रमज़ान में रोज़े की हिफाज़त कैसे करें? (पार्ट-2)
3. ज़ुबान का रोज़ा
- झूठ बोलना
- चुगली करना
- तोहमत लगाना
- ताने देना
- ज़्यादा मज़ाक़ करना
- किसी का मजाक उड़ाना
- किसी का दिल तोड़ना
- झूटी गवाही देना
- झूटी क़सम खाना
- चापलूसी करना
ज़ुबान इंसानी जिस्म का एक ख़ास अंग है जो हमारी जिंदगी में एक अहम क़िरदार अदा करती है। इसका काम खाने वाली चीजों को चाटने, चखने, सांस लेने, निगलने और बोलने में शामिल है। इन सब के बाद भी इस ज़ुबान के बोलने के हवाले से बहुत ही ज्यादा काम करता है।
जी हां! ये ज़ुबान ही है कि अगर इस को काबू न किया जाय तो बाज़ दफा कैंची की तरह रिश्तों को कतरती है, लोगों की आबरू को तार तार करती है और बाज़ दफा तो ये दरिंदगी पर उतर कर सामने वाले को चीर-फाड़ कर रख देती है, दिलों को तकलीफ़ पहुंचाती है।
नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया:
[तिर्मिजी 2407]
अब हम अक्सर देखते हैं कि सबसे ज्यादा गुनाह इस ज़ुबान से ही होते हैं ।
आइए इस हवाले से कुछ संगीन गुनाहों पर नज़र डालते हैं:
इसका सबसे पहला गुनाह,
i. झूट बोलना:
इस्लाम में झूठ की कोई जगह नहीं है, और अफ़सोस कि बात ये है की आज मुस्लिम झूठ का लबादा ओढ़े हुए है और रोज़े की हालत में भी झूठ बोलना नहीं छोड़ते। याद रखें,
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया:
[सहीह बुखारी 6057]
हदीस से साबित होता है कि अल्लाह को पसंद नहीं की उसका बंदा झूठ बोले।
ii. गीबत करना:
मतलब पीठ पीछे किसी की (चुगली) बुराई करना।
रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,
"क्या तुम जानते हो कि ग़ीबत क्या है?उन्होंने (सहाबा) ने अर्ज़ किया, "अल्लाह और उसका रसूल ख़ूब जानने वाले हैं।
आप ﷺ ने फ़रमाया, "अपने भाई का इस तरह तज़किरा करना जो उसे नापसंद हो।"
अर्ज़ की गई आप ये देखिए कि अगर मेरे भाई में वो बात वाक़ई मौजूद हो जो मैं कहता हूँ (तो?)
आप ﷺ ने फ़रमाया, "जो कुछ तुम कहते हो, अगर उस में मौजूद है तो तुमने उसकी ग़ीबत की, अगर उस में वो (ऐब) मौजूद नहीं तो तुम ने उस पर बोहतान लगाया है।"
[सहीह मुस्लिम 2589]
आज हम ऐसे गुनाह को गुनाह मान ही नहीं रहे हैं, अगर हम कहें की मुस्लिम मुआशरा में एक बड़ा तबका दिन भर दूसरों की बुराइयां करने, लोगों में कमियां तलाश करने में लगा रहता है और अपना कीमती समय जाया कर रहा होता है, बाकी दिनों की बात छोड़ दें रमज़ान मुबारक मे भी लोगों की ज़ुबान कैंची की तरह चलती है और हैरत की बात ये है कि रोजेदार इंसान को भी इसका ख्याल नहीं, हममें से अक्सर लोग ऐसे हैं जो अपने भाई रिश्तेदार या किसी जान पहचान वाले की शिकायतें ,कमियां लेकर बैठ जाते हैं। मुझे ताजुब्ब होता है कि पहले ये काम औरतें करती थीं और बेहद अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है की अब मर्द हजारत भी इस संगीन गुनाह को बड़े मज़े से चटकारे लेकर इसका लुत्फ उठा रहे हैं। अल्लाह माफ़ करें अज़ान के वक्त भी कुछ लोगों की ज़ुबान ख़ामोश नहीं रहती।
आइए कुछ अहादीस पर गौर करें
रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया:
[सहीह मुस्लिम 6593]
iii. चुगल खोर की सजा:
अबू-वायल ने हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि०) से हदीस रिवायत की कि उन को पता चला कि एक आदमी (लोगों की आपसी) बात चीत की चुग़ली खाता है। तो हुज़ैफ़ा (रज़ि०) ने कहा: मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना है, आप फ़रमाते थे,
"चुग़ल ख़ोर जन्नत में दाख़िल नहीं होगा।" [सही मुस्लिम 290]
नोट: जब "चुग़ल ख़ोर जन्नत में दाख़िल नहीं होगा।" तो फिर सोचें कि हम ये कैसे तसव्वुर कर सकते हैं की हमारे रोज़े क़ुबूल हो जायेंगे। अल्लाह ख़ैर करे हमारे अमाल बर्बाद न हों।
अल्लाह सुबहानहू व ताला का फ़रमान है,
[क़ुरआन 49:12]
वजाहत: अब गौर करने का मकाम है कि जब हम रोज़ा रखते हैं तो अल्लाह के बताए हुक्म के मुताबिक हलाल चीजों से खुद को रोक लेते हैं। मिसाल के तौर खाना पीना और बीवी से जिमा करना, फिर भला हम अल्लाह की हराम करदा चीज़ों से खुद को क्यों नहीं बचाते। उपर्युक्त आयत से ये बात अस्पष्ट है की चुगली करना ऐसे है जैसे आप अपने मरे हुए भाई का गोस्त खा रहे हैं तो क्या आप में से किसी को गवारा होगा की आप मुरदार खाएं जो हराम है, नहीं न! फिर रोज़ा रख कर किसी की गिबत कर के आप और हम अपने अमाल क्यों बरबाद कर रहे हैं?
