क़ुर्बानी का तरीका
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क़ुर्बानी करना ऐसा अमल है जिस पर दुनिया भर के तमाम मुसलमान इत्तेफाक रखते हैं इसके साथ ही इसमें इख्तिलाफ भी है की कुर्बानी कैसे की जाए? कुर्बानी करने का तरीका जानने से पहले हम यह जान लेते हैं कि कुर्बानी क्या होती है और क्यों की जाती है?
1. क़ुर्बानी क्या है?
क़ुर्बानी एक इबादत है या ये कह लें ये एक ऐसी इबादत है जिसे मालदार करते है पर ये वाज़िब नहीं बल्कि सुन्नत ए मुअक्कादह है। कुरान में ज़िक्र किए गए जानवरों को अल्लाह की रजा़ के लिए ज़ब्ह करना कुर्बानी कहलाता है।
"हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हुमा इस्तातात होने के बा वजूद भी क़ुरबानी ना करते।" [सुनन कुबरा बहिएक़ी 09/265 7/198]
हज़रत अबू मसूद बद्री अंसारी रज़ि अन्हु कहते हैं, "मैं तो क़ुरबानी तर्क करने का इरादा करता हूँ इस डर से के हतमी (हमेशा) और वाज़िब ना समझ लिया जाए हालांकि में तो सबसे बढ़ कर आसानी से क़ुरबानी कर सकता हूँ।" [सुनन कुबरा बहिएक़ी 09/265]
2. किन जानवरों की क़ुर्बानी जायज़ है?
नर और मादा भेड़, बकरी, ऊँट और गाय की क़ुर्बानी जायज़ है।
"फ़िर वही है जिसने मवेशियों में से वे जानवर भी पैदा किए जिनसे सवारी और बोझ ढोने का काम लिया जाता है और वे भी जो खाने और बिछाने के काम आते हैं। खाओ उन चीज़ों में से, जो अल्लाह ने तुम्हें दी हैं। और शैतान की पैरवी न करो कि वो तुम्हारा खुला दुश्मन है। ये आठ नर और मादा हैं, दो भेड़ की क़िस्म से और दो बकरी की क़िस्म से..."और इसी तरह दो ऊँट की क़िस्म से हैं और दो गाय की क़िस्म से...।" [क़ुरआन 6: 142 -144]
3. जानवर कब क़ुर्बानी के लायक़ होता है?
कुछ लोग जानवर को उसकी उम्र देखकर लेते है, लेकिन नबी ﷺ ने जानवर को क़ुर्बान करने का मयार सिर्फ़ उसका दो दांता/दोंदा होना बताया है, यानी अगर वो जानवर दोंदा नहीं है, तो उसकी क़ुर्बानी नहीं होगी, फ़िर चाहे वो कितना भी हट्टा-कट्टा क्यों ना हो। जानवरों के अगले दो दांत आम तौर पर 14 महीने के बाद ही आते हैं इसलिए ख़रीदते वक़्त दांतों का ज़रूर ध्यान रखना चाहिए। अगर जानवर घर का है तो एक वर्ष होने पर उसकी क़ुर्बानी की जा सकती है।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, "सिर्फ़ 2 दांत वाले जानवर की क़ुर्बानी करो, हां अगर दुशवार हो तो एक साल का दुंबा ज़बह करो।" [सहीह मुस्लिम 5082]
4. ख़रीदने के बाद जानवर में कोई ख़राबी पैदा होना
अगर ख़रीदने के बाद जानवर में कोई ख़राबी पैदा हो जाए तो उसकी क़ुर्बानी हो जाएगी।
"सैय्यदना अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रजि. ने क़ुर्बानी के जानवरों में एक कानी ऊंटनी देखी तो फ़रमाया: "अगर ये ख़रीदने के बाद कानी हुई है, तो उसकी क़ुर्बानी कर लो, अगर ख़रीदने से पहले ये कानी थी तो उसे बदल कर दूसरी ऊंटनी की क़ुर्बानी करो।" [सुनन अल-कुबरा बैहकी 9/289]
5. किन जानवरों की क़ुर्बानी नहीं होगी?
