Sirf Eid Wale Shakahari (vegetarian)

Sirf Eid Par Shakahari AAm taur par mansahari

शाकाहारी ईद 

हमारे देश में 3 तरह के लोग रहते हैं-

1. शाकाहारी 
2. मांसाहारी 
3. आमतौर पे मांसाहारी ईद पर शाकाहारी 

जी हाँ, ये एक ख़ास किस्म की प्रजाति है जो बीते कुछ सालों में वजूद में आयी है। इस प्रजाति के लोग आमतौर पर कबाब और बिरयानी खाते नज़र आते हैं लेकिन ईद पर ही ये अचानक कुछ हफ़्तों के लिए शाकाहारी हो जाते हैं और माँसाहार और ईद के खिलाफ तरह तरह के पोस्ट करने लगते हैं। इनके पाखंड का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है के इनके सोशल मीडिया पर इनके नॉन वेज के साथ पुराने पोस्ट मौजूद होते हैं। 

इस प्रजाति की विशेषता ये है के ईद के आस पास बहुत ज़्यादा प्रोपेगंडा करते हैं और ऐसा माहौल बनाते हैं जैसे इनसे ज़्यादा जीव प्रेमी कोई है ही नहीं। और ईद गुज़रते ही इनका जीव प्रेम किसी गुब्बारे की हव्वा की तरह निकल जाता है। इस प्रजाति की वजह से प्रतीत होता है के भारत में मुस्लिम आबादी के अलावा बाकि पूरा देश शाकाहारी है लेकिन सच ये है के भारत में सिर्फ 14 % (2011 सर्वे ) मुस्लिम हैं लेकिन 70 % आबादी मांसाहारी है। 

इसका मतलब है 56 % आबादी उन लोगों की है जो मुस्लिम नहीं है मगर मांसाहार का सेवन करते हैं। फिर सिर्फ ईद उल अदहा पर ही शाकाहार प्रेम क्यों ? क्या ईद मनाना जुर्म है ? सिर्फ मुस्लमान पर ही इलज़ाम क्यों?

आइये इसकी वजह जानने की कोशिश करें -


क़ुरबानी

इस्लाम वो दीन है जिसने अपने मानने वालों को हर अमल का एक मक़सद फराहम किया है, मुसलमान यूं ही नहीं किसी भी काम को अंजाम देते हैं उसके पीछे पूरी कहानी या सबक पोशीदा होता है और अक्सर लोग सबक को जानें समझे बिना उसे एक मसला बना कर ऐतराज़ शुरु कर देते हैं। नॉन वेज पर तो हमेशा से ऐतराज़ होता रहा है लेकिन अब ईद उल अदहा को भी निशाना बनाया जा रहा है। हांलकि लोगों को ईद उल अदहा का मक़सद और मतलब दोनों पता है।

ईद उल अदहा ये दो लफ़्ज़ो से मिलका बना है। ईद और अदहा - क़ुरबानी। इसका मक़सद ये है कि क्या बंदा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की राह में कुछ भी क़ुरबान कर सकता है? उसे ये एहसास हो कि ये जो भी नेअमतें अता की गई हैं वो हमेशा के लिए उसकी नहीं है बल्कि ये आर्ज़ी ज़िंदगी का सामान है। और जब वो इसे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुक्म से उसकी रज़ा और खुशनूदी के लिए उसे क़ुरबान करेगा तो, दुनिया की बेजा मोहब्बत में नहीं उलझेगा। इसी लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने ख़ैरात, ज़कात, सदका और कुर्बानी करने का हुक्म दिया। इंसान फितरी तौर पर माल और औलाद की बेजा मोहब्बत में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बताई हुई हदों को भूल जाता है।

इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने तो अपनी उस औलाद को कुर्बान कर रहे थें जो उन्हें बुढ़ापे में मिली थी। अल्लाह सुब्हान व तआला फरमाता है -

हमने उसे एक हलीम (सहनशील) लड़के की ख़ुशख़बरी दी।
अल क़ुरआन 37.101

लेकिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का मक़सद उनसे उनकी औलाद की कुर्बानी नहीं लेना था बल्कि जिस बात की कुर्बानी चाहिए थी वो तो उन्होंने उस वक्त यानि अपने ख़्वाब का ज़िक्र करने से ले कर बेटे के गर्दन पर छुरी चलाने तक पूरी हो चुकी थी।

वो लड़का जब उसके साथ दौड़-धूप करने की उम्र को पहुँच गया तो (एक दिन) इबराहीम ने उससे कहा, “बेटा!मैं ख़ाब में देखता हूँ कि मैं तुझे ज़बह कर रहा हूँ, अब तू बता, तेरा क्या ख़याल है?” 

