Nikah (part 19): Kin auraton se nikah halal/jayaz hai?

Nikah (part 19): Kin auraton se nikah halal/jayaz hai?


किन औरतों से निकाह जायज़/हलाल है?

खातमुन्नबीईंन रसूल्लाह ﷺ की विलादत का मक़सद दुनियां में एक अल्लाह की इबादत और शिर्क को खत्म करने के साथ साथ ये भी था कि वों इस दुनियाँ में फैली जाहिलियत की तमाम रश्मों रिवाजों को मिटा कर एक साफ-सुथरा इंसानी समाज का निर्माण करें और इसकी शुरुआत आप ﷺ ने तत्कालीन अरब मुआशरे से की, चूंकि अरब मुआशरा उस वक्त तमाम संस्कृतियों का केंद्र रहा था। सभी मज़हब और संप्रदाय को मानने वाला उस मुआशरे का अभिन्न अंग रहा। यहूदी, नसरानी, मजूसी, मुशरिक (बहुदेव वादी) सभी उस कल्चर में रचे-बसे थे और अपनी-अपनी सभ्यता और संस्कृति का अनुकरण कर रहे थें। इनके रहन सहन की छाप एक दूसरे पर दिखाई पड़ती थी, यही नहीं सारे धर्म और पंथों पर एक दूसरे के कल्चर का अच्छा-खासा प्रभाव देखने को मिलता था। ऐसे ही निकाह और बाकी के रश्मों-रिवाज लगभग किसी ना किसी रूप में एक दूसरे में दृष्टिगोचर होते थे। 

अरब मुल्कों में निकाह करना इतना मुश्किल नहीं था जितना आज है वहां का कल्चर ये था के एक मर्द कई ल़डकियों से निकाह करते, उम्र को लेकर कोई रोक टोक नहीं थी, आज़ाद गुलाम किसी भी लड़की से निकाह हो जाया करता था, हराम हलाल का कोई ख्याल नहीं रखा जाता था। 

अगर हम अरब के कल्चर को कुरान की रोशनी में समझें कि किन औरतों से निकाह किया जा सकता है और कौन सी औरतें या मर्द हराम हैं तो हम गुनाहों से बच सकते हैं।


निकाह के लिये हलाल औरतें:

आज़ाद औरत ना मिले तों लौंडी से भी निकाह किया जा सकता है। इस विषय में क़ुरआन फ़रमान है कि -

"और तुममें से जो आदमी इतनी क़ुदरत ना रखता हो कि ख़ानदानी मुसलमान औरतों (मोहसिनात) से निकाह कर सके, उसे चाहिए कि तुम्हारी उन लौंडियों में से किसी के साथ निकाह कर ले जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हों और ईमान वाली हों। अल्लाह तुम्हारे ईमानों का हाल अच्छी तरह जानता है। तुम सब एक ही गिरोह के लोग हो। इसलिये उनके सरपरस्तों की इजाज़त से उनके साथ निकाह कर लो और भले तरीक़े से उनके महर अदा कर दो, ताकि वो निकाह के घेरे में महफ़ूज़ होकर रहें, ना आज़ादाना तौर पर शहवतरानी करती फिरें और ना चोरी-छिपे नाजाइज़ ताल्लुक़ बनाएँ। फिर जब वो निकाह के घेरे में महफ़ूज़ हो जाएँ और उसके बाद कोई बदचलनी कर बैठें तो उन पर उस सज़ा के मुक़ाबले आधी सज़ा है जो ख़ानदानी औरतों के लिये मुक़र्रर है। ये सहूलत तुम में से उन लोगों के लिये पैदा की गई है जिनको शादी ना करने से तक़वा और परहेज़गारी के क़ायम ना रह जाने का अन्देशा हो। लेकिन अगर तुम सब्र करो तो ये तुम्हारे लिये बेहतर है, और अल्लाह बख़्शने वाला और रहम करने वाला है।" [सूरह निशा आयत:25] 


वजाहत: 

चूंकि अरब मुआशरे में आज़ाद औरतों का मेहर आम तौर पर ज्यादा होता था और बंदियों का मेहर कम इसलिए एक तरफ़ तो हुक्म यह दिया गया है कि बांदियों से निकाह उस वक्त किया जाय जब आज़ाद औरत से निकाह की इस्तितात (क्षमता) न हो, दूसरी तरफ़ यह हिदायत दी गई कि जब किसी बांदी से निकाह की नौबत आ जाय तो महज़ उसके बांदी होने की वजह से उसको हकीर समझना दुरुस्त नहीं।