क़ुर्बानी का जानवर काना, बीमार, लंगड़ा, दुबला-पतला और कमजोर ( जिसकी हड्डियों में गूदा ना हो) हरगिज़ न हो। जानवर की सींग टूटी ना हो कान काटे ना हो, अंधा ना हो जिस पर चोट ना लगी हो बीमार ना हो।
बरा' बिन आजिब रजि. कहते हैं कि, आप ﷺ ने 4 उंगलियों से इशारा किया और फ़रमाया: 4 तरह के जानवर क़ुर्बानी के लायक़ नहीं है,
2. बीमार जिसकी बीमारी बिल्कुल ज़ाहिर हो,
3. लंगड़ा जिसका लंगड़ा पन बिल्कुल ज़ाहिर हो, और
4. दुबला, बूढा, कमज़ोर जानवर जिसकी हड्डियों में दम ना हो,
मैंने कहा: मुझे क़ुर्बानी के लिए वो जानवर भी बुरा लगता है जिसके दांत में ख़राबी हो,
आप ﷺ ने फ़रमाया: "जो तुम्हें ना पसंद हो उसको छोड़ दो लेकिन किसी और पर उसको हराम न करो।" [सुन्नन अबू दाऊद 2802]
"अल्लाह के रसूल ﷺ ने हमें हुक्म दिया कि (क़ुर्बानी के जानवर की) आंख और कान के ग़ौर से देखें यानी वह सही सलामत हैं या नहीं।" [सुनन इब्ने माजा हदीस नंबर 3143]
क़तादह से रिवायत है कि उनसे जुरई बिन कुलैब ने बयान किया कि मैंने अली रज़ी अल्लाहु अन्हु को यह कहते हुए सुना कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने "टूटी सींग" और "कान कटे" जानवर की कुर्बानी से रोका है। [सुनन इब्ने माजा हदीस नंबर 3145]
अली रजि. कहते है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने उन जानवरों की क़ुर्बानी करने से मना फ़रमाया, "जिनके सींग टूटे और कान फटे हुए हो।"
कतादा कहते हैं: मैंने सईद बिन मुसय्यब रजि. से इसका तज़किरा किया तो उन्होंने कहा: "सींग टूटने का मतलब ये है कि सींग आधी या उससे ज़्यादा टूटी हो।" [सुनन तिर्मिज़ी 1504]
6. एक जानवर पर कितने आदमी?
बकरा, दुंबा और भेड़ की क़ुर्बानी सिर्फ एक आदमी की तरफ से की जा सकती है जबकि गाय, बैल, भैंस और ऊंट की कुर्बानी में सात लोग हिस्सा ले सकते हैं।
जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि. से रिवायत है कि उन्होंने कहा, "हुदैबिया के साल रसूलुल्लाह ﷺ के साथ हमने 7 लोगों की तरफ़ से एक ऊंट और 7 लोगों की तरफ से एक गाय की कुर्बानियां दी।" [सहीह मुस्लिम 3185]
"अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि. कहते हैं, "हम लोग रसूलुल्लाह ﷺ के साथ एक सफ़र में थे कि क़ुर्बानी का दिन आ गया, चुनांचे हमने गाय की क़ुर्बानी में 7 आदमियों और ऊंट की क़ुर्बानी में 10 आदमियों को शरीक किया।" [सुनन अत-तिर्मिज़ी 1501]
नोट: हज के दौरान ऊंट की क़ुर्बानी में 7 से ज़्यादा लोग हिस्सा नहीं हो सकते, जबकि आम दिनों की क़ुर्बानी मे 1 ऊंट में 10 तक लोग हिस्सा ले सकते हैं।
7. क़ुर्बानी का वक्त
ईद उल अज़हा की नमाज का वक्त तुलु ए आफताब (सूरज निकलने) से जवाल ए आफताब (सूरज ढलने) तक है और नमाज के बाद ही वक्त शुरू हो जाता है। अगर कोई ईद की नमाज से पहले क़ुर्बानी कर देता है तो वह क़ुर्बानी नहीं होगी बल्कि सिर्फ गोश्त होगा और फिर उसे नमाज के बाद दूसरे जानवर की कुर्बानी करनी होगी।
बरा' बिन आजीब रजि. ने बयान किया कि, नबी ﷺ ने फ़रमाया: "आज (ईंद-उल-अज़हा) के दिन की शुरुआत हम नमाज़े (ईद) से करेंगे, फ़िर वापस आकर क़ुर्बानी करेंगे, जो शख़्स इस तरह करेगा वो हमारी सुन्नत को पा लेगा।" [सहीह बुखारी 951]
आप ﷺ ने फ़रमाया: "जिसने नमाज़ से पहले क़ुर्बानी कर ली वह उसकी जगह दूसरी क़ुर्बानी करे और जिसने अभी क़ुर्बानी नहीं की वह अल्लाह का नाम लेकर क़ुर्बानी करे।" [सहीह मुस्लिम 5064]
कुर्बानी दिन या रात किसी भी वक्त में की जा सकती है लेकिन दिन में करना बेहतर है।
8. क़ुर्बानी कितने दिन?
