ईदुल अज़हा (किस्त 07)- परिचय, इतिहास और अहकाम व मसाएल
कुछ क़ुरबानी के बारे में (II)
क़ुर्बानी का समय:
ईदुल अज़हा की नमाज़ के बाद क़ुर्बानी का वक़्त शुरू हो जाता है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तो नमाज़ के बाद वहीं ईदगाह के पास ही ज़बह करते थे।
अगर कोई शख़्स ईद की नमाज़ से पहले क़ुर्बानी कर दे तो वह क़ुर्बानी क़ुर्बानी नहीं होगी उसके लिए नमाज़ के बाद दूसरी क़ुर्बानी करना ज़रूरी होगा। इस सिलसिले में अहादीस की एक अच्छी ख़ासी तादाद है लेकिन यहाँ पर दो हदीसें पेश हैं:
حَدَّثَنَا أَحْمَدُ بْنُ يُونُسَ حَدَّثَنَا زُهَيْرٌ حَدَّثَنَا الْأَسْوَدُ بْنُ قَيْسٍ ح و حَدَّثَنَاه يَحْيَى بْنُ يَحْيَى أَخْبَرَنَا أَبُو خَيْثَمَةَ عَنْ الْأَسْوَدِ بْنِ قَيْسٍ حَدَّثَنِي جُنْدَبُ بْنُ سُفْيَانَ قَالَ شَهِدْتُ الْأَضْحَى مَعَ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَلَمْ يَعْدُ أَنْ صَلَّى وَفَرَغَ مِنْ صَلَاتِهِ سَلَّمَ فَإِذَا هُوَ يَرَى لَحْمَ أَضَاحِيَّ قَدْ ذُبِحَتْ قَبْلَ أَنْ يَفْرُغَ مِنْ صَلَاتِهِ فَقَالَ مَنْ كَانَ ذَبَحَ أُضْحِيَّتَهُ قَبْلَ أَنْ يُصَلِّيَ أَوْ نُصَلِّيَ فَلْيَذْبَحْ مَكَانَهَا أُخْرَى وَمَنْ كَانَ لَمْ يَذْبَحْ فَلْيَذْبَحْ بِاسْمِ اللَّهِ
(صحیح مسلم ، کتاب الأضاحي »- وقتها)
जुंदुब बिन सुफ़ियान कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ ईदुल अज़हा मनाई। आप ने नमाज़ पढ़ी इसके बाद ख़ुत्बे से फ़ारिग हुए ही थे कि आप ने क़ुर्बानी के जानवरों का गोश्त देखा जो नमाज़ से पहले ज़बह कर दिये गए थे इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: "जिसने नमाज़ से पहले क़ुर्बानी कर ली वह उसकी जगह दूसरी क़ुर्बानी करे और जिसने अभी क़ुर्बानी नहीं की वह अल्लाह का नाम लेकर क़ुर्बानी करे।"
[सही मुस्लिम हदीस 5064/ किताबुल आज़ाहि, क़ुर्बानी का वक़्त]
عَنْ الْبَرَاءِ بْنِ عَازِبٍ قَالَ قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِنَّ أَوَّلَ مَا نَبْدَأُ فِي يَوْمِنَا هَذَا أَنْ نُصَلِّيَ ثُمَّ نَرْجِعَ فَنَنْحَرَ فَمَنْ فَعَلَ ذَلِكَ فَقَدْ أَصَابَ سُنَّتَنَا وَمَنْ نَحَرَ قَبْلَ الصَّلَاةِ فَإِنَّمَا هُوَ لَحْمٌ قَدَّمَهُ لِأَهْلِهِ لَيْسَ مِنْ النُّسْكِ فِي شَيْءٍ فَقَالَ رَجُلٌ مِنْ الْأَنْصَارِ يُقَالُ لَهُ أَبُو بُرْدَةَ بْنُ نِيَارٍ يَا رَسُولَ اللَّهِ ذَبَحْتُ وَعِنْدِي جَذَعَةٌ خَيْرٌ مِنْ مُسِنَّةٍ فَقَالَ اجْعَلْهُ مَكَانَهُ وَلَنْ تُوفِيَ أَوْ تَجْزِيَ عَنْ أَحَدٍ بَعْدَكَ
(صحیح بخاری کتاب الجمعة » الخطبة بعد العيد)
