैं की घर की औरतें इनकी एक नहीं सुनती। शर्मों हया का पर्दा उतार कर आज इस कौम की बेटियां खुद को जहन्नम का हिस्सा बनाने पर तुली हुई हैं। फहासी और बेहयाई को आज़ाद ख्याल का नाम दिया जा रहा है। 

फेमिनिजम का चस्का सर चढ़ कर बोल रहा है। शर्मो हया से ये क़ौम कोसो दूर होते जा रही है, इनकी औरतें बाजार में भीड़ के ज़रिये मसली जा रही हैं, क़ौम की बेटियां हराम रिश्तों के बीज बो रही हैं , और क़ौम के मर्दों के माथे पर शिकन (Wrinkle) तक नहीं आती, हत्ताकि अब ये चीज़ नॉर्मल हो चली है। घर के मर्द हजरात को ये सब न तो दिखाई देता है और न ही कुछ सुनाई देता है। या यूं कहें कि जान बूझ कर दम साध लिया है, सब कुछ जान बूझ कर, जिंदा मक्खी निगलने की आदत पड़ गई है। अल्लाह रहम करे इस कौम पर।

अल्लाह का फ़रमान है:

"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, बचाओ अपने-आपको और अपने अहलो-अयाल को उस आग से जिसका ईंधन इन्सान और पत्थर होंगे।" [सूरह न. 66, आयत न. 6]

अब देखें मुहर्रम का महीना है, अल्लाह तआला ने इस महीने को हुर्मत वाला महीना करार दिया है। मुहर्रमुल हराम एक ऐसा मुक़द्दस महीना जिसमे ज़माना-ए-जाहिलियत में भी तमाम तरह की बुराईयां बंद कर दी जाती थी। यहाँ तक की लड़ाइयां भी रोक दी जाती लेकिन आज दुश्मनान-ए-इस्लाम ने अपनी तख़रीब करी और ग़लीज़ हरकतों को उम्मत-ए-मुस्लिमा के अंदर घोल दिया और इसे एक शिर्क और बिद्दत का महीना बना दिया है। 

जिधर निकल जाओ नोहे और मर्सिए पढ़े जा रहे हैं, हर दूसरे घर में सोग मनाया जा रहा है, हाय हुसैन की आहो बाक़ा है, कोई घर में बीबी फ़ातिमा की कहानी पढ़वा रहा है, कोई बीबी ज़ैनब की कहानी पढ़वा रहा है, औरतों की महफ़िल सज रही है, अलम और ताजिया बनाए जा रहे जिसे देखने के लिय औरतों का हुजूम उमड़ पड़ता है, यौमे आशुरा के दिन निकलने वाले जुलूस में घर की औरतें, जवान बच्चियां सज धज कर मर्दों के साथ चल रही हैं। मेहरम ना मेहरम एक दुसरे के टच में आ रहे हैं, मर्द औरत के जिस्म का कभी आगे का हिस्सा किसी गैर मर्द से टच हो रहा है कभी पीछे का हिस्सा, कभी दाएं कभी बाएं का हाथ और दिगर हिस्सा टच हो रहा है और फ़ायदा उठाने वाला आप के जिस्म के किसी हिस्से से इस हुरमत वाले महिने में मज़े उठा रहा है। गौर करने का ये मकाम है शर्मोंं हया हमने कहां बेच डाली है। तौबा तौबा क्या आप ने अल्लाह का वो फ़रमान नहीं सुना, 

"अपने घरों में क़रार से रहो, और क़दीम ज़मानाए जाहिलियत की तरह सज-धज कर न दिखाती फिरना। नमाज़ क़ायम करो ज़कात अदा करो । और अल्लाह और उस के रसूल की इताअत करो।" [सूरह न. 33, आयत न. 33]

क्या हम अल्लाह और रसूल की इताअत कर रहे हैं? जिधर देखो शिर्क और बिद्दत का बाजार गर्म है, एक तरफ़ मिठाई की दुकाने सजी हुई हैं, मक्कारी औेर ढोंग के आँसू हैं और दूसरी तरफ़ करतब और तमासे दिखाए जा रहे हैं, सीनों और पीठों को मारा जा रहा है, ख़ुद को अजीयते दी जा रही हैं। नबी करीम ﷺ की हदीस है जिसका मफहूम है कि,

रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "वो इंसान हम मे से नहीं हैं जो नोहा मातम करे और जो अपने गालों को पीटे अपने गिरेबां फाड़े और जहालियत की पुकार पुकारे!" [सहीह बुख़ारी : 3519] 

अब अगर अल्लाह तआला की नसीहत के बाद भी और अल्लाह के रसूल का फ़रमान व खुली दलील हमारी आंखों के सामने हो और हम बेहयाई और बुरे कामों से ना रुके तो इसका हिसाब हमें अख़िरत के दिन देना पड़ेगा। 

उम्मत के मेरे प्यारे भाईयो और बहनों हुसैन रज़ीo से मुहब्ब्त का ये तरीका नहीं है कि हम बेगैरत वाले काम करें, हम जो अमल आज कर रहे हैं इस से ना जानें कितनी ही फर्ज़ नमाज़ कजा हो जाती हैं। क्या हुसैन रजी0 की कोई नमाज़ कजा़ हुई? क्या जन्नत की सरदारी उन्हें ऐसे ही मिल गई?

जवाब होगा नहीं बल्कि हक़ पर कायम रहते हुए सजदे में सर कटा कर ता कयामत एक मिशाल कायम कर दी।

"हसन हुसैन जन्नत के जवानो के सरदार है।" [तिर्मिजी 3781] 

अल्लाह तआला हम सबको बेहयाई और बुरी बातों से बचने की तौफ़ीक अता फरमाए। हम तमाम मोमिनीन को इस पाक महीने का तक़द्दुस बरक़रार रखने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये, इसमे होने वाले तमाम शिर्क और बिद्दत से हमारी हिफ़ाज़त फ़रमाये। आमीन

हम तमाम मोमिन मर्द हज़रात से गुज़ारिश करते हैं कि अपने मुहाफिज़ होने की जिम्मेदारी को समझें। अल्लाह ने मर्द को औरत पर एक दर्ज़ा फजीलत दी है और उसे कव्वाम बनाया है, इसलिए आप अपने बेटों को, भाइयों को और खुदको बाजार की ज़िम्मेदारियों पर लगाओ , अपनी औरतों को घर के मामलात का पाबंद बनाओ और ज़रूरत पड़े तो बहन, बेटियों, बीवियों को संग लेके बाजार जाओ उन्हें अकेले न छोड़ो। 


नमाज़ बोली कुरआन से 

शहीद हुए हुसैन हमे बचाने में, 

कौम हमे छोड़कर मस्त है 

ताजिया और ढोल बजाने में !


नोट: औरतों के मस्जिद जाने न जाने का मसला अलाहिदा टॉपिक है लिहाज़ा इस पोस्ट पर बहस न करें बल्कि जो उन्वान है उसपर फोकस करें।


आपकी दिनी बहन 
फ़िरोज़ा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...