Nabi SAW Noor Thein Ya Basar? (Part-2)

 

Nabi SAW Noor Thein Ya Basar? (Part-2)

क्या नबी नूर थेया बशर(पार्ट-2) 


Table Of Content

  • नबी ﷺ के नूर होने पर पेश की जाने वाली दलाईल
  • नूर से क्या मुराद है?
  • क्या नबी ﷺ साया नही था?
  • नबी ﷺ के नूर होने की दलील

4. नबी ﷺ के नूर होने पर पेश की जाने वाली दलाईल

अब तक हमने साबित किया की नबी ﷺ बशर हैं नूर नहीं हैं। अब हम जानेंगे की जो दलाईल नबी ﷺ के नूर होने पर पेश किए जाते है। नबी ﷺ को नूर मानने वाले हजरात अक्सर एक आयत पेश करते है इंशाअल्लाह इस तहरीर के बाद कोई ग़ैरतमंद कभी ये पेश नहीं करेगा।


(1) वो आयत मुलाहिज़ा फरमाए:

قَدۡ جَآءَكُمۡ مِّنَ اللّٰهِ نُوۡرٌ وَّكِتٰبٌ مُّبِيۡنٌ

"बेशक़ अल्लाह ने भेजा तुम्हारी तरफ किताब और नूर।" [सूरह मायदा (5) 15]

नबी ﷺ को नूर मानने वाले हज़रात कहते हैं, इस आयत मे किताब से मुराद क़ुरआन है और नूर से मुराद नबी ﷺ है और तरह तरह की तफसीरे पेश करते हैं।

आइये जानते है क्या क़ुरआन की दूसरी आयते इस बात को सपोर्ट करती हैं-

जवाब: ये बात जान लेनी चाहिए की क़ुरआन की तफसीर के उसूलों में पहला उसूल यही है कि क़ुरआन कि तफसीर क़ुरआन से ही कि जाएगी।

ऊपर पेश करदा आयत मे जो कहा गया है की किताब और नूर भेजा अर्ज़ है की किताब और नूर से मुराद क़ुरआन ही है। इस आयत के दरमियान "वाव" अतफ तफसीरी है जिसकी वाज़ेह दलील इसकी अगली आयत खुद कर देती है जिसमे कहा जा रहा है,

(يَّهۡدِىۡ بِهِ اللّٰهُ)

तर्जमा: इसके (singular) ज़रिये से अल्लाह हिदायत देता है। 

अगर नूर और किताब दो अलग अलग चीज़े होती तो अलफ़ाज़,

(يَّهۡدِ ىۡبهما الله)

तर्जमा: इनके (Plural) ज़रिये अल्लाह हिदायत देता है। 

यानी अगर सूरह मायदा 15 मे नूर और किताब दो अलग चीज होती तो अल्लाह फरमाता की अल्लाह इनके ज़रिये हिदायत देता है लेकिन अल्लाह ने सूरह मायदा 16 मे कहा अल्लाह इसके ज़रिये हिदायत देता है इससे पता चला नूर और किताब से मुराद क़ुरआन ही है।

 

(2) आइये एक और आयत समझने के लिए पेश कर देता हूँ:

الۤرٰ ۚ تِلۡكَ اٰيٰتُ الۡـكِتٰبِ وَقُرۡاٰنٍ مُّبِيۡنٍ

"अलिफ़ लाम रा ये आयते है किताब और रोशन क़ुरआन की।" [सूरह हिज्र 1 तर्जमा by अहमद रज़ा खान]

 अब ज़रा गौर कीजिये यहाँ भी किताब और क़ुरआन दो अलग अल्फाज़  रहे है क्या कोई कह सकता है किताब और क़ुरआन दो अलग चीजे है? नहीं। 

तो इससे पता चला यहाँ भी वाव अतफ तफसीरी है। 

अगर कोई सूरह मायदा 15 से नूर और किताब से मुराद नूर नबी ﷺ को ले रहा है और किताब क़ुरआन को ले रहा है तो फिर सुरह हिज्र 1 मे किताब से मुराद क्या लेंगे?

