Nikah (part 12): Gair islami rasmein

 

Nikah (part 12): Gair islami rasmein


निकाह के मौके पर गैर ज़रूरी रस्में


(xviii). दहेज

दहेज़ का लफ्ज़ कुरान और हदीस से साबित नहीं है। क़ुरान बेटीयों को विरासत में हिस्सा का हक़ देता है अगर कोई अपनी बेटी को जरूरत के हिसाब से तोहफा देना चाहे तो दे सकता है मगर दहेज़ के नाम पर न दे। दहेज़ हमारी जिंदगियों में एक नासूर बन चुका है।

दहेज़ के इस टॉपिक को हम अलग से कवर करेंगे। इन शा अल्लाह, आज यहां दहेज़ को संक्षिप्त रुप में रखते हैं कि कैसे इस ने हमारी खुशियों पर डाका डाला है:


नागिन दहेज़


धीरे धीरे कहर ढा रही हो, हर द्वार पर तुम नज़र आ रही हो,

उजाड़ा है तुमने जो आशियाना, कितने घरों को लुटा है तुमने

चमक दमक का रास रचा कर, कितनों की खुशियों को आग लगाया, 

दुनियां पर कैसा जादू चलाया, बहुतों को तुमने पागल बनाया।


सताती हो कैसे? रुलाती हो कैसे? पल भर हसा कर तड़पाती हो कैसे?

रूप का अपना जो जाल बिछाया, घर-घर तुमने दंगा कराया

ये रिश्तों में कैसा ज़हर मिलाया? क्यों पावन रिश्ते पर दाग लगाया?

तुमने दिया जो जुल्म को बढ़ावा, दौलत का जो नंगा नाच दिखाया।।


तुम्हारी वजह से बनी बोझ बेटी, क्यू हर रिश्ता लगता है बोझिल?

भिखारी बना है बेटी का बाप, भाइयों के चेहरे पर छाई उदासी।

तड़पती है मां क्यों चुपके चुपके? सिसकती है बेटी क्यों छुपके?

लालच का तुम रास रचाती, खिलती कली को हो तुम बहुत सताती।।


कुछ मर गई कुछ जलाई गई, बहुत सारी बहनें ख़ुदकुशी कर गईं,

जो जी रही हैं वो घुट रही हैं, हर रोज़ दर्द ए गम पी रही हैं बेचारी।

करते हो अनुसरण दूसरों के मज़हब का , क्या दींन हमारा नहीं सिखाता?

बचो मोमिनो ये घातक ज़हर है, नहीं बच सके ये खता है तुम्हारी।।


(xix). दुल्हन के कमरे को सजाना 

आज हमारी शादियों का ये हाल है की बेजा खर्चों पर कोई रोक टोक नहीं है। अक्सर शादी के मौक़े पर दूल्हे/दुल्हन के कमरे को फ़ूलो से सजाते हैं जिसमें लाखों रुपए खर्च होते हैं बाज़ लोग बिल्कुल की स्टेज तरह सजाते हैं ये सब फिजूल खर्ची है। 


(xx). मुँह दिखाई की रस्म

शादी के बाद सुसुराल में मुंह दिखाई का रस्म हिंदू समाज की परंपरा है अब चूंकि बर्रे सगीर (इंडिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश) के मुस्लिम समाज मिली जुली संस्कृति को फॉलो करता है यही कारण है कि ज्यादा तर रस्में हमने हिंदुओ से कॉपी कर रखी है और जब मुस्लिम मुआशरा इल्म की दौलत से ला इल्म हो तो बुराई अपने आप दाखिल होती चली जाती है। 

मुंह दिखाई समारोह को मनाने का सबसे आम तरीका दुल्हन को अपने घूंघट से ढके चेहरे के साथ बैठा कर दूल्हे की फैमिली, सास, रिश्तेदार और मुहल्ले की अन्य महिलाएं एक-एक करके दुल्हन का घूंघट उठाती हैं और दुल्हन को चेहरा दिखाने के लिए तोहफ़ा पेश करती हैं इस तरह से औरतें नई दुल्हन का स्वागत करती हैं। अब यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि हिंदू धर्म में भी पर्दे का ख़ास ख्याल रखा जाता था और गांव में ये परंपरा आज भी है। इस रस्म में औरतें ही दुल्हन को देखती हैं मर्दों से पर्दा लाज़मी होता है। 

बदलते जमाने के साथ ये रस्म भी नए रुप में ढलती चली गयी। न केवल हिंदू धर्म में बल्कि मुस्लिम समाज में भी मॉर्डन और वेस्टर्न कल्चर का अनुकरण करना शुरु हो गया। आज इसे एक बड़े इवेंट के रुप में स्वीकृति प्रदान हो चली है। 

अब मुस्लिम मुआशरे की बात करें तो दावते वलीमा में एक रिसेप्शन पार्टी रखी जाती है फिर दुल्हन को एक मुजस्समा की तरह सजा कर स्टेज़ पर बिठा दिया जाता है। गांव, समाज, घर रिश्तेदार मर्द औरत सब देख रहे हैं।शादी से पहले कहा जाता है की दुल्हन को गैर मेहरम न देखे और शादी के बाद ही उसकी नुमाईश शुरु हो जाती है।


(xxi). निकाह के मौके पर विडियो और फोटोग्राफी

गैर ज़रूरी रस्मों की हद तब पार होती है जब दूल्हा दुल्हन का फ़ोटो शूट और वीडियो बनाया जाता है। 

