Odisha train hadse ka zimmedar gumrah musalman

Odisha train hadse ka zimmedar, bechara gumrah musalman


मान या ना मान ज़िम्मेदार है मुसलमान


वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है। 

तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में।


मुश्किलों का आना कोई नई बात नहीं लेकिन अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर किसी और पर इल्ज़ाम तराशी शुरु कर देना ये कोई अक्लमंदी नहीं। इसी तरह एक हादसा ओडिशा के डिस्ट्रिक बालासोर में 2/6/2023 जुमा (Friday) को तक़रीबन 1.30 मिनट पर रेलवे की गैर ज़िम्मेदारियों की वजह से हुआ। जिसमें तीन ट्रेंस (कोरोमंडल शालिमार एक्सप्रेस, गुड्स ट्रेन और यशवंतपुर हावड़ा सुपर फास्ट) आपस में टकरा गईं तक़रीबन 300 लोगों की जानें गई और 1,175 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए हैं।


रेल हादसे की वजह:

कोरोमंडल शालिमार एक्सप्रेस (speed- 120km) (इसी में 288 लोगों की जानें गई।) जिसे चेन्नई जाना था, जहां बीच में बहनगा बाज़ार station से कुछ दूर पहले loop line खुली थी जिससे ये ट्रैन सीधे ना जा जाकर loop line पर खड़ी माल गाड़ी से बहुत ज़ोर से, और कुछ बोगी डाउन लाइन पर खड़ी यशवंतपुर हावड़ा सुपर फास्ट से टकरा गई।


इस हादसे का असल ज़िम्मेदार कौन?

▪️ पूरे भारत में 52 करोड़ लोगों की क्षमता वाली सीटों पर 63 करोड़ लोग सफ़र करते हैं। बालासोर हादसे में सबसे ज़्यादा 5 जर्नल बोगीयों में मौत हुई है।

▪️2017-2018 में रेलवे सेफ़्टी बजट (राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष) जो एक लाख करोड़ था। इसके तहत:

  • 1- रेल ट्रैक्स और क्रॉसिंग ठीक करना।
  • 2- इंजन केबिन को modernised करना।
  • 3- crew members को अच्छी ट्रेनिंग देना।

इस पर 2017-2022 तक 20 हज़ार करोड़ खर्च होना था, जिसमें से केंद्र सरकार 15 हज़ार करोड़ रुपए और रेलवे 5 हज़ार करोड़ देते लेकिन रेलवे ने तीन साल का फंड्स नहीं दिया। इतना ही नहीं जो पैसे पहले से ही इस फंड में जमा हुए थे उस में से ही तक़रीबन 2,300 करोड़ नॉन रेलवे सेफ्टी पर खर्च हुआ। अब सोचे ये पैसे अगर रेलवे पर खर्च होते तो क्या इतना हादसा होता है?

2017-2021 तक 1,127 derailments हुए हैं। 

2012 में train collision prevention system के तहत एक automatic protection system "कवछ" नाम से तैयार किया गया था। रेल मंत्री के मुताबिक़ ये कवछ लगने से रेल हादसा होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। इस system को इतना आधुनिक बताया जा रहा था कि ये रेल ट्रैक पर किसी obstacle को 10 km पहले ही ultra high frequency radio way से जान जाता है और ट्रेन की रफ्तार कम करके 30 कम तक ले आता है जिससे ट्रैन को रोकना बहुत आसान हो जाता है।

अच्छा और आधुनिक तन्त्र होना और कार्यान्वयन (implementation) होने में बहुत फ़र्क होता है।

 हकीकत ये है कि ये आधुनिक कवछ तन्त्र सिर्फ़ 2% रेल ही पर लगाया है।


भारत के इतिहास के कुछ रेल हादसे

  • 20/7/2011 में फतेहपुर में रेल हादसा (हावड़ा कालका) जिसमें 70 लोगों ने जान गवाई। 
  • 7/2012 में (हंपी एक्सप्रेस) 25 लोगों ने जान गवाई।
  • 7/2014 में (गोरखधाम एक्सप्रेस) 25 लोगों ने जान गवाई।
  • 7/2016 में (इंदौर पटना एक्सप्रेस) 146 लोगों ने जान गवाई।
  • 1/2017 में (हीराकुंड एक्सप्रेस) 40 लोगों ने जान गवाई।
  • 8/2017 में (उत्कल एक्सप्रेस) 20 लोगों ने जान गवाई। और इस हादसे के चार दिनों के बाद कैफियत एक्सप्रेस रेल हादसे में तक़रीबन 70 लोग बुरी तरह ज़ख्मी हुए।