इसका जवाब रहती दुनिया तक दुनिया के बड़े बड़े आलिम नहीं दे सकेंगे क्यूंकि मेरा रब है ही बढ़ा अज़ीमुउशशान। 

नोट: अगर कोई नबी ﷺ को नूर  हिदायत लेता है तो कोई हर्ज नहीं हमारे नबी ﷺ नूर  हिदायत है। 

 

(3) आइये दूसरी आयत पेश कर रहा हूँ:

ٱلَّذِينَ يَتَّبِعُونَ ٱلرَّسُولَ ٱلنَّبِيَّ ٱلۡأُمِّيَّ ٱلَّذِي يَجِدُونَهُۥ مَكۡتُوبًا عِندَهُمۡ فِي ٱلتَّوۡرَىٰةِ وَٱلۡإِنجِيلِ يَأۡمُرُهُم بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَىٰهُمۡ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَيُحِلُّ لَهُمُ ٱلطَّيِّبَٰتِ وَيُحَرِّمُ عَلَيۡهِمُ ٱلۡخَبَـٰٓئِثَ وَيَضَعُ عَنۡهُمۡ إِصۡرَهُمۡ وَٱلۡأَغۡلَٰلَ ٱلَّتِي كَانَتۡ عَلَيۡهِمۡۚ فَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِهِۦ وَعَزَّرُوهُ وَنَصَرُوهُ وَٱتَّبَعُواْ ٱلنُّورَ ٱلَّذِيٓ أُنزِلَ مَعَهُۥٓ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ

"वो नबी ﷺ जो उम्मी आदमी है पैरवी करते है जिनके (औसाफको वो अपने हां तोरात और इंजील मे लिखा हुआ पाते है, वो इन्हे नेक काम का हुक्म देते है और बुरे काम से रोकते है और पाक चीज़ो को इनके लिए हलाल करते है और नापाक चीज़ो को इन पर हराम ठहराते है और इन पर से बोझ और तोक जो इन पर थे उतारते है - तो जो लोग इन पर ईमान लाये और इनकी रिफाक़त की और इन्हे मदद दी और जो नूर इनके साथ नाज़िल हुआ है इसकी पैरवी की। वही मुराद पाने वाले है।" [सूरह आराफ (7) 157]

इस आयत मे अल्लाह तआला नबी ﷺ के बारे मे कह रहा है की लोगो इस नबी ﷺ की पैरवी करो और जो नूर इन पर नाज़िल किया गया है उसकी पैरवी करो। 

नबी ﷺ को नूर मानने वाले हजरात से सवाल है की नबी ﷺ पर नूर नाज़िल हुआ था उससे क्या मुराद है?

जाहिर सी बात है क़ुरआन ही नाज़िल हुआ है तो साबित हुआ यहाँ नूर से मुराद क़ुरआन है। 

 

(4) अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

فَـَٔامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَٱلنُّورِ ٱلَّذِيٓ أَنزَلۡنَاۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ

"तो तुम अल्लाह पर और इसके रसूल पर और इसके नूर पर जिसके हमने नाज़िल किया है ईमान लाओ और अल्लाह तआला तुम्हारे हर अमल पर बाख़बर है।" [सूरह तगाबुन (64) 8]

इस आयत मे अल्लाह तआला ने तीन बातें कही हैं-

तुम ईमान लाओ-

1. अल्लाह पर
2. रसूल पर
3. नूर पर

नूररसूल और अल्लाह ये तो तीन चीज़े हो गई अगर नबी ﷺ नूर होते तो अल्लाह इस आयत मे नूर को रसूल से अलग क्यों करता?

खुलासा: यहाँ भी नूर से मुराद क़ुरआन है क्यूंकि आगे लफ्ज़ है नाज़िल किया तो नाज़िल क़ुरआन की आयते ही होती है रसूल पर।

 

5. नूर से क्या-क्या मुराद है?

नूर से मुराद आमालहिदायतईमानदिन आदि भी है 


1. नूर से मुराद हिदायत है।

(1) رَّسُولٗا يَتۡلُواْ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ مُبَيِّنَٰتٖ لِّيُخۡرِجَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ مِنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِۚ

"रसूल जो तुम्हे अल्लाह के साफ साफ एहकाम पढ़ कर सुनाता है ताकि इन लोगो को जो ईमान लाये और नेक अमल करें तो तारीकियो (अंधेरोंसे रौशनी (नूर  हिदायतकी तरफ ले आये।" [सूरह तलाक़ (65) 11]

खुलासा: यहाँ नूर से मुराद हिदायत है अंधेरा यानी गुमराही रौशनी यानी हिदायत। 

 

(2) أَفَمَن شَرَحَ ٱللَّهُ صَدۡرَهُۥ لِلۡإِسۡلَٰمِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورٖ مِّن رَّبِّهِ