बरा बिन आज़िब रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: हम आज पहले नमाज़ पढेंगे। फिर ख़ुत्बे से वापिस हो कर क़ुर्बानी करेंगे। जिसने ऐसा किया उसने हमारी सुन्नत के मुताबिक़ अमल किया और जिसने नमाज़ से पहले क़ुर्बानी की तो उसने तो बस घर वालों के गोश्त खाने के लिए क़ुर्बानी की। क़ुर्बानी से इस का कोई तअल्लुक़। नहीं। अबु बरदा बिन नियार अंसारी बोले, मैंने तो नमाज़ से पहले ही क़ुर्बानी कर दी! लेकिन मेरे पास एक साल की एक पठिया (बकरी) है जो दांते दुंबे से भी अच्छी है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: "अच्छा तो फिर उसी को बदले में क़ुर्बानी कर लो लेकिन यह तुम्हारे बाद फिर किसी और के लिए काफ़ी न होगी।"
[सही बुख़ारी हदीस 965/ किताबुल जुमा, ईद के बाद ख़ुत्बा]
क़ुर्बानी के दिनों के सिलसिले में इख़्तेलाफ़ है ज़यादा तर लोग 3 दिन क़ुर्बानी के क़ायेल हैं उनकी दलील यह हदीस है:
حَدَّثَنِي يَحْيَى عَنْ مَالِك عَنْ نَافِعٍ أَنَّ عَبْدَ اللَّهِ بْنَ عُمَرَ قَالَ الْأَضْحَى يَوْمَانِ بَعْدَ يَوْمِ الْأَضْحَى و حَدَّثَنِي عَنْ مَالِك أَنَّهُ بَلَغَهُ عَنْ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ مِثْلُ ذَلِكَ
(مؤطا امام مالک، کتاب الضحايا » الضحية عما في بطن المرأة وذكر أيام الأضحى)
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाहु अन्हुमा का क़ौल है कि क़ुर्बानी ईदुल अज़हा के बाद दो दिन और है और यहया कहते हैं अली बिन अबि तालिब रज़ी अल्लाहु अन्हु से इसी के मिस्ल रिवायत पहुंची है।
[मुअत्ता इमाम मालिक /किताबुल आज़ाहि]
जबकि कुछ लोग चार दिन क़ुर्बानी के क़ायेल हैं। उनकी दलील यह हदीस है:
عَنْ جُبَيْرِ بْنِ مُطْعِمٍ عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ كُلُّ عَرَفَاتٍ مَوْقِفٌ وَارْفَعُوا عَنْ بَطْنِ عُرَنَةَ وَكُلُّ مُزْدَلِفَةَ مَوْقِفٌ وَارْفَعُوا عَنْ مُحَسِّرٍ وَكُلُّ فِجَاجِ مِنًى مَنْحَرٌ وَكُلُّ أَيَّامِ التَّشْرِيقِ ذَبْحٌ
(مسند احمد: 16782/ مسند المدنيين » حديث جبير بن مطعم رضي الله تعالى عنه)
जुबैर बिन मुतइम रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: "पूरा मैदाने अरफ़ात वक़ूफ़े अरफ़ा की जगह है, अलबत्ता तुम अरना घाटी से हट कर रहो। इसी तरह पूरा मुज़दलफ़ा वक़ूफ़ की जगह है लेकिन तुम मुहस्सर की घाटी से दूर रहो। मिना के तमाम रास्ते क़ुर्बानी की जगह हैं और तशरीक़ के तमाम अय्याम क़ुर्बानी के दिन हैं।"
[मुसनद अहमद 4445/16782/ मुसनद अल मदनीईन, हदीस जुबैर बिन मुतइम रज़ी अल्लाहु अन्हु]
इस हदीस के बारे में कुछ लोगों ने कलाम किया है जैसे:
قال أبو حاتم في علل ابنه : (1594) هذا حديث موضوع عندي . وقال الحافظ في التلخيص (4/260) رواه ابن عدي من حديث أبي هريرة وفيه معاوية بن يحيى الصدفي وهو ضعيف .