अफ़सोस नाक रस्म मूरत की तरह सजाई हुई दुल्हन का भारी भरकम ड्रेस, ऊपर से ओढ़ाई गई चुनरी जिसकी कोई जरूरत ही नहीं क्यों कि चुनरी, दुपट्टा या चादर का मकसद औरत की हया से है जब की आज कल ये चुनरी, दुपट्टा अपने मकसद को ही पूरा नहीं कर रहा बल्कि उसका इस्तेमाल लोगों को अट्रैक्ट करने के लिए किया जा रहा है। 

बॉलीवुड, हिंदी टीवी सीरियल्स और पाकिस्तानी ड्रामा के वाहियात और बेहया प्रभाव रफ्ता रफ्ता हावी हो रहे हैं। जिस्म की नुमाइश आम हो चली है। 

साथ में घर की बहन बेटियों का न मेहरम मर्दों के बीच मुख़्तलिफ़ ऐंगल्ज़ से फोकस करके फिल्म बनाना और ये फोटो ग्राफर, मूवी मेकर बन ठन कर ऐसे आते हैं जैसे उनकी खुद की शादी हो। मेहरम, गैर मेहरम सबके एक साथ फ़ोटो शूट हो रहा है, कौन किसे टच कर रहा है कोई फ़र्क नहीं पड़ता और दुल्हे राजा खुद 'मूवी मेकर' फोटो ग्राफर को गाइड लाइन दे रहे होते हैं "फ़ोटो अच्छी आनी चाहिए, चेहरा क्लियर दिखना चाहिए , और फोटोग्राफर घर की ख्वातीन के हाथ पकड़ कर कभी चेहरा, कभी ठुड्डी पर हांथ लगा कर एंगल्स बता रहा होता है। 

ऐसे बेहुदा मौके पर घर की औरतें, जवान बच्चियां दूल्हा और दुल्हे के दोस्तों के साथ पोज दे रही होती हैं। अफ़सोस किसी मर्द को ये कैसे गवारा हो सकता है कि उसकी नई नवेली दुल्हन को उसके सिवा कोई और हाथ लगाए और घर के दिगर मर्द हजरात की गैरत कहां मर जाती है जब कोई बाहर का अजनबी उनके घर की औरतों को घूरता और छूता है। रोज़े महशर हम अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुज़ूर कैसे खड़े होंगे

अगर यूंही हम अपने घर की हया को लुटाते रहे फिर वो दिन दूर नहीं जब दरिंदे भेड़िए हमारी बहन बेटीयों की इज़्जत को रौंद कर अपनी हवस पूरी करेंगे।

इल्तेज़ा है हमारी तमाम मोमिन और मोमिनात से लौट आए क़ुरान ओ सुन्नत की तरफ, अपने घर और मुआशरे में हया के बीज बोएं, पाकीज़गी के दामन थाम कर उस मयार को सर बुलंद करें जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा किराम रज़ी अल्लाह अन्हुम के दौर का खास था।

हमे उसी तरीक़े से जीना चाहिये जो तरीक़ा रसूल अल्लाह ﷺ का था, ग़ैर क़ौमो का तरीक़ा नही अपनाना चाहिए तभी हम इस दुनिया और आख़िरत में कामयाब होंगे।

अल्लाह के रसूल ﷺने फ़रमाया:

"जिसने किसी क़ौम की मुशाबीहत की वो उन्ही में से है।" [सुनन अबु दाऊद : 4031]


(xxii). चौथी की रस्म

चौथी की रस्म को कलेवा की रस्म के नाम से भी जाना जाता है। ये रस्म भी हिंदू धर्म की मशहूर रस्म है इस रस्म में शादी के तीसरे या चौथे दिन दूल्हा और दुल्हन, दुल्हन के परिवार से मिलने जाते हैं या फिर दुल्हन के परिवार वाले मिठाईयां फल और ढेर सारा तोहफा लेकर दुल्हन से मिलने उसके सुसराल जाते हैं। इन तोहफ़ों के बदले मे लड़की के वालिदा को उसके ससुराल से आए हर एक बन्दे को कपड़े और पैसे देने होते है कुछ जगहों पर लाई हुई मिठाई की दो गुनी रकम भी देनी पड़ती है ये लडकी के परिवार पर बोझ डालना है। इस रस्म की शरीयत में कोई जगह नहीं। 

अल्लाह कुरान में कहता हैं :

"रसूल जिस बात का हुक्म दे उसे ले - लो और जिससे मना करें उससे रुक जाओ।" [कुरान 59: 7]


दीन ए इस्लाम आसान है और जिंदगी जीने का आसान तरीका फ़राहम करता है, मगर हम ने दीन में नई नई चीजें दाखिल कर के इसे मुश्किल बना रखा है। इस आर्टिकल का मक़सद, निकाह जैसी नेमत को आसान बनाना, तलाक़ और खुला के गलत तरीके को खत्म करना, जिना जैसे कबीरा गुनाह को आसान निकाह के जरिए समाज से मिटा देना है। 

आज फ़िजूल रस्म ओ रिवाज के झंझट के कारण बहुत से भाई बहन कुंवारे बैठे है। गरीब हो या अमीर कोई न कोई मुश्किल से दो चार है, 30/35 की उम्र में न जानें कितने अविवाहित बैठे हैं। उम्र निकलती जा रही, नतीज़ा जि़ना के वाक्यात बढ़ते जा रहे हैं।

अब देखें समाज का हाल ये हो चला है कि जो बंदा जितना गरीब है वो उतना ही ज़्यादा पैसा इन गुनाह की रस्मों पर खर्च करता है चाहे उधार ही क्यों न लेना पड़े, ये गौर ओ फिक्र का मकाम है।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हम सब को दीन की सही समझ अता फरमाए। 

आमीन


आप की दीनी बहन
फ़िरोज़ा

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