Duniya Ki Mohabbat, Musalman Aur Islam

Duniya Ki Mohabbat, Musalman Aur Islam

दुनिया की मोहब्बत, मुसलमान और इस्लाम 


Table Of Content

  1. दुनिया की मोहब्बत इंसान का असल हिजाब
  2. आरज़ी खुशियों को तर्जी
  3. अल्लाह तआला के इंसाफ का तकाज़ा
  4. माफी का दरवाजा हर वक्त खुला है
  5. मुसलमानों को नहीं इस्लाम को देखें



दुनिया की मोहब्बत इंसान का असल हिजाब


दुनिया इंसान को बहुत अजीज़ है। इसकी पुर-कशिश चीज़ें इंसान को बहुत महबूब है, इनकी तरफ इंसान की तबीयत का कुदरती मिलान है। यह चीजें है इंसान की आजमाइश हैं। इंसान को परखा जा रहा है कि वह आरज़ी जिंदगी को तर्जी देता है या हमेंशगी जिंदगी को। इंसान हमेशा से ही आरज़ी जिंदगी को तर्जी देते आए हैं जिसका जिक्र अल्लाह तआला ने यू फरमाया है:


قَدۡ اَفۡلَحَ مَنۡ تَزَکّٰی - وَ ذَکَرَ اسۡمَ رَبِّہٖ فَصَلّٰی - لۡ تُؤۡثِرُوۡنَ الۡحَیٰوۃَ الدُّنۡیَا - ۖوَ الۡاٰخِرَۃُ خَیۡرٌ وَّ اَبۡقٰی - اِنَّ ہٰذَا لَفِی الصُّحُفِ الۡاُوۡلٰی - صُحُفِ اِبۡرٰہِیۡمَ وَ مُوۡسٰی -

"फ़लाह पा गया वो जिसने पाकीज़गी इख़्तियार की और अपने रब का नाम याद किया और नमाज़ पढ़ी! मगर तुम लोग दुनिया की ज़िन्दगी को तरजीह देते हो, हालाँकि आख़िरत बेहतर है और बाक़ी रहनेवाली है। यही बात पहले आए हुए सहीफ़ों में भी कही गई थी, इबराहीम और मूसा की सहीफ़ों में।
[कुरान 87:14-19]


हमारे खालिक ने हमें दुनिया के फरेब से बचाने के लिए फरमाया:


وَ مَا الۡحَیٰوۃُ الدُّنۡیَاۤ اِلَّا لَعِبٌ وَّ لَہۡوٌ ؕ وَ لَلدَّارُ الۡاٰخِرَۃُ خَیۡرٌ لِّلَّذِیۡنَ یَتَّقُوۡنَ ؕ اَفَلَا تَعۡقِلُوۡنَ -

"दुनिया की ज़िन्दगी तो एक खेल और एक तमाशा है, हक़ीक़त में आख़िरत ही का मक़ाम उन लोगों के लिये बेहतर है जो नुक़सान उठाने से बचना चाहते हैं, फिर क्या तुम लोग अक़्ल से काम न लोगे?"
[कुरान 6:32]


वह लोग जिनके जिंदगी का मकसद दुनिया के सिवा और कुछ नहीं, जो अपनी पैदाइश के मकसद और अपने रब को भूल चुके हैं, जिनकी हर सुबह और शाम दुनिया की चकाचौंध में खत्म हो रही है। उनके खतरनाक अंजाम के बारे में अल्लाह तआला ने पहले ही खबर दे दी है कि वह अपनी इस्लाह कर सकें, फरमाया:


مَنۡ کَانَ یُرِیۡدُ الۡحَیٰوۃَ الدُّنۡیَا وَ زِیۡنَتَہَا نُوَفِّ اِلَیۡہِمۡ اَعۡمَالَہُمۡ فِیۡہَا وَ ہُمۡ فِیۡہَا لَا یُبۡخَسُوۡنَ - اُولٰٓئِکَ الَّذِیۡنَ لَیۡسَ لَہُمۡ فِی الۡاٰخِرَۃِ اِلَّا النَّارُ ۫ ۖوَ حَبِطَ مَا صَنَعُوۡا فِیۡہَا وَ بٰطِلٌ مَّا کَانُوۡا یَعۡمَلُوۡنَ -

