Kya april fool's day manana haram hai? kyun?

Kya april fool's day manana haram hai? kyun?

अप्रैल फूल डे मनाने की वजह क्या है? 

अप्रैल फूल डे (April Fool Day) मानाने के पीछे दो वजह बताई जाती है-

1. स्पेन में 800 साल पहले मुसलमानों की हुकूमत हुआ करती थी और इतिहासकार उसी ज़माने में हुए एक वाक़्ये का ताल्लुक "अप्रैल फूल डे" यानी एक (1) अप्रैल से जोड़ते है। 

2. फ्राँसिसिओं का 1564 ईसवी में अपना कैलेंडर बदलना।  


इन शा अल्लाह हम इन दोनो वजूहात का ज़िक्र आर्टिकल के आख़िर में करेंगे। फिलहाल तो हम ये जान लें, 

  • "अप्रैल फूल डे" पर क्या किया जाता है? 
  • इसका मुसलमानो से क्या ताल्लुक़ है? 
  • आज का मुसलमान मग़रीबी तहज़ीब की नक़ल क्यों कर रहा है? और 
  • इसे मानाने वालों पर क्या अज़ाब होगा?

🔴 अप्रैल फूल डे (April Fool Day) मग़रीबी तहज़ीब (western culture) के बेहूदा रस्मों में एक रस्म को रिवाज बना दिया, जिसके मनाने की बुनियाद ख़ालिस झूट पर है। इसकी शुरुआत यूरोप से हुई, लेकिन अब पूरी दुनिया में एक अप्रैल को झूठ बोलकर लोगों को बेवक़ूफ़ बनाया जाता है और दूसरो को परेशानी मे मुब्तिला करके खुश मनाई जाती है। अफ़सोस के इस गैर मुल्की बेहूदा रिवाज को हमारी कौम ने खुशी-खुशी अपना लिया। 


गैर मुसलमानों के साथ कुछ मुसलमान भी इसे गुनाह न समझकर मना रहे हैं। कहते हैं, इस दिन झूठ बोलना जायज़ है। दोस्तों, रिश्तेदारों, पड़ोसी वगैरह में झूठी बातें पहुंचा कर उन्हें परेशान करते हैं, ख़ास तौर पर बुजुर्गों का मज़ाक़ उड़ाया जाता है। कभी कभी ये मज़ाक हद्द से ज़्यादा बढ़ जाता है, कुछ लोग ज़ेहनी तौर पर परेशान हो जाते है तो कुछ कमज़ोर दिल के हार्ट अटैक से अस्पताल तक पहुंच जाते है, इतना कुछ होने के बाद कहते है, "हम तो अप्रैल फूल मना रहे है।" 


कुछ लोग ये कहकर एक अप्रैल को झूठ बोलते हैं और दूसरों को बेवक़ूफ़ बनाते हैं कि वह सिर्फ दूसरों को हँसाने के लिए कर रहे हैं, तो उन्हें ये जान लेना चाहिए कि हंसी मज़ाक में बोला गया झूठ भी झूठ है, जोकि हराम क़रार दिया गया है। अप्रैल फूल कहकर लोगों मे झूट बोलने वाले इस हदीस पर ग़ौर करें और अपनी इस्लाह करें। अभी वक़्त है और वक़्त रहते दिल से तौबा कर लेना ही समझदारी है। रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, "तबाही और बर्बादी है उस शख़्स के लिए जो ऐसी बात कहता है के लोग सुनकर हंसे हालांकि वो बात झूटी होती है तो ऐसे शख़्स के लिए तबाही ही तबाही है।" [तिर्मिज़ी 2315, हसन] 


एक अप्रैल को न सिर्फ झूठ बोला जाता है, बल्कि एक-दूसरों को धोखा भी दिया जाता है। रसूल (ﷺ) ने फ़रमाया, “जो शख्स हमें धोखा दे, वह मुसलमान नहीं है।" [मुस्लिम 102] यानि वह शख्स मुस्लमान कहलाने का हक़दार नहीं है जो धोखा देता हो। 


इस दिन दूसरों का मज़ाक़ भी उड़ाया जाता है, जबकि पूरी दुनिया को पैदा करने वाले ने दूसरों का मज़ाक उड़ाने से मना किया है। 