"क्या वो शख्स जिसका सीना अल्लाह तआला ने इस्लाम के लिए खोल दिया है बस वो अपने रब की तरफ से एक नूर है।" [सूरह अज़ ज़ुमर (39) 22]

खुलासा: हर इंसान के दिल मे अल्लाह ने नूर डाला इसका मतलब ये तो नहीं की हम भी नूरी इंसान हुए जिस तरह से नबी ﷺ को नूर मानने वाले हजरात कहते है नबी नूर भी है और बशर भी तो अल्लाह ने!इस आयत मे नूर से मुराद हिदायत के लिए सीना खोल दिया लिया है

 

(3) وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَآ أَنۡ أَخۡرِجۡ قَوۡمَكَ مِنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ

"हमने मूसा अलैहिस्सलाम को अपनी निशानियां दे कर भेजा के तू अपनी क़ौम को अँधेरो से रौशनी (नूर ) मे निकाल)।" [सूरह इब्राहिम (14) 05]

खुलासा: यहाँ भी अँधेरे से मुराद गुमराही है रौशनी (नूरसे मुराद हिदायत है

 

(4) كِتَٰبٌ أَنزَلۡنَٰهُ إِلَيۡكَ لِتُخۡرِجَ ٱلنَّاسَ مِنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ بِإِذۡنِ رَبِّهِمۡ

"ये आलिशान किताब हमने आप की तरफ उतारी है के आप लोगो को अंधेरों से उजाले की तरफ लाये, इनके रब के हुक्म से ज़बरदस्त और तारीफो वाले की तरफ।" [सूरह इब्राहिम (14) 01]

खुलासा: उजाला (नूरसे मुराद नूर है। 

 और बहुत सी आयते है हिदायत के मुताल्लिक 4 काफी होंगी समझने वालों के लिए।

 

2. नूर से मुराद ईमान है। 

(1) وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦٓ أُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلصِّدِّيقُونَ ۖ وَٱلشُّهَدَآءُ عِندَ رَبِّهِمْ لَهُمْ أَجْرُهُمْ وَنُورُهُمْ ۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَكَذَّبُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَآ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَصْحَـٰبُ ٱلْجَحِيمِ


"अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते है वही लोग अपने रब के नज़दीक सिद्दीक और शहीद है इनके लिए इनका अजर और इनका नूर है और जो लोग कुफ्र करते है हमारी आयतो को झुठलाते है वो दोजखी है।" [सूरह हदीद (57) 19]

खुलासा: यहाँ नूर से मुराद ईमान है ईमान वाले जो नबी और अल्लाह पर यक़ीन रखते है वो इंशाअल्लाह जन्नती है कुफ्र करने वाले दोज़खी

 

(2) أَوْ كَظُلُمَـٰتٍۢ فِى بَحْرٍۢ لُّجِّىٍّۢ يَغْشَىٰهُ مَوْجٌۭ مِّن فَوْقِهِۦ مَوْجٌۭ مِّن فَوْقِهِۦ سَحَابٌۭ ۚ ظُلُمَـٰتٌۢ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ إِذَآ أَخْرَجَ يَدَهُۥ لَمْ يَكَدْ يَرَىٰهَا ۗ وَمَن لَّمْ يَجْعَلِ ٱللَّهُ لَهُۥ نُورًۭا فَمَا لَهُۥ مِن نُّورٍ

"ये मिसल उन अंधेरों की है जो निहायत हरे समुन्दर की ता मे हो जिसे ऊपर तले की मोजो ने ढांप रखा हो ऊपर से बादल छाये हुए हो अलगर्ज़ अंधेरिया ही जो ऊपर तले पे दर पे जब अपना हाथ निकाले तो इसे भी क़रीब है के ना देख सके और बात ये है के जिसे अल्लाह तआला ही नूर (ईमानना दे सके पास कोई रौशनी नहीं होती।" [सूरह नूर (24) 40]

खुलासा: यहाँ नूर से मुराद ईमान है

 

3. नूर से मुराद आमाल भी है

(1) يَوْمَ يَقُولُ ٱلْمُنَـٰفِقُونَ وَٱلْمُنَـٰفِقَـٰتُ لِلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱنظُرُونَا نَقْتَبِسْ مِن نُّورِكُمْ