"जो लोग बस इसी दुनिया की ज़िन्दगी और उसकी लुभावनी चीज़ों की तलब रखते हैं, उनके किए-धरे का सारा फल हम यहीं उनको देते हैं और इसमें उनके साथ कोई कमी नहीं की जाती। मगर आख़िरत में ऐसे लोगों के लिये आग के सिवा कुछ नहीं है। [ वहाँ मालूम हो जाएगा कि जो कुछ उन्होंने दुनिया में बनाया, वो सब मिट्टी में मिल गया और अब उनका सारा किया-धरा सिर्फ़ बातिल है।]"
[कुरान 11:15-16]


काश के हम इससे इबरत हासिल करें और मौत से पहले इस धोखे से निकलने की कोशिश करें। हमारे हाल पर अल्लाह रहम फरमाए। आमीन


आरज़ी खुशियों को तर्जी


"अफसोस के अगर करोड़ों अरबों साल के बाद भी कायनात खत्म होने वाली है.... फिर इस जिंदगी और इस सारे जहां के होने या ना होने में क्या मजा रह जाता है।" [मशहूर साइंटिस्ट जेम्स ट्रेफिल]


हमारे सामने जो हकीकत है अगर इन्हें देख कर भी हम इबरत ना हासिल करें और चंद रोज की इस फानी जिंदगी की आरज़ी खुशियों को तर्जी दे तो यकीनन क़ुसूरवार हम खुद हैं। कोई अकलमंद इतने बड़े ख़सारे का अपने लिए फैसला नहीं कर सकता।

मेरे साथियों! इन सच्चाईयों से आगाही पर अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए आखिरत को दुनिया पर तर्जी देने और दुनियावी जिंदगी को अल्लाह के अहकामात के ताबे करके गुजारने का पुख्ता इरादा करें, अपनी बेहतरीन सलाहियतों को अल्लाह के लिए इस्तेमाल करें, उसके अहकामात समझ कर दूसरों तक पहुंचाने का ज़रिया बने। यह बात हमारे भले की है अगर हम समझे!


अल्लाह तआला के इंसाफ का तकाज़ा


अल्लाह तआला ने कायनात और इंसान की तख्लीक करके उसमें हक को पहचानने की बहुत बड़ी बड़ी निशानियां रख दी हैं। सबसे ज्यादा निशानियां तो खुद इंसान की अपनी जा़त में है, जिन पर थोड़ा सा गौर करने से इंसान अपने खालिक की पहचान हासिल कर लेता है। खालिक ने जज़ा-ओ-सजा़ का पैमाना मुकर्रर कर दिया है। उसके इंसाफ का यह तकाज़ा है कि जो अक्ल-ओ-शु'ऊर से काम लेते हुए हक को तस्लीम कर ले और उस पर अमल करें उसे खुशियों और मसर्रतओं की जगह जन्नत में दाखिल करें और जो अल्लाह तआला की निशानियों और हक को ठुकरा दे सख्ततरीन अज़ाब की जगह दोज़ख में दाखिल करें। बतौर दलील दोज़ख और जन्नत में सजा़-ओ-जजा़ की कैफियत से आगाही के लिए एक एक आयत करीमा मुलाहिजा़ फरमाए लें। 

अल्लाह तआला ने अपने बंदों को सख्त तरीन अज़ाब से आगाह कर दिया है ताकि वह अपनी इस्लाह करके इस अज़ाब में मुब्तिला होने से बच जाए, चुनांचे इरशाद फरमाया:


لَہُمۡ مِّنۡ فَوۡقِہِمۡ ظُلَلٌ مِّنَ النَّارِ وَ مِنۡ تَحۡتِہِمۡ ظُلَلٌ ؕ ذٰلِکَ یُخَوِّفُ اللّٰہُ بِہٖ عِبَادَہٗ ؕ یٰعِبَادِ فَاتَّقُوۡنِ-