"ऐ ईमान वालों! न मर्दों को मर्दों पर हँसना चाहिए, हो सकता है कि जिन पर हँसते हैं वह हंसने वालों से बहतर हों, और न औरतों को औरतों पर हँसना चाहिए, हो सकता जिन पर वह हंसती हैं वह हंसने वालियों से बहतर हों।" [क़ुरआन 49: 11]

रसूल (ﷺ) ने फ़रमाया, "तुम अपने भाई से झगड़ा मत करो और न उस से मज़ाक़ करो, और न कोई ऐसा वादा करो जिसे तुम पूरा न कर सको।" [तिर्मिज़ी 1995] यहाँ ऐसा मज़ाक़ मुराद है जो दूसरों को बुरा लगे। 


🔴 झूठ बोलना किसी भी समय, बिल्कुल भी जायज़ नहीं है। झूठ बोलना गुनाह ए कबीरा है, किसी भी तरह से झूठ बोला जाये वो झूठ ही होगा। यहाँ तक की इस्लाम में बच्चों से भी झूठ बोलना हराम है। अल्लाह के रसूल (ﷺ) के ज़माने में एक वाक़्या हुआ,

हज़रत अब्दुल्लाह बिन आमिर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) कहते हैं की एक दिन मेरी वालिदह ने मुझे बुलाया, "इधर आओ, चीज़ दूंगी", जब अल्लाह के रसूल (ﷺ) हमारे घर में बैठे थे।
आप (ﷺ) ने मेरी वालिदह से पूछा, "तुम उसे क्या देने का इरादा रखती हो?"
उन्होंने जवाब दिया, "मै उसे कुछ खजूर देना चाहती हूँ।"
फिर अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने उस से कहा, "अगर तुम उसे कुछ नहीं देती, तो तुम पर एक झूठ लिखा जाता।" [अबू दाऊद 4991, हसन]

तो ये पता चला बच्चो से भी झूठ नहीं बोला जा सकता। ये सख़्त जुर्म है, गुनाह ए कबीरा है। तो सोचे जब बच्चे से झूठ बोलना मन किया गया तो उस झूठ का क्या जो लोगों में फ़ितने फैलावाता है। अल्लाह ताला क़ुरान में फरमाता है, "जो झूठा हो उस पर अल्लाह की लानत हो।" [क़ुरआन 3:61]

कोई भी हराम अमल फायदेमंद नहीं हो सकता जिस पर अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) की मोहर लग चुकी हो फिर वो किसी भी मक़सद से किया जाये। 
झूट जैसी बुरी लानत के ताल्लुक से मेराज के दौरान रसूल अल्लाह (ﷺ) को एक वाक़्या दिखाया गया। रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, "जिन लोगो को जहन्नम मे अज़ाब दिया जा रहा था इनमे से एक आदमी के जबड़ो और बाछो को गुद्दी तक चीरा जा रहा था, इसकी नाक के नथने भी गुद्दी तक चीरे जा रहे थे, और इसकी आंखे भी गुद्दी तक चीरी जा रही थी। रसूल अल्लाह (ﷺ) के पूछने पर हज़रत जिब्रील ने फ़रमाया, "ये आदमी सुबह अपने घर से निकलता और झूट बोलता जो दुनिया के किनारो तक फ़ैल जाता।" [बुखारी 7047]


🔴 सबसे खराब झूठ अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) के बारे में झूठ बोलना है, फिर लोगों के बीच झूठ फैलाना ताकि उनके बीच लड़ाई या मनमुटाव हो। उसके बाद हसी मज़ाक में या फिर दूसरों को खुश करने के लिए बोला जाने वाली हर बात झूठी है और झूठ बोलते समय आदतन झूठ बोलना मुनाफ़िक़ों की निशानी में से एक निशानी है। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,

"चार आदतें हैं जिस में वो (चारों) होंगी, वो ख़ालिस मुनाफ़िक़ होगा और जिस किसी में इन में से एक आदत होगी तो उस में निफ़ाक़ की एक आदत होगी यहाँ तक कि उससे रुक आ जाए। (वो चार ये हैं) : 

(1) जब बात करे तो झूट बोले और 
(2) जब मुआहदा करे तो तोड़ डाले, 
(3) जब वादा करे तो वादा ख़िलाफ़ी करे और 
(4) जब झगड़ा करे तो गाली दे।" 
[बुखारी 34; मुस्लिम 58]