कुर्बानी कितने दिन की जाए इसमें इख़्तेलाफ़ है ज्यादातर लोग तीन दिन कुर्बानी करते हैं और कुछ लोग 4 दिन पर कुर्बानी पहले दिन करना अफ़ज़ल है।
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाहु अन्हुमा का क़ौल है कि क़ुर्बानी ईदुल अज़हा के बाद दो दिन और है और यहया कहते हैं अली बिन अबि तालिब रज़ी अल्लाहु अन्हु से इसी के मिस्ल रिवायत पहुंची है। [सुनन कुबरा बहिएक़ी 09/297]
9. क़ुर्बानी का तरीका
1. कुर्बानी के सारे इंतजाम कर लेना मसलन जानवर को नहलाना, चारा-पानी देना, छूरी तेज़ कर लेना, जानवर हो तो उन्हें कुर्बानी की जगह से दूर कर देना कि उनकी नज़र ना पड़े।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "ज़िबाह करो तो अच्छे तरीक़े से ज़िबाह करो, तुम में से कोई शख़्स (जो ज़िबाह करना चाहता है) वो अपनी (छूरी की) धार को तेज़ कर ले और ज़िबाह किए जाने वाले जानवर को तकलीफ़ से बचाए।" [सहीह मुस्लिम 5055]
2. जानवर का मुँह क़िब्ला रुख करना।
नाफ़ेअ ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि. के बारे में ये बात नक़ल की है, कि वो ऐसे ज़बीहे को खाने को मकरूह क़रार देते थे, जिसे आदमी ने किब्ले की तरफ़ रुख़ के बग़ैर ज़िबाह किया हो।" [अल-मुसन्नफ़ अब्दुर-रज़ाक 8585]
3. ज़ब्ह करते वक़्त بِاسْمِ اللَّهِ وَاللَّهُ أَكْبَرُ (बिस्मिल्लाही वल्लाहु अकबर) पढ़ना।
नबी करीम (सल्ल०) ने सींग वाले दो चितकबरे मेंढों की क़ुरबानी की। उन्हें अपने हाथ से ज़बह किया। बिस्मिल्लाह और अल्लाहु-अकबर पढ़ा और अपना पाँव उन की गर्दन के ऊपर रख कर ज़बह किया। [सहीह बुखारी 5565]
सुनन अबि दाऊद हदीस 2795 और सुनन इब्ने माजा 3121 में इस दुआ का भी ज़िक्र मिलता है, यानी ये दुआ भी पढ़ सकते हैं।
إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضَ عَلَى مِلَّةِ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا أَنَا مِنْ الْمُشْرِكِينَ إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ لَا شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا مِنْ الْمُسْلِمِينَ اللَّهُمَّ مِنْكَ وَلَكَ وَعَنْ مُحَمَّدٍ وَأُمَّتِهِ بِاسْمِ اللَّهِ وَاللَّهُ أَكْبَرُ
[मैंने अपना रुख़ सबसे तोड़ कर उस ज़ात की तरफ़ कर लिया है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया है और मैं मुशरिक नहीं हूं। बेशक मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी, मेरा जीना और मरना सिर्फ़ अल्लाह के लिए है जो तमाम संसार का पालनहार है। उस का कोई शरीक (साझी) नहीं और मुझे इसी का हुक्म दिया गया है और मैं मुसलमान हूं। ऐ अल्लाह यह क़ुर्बानी तेरी ही अता है और तेरी रज़ा के लिए है। मुहम्मद और उनकी उम्मत की तरफ़ से। फिर बिस्मिल्लाह व अल्लाहु अकबर (अल्लाह के नाम के साथ , अल्लाह बहुत बड़ा है) कह कर ज़बह किया]
