सोशल मीडिया पर फोटो और वीडियो
औरत की हया सीप में छिपी मोती की तरह होती है, सीप से बाहर आते ही उसको बेचने वाले, खरीदने वाले, इस्तेमाल करने वाले, उसे पाने वाले, चाहने वाले, और कुछ न हो तो ललचाई नजरों से देखने वालों की एक भीड़ सी लग जाती है।
अपनी कीमत को समझें, अपनी हया की हिफाज़त करें वर्ना मोतियों की तरह सजा कर बेच दी जाएंगी बाजारों में।
वैसे भी दुनियां में सबसे ज्यादा बिकने वाली चीज़ औरत है। किसी भी प्रोडक्ट्स के एड पर देख लें आप को औरतों की तस्वीर मिलेंगी। जितने अट्रैक्टिव तस्वीर मार्केट में उतनी उसकी डिमांड।
मैं एक दिन मार्केट थी अचानक मेरी नज़र एक ऐसी ही दो चार चीजों पर गई, मैने गौर करना शुरू किया वाकई 99% चीज़ों पर औरतों की तस्वीर। ऐसा महसूस हुआ पैकेट में पैक किया हुआ प्रोडक्ट नहीं बल्कि औरत का जिस्म बिक रहा हो।
ऐसा ही हाल कुछ सोशल मीडिया का भी है, हम सभी जानते हैं कि आज सोशल मीडिया का ज़माना हैं फितने के इस दौर में इमान को बचा कर रखना काफ़ी मुुश्किल होता जा रहा है। आज जिस क़दर बेहयाई आम हो रही है फिर हमारी आने वाली नस्लों का क्या होगा? क्या हम एक कमज़ोर नस्ल छोड़ कर जानें वाले हैं?
तो क्या कभी इस बात का ख्याल नहीं आता कि एक अदालत महसर के मैदान में भी लगेगी और हमे अपने अमाल का हिसाब देना होगा?
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "लोगों पर एक ऐसा ज़माना आएगा कि उन में अपने दीन पर सब्र करने वाला आदमी ऐसा होगा जैसे हाथ में चिंगारी पकड़ने वाला।" [तिर्मिज़ी 2260]
आज हम वही दौर देख रहे हैं, नबी करीम (ﷺ) के ज़माने में मक्का के काफ़िर अगर इस्लाम लाते तो पूरे इमान के साथ दीन में दाख़िल होते और आज हम दीन में तो हैं पर इमान से खाली।
अब आते हैं सोशल मीडिया पर, व्हाट्सप्प, फेसबुक,इंस्टाग्राम, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लडकियां अपनी फ़ोटो डीपी, स्टेटस, एफबी स्टोरी पर शेयर करती हैं जो की गलत हैं और इस सब माध्यमों पर हम हज़ारों ना मेहरम लोगों से जुड़े हुए होते हैं, लोग हमरी तस्वीर जूम कर के देखते हैं। हम नहीं जानते किसकी नीयत कैसी है और नीयत अगर अच्छी हो भी तो शरियत इस बात की इजाजत नहीं देता की आप गैर मेहरम के सामने बिना पर्दे के आएं।
कोई गैर मेहरम आप की तस्वीर देख कर लाइक करता है कमेंट करता है क्या ये आप को अच्छा लगता है? नाइस, औसम, ब्यूटीफुल, गॉर्जियस ये जुमले सुन कर आप प्रफुल्लित हो जाती हैं और शैतान इससे मजे लेता है और गुनाहों के भवर में आप खो जाती हैं, आपको इसका अंदाज़ा नहीं। कोई गैर मर्द आप के हुस्न की तारीफ़ करे आप को ये कैसे ग्वारा होता है?