मुनाफ़िक के लिये सज़ा इतनी सख्त हैं जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया, "बेशक मुनाफ़िक जहन्नम की सबसे गहरी व निचली खाई मे होंगे और तुम किसी को इनका मददगार न पाओगे।" [क़ुरआन 4: 145]


झूठ वो गुनाह है जो हर तरह की बुराई और शरारत का ज़रिया है। झूठ हर फ़साद की जड़ है और झूठ बोलने वाले का ठिका जहन्नम है। अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फ़रमाया, "झूठ से बचो! बिलाशुबा झूठ गुनाह की तरह ले जाता है और गुनाह जहन्नम में पहुँचाने वाला है।" [अबू दाऊद 4989, सहीह]


ज़िना झूठ बोलने से भी बदतर है, पर कुछ झूठ ज़िना और दूसरे बड़े गुनाहों से भी बदतर हैं, जैसे कि अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) के खिलाफ झूठ बोलना। अल्लाह ताला फरमाता है, "ऐ मुहम्मद (ﷺ)! कह दो की जो लोग अल्लाह पर झूठ बाँधते है, वो हरगिज़ क़ामयाब नहीं होंगे'" [क़ुरआन 10:69]

नबी (ﷺ) ने मुतवातिर हदीस में फरमाया: "जो शख़्स मुझ पर झूठ बँधेगा वो अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।" [बुखारी 107; मुस्लिम 3]

  • झूठ को जायज़ क़रार देना क्या अल्लाह और रसूल अल्लाह (ﷺ) के फरमान पर झूठ गढ़ना नहीं है? 
  • क्या उनकी कही हुई बातों का इंकार करना नहीं है?

🔴  आज के मुसलमान का मगरिबी तहज़ीब को नक़ल करने की सबसे बड़ी वजह कुरआन और सुन्नत से दूरी और एहसास ए कमतरी है। आज मुसलमान और दूसरे मज़हब को मानने वाले लोग मगरिबी तहज़ीब के हर छोटे बड़े मामले मे उनकी नकल को इस तरह अपना लेते हैं जैसे ये उनके दीन का हिस्सा और मआशरी तरक्की का राज़ हो। यही वजह है कि हिजाब उठता जा रहा है, औरते पर्दा करना छोड़ रही हैं, लिबास छोटे और बेहूदा होते जा रहे है, चाल-ढाल बदलती जा रही है, मर्दो की अक्ल पर पर्दा पड़ता जा रहा है, घर और मुआशरी रहन-सहन हर चीज़ मगरिबी तहज़ीब के जैसी करता जा रहा है और उसे करने मे फ़ख्र महसूस कर रहा है। 

आज अगर उम्मत ए मुहम्मदिया (ﷺ) के हालात पर गौर किया जाये तो ये उन बुराइयों में मुब्तला हैं जिनका दूर दूर तक इस्लाम से कोई वास्ता नहीं है। क़ुरान और अहदीस में इन बुराइयों को वाज़ेह कर दिया गया है इसके बावजूद आज का मुसलमान इन आदतो और रस्म-रिवाज को खुशी से अपनाता जा रहा है जैसे ये एहकाम ए इलाही हो और धीरे-धीरे अपनी असल तहज़ीब को खोता जा रहा है। 



🔴 दीन ए इस्लाम पर चलना बहुत आसान क्यूंकि जहाँ जिस चीज़ के फायदे ज़्यादा हो वह हराम को भी हलाल कर दिया गया है। झूठ बोलना हराम है फिर कैसा भी झूठ हो पर अल्लाह ने हम पर आसानी करते हुए कुछ जगहों पर इसे हलाल कर दिया। सुभान अल्लाह 

हमीद बिन 'अब्द अल-रहमान बिन 'औफ की वालिदाह उम्म कुलसुम' बिन्ते उकबा बिन अबि मुइत (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) की बेटी ने रसूलुल्लाह (ﷺ) को फ़रमाते हुए सुना, "वो शख़्स झूठा नहीं है, जो लोगों के बीच सुलह कराए और वो (ख़ुद एक तरफ़ से दूसरे के बारे  में) अच्छी बात कहे  या अच्छी बात बढ़ा कर बयान करे।" [मुस्लिम 2605; तिर्मिज़ी 1938; अबू दाऊद 4920]