अबु हातिम अपनी किताब "एलल" में कहते हैं, मेरे नज़दीक यह हदीस मौज़ूअ (मघड़त) है। और हाफ़िज़ "तल्ख़ीस" में कहते हैं इसे इब्ने अदी ने अबु हुरैरह की हदीस से बयान किया है और इसमें मुआविया बिन यहया अस सदफ़ि ज़ईफ़ हैं
लेकिन नासिरुद्दीन अल्बानी अलैहिर रहमा ने इसे सही क़रार दिया है और आस सिलसिला अस सहीहा में 1564 नंबर पर नक़ल किया है।
क़ुर्बानी दिन रात में कभी भी की जा सकती है लेकिन दिन में ज़्यादा मुनासिब है। ऐसे ही इस बात पर भी सभी का इत्तेफ़ाक़ है कि क़ुर्बानी पहले दिन यानी ईदुल अज़हा के दिन अफ़ज़ल है:
ويجوز ذبح الأضحية في الوقت ليلاً ونهارا ً، والذبح في النهار أولى ، ويوم العيد بعد الخطبتين أفضل ، وكل يوم أفضل مما يليه ؛ لما فيه من المبادرة إلى فعل الخير " انتهى باختصار . وجاء في "فتاوى اللجنة الدائمة" (11/406) :
"और क़ुर्बानी को रात और दिन में किसी भी वक़्त करना जाएज़ है। दिन में ज़्यादा मुनासिब है और ईद के दिन ख़ुत्बे के बाद अफ़ज़ल है और इसी तरह उस के बाद आने वाले दिन यानी जितनी जल्दी की जाय बेहतर और अफ़ज़ल होगी। इसलिए ख़ैर व भलाई के काम मे जल्दी करना चाहिए।"
[फ़तावा अल लजेना अद दायेमा]
बेहतर तो यह है कि मर्द हो या औरत अपने हाथ से ज़बह करें लेकिन अगर ऐसा मुमकिन न हो तो दूसरे भी ज़बह कर सकते हैं।
कुर्बानी की दुआ:
कुछ लोग क़ुर्बानी के दौरान पढ़ी जाने वाली दुआ "इन्नी वज्जहतु" की रिवायत को ज़ईफ़ कहते हैं हालांकि यह सही हदीस से साबित है।
अबु दाऊद में है:
جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ قَالَ ذَبَحَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَوْمَ الذَّبْحِ كَبْشَيْنِ أَقْرَنَيْنِ أَمْلَحَيْنِ مُوجَأَيْنِ فَلَمَّا وَجَّهَهُمَا قَالَ إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضَ عَلَى مِلَّةِ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا أَنَا مِنْ الْمُشْرِكِينَ إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ لَا شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا مِنْ الْمُسْلِمِينَ اللَّهُمَّ مِنْكَ وَلَكَ وَعَنْ مُحَمَّدٍ وَأُمَّتِهِ بِاسْمِ اللَّهِ وَاللَّهُ أَكْبَرُ ثُمَّ ذَبَحَ
(سنن ابی داؤد کتاب الضحايا » ما يستحب من الضحايا / سنن ابن ماجہ,کتاب الأضاحي » أضاحي رسول الله صلى الله عليه وسلم)
जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ी अल्लाहु अन्हुमा का बयान है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुर्बानी के दिन सींग वाले, तंदरुस्त, ख़सी किये हुए दो दुंबे ज़बह किये। जब उन्हें (जानवर) को किबला रुख़ किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह दुआ पढ़ी।
إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضَ عَلَى مِلَّةِ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا أَنَا مِنْ الْمُشْرِكِينَ إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ لَا شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا مِنْ الْمُسْلِمِينَ اللَّهُمَّ مِنْكَ وَلَكَ وَعَنْ مُحَمَّدٍ وَأُمَّتِهِ بِاسْمِ اللَّهِ وَاللَّهُ أَكْبَرُ
[मैंने अपना रुख़ सबसे तोड़ कर उस ज़ात की तरफ़ कर लिया है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया है और मैं मुशरिक नहीं हूं। बेशक मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी, मेरा जीना और मरना सिर्फ़ अल्लाह के लिए है जो तमाम संसार का पालनहार है। उस का कोई शरीक (साझी) नहीं और मुझे इसी का हुक्म दिया गया है और मैं मुसलमान हूं। ऐ अल्लाह यह क़ुर्बानी तेरी ही अता है और तेरी रज़ा के लिए है। मुहम्मद और उनकी उम्मत की तरफ़ से। फिर बिस्मिल्लाह व अल्लाहु अकबर (अल्लाह के नाम के साथ , अल्लाह बहुत बड़ा है) कह कर ज़बह किया]
[सुनन अबि दाऊद हदीस 2795/ किताबुज़ ज़हाया क़ुर्बानी के मुसतहिबात व सुनन इब्ने माजा हदीस 3121/ किताबुल अज़ाहि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ुर्बानी]
नोट: इसमें एक रावी अबु अय्याश मिस्री मजहूल हैं लीनुल हदीस हैं मगर ताबई हैं और तीन क़ाबिले एतेमाद रावियों ने उनसे रिवायत की है इस के इलावा हदीस की तसहीह इब्ने ख़ुज़ैमा, हाकिम और ज़हबी ने की है। शैख़ अल्बानी ने पहले इसे ज़ईफ अबी दाऊद में रखा था फिर तहसीन (छान बीन करने) के बाद सहीह अबी दाऊद में जगह दी।
इन शा अल्लाह आगे की बातों का ज़िक्र हम "पार्ट-8" में करेंगे।
आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।