"उस दिन मुनाफिक़ मर्द  औरत ईमानदारी से कहेँगे के हमारा इंतज़ार तो करो के हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रौशनी हासिल कर ले।" [सूरह हदीद (57) 13]

खुलासा: यहाँ नूर से मुराद आमाल है

 

(2) يَوْمَ تَرَى ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَـٰتِ يَسْعَىٰ نُورُهُم بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَـٰنِهِم بُشْرَىٰكُمُ ٱلْيَوْمَ جَنَّـٰتٌۭ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ

"क़यामत के दिन तू देखेगा के ईमानदार मर्दो और औरतों का नूर इनके आगे आगे और इनके दाएँ दौड़ रहा होगा आज तुम्हे इन जन्नतो को खुशखबरी है जबकि नीचे नेहरे जारी हैं जिनमे हमेशा की रिहाइश है बड़ी कामयाबी।" [सूरह हदीद (57) 12]

खुलासा: नूर आगे आगे दौड़ रहा होगा यानी आमाल

 

इन आयतो से पता चला नूर आमाल है, नूर हिदायत है, नूर ईमान है, नूर अल्लाह भी है। 

पूरे क़ुरआन मे कहीं भी एक जगह ज़िक्र नहीं आया की नबी अलैहिस्सलाम नूर हैं

 

सवाल: कुछ लोग कहते है नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नूर नहीं हैं एक आयत दिखाओ?

जवाब: ये तो वही बात हो गई की एक बंदा बाइक लेकर निकला पुलिस वाले ने पकड़ लिया और कहा की बाइक के कागज़ दिखाओ अब उस बन्दे ने चाल चली की अब तो मे फंस जाऊंगा मेरे पास कागज़ नहीं तो उसने पुलिस वाले से कहा तुम मुझे कागज़ दिखाओ ये मेरी बाइक नहीं है

वही हाल नबी ﷺ को नूर मानने वाले हजरात का है जब दलील नहीं होती तो ऐसे ही गिरते फिरते हैं

कल तो तुम कहने लगो की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आसमान मे उड़ते थे फिर उस पे एक ज़इफ हदीस भी पेश कर दें और हम कह दें की ये हदीस ज़इफ है तो कहेँगे की तुम गुस्ताख हो, नबी अलैहिस्सलाम की शान तुम्हे हज़म नहीं होती। एक हदीस दिखाओ की नहीं उड़ सकते

ये तो वही बात हो गई जो पहले खुद से कोई बात बनाओ फिर जब पकडे जाओ तो कह दो इसकी मनाही क़ुरआन हदीस से लाओ

 

6. क्या नबी ﷺ का साया नही था?

1. क़ुरान की रौशनी में:

नबी ﷺ को नूर मानने वाले हज़रात का ये भी मानना है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साया नहीं था और ये अक़ीदा इसलिए क़्यूकि जो नूर होता है उसका साया नहीं होता और नबी का साया नहीं था क्यूंकि नबी अलैहिस्सलाम नूर थे। 

जवाब: रूए ज़मीन पर जितनी भी माखलूक हैं सबका साया है और क्यूंकि मैंने साबित किया था की नबी बशर हैं तो बशर का साया भी होता है। 

चुनाचे आयत मुलाहिज़ा फरमाए:

وَلِلّٰهِ يَسۡجُدُ مَنۡ فِى السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ طَوۡعًا وَّكَرۡهًا وَّظِلٰلُهُمۡ بِالۡغُدُوِّ وَالۡاٰصَالِ 

"ज़मीन आसमान मे जितनी मखलूक हैं सब अल्लाह को ख़ुशी से या ज़बरदस्ती सजदा करती हैं और उन सब के साये हैं।" [सूरह राद (13) 15]

इसमें अल्लाह फरमा रहा हैं ज़मीन वा आसमान की हर मखलूक का साया हैं चाहे वो फरिश्ता हो या रसूल या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सबका साया क़ुरआन ने वाज़ेह कर दिया। 

अब आगे देखिए,

اَوَلَمۡ يَرَوۡا اِلٰى مَا خَلَقَ اللّٰهُ مِنۡ شَىۡءٍ يَّتَفَيَّؤُا ظِلٰلُهٗ عَنِ الۡيَمِيۡنِ وَالشَّمَآئِلِ سُجَّد لِّلَّهِ وَهُمۡ دٰخِرُوۡنَ 

"क्या उन लोगो ने अल्लाह की मखलूक़ात मे से ऐसी चीज़े नहीं देखी जिनके साये दायें से (बायें) और बाएं से (दाएं) को लौटते रहते हैं अल्लाह के सामने आज़ीज़ होकर सजदा मे पड़े रहते हैं। [सूरह नहल (16) 47]

अब क़ुरआन से वाज़ेह हो गया की हर शय का साया है। अगर कोई कहता है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साया नहीं था तो उसको क़ुरआन के खिलाफ फतवा देना होगा। 

 

2. हदीस की रौशनी में:

अब हदीस पर कुछ नज़र करते हैं की क्या वाक़ई नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साया था या नहीं?