इस्लाम हर तरह के झूठ से दूरी बनाये रखने की बात कहता है पर सिर्फ तीन जगहों पर झूठ बोलने की इजाज़त देता है जोकि आला मक़सद पूरा करते है और इससे होने वाले नुकसान से बचाओ होती है। [मुस्लिम 2605] हदीस में बताए गए तीन मामले हैं,

इब्न शिहाब ने कहा कि उन्होंने यह नहीं सुना है कि लोग जो कुछ भी झूठ बोलते हैं उसमें छूट दी गई है लेकिन तीन मामलों में:

  1. जंग और जिहाद में 
  2. लोगों के बीच सुलह करने के लिए 
  3. शौहर का अपनी बीवी से (उसे राज़ी करने की) बात और औरत का अपने शौहर से (उसे राज़ी करने के लिए) बात। 


इस हदीस से ये साबित होता है कि 1 अप्रैल को या किसी और दिन झूठ बोलना हराम है।  

🔴 किसी भी काम में काफिरों (गैर-मुस्लिमों) की नकल करना और उनके जैसा होना जायज़ नहीं है। नबी (ﷺ) ने फरमाया: "जिसने किसी क़ौम की पैरवी की वह हम में से नहीं।" [अबू दाऊद 4031]

  • अगर हम इस झूठे दिन पर अमल करने से पहले इस हदीस पर गौर करें तो क्या हम उन काफिरों में से नहीं होंगे जो इस दिन को मानते है? 
  • क्या अप्रैल फूल मानना, काफिरों की पैरवी करना नहीं है? 

हम खुद को मोमिन कहने में एक सेकंड भी नहीं लगाते पर हक़ीक़त में, क्या वो मोमिन हो सकता है जो झूठ बोलता हो, जिसके दिल में अल्लाह का ख़ौफ़ न हो और जो धोखा देता हो? झूट बोलने की मनाही करते हुए नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया, 

''बेशक सच आदमी को नेकी की तरफ़ बुलाता है और नेकी जन्नत की तरफ़ ले जाती है और एक शख़्स सच बोलता रहता है यहाँ तक कि वो सिद्दीक़ का लक़ब और मर्तबा हासिल कर लेता है और बेशक झूठ बुराई की तरफ़ ले जाता है और बुराई जहन्नम की तरफ़ और एक शख़्स झूठ बोलता रहता है यहाँ तक कि वो अल्लाह के यहाँ बहुत झूठा लिख दिया जाता है।'' [बुखारी 6094; मुस्लिम 2607]


अब आते है उस वजूहात की तरह जिन्हे अप्रैल फूल डे की तरफ मंसूब किया जाता है-

1. "अप्रैल फूल डे" मानाने की पहली वजह:

🔴 लगभग एक हजार साल पहले स्पेन पर मुसलमानों का शासन था। और स्पेन में मुस्लिम हुक़ूमत इतनी मज़बूत थी कि उसे ख़त्म नहीं किया जा सकता था। पश्चिमी मुल्कों के ईसाई दुनिया के सभी हिस्सों से इस्लाम का सफाया करना चाहते थे और वे काफी हद तक क़ामयाब भी हुए। लेकिन जब उन्होंने स्पेन में इस्लाम का सफ़ाया करने और उस पर फ़तेह हासिल करने की कोशिश की, पर वो नाक़ामयाब रहे। उन्होंने कई बार कोशिश की लेकिन कभी क़ामयाब नहीं हुए। फिर काफिरों ने स्पेन में अपने जासूसों को वहां के मुसलमानों का जायज़ा  करने और यह पता लगाने के लिए भेजा कि उनके पास ऐसी कोन सी ताक़त है जो उन पर फ़तेह पाने से रोक रही है और उन्होंने पाया कि उनकी ताक़त तक़वा है। 

स्पेन के मुसलमान सिर्फ मुसलमान नहीं थे बल्कि वे मोमिन थे। उन्होंने न केवल कुरान को पढ़ा बल्कि उस पर अमल भी किया। जब ईसाइयों को मुसलमानों की ताक़त का पता चला तो वो इस ताक़त को तोड़ने के तरीक़े ढूढ़ने  लगे। इसलिए वे स्पेन को मुफ्त में शराब और सिगरेट भेजने लगे। पश्चिम की यह तकनीक काम कर गई और इसने मुसलमानों ख़ासकर स्पेन की नौजवान नस्ल का यक़ीन कमजोर होना शुरू हो गया। इसका नतीजा यह हुआ कि पश्चिम के कैथोलिकों ने इस्लाम का सफाया कर दिया और स्पेन में मुसलमानों की आठ सौ सालों (800 साल) की हुकूमत को ख़त्म करते हुए पूरे स्पेन को जीत लिया। 