क्यों कि फजीलत का असल दारोमदार तकवे पर है और अल्लाह तआला ही बेहतर जानते हैं कि किसकी ईमानी हालत ज्यादा मज़बूत है और औलाद ए आदम होने की वजह से सब एक दूसरे के बराबर हैं।

आज़ाद औरतें अगर गैर शादी शुदा हैं तो इनके लिए ज़िना की सजा सौ कोड़े है जिसका ज़िक्र सूरह नूर की दूसरी आयत में आया है और ऊपर बयान की गई आयत में बांदी की इसकी आधी सजा यानी 50 कोड़े मुकर्रर फरमाई गई है।


शरीयत ने किन औरतों/मर्दों से निकाह मना (हराम) करार दिया है 


1. शरीयत ए इस्लामिया सल्बी, दूध शरीक और रजाई रिश्तों में निकाह को हराम करार दिया है।

अल्लाह का फ़रमान है:

"तुम पर हराम की गईं तुम्हारी मायें, बेटियाँ, बहनें, फूफियाँ, ख़ालायें, भतीजियाँ, भांजियाँ और तुम्हारी वों मायें जिन्होंने तुमको दूध पिलाया हो और तुम्हारी दूध-शरीक बहनें और तुम्हारी बीवियों की मायें, और तुम्हारी बीवियों की लड़कियाँ जिन्होंने तुम्हारी गोदों में परवरिश पाई है। उन बीवियों की लड़कियाँ जिनसे तुम जिस्मानी ताल्लुक़ क़ायम कर चुके हो। वरना अगर [सिर्फ़ निकाह हुआ हो और] जिस्मानी ताल्लुक़ क़ायम ना हुआ हो तो [उन्हें छोड़कर उनकी लड़कियों से निकाह कर लेने में] तुम्हारी कोई पकड़ नहीं है और तुम्हारे उन बेटों की बीवियाँ जो तुम्हारे अपने नुत्फ़े से हों। और ये भी तुम पर हराम किया गया कि निकाह में दो सगी बहनों को जमा करो। मगर जो पहले हो चुका वो हो चुका, अल्लाह माफ़ करने वाला और रहम करने वाला है।

और वो औरतें भी तुम पर हराम हैं जो किसी दूसरे के निकाह में हों [मोहसनात]। अलबत्ता ऐसी औरतें इससे अलग हैं जो [जंग में] तुम्हारे हाथ आएँ। ये अल्लाह का क़ानून है जिसकी पाबन्दी तुम पर लाज़िम कर दी गई है।

इनके अलावा जितनी औरतें हैं उन्हें अपने मालों के ज़रिये से हासिल करना तुम्हारे लिये हलाल कर दिया गया है, शर्त ये है कि निकाह के घेरे में उनको महफ़ूज़ करो, ना ये कि आज़ादाना तौर पर शहवतरानी (ज़िना) करने लगो।" [सूरह निशा आयत 23 & 24] 


इस हवाले से कुछ अहादीस पर नज़र डालते हैं:

अम्मी आयशा रज़ि० से रिवायत है नबी करीम ﷺ कि; रजाअत की बुनियाद पर वों सब रिश्ते (निकाह के लिये) हराम हों जाते है, ज़ों पैदाइशी नसब की वजह से हराम होते है।" [इब्ने माज़ा:1937, निसाई:3304, 3305, सही बुखारी:4796] 


2. दो सगी बहने एक निकाह में जमा नहीं हो सकती हैं 

इस हवाले से हदीस देखें,

नबी करीम ﷺ की खिदमत में एक शख्स हाज़िर हुआ और इकबाल किया कि इस्लाम कुबूल करने के पहले से मेरे निकाह में दो सगी बहने है।

मैं क्या करूँ?