"उनपर आग की छतरियाँ ऊपर से भी छाई होंगी और नीचे से भी। ये वो अंजाम है जिससे अल्लाह अपने बन्दों को डराता है। तो ऐ मेरे बन्दों, मेरे ग़ज़ब से बचो।"
[कुरान 39:16]


सोचिए अगर बहुत ज्यादा गर्मी हो जाए, तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड से बढ़ जाए तो हमारी जान निकलने लगेगी तो हम ऐसे हालात को कैसे बर्दास्त करेंगे, क्या इस बात को यहां समझने की जरूरत है या वहां जब अंजाम हो? अभी अगर हम अपनी इस्लाह ना करें तो फिर अल्लाह तआला का इसमें क्या कुसूर है?


वह लोग जो आखिरत के बड़े फायदे को इस जिंदगी के कुछ आरज़ी फायदों पर तर्जी देते हैं, उनके लिए अल्लाह तआला ने खुद मेहमानी तैयार की है, उन्हें ऐसी खुशियां और सहुलत मिलेंगी जिन्हें वह किसी सूरत खोना ना चाहेंगे। अल्लाह तआला ने इन खुशियों और सहुलतों को इस तरह बयान किया है:


اِنَّ الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ کَانَتۡ لَہُمۡ جَنّٰتُ الۡفِرۡدَوۡسِ نُزُلًا - خٰلِدِیۡنَ فِیۡہَا لَا یَبۡغُوۡنَ عَنۡہَا حِوَلًا -

"अलबत्ता वो लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने भले काम किये, उनकी मेहमानी के लिये फ़िर्दौस के बाग़ होंगे, जिनमें वो हमेशा रहेंगे और कभी उस जगह से निकलकर कहीं जाने को उनका जी न चाहेगा।"
[कुरान 18:107-108]


माफी का दरवाजा हर वक्त खुला है!


अल्लाह तआला अपने बंदों पर बहुत मेहरबान है उसका कोई बंदा मौत से पहले-पहले जब भी अपने गुनाहों का इकरार करते हुए उससे सच्ची माफी मांगे तो वह सारे गुनाहों को माफ फरमा देता है।


قُلۡ یٰعِبَادِیَ الَّذِیۡنَ اَسۡرَفُوۡا عَلٰۤی اَنۡفُسِہِمۡ لَا تَقۡنَطُوۡا مِنۡ رَّحۡمَۃِ اللّٰہِ ؕ اِنَّ اللّٰہَ یَغۡفِرُ الذُّنُوۡبَ جَمِیۡعًا ؕ اِنَّہٗ ہُوَ الۡغَفُوۡرُ الرَّحِیۡمُ -


"(ऐ नबी) कह दो कि ऐ मेरे बन्दो, जिन्होंने अपनी जानों पर ज़्यादती की है, अल्लाह की रहमत से मायूस न हो जाओ, यक़ीनन अल्लाह सारे गुनाह माफ़ कर देता है, वो तो माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।"
[कुरान 39:53]


मुसलमानों को नहीं इस्लाम को देखें


गैर मजहब के लोग मौजूदा मुसलमानों के काम और किरदार को बुनियाद बनाते हुए इस्लाम को ही गलत समझना शुरू कर देते हैं। उनसे अर्ज़ है कि इस्लाम में खराबी नहीं। लोग अमानतें रखवाने और फैसले करवाने के लिए इस्लाम की तरफ रुख करते थे। गुजरे हुए जमाने में जिन लोगों ने इस्लाम को अपनाया उनका किरदार बेमिसाल था। आज भी सच्चे लोग मौजूद हैं। खराबी इस्लाम में नहीं बल्कि इस्लाम को सही तौर पर ना समझने और उसे ना अपनाने में है। इसलिए आपसे गुजारिश है कि आप इस्लाम के बारे में जाने जिसके दामन में खैर ही खैर है।


किताब: कायनात से ख़ालिक़ ए कायनात तक
हिंदी तरजुमा: Islamic Theology


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