4. ज़ब्ह करने के बाद की दुआ
اللَّهُمَّ تَقَبَّلْ مِنْ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ وَمِنْ أُمَّةِ مُحَمَّدٍ
"अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन मुहम्मदीन वा आली मुहम्मदीन वा मिन उम्मती मुहम्मदीन"
"अल्लाह! मुहम्मद ﷺ की तरफ़ से और मुहम्मद ﷺ की आल की तरफ़ से और मुहम्मद ﷺ की उम्मत की तरफ़ से इसको क़ुबूल कर।" [सहीह मुस्लिम 5091]
दुआ में "मिन्नी" उस वक़्त कहेंगे जब हम खुद अपनी कुर्बानी कर रहा हो, और दूसरे की कुर्बानी हो तो "मिन" के बाद उस आदमी का नाम लेंगे। जैसे "मिन इरफ़ान", या "मिन अंसार"
नोट:
1. ज़ब्ह करने वाला मुसलमान होना चाहिए।
2. ज़ब्ह करने वाले का बिस्मिल्लाह पढ़ना ज़रूरी है।
3. अगर बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल गए तब भी जानवर हलाल होगा।
4. अगर मुमकिन हो तो मर्द हो या औरत अपने हाथ से ज़बह करें।
5. जानवरों की गर्दन मैं मौजूद चार रगो मैं से कम-अज़कम तीन रगो का काटना ज़रूरी है ताकि सरा गंदा ख़ून बाहर निकल आए।
6. अगर एक बार ज़ब्ह करने से चंद रगे रह गयी, और दूसरी बार छुरी फ़ैरने की ज़रूरत आये तो दोनों मर्तबा बिस्मिल्लाह पढ़ना होगा।
10. कुर्बानी का गोश्त और खाल
1. अगर बकरा, दुंबा और भेड़ की क़ुर्बानी हुई हो तो गोश्त को बराबर तीन हिस्सों में बांट दें, एक हिस्सा रिश्तेदार, दोस्त और पड़ोसियों को, एक हिस्सा गरीबों को और एक हिस्सा अपने लिए रख लें।
2. अगर गाय, बैल, भैंस और ऊंट है तो इसमें 7 हिस्से होते हैं जिसमें से अपना एक हिस्सा निकालकर उसमें तीन हिस्से लगा लें।
"और कुछ मुक़र्रर दिनों में उन जानवरों पर अल्लाह का नाम लें जो उसने उन्हें दिये हैं, ख़ुद भी खाएँ और तंगदस्त मोहताज को भी दें।" [क़ुरआन 22:28]
3. कुछ लोग क़ुर्बानी के जानवर का गोस्त नहीं खाते उन्हें इस आयत पर गौर करना चाहिए,
"और जिस जानवर को अल्लाह का नाम लेकर ज़बह न किया गया हो उसका गोश्त न खाओ, ऐसा करना फ़िस्क़ (नाफ़रमानी) है।" [क़ुरआन 6:121]
4. क़ुर्बानी का गोश्त गैर मुस्लिम को भी दिया जा सकता है।
अब्दुल्लाह-बिन-अम्र-बिन-अल-आस (रज़ि०) के लिये उनके घर में एक बकरी ज़बह की गई। जब वो आए तो पूछा: क्या तुम लोगों ने हमारे यहूदी पड़ौसी के घर (गोश्त का) हदिया भेजा? मैंने रसूलुल्लाह (सल्ल०) को फ़रमाते हुए सुना है: "मुझे जिब्राईल (अलैहि०) पड़ौसी के साथ अच्छा सुलूक करने की हमेशा ताकीद करते रहे यहाँ तक कि मुझे गुमान होने लगा कि ये उसे वारिस बना देंगे।" [सुनन-तिर्मिज़ी 1943]
5. जानवर की खाल को फरोख्त करना जायज़ नहीं, और ना ही मज़दूरी के तौर पर दिया जा सकता है बल्कि इसे मदरसे में दे देना बेहतर है।
Posted By: Islamic Theology
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