Fazail e sahaba (part-2): sayyadna Umar farooq (RA)

Fazail e sahaba (part-1): sayyadna Umar farooq (RA)


फज़ाइले सहाबा  (पार्ट-2)

सय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हू के फ़ज़ाइल


नबी ए करीम (ﷺ) 571 AD में पैदा हुए थे आमुल फील (हाथी वाले वाक़्या के साल में) में, उसी वाकये के 13 साल बाद उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हू पैदा हुए थें 587 AD में मक्का में। इस तरह आप नबी ﷺ से 12 साल 10 महीने छोटे हैं। 

इस आर्टिकल में हम सय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हू की चाँद फ़ज़ाइल का ज़िक्र करेंगे क्यूंकि उनकी सख्सियत के बारे में पूरी तफ़सीलात (पूरी ज़िन्दगी) रखना मुमकिन ही नहीं है। तो आइये अहादीस की रौशनी में उनके बारे कुछ बातें जान  लेते है- 


1. मुसलमानों को इज्जत मिली

आप सख्त मिजाज इंसान थे, लोग आप से बहुत डरते थे, एक मर्तबा आपने देखा की क़ुरैश इन सबके ज़ुल्म की वजह से अपना मुल्क छोड़ कर दूसरे मुल्क जा रही हैं उस वक़्त आपका दिल नरम पड़ गया और ज़मीर ने आपको मलामत की। इस वाक़्या के कुछ दिन बाद और नबी ﷺ की दुआ (या अल्लाह, अबु जहल बिन हिशाम और उमर बिन अफ्फान में से जो तेरे नज़दीक महबूब हो उसके जरिया तू इस्लाम को ग़ालिब कर दे) की वजह आप इस्लाम के नूर से सरफ़राज़ हुए। और इस्लाम कबूल करने के बाद मुसलमानो को इज़्ज़त मिली। 

"हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि० फ़रमाते हैं कि जब उमर रज़ि० ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया तो हम उस वक़्त से हमें हमेशा इज़्ज़त हासिल रही।" [सहीह बुख़ारी: 3684]


2. अगर उम्मत में कोई मुहद्दिस होता

बनी इसराइल में कुछ लोग ऐसे थे जो नबी नहीं थे और इसके बावजूद फ़रिश्ते उनसे कलाम करते थें उसी तरह अगर इस उम्मत में कई शख्स ऐसा होता तो वो उमर रज़ि० होते। 

अबू हुरैरह रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "बेशक पिछली उम्मतों में मुहद्दस लोग हुआ करते थे और अगर इस उम्मत में उनमें से कोई (मुहद्दिस) होता तो उमर बिन ख़त्ताब होते।" [सहीह बुख़ारी: 3469]


3. शैतान का रास्ता बदल देना

सय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हू बेपनाह सलाहियतों के और इन्तेहाई रौबदार थें, इस्लाम के क़ब्ल (ईमान लाने से पहले) भी और इस्लाम के बाद भी। लोग आप से डरते थे और नबी ﷺ कहते थें की शैतान भी उनसे इंसानों की तरह ख़ौफ़ रखता था जिस तरह क़ुरैश की औरतें उनकी आवाज़ सुन कर उस जगह से दूर हट जाती थीं उसी तरह शैतान भी अपना रास्ता बदल देता था। 

रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत उमर रज़ि० से फ़रमाया कि उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, ऐ (उमर) इब्ननुल ख़त्ताब! तू जिस रास्ते पर चल रहा हो तो शैतान उस रास्ते को छोड़ कर दूसरे रास्ते पर भाग जाता है।" [सहीह बुख़ारी: 3683]

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "ऐ उमर! बेशक शैतान तुझसे डरता है।" [जामेअ तिरमिज़ी: 3690, इस्नादहू हसन]

इन्सानों के शैतान के साथ जिन्नातों के शैतान भी आप से डरते थे, 

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "मैं देख रहा हूँ कि जिन्नात के शैतान और इन्सानों के शैतान उमर को देख कर भाग गए।" [जामेअ तिरमिज़ी: 3691, इस्नादहू हसन]


4. अगर नबी के बाद कोई नबी होता

किसी सहाबा को ये सर्फ़ हासिल नहीं हुआ कि उनके कहने पर कुरान की आयतें नाज़िल हों पर मर रज़ि० को ये सर्फ़ हासिल हुआ। आप नबी के घराने से नहीं थें, नबी से आपका कोई रिश्ता नहीं था पर इस्लाम लाने के बाद आप इतने ज़्यादा क़रीब हो गए की ये बड़ी फख्र की बात है की इतना बड़ा सर्फ़ हासिल हुआ। आप जब मशवरा देते तो कई दफा अल्लाह इनकी तस्दीक के लिए आयत नाज़िल फरमा देता था। जिनमें सूरह बक़रह आयत 125, सूरह अहज़ाब आयत 59, सूरह तेहरीम आयत 5, सूरह तौबा आयत 80, सूरह अनफाल आयत 67-68 (इन दोनो आयतों की तस्दीक सहीह मुस्लिम 2400 में होती है), सूरह नूर की आयत 58 हैं। 

नबी ﷺ ने फ़रमाया: "अगर मेरे बाद कोई नबी होता तो उमर बिन ख़त्ताब होते।" [जामेअ तिरमिज़ी: 3686, इस्नादहू हसन]


5. जन्नत में महल

आप इस्लाम के लिए बहुत ज़्यादा नर्म दिल इंसान थें। सहाबा के लिए भी और काफिरों के लिए भी। अच्छा रवैया अपनाते थे, यही वजह बानी की सहाबा आप से बहुत मुहब्बत करते थें और दूसरी तरफ कुफ्फार आपसे बहुत डरते थे, आपकी इज्जत करते थे। इस्लाम लाने के बाद आपके नेक आमलों की वजह से अल्लाह के रसूल ﷺ ने आपको जन्नत की और जन्नत में महल की बशारत दी थी। 

रसूलुल्लाह ﷺ ने जन्नत में सय्यदना उमर रज़ि० का महल देखा था। [सहीह बुख़ारी: 5226, 7024]


नोट: सय्यदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हू के फ़ज़ाइल में और भी अहादीस हैं, यहाँ कुछ ही अहादीस ज़िक्र की गई हैं।


आपका दीनी भाई 
मुहम्मद बिलाल 

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