इस पर नबी ﷺ ने फरमाया: इनमें से एक को तू जिसे चाहे मुन्तख़ब कर ले और दूसरी को तलाक दे दे।"

 [तिर्मिज़ी:1129, 1130, इब्ने माज़ा:1951, मुसनद अहमद:7015] 


3. किसी औरत के साथ एक ही निकाह में उसकी सगी खाला या फूँफी को जमा करना मना है:

नबी करीम ﷺ ने किसी ऐसी औरत से निकाह करने से मना किया जिसकी फूफी या खाला इसके निकाह में हो। [सही बुखारी: 5108 - 10] 

 

4. बाप की बेवा या मुतल्लका (सौतेली माओं) से निकाह हराम है:

इरशाद ए बारी तआला है:

"और जिन औरतों से तुम्हारे बाप निकाह कर चुके हों उनसे हरगिज़ निकाह ना करो, मगर जो पहले हो चुका सो हो चुका। हक़ीक़त में ये एक बेशर्मी और बेहयाई का काम है, नापसन्दीदा है और बुरा चलन है।" [सूरह निशा :22] 

ऐसा शख्स जों बाप की बेवा या मुतल्लका से निकाह करें, तों अहादीस में उसकी सजा गर्दन कलम कर देना बताई गयी है। 

हज़रत मुआविया-बिन-क़ुर्रा (रह०) ने अपने वालिद हज़रत क़ुर्रा-बिन-अयास (रज़ि०) से रिवायत की है, उन्होंने फ़रमाया : मुझे रसूलुल्लाह ﷺ ने एक शख़्स की तरफ़ भेजा जिसने अपने वालिद की बीवी से निकाह कर लिया था (और मुझे हुक्म दिया) कि मैं उसे क़त्ल कर दूँ और उसका माल ज़ब्त कर लूँ। [ इब्ने माज़ा:2608]


5. मुश्रिक मर्द-औरत और खुली ज़िनाकारी में लिप्त मर्द-औरत से निकाह मना है

अल्लाह का फ़रमान है:

"ज़िना करने वाला निकाह ना करे मगर ज़िना करने वाली औरत के साथ या शिर्क करने वाली औरत के साथ, और ज़िना करने वाली औरत के साथ निकाह ना करे मगर ज़िना करने वाला मर्द या मुशरिक मर्द; और ये हराम कर दिया गया है ईमान वालों पर।" [सूरह नूर :3]

इस हवाले से हदीस देखें 

मर्सद-बिन-मर्सद नामी सहाबी वो ऐसे (जी दार और बहादुर) शख़्स थे जो (मुसलमान) क़ैदियों को मक्का से निकाल कर मदीना ले आया करते थे। और मक्का में उनाक़ नामी एक ज़ानिया बदकार औरत थी वो औरत इस सहाबी की (उन के इस्लाम लाने से पहले की) दोस्त थी उन्होंने मक्का के क़ैदियों में से एक क़ैदी शख़्स से वादा कर रखा था कि वो उसे क़ैद से निकाल कर ले जाएँगे। कहते हैं कि मैं (उसे क़ैद से निकाल कर मदीना ले जाने के लिये) आ गया। मैं एक चाँदनी रात में मक्का की दीवारों में से एक दीवार के साये  में जा कर खड़ा हुआ ही था कि वह आ गई। दीवार के ओट में मेरी काली परछाईं उसने देख ली, जब मेरे क़रीब पहुँची तो मुझे पहचान कर पूछा : मर्सद हो न? मैंने कहा : हाँ मर्सद हूँ, उसने ख़ुश-आमदीद कहा (और कहा :) आओ रात हमारे पास गुज़ारो, मैंने कहा : अल्लाह ने ज़िना को हराम क़रार दिया है। उसने शोर मचा दिया ऐ ख़ेमे वालो (दौड़ो!) ये शख़्स तुम्हारे क़ैदियों को उठाए लिये जा रहा है। फिर मेरे पीछे आठ आदमी दौड़ पड़े। मैं ख़न्द्मा (नामी पहाड़) की तरफ़ भागा और एक गुफा या खोह के पास पहुँच कर उस में घुस कर छिप गया, वो लोग भी ऊपर चढ़ आए और मेरे सिर के क़रीब ही खड़े हो कर उन्होंने पेशाब किया तो उनके पेशाब की बूँदें हमारे सिर पर टपकीं, लेकिन अल्लाह ने उन्हें अन्धा बना दिया। वो हमें न देख सके वो लौटे तो मैं भी लौट कर अपने साथी के पास (जिसे उठा कर मुझे ले जाना था।) आ गया वो भारी भरकम आदमी थे, मैंने उन्हें उठा कर (पीठ पर) लाद लिया इज़ख़िर (की झाड़ियों में) पहुँच कर मैंने उनकी बेड़ियाँ तोड़ डालीं और फिर उठा कर चल पड़ा कभी कभी इस ने भी मेरी मदद की (वो भी बेड़ियाँ ले कर चलता) इस तरह में मदीना आ गया। रसूलुल्लाह (सल्ल०) के पास पहुँच कर मैंने कहा : अल्लाह के रसूल! मैं उनाक़ से शादी कर लूँ? (ये सुन कर) रसूलुल्लाह (सल्ल०) ख़ामोश रहे। मुझे कोई जवाब नहीं दिया फिर ये आयत الزاني لا ينكح إلا زانية أو مشركة والزانية لا ينكحها إلا زان أو مشرك وحرم ذلك على المؤمنين "ज़ानी ज़ानिया या मुशरिका ही से निकाह करे और ज़ानिया से ज़ानी या मुशरिक ही निकाह करे मुसलमानों पर ये निकाह हराम है। (नूर : 3) नाज़िल हुई आप ने (इस आयत के नुज़ूल के बाद मर्सद-बिन-अबी-मर्सद से) फ़रमाया : उससे निकाह न करो। [तिर्मिज़ी:3177] 