उसने कहा, “अब्बाजान, जो कुछ आपको हुक्म दिया जा रहा है उसे कर डालिये। अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करनेवालों में से पाएँगे।” 

आख़िरकार जब उन दोनों ने अपने आपको हवाले कर दिया और इबराहीम ने बेटे को माथे के बल गिरा दिया। और हमने आवाज़ दी कि “ऐ इबराहीम, तूने ख्वाब (सपना) सच कर दिखाया। हम नेकी करनेवालों को ऐसा ही बदला देते हैं। 

यक़ीनन ये एक खुली आज़माइश थी।” और हमने एक अ़ज़ीम ज़बीहा (यानी क़ुरबानी के जानवर) का फ़िदया देकर उस बच्चे को बचा लिया।

अल कुरआन 37.102-107


 यानि बाप औलाद को कुर्बान करने को तैयार और बेटा कुर्बान होने को तैयार। और ये सिर्फ़ एक आज़माइश थी और फिर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने जानवर का फ़िदया दे कर इस दिन को बाप बेटे के नाम से यादगार बना दिया साथ ही ये साल सबसे अज़ीम दिन भी है।

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के नज़दीक कुर्बानी का दिन (10 ज़ुल हिज्जा) सबसे अज़ीम दिन है।
सुन्न अबु दाऊद: 1765

इस अज़ीम दिन को दो अज़ीम हस्तियां अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में सुरखूरू हुईं और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमें (बाद की नस्लों में) ये दिन खुशियों के साथ नसीब कर दिया। 

क्या उसके बाद किसी से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने वो कुर्बानी मांगी? हम तो सिर्फ़ यादगार के तौर पर एक जानवर कुर्बान कर देते हैं। क्या आम दिनों में लोग नॉन वेज नहीं खाते? तब उन जानवरों की बे रहमी का आप लोगों को ख्याल नहीं आता?


नबी करीम ﷺ ने फरमाया:
बेशक अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हर चीज़ के लिए भलाई का हुक्म दिया है। जब जानवर ज़बह करो तो अच्छे तरीके से लिहाज़ा तुमसे हर एक को चाहिए कि वो अपनी छूरी तेज़ कर ले। ज़बह किए जाने वाले जानवर की जान आराम से निकल जाए।
सहीह मुस्लिम: 1955a


हलाल

इस तरीक़े से जानवर के गले की और सांस की नली काटते हैं जिससे, उसके शरीर का रुधिर मस्तिष्क तक नहीं पहुंचता और ज़्यादा से ज़्यादा शरीर के बाहर निकल जाता है। और उसे तकलीफ़ का एहसास भी बहुत कम होता है।

डॉ. वी के मोदी (हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट ऑफ़ मीट टेक्नोलॉजी), का कहना है हलाल तरीका झटका से ज़्यादा बेहतर है क्योंकि झटका में रीढ़ की हड्डी पे बिजली के झटके दिए जाते है जिससे रुधिर शरीर में रह जाता है और इस तरह के जानवरो का मीट खाने से बीमारी होने की संभावना होती है।


क्या पेड़ पौधे जीवित नहीं हैं?

क्या पेड़ पौधे जीवित नहीं हैं? क्या उन्हें काटना, उनके साथ ज़ुल्म या बेरहमी नहीं है?

सभी को पता है कि वो जीवित है और उन्हें भी काटने से तकलीफ़ भी होती है, हालिया तहकीक के मुताबिक़ जब पौधों को काटते हैं तो उन में एक सिग्नल दौड़ता है जो प्रतिरक्षा तंत्र की तरह काम करता है। यानि वो काटे जाने के खिलाफ़ ख़ुद की हिफाज़त करना चाहते हैं।

क्या जानवरो का आवास जंगल नहीं? और हम जंगल को काट कर एक ही वक्त में पेड़ पौधे और जानवरों दोनों नुक्सान पहुंचा रहे हैं। बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) को तबाह और बर्बाद कर रहे हैं और जानें अनजाने में अपना भी नुक्सान कर रहे हैं, या फिर आपको सिर्फ़ उन्हीं जानवरों से हमदर्दी है जिन्हें ज़िबह करने का हुक्म है? फिर ये हमदर्दी नहीं बल्कि अपने ही साथ ज़ुल्म है।


लाइवस्टॉक सर्वे

जैसे हमारी जनगणना हर 10 सालों पर होती है वैसे ही जानवरों की जनगणना हर 7 सालों पर होती है जिसे लाइवस्टॉक के तहत भारत सरकार द्वारा होती है। 