इसके हादसे के बाद रेल मंत्री (सुरेश प्रभू) ने इस्तीफ़ा दे दिया था।


इल्ज़ाम और उसकी हकीकत

▪️जब कानपुर, 2016 में ट्रैन हादसा हुआ था तो उसमें 152 लोगों की जान गई थी और इसे आतंकी साज़िश बताया इसकी जांच NIA को सौंपी गई लेकिन NIA को ऐसा कोई सुराग नहीं मिला।

▪️2017 में कुनेरू रेल हादसा हुआ इस का भी किसी को इल्ज़ाम दे कर जांच NIA को सौंपी गई और NIA ने अभी कोई report नहीं पेश किया। 

इसी तरह ये गैर ज़िम्मेदार लोग अपनी लापरवाहियों को छिपाने के लिए किसी ना किसी को इल्ज़ाम दे आए हैं।

इसी तरह बालासोर हादसे का ज़िम्मेदार भी किसी को ठहराया गया।


ज़िम्मेदार किसे बना दिया गया

इतने खौफनाक हादसे में भी ये ऐंगल तलाश लेना बहुत बड़ी बेहिसी का मुज़ाहिरा है। हादसा तो होता और उससे हर ज़िंदा दिल इंसान ग़मज़दह हो जाता है। लेकिन कुछ बेहिस लोग उसमें भी अपने मतलब का मतलब तलाश लेते हैं। 

जैसे: इस हादसे में एक ख्याली station master (मोहम्मद शरीफ़ अहमद) और हादसे से कुछ दूरी पर मस्जिद को तलाश लिया, जो बाद में शिव मंदिर निकली। नाम से तो वाज़ेह हो रहा है ज़िम्मेदार किसे ठहराया गया? जबकि बहनगा station master बी बी मोहन टी था जो हादसे के बाद भाग गया। 

मुझे पता है आप लोग कहेंगे वो fact check से पता चल गया ये सब अफ़वाह था लेकिन क्या आपको पता है इस तरह की अफ़वाहों का बाज़ार व्हाट्सएप मैसेजेस के ज़रिए तक़रीबन हिंदुस्तान की एक तिहाई आबादी तक जान बूझ कर गर्म किया जाता है और fact check की ख़बर सिर्फ़ लिबरल मीडिया तक ही महदूद रह जाती है लेकिन आम गैर मुस्लिम नागरिक के दिलों और दिमागों में मुसलमान के खिलाफ़ जो नफ़रत भरनी होती है उसमें तो ये कामयाब हो जाते हैं। और इसका नतीजा ज़मीनी स्तर मुसलमानों को भुगतना पड़ता है।

हकीकत में होना तो ये चाहिए था कि रेल मंत्री को इस्तीफ़ा और उसकी जवाब देगी तय होना चाहिए। जैसा कि पहले के रेल मंत्रियों ने किया है।

▪️1956 में ट्रैन हादसा हुआ था जिसमें 142 लोगों की जानें गई। उस वक्त के रेल मंत्री (लाल बहादुर शास्त्री) ने नैतिक ज़िम्मेदार लेते हुए इस्तीफ़ा दे दिया। 

▪️1999 में ट्रैन हादसा में 290 लोगों की जानें गई उस वक्त के रेल मंत्री नीतिश कुमार ने पद से इस्तीफा दे दिया।


हादसात का ज़िम्मेदार ठहराना

हमें किसी भी हादसात का ज़िम्मेदार ठहराना इतना आसान क्यों है?

