भैंस की कुरबानी (Sacrifice of Buffalo)
لِّيَشۡهَدُوۡا مَنَافِعَ لَهُمۡ وَيَذۡكُرُوا اسۡمَ اللّٰهِ فِىۡۤ اَ يَّامٍ مَّعۡلُوۡمٰتٍ عَلٰى مَا رَزَقَهُمۡ مِّنۡۢ بَهِيۡمَةِ الۡاَنۡعَامِ ۚ فَكُلُوۡا مِنۡهَا وَاَطۡعِمُوا الۡبَآئِسَ الۡفَقِيۡـرَ
"ताकि वो फ़ायदे देखें जो यहाँ उनके लिये रखे गए हैं; और कुछ मुक़र्रर दिनों में उन जानवरों पर अल्लाह का नाम लें जो उसने उन्हें दिये हैं। ख़ुद भी खाएँ और तंगदस्त मोहताज को भी दें।" [सूरह हज 28]
खुद कुरान ने الۡاَنۡعَامِ की तोज़ीह करते हुए ضَاْن (भेड़), مَعْز (बकरी), اِبِل (ऊँट) और بَقَر (गाय) 4 जानवरों का ज़िक्र फरमाया और उनके मेल और फीमेल को मिलाकर उन्हें ثَمَانِیَۃ أَزْوَاج (जोड़ो के लिहाज़ से 08) कहा। [सूरह अनाम 142-144]
इन्हीं 4 जानवरों की कुर्बानी पूरी उम्मत ए मुस्लिमा के नज़दीक इत्तेफ़ाक़ी व इजमाई तौर पर मशरूअ है। इन जानवरों की चाहे कोई भी नस्ल हो और इसे लोग चाहे कुछ भी नाम देते हो उसकी कुर्बानी जायज़ है मसलन भेड़ की नस्ल में से दुम्बा है उसकी शक्ल और नाम भेड़ से कुछ अलग भी है लेकिन चूँकि वह भेड़ की नस्ल और क़िस्म में शामिल है लिहाज़ा इसकी क़ुरबानी मशरूअ है।
इसी तरह अलग-अलग देशों में और इलाकों में भेड़ की और भी बहुत सी क़िस्मे और नस्ले हैं जो दूसरे इलाकों वालों के लिए अजनबी है और वो इन्हें अलग-अलग नाम भी देते हैं। इसके बावजूद उन सब की कुर्बानी भेड़ की नस्ल और क़िस्म होने की बिना पर जायज़ और मशरू है इसी तरह ऊंट वगैरह का मामला है।
कुर्बानी के जानवर में से एक बक़रा (गाय) भी है उसकी कुर्बानी के लिए कुरान व सुन्नत में कोई नस्ल ख़ास नहीं फरमाई। अल्लाह तआला ने मूसा अलैहिस्सलाम की जुबानी उनकी कौम को बक़रा (गाय) ज़िबाह करने का हुक्म दिया लेकिन मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम ने उसकी हियत वकैफियत की बिना पर उन्हें सख्ती का सामना करना पड़ा। सूरह बक़रा की कई आयत इसकी तफसील बयान करती है।
इन्हीं आयत की तफसीर में इमाम तबरी रहिमाउल्लाह कहते है:
"क़ौम ए मूसा गाय के बारें में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से सवालात करने में गलती पर थी जब उन्हें गाय ज़िबाह करने का हुक्म दिया गया था उस वक़्त वो गाय की कोई अदना क़िस्म भी ज़िबा कर देते तो हुक्म ए इलाही की तामील हो जाती और उनका फ़र्ज़ अदा हो जाता क्योंकि उनके लिए गाय की किसी ख़ास क़िस्म या किसी ख़ास उम्र का ताय्यून नहीं किया गया था।
उनके लिए ज़रूरी था कि पहली ही दफा ज़ाहिरी हुक्म पर अमल करते हुए कोई भी ऐसा जानवर ज़िबाह कर देते जिस पर बक़रा का लफ्ज़ बोला जाता था।" [जामे उल बयान अन तावील अइयुल क़ुरान (तफसीर ए तबरी 2/100)]
इससे पता चला कि जब अल्लाह तआला गाय ज़िबाह करने का हुकुम फरमाएं तो गाय की कोई भी क़िस्म या नस्ल ज़िबाह करने से हुक्म ए इलाही पर अमल हो जाता है और ये बात लुगत ए अरब में और अहले इल्म के वहां तय है कि जिस तरह बखती इबल (ऊँट) की एक नस्ल है उसी तरह भैंस बक़रा (गाय) की एक नस्ल व क़िस्म है इसमें किसी का इख़्तिलाफ मुताक़ाददमीन (OLDEST) नहीं है।
इमाम अहमद बिन हम्बल रहिमाउल्लाह से पूछा गया कि क्या भैंस की क़ुरबानी में सात हिस्से हो सकते हैं?
तो उन्होंने कहा: मुझे इसमें किसी इख़्तिलाफ का इल्म नहीं।
[मसाइल ए इमाम अहमद व इस्हाक़ बरुवाईतल कोसज रक़म मसला 2865]
ईमाम लैस बिन अबू सुलेम रहिमाउल्लाह कहते हैं:
اَلْجَامُوسُ وَالْبُخْتِيُّ مِنَ الْـأَزْوَاجِ الثَّمَانِیَۃِ
"भैंस (गाय की एक क़िस्म) और बखती (ऊँट की एक क़िस्म) उन आठ जोड़ो में से है जिनका अल्लाह तआला ने ज़िक्र किया है।" [तफसीर इब्ने अबी हातिम 05/1403 सनद हसन]
लुगत व अरबी के इमाम अबू मंसूर, मुहम्मद बिन अहमद, अज़ ज़हरी हरवी फरमाते हैं:
"गाय की नस्लों में से जामूसी (भैंसे) है इसकी वाहिद (एकवचन) जामूस है ये गाय की बेहतरीन क़िस्म है ये गाय की सब अक़्साम में से ज़्यादा दूध देने वाली और जिस्मानी ऐतिबार से बड़ी होती है।" [अज़ ज़ाहिर फी ग़रीबुल अल्फाज़ शाफई सफा 101]
कुछ लोग ये कहते सुनाई देते हैं कि गाय और भैंस के नाम ही में फर्क है अगर भैंस गाय की नस्ल से होती तो उसका नाम गाय होता ना के कुछ और जब उर्फ में (आम ज़ुबान) इसे कोई गाय कहता और समझता नहीं तो यह गाय है ही नहीं।
उनके लिए अर्ज़ है कि भैंस के लिए अरबी में लफ्ज़ جاموس इस्तेमाल होता है जो कि फ़ारसी से निकल कर अरबी में आ गया है फारसी में यें नाम گاؤمیش था अरबी ज़ुबान की अपनी ख़ास हियत की बिना पर इसका तलफ्फुज़ थोड़ा सा बदल गया और यें جاموس हो गया इस बात कि सराहत लगत ए अरब की क़रीबन तमाम इम्हात उल क़ुतुब में लफ्ज़ जामूस के तहत मौजूद है।
फारसी नाम में वाज़ेह तौर पर लफ्ज़ "گاؤ" (गाय) मौजूद है इससे भी मालूम होता है कि भैंस असल में गाय ही की एक नस्ल है चुंकि गायें कि यें नस्ल (भैंस) अरबी इलाको में मौजूद नहीं थी बल्कि अजमी इलाको में होती थी अरबो के वहां मारूफ ना थी इसलिए इसका नाम फारसी से अरबी में लाना पड़ा।
अल्लाह दीन ए सहीह के सिरात पर चलाये।
मुहम्मद
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