लाइवस्टॉक सर्वे (2019) के मुताबिक़, सबसे ज़्यादा पाए जाने वाली जाति (species), मवेशी (cattle) 19 करोड़, भैंस (buffalo) 10 करोड़, भेड़ (sheep) 74 करोड़ और बकर (goat) 14 करोड़ हैं।

बकरी (goat): बकरी का औसत जीवन काल (average life span) 15-18 साल है, इसमें प्रजनन काल (breed period) 13-17 होता है। और गर्भ काल (gastetion period) 150-155 दिन, और इनमें 35% एक, 54% जुड़वा, 6.3% तीन बच्चे देती हैं और ज़्यादा से ज़्यादा (maximum) 5-7 तक बच्चे होते हैं। इनका जन्म दर (birth rate) एक साल में तीन बच्चों का है।

यही जानवर हैं जिनको इस्लाम ने खाना जायज़ क़रार दिया है और अगर इन जानवरों को खाने में नहीं  लाते हैं तो फिर इनका पालन पोषण कैसे होगा?

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक़, छत्तीसगढ़ के बीजेपी नेता के वहां 200 गाय पालन पोषण की कमी की वजह से मर गई।

DH के मुताबिक़, 100 से ज़्यादा गाय विज्यवाडा गौशाला में मर गई। ये तादाद यूपी के गौशाला का है। 

NDTV के मुताबिक़, 500 गाय राजस्थान के गौशाला में मर गई।

मवेशी की उम्र 30 साल तक होती है और अब इनका पालन पोषण इतना मुश्किल होता जा रहा है कि रोज़ रोज़ की मौत मर कर ये सिर्फ़ ज़्यादा से ज़्यादा 10 साल ही ज़िंदा रह रहें हैं।

जिनके जानवर बूढ़े हो जाते हैं वो उन्हें बाहर सड़क पर छोड़ देते हैं। आवारा पशुओं से किसान की फसलें बर्बाद हो रही हैं।

यूपी सरकार ने ये कहा कि अगर कोई इन पशुओं को पलेगा तो उसे हर माह 900 रुपया मिलेगा लेकिन औसतन इनके पालन पोषण पर कम से कम 3000 आता है।

अब आप सोच के बताएं अगर सरकार 900 रुपया ही सिर्फ़ दे, एक जानवर पर तो 10,000 पर कितना होगा?

मुल्क का सालाना बजट ही बिगड़ जाएगा। हमारे देश की हालत ऐसे ही बहुत ख़राब है। भूखमरी में हम नीचे से टॉप करने वाले बन गए हैं।

आप नॉन वेज नहीं खाते हैं ना खाएं लेकिन बिना अकली दलील के ख़ुद से ही ये तय कर लेना कि इन्हें काटने बेरहमी है या इन्हें खाने वाले बेरहम होते हैं। जीव विज्ञान के अनुसार हम इंसान मांसभक्षी (carnivore) है। और हमारे दांत भी ऐसे है जो मांस खाने में मदद गार हों। जो लोग शाकाहारी (vegan) का झंडा बुलंद करते हैं वो लोग विटामिन B12 के सप्लीमेंट्स लेते हैं। एक तहकीक के मुताबिक़ तीन वेगन में से दो में विटामिन B12 की कमी पाई जाती है। 


लाइवस्टॉक से आर्थिक सहायता:

दुनिया 74% लोग नॉन वेज खाते हैं और 71% भारतीय नॉन वेजिटेरियन हैं।

लाइवस्टॉक भारतीय अर्थव्यवस्था में एक अहम भूमिका निभाता है!

भारत की आबादी का 8.8% लोगों का रोज़गार इससे है। 

तक़रीबन 2.05 मिलियन लोग इस निर्भर करते हैं। 

ग्रामीण क्षेत्रों के 14% घर इसके ज़रिए चलते हैं।

लाइवस्टोक 4.11% जीडीपी में हिस्सा डालता है। और कुल कृषि जीडीपी का 25.6% है। 

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ भारत 3.17 बिलियन अमेरिकी डॉलर का मीट निर्यात करता है। इंडिया रुपया में 23652 करोड़ होगा।

क्या इन सब से बाज़ आने के लिए तैयार हैं? 

बाक़ी तफ्सीली गुफ्तुगू दुसरी आर्टिकल में करते हैं इंशा अल्लाह।


हमारे जानिब (इस्लामिक थियोलॉजी ब्लॉग टीम) से हमारे क़ारयीन (reader) को ईद उल अदहा बहुत मुबारक।

(تَقَبَّلَ اللهُ مِنَّا وَمِنكُم)
"तक़ब्बल्लाहु मिन्ना वा मिंकुम"


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