हिंदुस्तान वो मुल्क है जहां दुनिया में तीसरे नंबर पर सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी है। यानि ये भी कहा जा सकता है कि हिंदुस्तान में हम दुसरी अक्सरियत कौम हैं। लेकिन फिर सवाल ये पैदा होता है कि क्या इज़्ज़त, बक़ा और ताक़त तादाद की बिना पर हासिल होती है? 

तो इसका जवाब आपको आपनी तारीख़ से ही हासिल हो सकता है और इसके लिए ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत भी नहीं है। यही वो मुल्क था जब हमारे अबाब और अज्दाद हुक्मरान थे तब भी हम तादाद में आज अनुपात से भी कम थें। लेकिन फिर भी वो हुक्मरान थे और कोई उन्हें शिकस्त भी नहीं दे पाया। 

  • अब सवाल ये है कि हम में और उन में क्या फ़र्क है? 
  • हम क्यों उसी कौम से ज़लील और रुसवा हो रहे हैं? 
  • जिस कौम पर हमारे अबाब और अज्दाद हुक्मरान थे?

आज हमारा हाल ये है कि हमें हदसात का ज़िम्मेदार बता दिया गया कभी वबा को हमसे मंसूब कर दिया गया। सवाल अब वही है क्यों?

तो आइए एक नज़र डालते हैं इस्लामी तलीमात पर इसकी इत्तेबा में हम से कहां कोताही हुई?

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

"ऐसा वक्त आने वाला है कि दुसरी उम्मते तुम्हारे खिलाफ़ एक दूसरे को बुलाएंगे जैसे कि दस्तरख्वान पे एक दूसरे को बुलाते हैं तो कहने वाले ने कहा: क्या ये हमारी क़िल्लत और कमी की वजह से होगा? 

आप ﷺ ने फ़रमाया: नहीं! बल्कि तुम इन दिनों बहुत ज़्यादा होगे, लेकिन झाग होगे जिस तरह कि सैलाब का झाग होता है। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तुम्हारे दुश्मनों के सीनों से तुम्हारी हैबत (डर) निकाल देगा और तुम्हारे दिलों में "वहन" डाल देगा। 

पूछने वाले ने पूछा ए अल्लाह के रसूल ﷺ "वहन" से क्या मुराद है? 

आप ﷺ ने फ़रमाया: दुनिया की मोहब्बत और मौत की कराहत।" [सुन्न अबु दाऊद : 4297]

नबी करीम ﷺ की इस हदीस पर गौर करें क्या आज हमें मौत का खौफ और दुनिया से रग़बत नहीं हो गई है? और यही वो बला है जिसकी वजह से, लोगों के दिलों से हमारी हयबत ही नहीं निकल गई बल्कि हम उनका शिकार बनते जा रहे हैं। और हमारी जानों की क़ीमत कुछ भी नहीं।

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया, "दुनिया में इस तरह हो जा जैसे मुसाफ़िर या रास्ता चलने वाला हो।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी०) फ़रमाया करते थे, "शाम हो जाय तो सुबह के मुंताज़िर न रहो और सुबह के वक्त शाम के मुंताज़िर न रहो, अपनी ज़िंदगी सेहत को मर्ज़ से पहले ग़निमत जानो और ज़िंदगी को मौत से पहले।" [सहीह बुखारी: 6416]

  • दुनिया क्या है? 
  • यहां किस तरह जीना है? 

 इस ताल्लुक़ से बहुत सी नसीहतें क़ुरआन और अहदीस में मौजूद हैं। लेकिन हम ने इस तालीमात को छोड़, दुनिया कमाने में ख़ुद को ख्वार किया और आज ये दुनिया ही हमारी ज़िल्लत और रुसवाई का सबब बन गया।

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया, "लज़्ज़तों को तोड़ने वाली मौत को कसरत से याद किया करो।" [सुन्न इब्ने माजा:4258]

मौत की याद हमें दुनिया की चमक धमक से दूर रखती है। वो ऐसे कि जब दुनिया हमें लुभाने लगे तो ये सोच लेना चाहिए कि ये हमारे लिए सिर्फ़ एक अज़माइश (test) है।

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया, "मोमिनों में सबसे ज़्यादा अकलमंद वो जो इनमें सबसे ज़्यादा मौत को याद करे। और मौत के बाद की ज़िंदगी के लिए सबसे अच्छी तैयारी करे।" [सुन्न इब्ने माजा: 4259]

ज़िंदगी दी ही इसी लिए गई है कि वापस ली जा सके। मौत की याद हमें असल ज़िंदगी की जानिब लौटाता है। ज़िंदगी की आस में हम हक़ का ऐलान करना भूल गए जबकि हमारा ईमान तो ये होना चाहिए ज़िंदगी मिली है मौत तो आनी ही है फिर मरने से क्या घबराना?