लड़कियों को इस बात का ज़रा सा भी अंदाजा नहीं की आज टेक्नोलॉजी का दौर है और उनकी तस्वीर का स्क्रीन शॉर्ट लेकर लड़के एडिट कर तरह तरह से लुत्फ उठाते हैं, अफ़सोस की हमारी बहनों को इसका अंदाज़ा होता।
कुछ बहने शादी इवेंट्स पर इतनी एक्साइटेड होती हैं कि दुल्हन के साथ अपनी और दुल्हन की तस्वीरें और विडियोज तामाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर शेयर करती हैं।
ध्यान रहे इस्लाम में पर्दे का ख़ास ख्याल रखने की ताकीद की गई है।
अल्लाह क़ुरान में फरमाता है,
"ऐ नबी, अपनी बीवियों और बेटियों और मोमिनीन की औरतों से कह दीजिये की अपने ऊपर बड़ी चादरों के पल्लू लटका लिया करें (क्यूंकि) ये ज़्यादा मुनासिब तरीक़ा है ताकि वह पहचान ली जाएं (की वह शरीफ औरतें हैं बाजार का माल नहीं, और इस तरह वो) सताई न जाएं, और अल्लाह तो बोहोत माफ़ करने वाला है।" [क़ुरआन 33: 59]
"और अपने घरों में क़रार से रहो और क़दीम जाहिलीयत के ज़माने की तरह अपने बनाओ सिंगार का इज़हार न करो, और नमाज़ अदा करती रहो और ज़कात देती रहो, अल्लाह और उसके रसूल की इताअत गुज़ारी करो।" [क़ुरआन 33: 33]
अम्मी आयेशा रज़ियल्लाहु अन्हा ब्यान करती हैं की हम रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के साथ एहराम से हुआ करती थीं, और काफिले वाले हमारे सामने से गुज़रते तो हम अपने परदे की चादर को सर से चेहरे पर लटका लेती, जब वो गुज़र जाते तो चेहरा खोल लेती। [सुनन अबू दावूद : 1833]
अम्मी आयशा जिसकी पाकीजगी की गवाही कुरान ने दी ऐसी शख्सियत को भी परदे का हुक्म था फिर हम और आप क्या हैं?
हमारी कुछ मुस्लिम बहनें कहती हैं कि पर्दा तो दिल का होता है, तो उन्हे ये जान लेना चाहिए कि आपका दिल उम्हातुल मोमिनीन से ज्यादा पाक नही होगा जिनके बारे में अल्लाह फरमाता हैं, "रजि० अल्लाहु अन्हा व रजि० अन्हा" (अल्लाह इन से राजी और यह अल्लाह से राजी), जिनसे अल्लाह राजी हो गया उन्हे भी परदे का हुक्म दिया गया था फिर आप इस हुक्म से कैसे बरी हो गई?
इल्तिज़ा कौम की बहनों से:
मेरी प्यारी बहनों ये दुनियां फानी है और हमें एक दिन इस खेल तमाशा भरी दुनियां को छोड़ कर अल्लाह के सामने हाज़िर होना है फिर हम कैसे रोज़ ए महसर अपने रब का सामना करेंगे? आज वक्त है अपने गुनाहों से तौबा करने का, कल आखिरत में आप को लम्हा बराबर भी वक्त नहीं दिया जाएगा।
फिर थोड़ी सी तारीफ़ के लिए हम अपने अखिरत क्यों बर्बाद कर रहे हैं?
उम्मत के भाईयों से इल्तिज़ा:
मर्द मुहाफिज होता है। अल्लाह ने उसका एक दर्जा बुलंद किया है इसलिय मेरी इल्तेज़ा है कि आप भी अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर बिना जरूरत शेयर न करें। मेरे बहुत से दीनी भाई ऐसे हैं जो दीनदार हैं मगर अपनी तस्वीरें शेयर करने से पीछे नहीं रहते। कुछ तो ऐसे भी हैं जो निकाह के बाद अपनी बीवी के साथ वाली पिक शेयर करते हैं, ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है की वे मुआशरे से बुराई और बेहयाई को दूर करेंगे।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ गो हूं कि उम्मत के शहजादों और शहजादियों को हिदायत अता फरमाए और सिरात अल मुस्तकीन पर चलने को तौफीक इनायत फरमा दे!
आमीन या रब्बल आलमीन
फ़िरोज़ा
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