4. तोहमत लगाना (दोषारोपण करना)
कुछ लोग दोहरे चरित्र के मालिक होते हैं जिसे इस्लाम में "मूनाफिक" कहा जाता है। आप ने अक्सर देखा और सुना होगा लोग किसी के बारे में बिना जानें, बिना समझे दोषारोपण कर देते हैं इसे बोहतानतरासी कहते हैं। इस्लाम की नज़र में यह बहुत ही संगीन जुर्म है कई बार होता ये है कि लोग अपनी गलती छुपाने के लिए सामने वाले पार तोहमत लगा देते हैं।
आप अपने आस पास दिन में सैकड़ों बार इस तरह की हरकत देखते होगें और करते भी होंगे क्यों कि ये आप की और हमारी आदत जो बन गई है, किसी के क़िरदार पर उंगली उठाना, उसकी इज़्ज़त उछालना, उसे अपनी इमेज़ बनाने के लिय सामने वाले को नीचा दिखाना ये आसान हो गया है।
5. आज का पसमंजर और सोशल मीडिया
i. बोहतानतरासी ऑन सोशल मीडिया:
सोशल मीडिया आज के दौर का ऐसा माध्यम है जहां हम अपने भावनाओं ओर विचारों का संप्रेषण भाषा के ज़रिए करते हैं यहां आप खुद लोगों के सामने मौजूद नहीं होते बल्कि आप के विचार ही आप की इमेज़ और स्टेटस को दर्शाते हैं।
फिर हमारे विचार कैसे होने चाहिए?
किसी की आबरू पर तोहमत लगाने वाले, लान तान, बेवजेह मज़ाक उड़ाने वाले, किसी के दिल तोड़ना वाले?
क्या ऐसे विचार के क़ुरान सीखता है, क्या ऐसे अखलाक हमारे नबी करीम की सुन्नत में नजर आते हैं गौर करें, और अपने ज़मीर को टटोलें।
कल्पना का शहर एफबी जहां सबसे ज्यादा दोषारोपण होता है, मैने देखा लोग एक दूसरे को गाली गलौज, बत्तमीजी, बेहुदा किस्म की बाते, किसी के राज़ फ़ाश करना, किसी के चैट की ss डाल कर उसे जलील करना फिर दुसरे लोगों को टैग कर उसे नीचा दिखाना अपने ही कलमा गो भाई पर कुफ्र के फतवे लगाना , ये डेली रूटीन का हिस्सा हो गई है।
विचारों में मतभेद होना नेचुरल चीज़ है इसके लिए सामने वाले की इस्लाह की जाए।
ii. झूठी तोहमत लगाने का गुनाह:
जो लोग किसी पर झूठी तोहमत लगाते हैं वो कुरान की इस आयत पर गौर करें-
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
[क़ुरआन 33: 58]
इस हवाले से हदीस में आया है कि,
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
[अबू दाऊद: 3597]
iii. नजात कैसे मिलेगी:
उक़बा-बिन-आमिर कहते हैं कि मैंने कहा, "अल्लाह के रसूल! नजात की क्या सूरत है?"
रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया, '
[सहीह बुखारी 6474]
खुलासा: जो कोई अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है इसे चाहिये कि वो अच्छी बात कहे या फिर चुप रहे। और अल्लाह तआला का ये फ़रमाना कि "इन्सान जो बात भी ज़बान से निकालता है तो इसके ( लिखने के लिये ) एक चौकीदार फ़रिश्ता तैयार रहता है।''
अफसोस की हम क़ुरान को तो मानते हैं पर कुरान की नहीं,
हम आशिक ए रसूल होने का दावा तो करते हैं मगर रसूल कि सुन्नत को पीठ पीछे कर देते हैं...
ये सब देख कर दिल रोता है...
बस यही गुजारिश है लौट आएं क़ुरान की तरफ़!!
नोट:
- ★ अल्लाह का तकवा इख्तियार करें ।
- ★ अच्छी सोहबत में रहें।
- ★ ऐसी महफ़िल से किनारा करें जहां गजालत और बेहुदा बातें होती हैं।
- ★ खामोशी अख्तियार करें।
- ★ वादा खिलाफ़ी न करें।
- ★ कुरान पढ़ें, कुरान सुनें, हर हाल में कुरान को दिल से लगाए रखें,।
- ★ अपने ज़ुबान को ज़िक्र इलाही के ताबे रखें।
- ★ जिन लोगों की आप ने चुगली की है अगर उन्हें इस बात की ख़बर चल जाय तो माफ़ी मांग लें।
- ★ कसरत से तौबा इस्तगार करें।
- ★ चुगलखोरी और झूठ से बचें।
اَسْتَغْفِرُاللّٰہَ الَّذِیْ لَآ اِلٰہَ اِلَّا ھُوَ الْحَیُّ الْقَیُّوْمُ وَاَتُوْبُ اِلَیْہِ
इन शा अल्लाह तीसरे पार्ट में हम दूसरे गुनाहों का ज़िक्र करेंगे।
अल्लाह हमारी इबादत को क़ुबूल कर ले हम से राज़ी हो और हम सब मुस्लमानों को सीधे रास्ते पर चलने की तौफीक अता फरमाए। आमीन
आप की दीनी बहन
फ़िरोज़ा
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