अम्मा आयेशा रज़ि अन्हा से मरवी है किसी मामले मे ज़ैनब रज़ि अन्हा के पास नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नहीं आये थे। तीन महीने बाद नबी अलैहिस्सलाम जब वापस  रहे थे तो सय्यदा ज़ैनब रज़ि अन्हा कहती हैं:

فبينما انا يوما بنصف النهار اذا اتا لظل رسول الله صلى الله عليه وسلم متبل

"दोपहर के वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साया आते हुए देखा।" [मुसनद अहमद]

ये हदीस सहीह है। 

क़ुरआन की आयतों से और एक हदीस से आपके सामने बता दिया गया है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साया था। 

 

7. नबी ﷺ के नूर होने की दलील 

अब वो दलील पेश करूँगा जो नबी ﷺ को नूर मानने वाले हजरात नबी अलैहिस्सलाम के साये ना होने पर देते हैं

अल्लामा जलालुद्दीन सीयुति रहीमल्लाह ने हकीम तिर्मिज़ी के हवाले से एक रिवायत जिक्र की है। लिखते हैं, 

हकीम तिर्मीजी ने अब्दुल रहमान बिन क़ैस बिन जाफरान के तरीक से अब्दुल मालिक बिन अब्दुल्लाह बिन वलीद से उन्होंने ज़कवान से रिवायत किया है की, 

"नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का साया ना तो सूरज में नजर आता था और ना ही चांद में।" [अल खसाइस उल क़ुबरा 1/71]

जवाबपहली बात यह रिवायत ही क़ाबिल  एहतिजाज नहीं है क्योंकि इसकी सनद में अब्दुल रहमान बिन क़ैस बिन ज़ाफरानी हैं। 


(1) इमाम अहमद बिन हंबल रहमतुल्लाह अलेह फरमाते हैं:

لم يكن بِشَيْء لَيْسَ ...

"ये (अब्दुल रहमान बिन क़ैस बिन ज़ाफ़रानीकुछ नहीं था। [अल इलल मारीफत उर्रिजाल 748]

 

(2) इमाम अबू जरआ फरमाते हैं: 

كانا كزابا

"ये कज़्ज़ाब (झूठा ) था।" [जरह वा तादील 5/278]

 

(3) इमाम नसई फरमाते हैं:

متروك الحديس

"मतरूक उल हदीस है।" [ज़ोफा वल मतरूकयनी 5/206]

यानी यह रिवायत के रावी पर सख्त जराह है। लिहाजा ये हदीस सख्त तरीन ज़इफ है।इससे और ऐसी हदीसो से नबी ﷺ का साया मानने वाले हजरात अपना अक़ीदा बनाते है। 


इन शा अल्लाह अगले आर्टिकल में नूरीमीनूरील्लाह, मुसलमान यहूद व नसारा के तरीके पर और नूरी मखलूक का खाना पीना का ज़िक्र जायेगा। 

 

आपका दीनी भाई
मुहम्मद

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2 टिप्पणियाँ

  1. نُوۡرٌ وَّكِتٰبٌ مُّبِيۡنٌ
    में जब و अत्फ के लिए है तो अरबी का कायदा है की मातूफ अलैह (नूर) और मातूफ (किताब) में मुगायरत होती है यानी दोनो अलग अलग हैं। अगर दोनो एक ही हैं तो पूरी उम्मत में किसी एक मुफास्सिर की तफसीर का हवाला दीजिए
    और و तफरसीरी होने पर अरबी ज़बान का कायदा दीजिए

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  2. yahan و atf tafseer hi hai kyunki aage ALLAH ta'ala ne wazahat ki hai "yahdi bihillah" yaani iske zariya ham hidayat dete hain.... ALLAH ke piche do muraad hota to ALLAH ta'ala musanna ka seegah istemal karta...

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