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है, "हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, और हम अच्छे और बुरे हालात में डालकर तुम सबकी आज़माइश कर रहे हैं। आख़िरकार तुम्हें हमारी ही तरफ़ पलटना है।" [क़ुरान 21.35]

पलटना हमने उसी की तरफ़, फिर भी मौत की याद घबराहट पैदा कर देती है। इसका मतलब यही है कि हमनें सिर्फ़ दुनिया कमाई है। और मौत का खौफ हमें कहां से कहां ले आया और हम आज भी अपनी हालत से ग़ाफिल और बेख़बर हैं।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है, "हक़ीक़त ये है कि अल्लाह किसी क़ौम के हाल को नहीं बदलता जब तक वो ख़ुद अपने औसाफ़ को नहीं बदल देती। और जब अल्लाह किसी क़ौम की शामत लाने का फ़ैसला कर ले तो फिर वो किसी के टाले नहीं टल सकती, न अल्लाह के मुक़ाबले में ऐसी क़ौम का कोई हिमायती और मददगार हो सकता है।" [क़ुरान 13.11]

अपने इस हाल के ज़िम्मेदार हम खुद ही हैं, ना कोई ज़ालिम हुक्मरान और ना उसका साथ देने वाली मीडिया IT cell. और अब इस बदहाली को हमने ही दूर करना है इस के लिए अपने रब से तौबा करके उस तरफ़ रूजू करना होगा वरना ऐसा ना हो कि हम मजीद तबाही के दहाने पर पहुंच जाए। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मदद तभी हासिल होगी जब उसके बताए हुए तरीक़े पर अमल करेंगे।

सिर्फ़ ये कह देने से कुछ नहीं हासिल होने वाला है!

"मैंने अपना मामला अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के सुपुर्द किया।" [क़ुरान 40.44]

फ़िलहाल हमें अपनी कोताहियों पर गौर करने और ख़ुद को तो अपने रब के हवाले करने का वक्त है। उस के बाद अगर यही हालात रहें तब हमारा मामला अल्लाह के हवाले।


क्या थें क्या हो गए?


गुमान है हमें, हैं तरीक़ा ए इस्लाम पर,

करते हैं समझौता खुद से, यूँ धोका ए वक़ार पर।


एक थी वो दुआ खलील ए इलाही की,

क्या पाया हैं कभी खुद को उस मयार पर।


करते हैं तमन्ना शफाअत की यूँ ही?

ला तो सही खुद को,तरीक़ा ए इरसाल पर।


उम्मीदे बड़ी हैं हमें कोसर ए जाम की,

ए नादान कभी सुन्नत तो इख़्तियार कर।


भेजा है रब ने हमें बुराई से रोकने को यहाँ,

उँगलियाँ उठ रही हैं हमारे इस किरदार पर।


क़ासिर हैं यहाँ हक़ बातिल की पहचान में,

अरे बुज़दिल कभी हक़ का तो ऐलान कर।


मजबूरियां लगी हैं यूँ तो हर इंसान पर,

ग़ालिब मगलूब की तो वजह बयान कर।


होता है अफ़सोस ये क़ौम के आहवाल पर,

जो झुकाती थी सबको नोक ए तलवार पर।


वक़्त आ गया ऐसा, दिफा न कर सके खुद का,

काफिर भी हंस रहे मुसलमां के इस ज़वाल पर।


बता दिया गया वबा ए वजह मुसलमान को,

पहचान बना ए नादान कुछ तो अब कमाल कर।


बिन्ते हव्वा

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