नोट: अगर मुशरिक मर्द-औरत शिर्क से तौबा कर ले और ईमान ले आये तों उनसे निकाह किया जा सकता है। 

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त कुरान में फरमाता है:

"तुम मुशरिक [बहुदेववादी] औरतों से हरगिज़ निकाह ना करना, जब तक कि वो ईमान ना ले आएँ। एक मोमिन लौंडी शरीफ़ मुशरिक औरत से बेहतर है, चाहे वो तुम्हें बहुत पसन्द हो। और अपनी औरतों का निकाह मुशरिक मर्दों से कभी ना करना, जब तक कि वो ईमान ना ले आएँ। एक मोमिन ग़ुलाम मुशरिक मर्द से बेहतर है, चाहे वो तुम्हें बहुत पसन्द हो। ये लोग तुम्हें आग की तरफ़ बुलाते हैं और वो अपने अहकाम वाज़ेह तौर पर लोगों के सामने बयान करता है, उम्मीद है कि वो सबक़ लेंगे और नसीहत क़बूल करेंगे।" [सूरह बकरा :221]


नोट: इस आयत पर गौर करें अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मुस्लिम मर्दों से साफ़ साफ़ फरमा रहा है कि मुशरिक औरत से निकाह न करना जब तक वो ईमान न ले आएँ उस से बेहतर एक ईमान वाली मोमिन औरत बेहतर है।

इस्लाम और बहुदेववादी के बीच अकीदे का फ़र्क है जो शादी के बाद टकराते रहते हैं इसमें अपने ईमान के जानें का अंदेशा है और आज कल जो लड़के गैर मुस्लिम लडकियों के प्रेम में पड़ कर शादी कर लेते हैं या सोचते हैं कि शादी के बाद सब सही हो जायेगा, मगर अकसर जिंदगियां उलझ कर रह जाती हैं और सब से बढ़ कर आने वाली नस्लों का दीन दाव पर लग जाता है, बच्चों की परवरिश, उनके नाम को लेकर प्रॉब्लम, समाज में बच्चे को इज्ज़त न मिलना, बड़े होकर बच्चों का कश्मकश में जिंदगी गुजरना कि वो कौन से दीन पर चलें।

इसी तरह अल्लाह ने औरतों के लिए भी फरमाया है कि अपनी औरतों का निकाह मुशरिक मर्दों से कभी ना करना, जब तक कि वो ईमान ना ले आएँ। एक मोमिन ग़ुलाम मुशरिक मर्द से बेहतर है, चाहे वो तुम्हें बहुत पसन्द हो।

कुरान की तौहीन कर जो लड़कियां मुर्तद हो रही हैं, भाग कर मुशरिको से अपनी चंद नाजायज़ दुनियावी ख्वाहिशात की खातिर शादी कर रही हैं । ऐसे लड़के और लड़कियों को नजायज और हराम रिश्तों से बचाना चाहिए। दुनियां की छोटी छोटी ख्वाहिशों की कुर्बानी पर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने जन्नत की बशारत दी है। इसलिय अल्लाह की नाफरमानी से बचें, गुनाहों से तौबा करें, नबी की सुन्नत पर अमल करते हुए हलाल और ईमान वाले मर्द/औरत से निकाह करें!

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ है हम मुसलमानो को सही दीन समझने की तौफीक अता फरमाए और हराम रिश्तों से बचाए। आमीन

निकाह की फजीलत की अगली कड़ी में "इख़्तिताम ए निकाह सीरीज़" पर बात होगी "इंशा अल्लाह"

तब तक दुआओं में याद रखें।


आपकी दीनी बहन
फ़िरोज़ा

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