ग्रेनाडा/Grenada (घरनाता/Gharnatah) मुसलमानों का वो आखिरी किला था जो जो 1 अप्रैल को गिराया गया। उस साल से हर साल 1 अप्रैल को "अप्रैल फूल डे" मनाते हैं, इस दिन को मनाते हुए उन्होंने मुसलमानों को बेवकूफ बनाया। उन्होंने केवल घरनात की मुस्लिम फ़ौज को ही नहीं, बल्कि पूरी मुस्लिम उम्मत को बेवक़ूफ़  बनाया। 

🔴 कुछ ये भी कहते हैं की बचे हुए मुसलमान अपनी सिनाख़्त (पहचान) छुपा कर रह रहे थे यानि ईसाई बन कर। जब इस बात की खबर ईसाईयों को मिली तो उन्होंने एक मंसूबा बनाया और पूरे शहर में ऐलान करा दिया के जो मुसलमान बचे रह गए उनके लिए एक जहाज बनाई जा रही है वो फलां तारीख़ को फलां मुक़ाम पर इकट्ठा हो उन्हें सही सलामत दूसरे मुल्क पहुंचा दिया जाये गए। ये ख़बर सुन कर क़रीब 1000 मुसलमान उस जहाज में सवार हुए। मनसूबे के मुताबिक़, बीच समुन्दर में ले जाकर उस जहाज में सुराख कर दिया गया और सारे मुसलमान डूब गए। ये हादसा एक अप्रैल को पेश आया और मुसलमानो को बेवक़ूफ़ बना कर क़त्ल करने की ख़ुशी में काफ़िर ये दिन मानाने लगे।   


2. "अप्रैल फूल डे" मानाने की दूसरी वजह:


अप्रैल फ़ूल की ईजाद काफ़िरो की ईजाद करदा एक रस्म हैं जब इस रस्म की खोज लगाई जाती हैं तो पता चलता हैं के ये सोलहवी सदी ईसवी के फ़्रांसिसियो के यहा तक जा निकलती हैं| उन दिनो उन के 

सोलहवी सदी ईसवी में फ़्रांसिसियो के केलेन्डर का पहला महीना अप्रैल हुआ करता था और 1564 ईसवी मे इन्होने अपना केलेन्डर बदला और जनवरी को अपना पहला महीना करार दिया। इस तब्दीली को जिन लोगो ने कबूल न किया तो इन्होने 1 अप्रैल को लोगो को अलग-अलग तरीको से बेवकूफ़ बनाया। सबसे पहले जो अप्रैल फ़ूल मनाया गया वो 1698 ईसवी का अप्रैल था और 1846 ईसवी मे 31 मार्च को एक इन्गलिश अखबार ने लिखा के कल 1 अप्रैल को एक जगह गधो का एक बहुत बड़ा मेला लग रहा है। जब बेशुमार लोग वहाँ पहुंचे तो वहाँ कुछ भी नहीं था। इस तरह सब लोगो को बेवकूफ़ बनाया गया। इससे मालूम हुआ कि ये फ़्रांसिसियो की जारी की हुई एक जाहिलाना रस्म है। 


अल्हम्दुलिल्लाह! हम "अप्रैल फूल डे" का इतिहास और इसको मनाए और न मानाने की वजूहात से वाक़िफ़ हो चुके हैं तो अब हम अहद करते है कि "हम इस जाहिलाना रस्म से खुद को दूर करेंगे।" 

हमें स्पेन के लोगों से 800 साल की हुकूमत और उनके जवाल से सबक सीखना चाहिए, और तक़वा इख़्तियार करने की जद्दोजहद में लग जाना चाहिए वरना वो दिन दूर नहीं जब काफ़िर हम पर ग़ालिब आ जायेगा और हमारा हाल भी स्पेन के मुसलामानों जैसा होगा। 

अब ज़रा इस हदीस पर भी गौर करें, क्या आप नहीं चाहते के आप गुनाह से बचें और जन्नत में आपका घर भी हो? रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, "मैं उस आदमी के लिए जन्नत के दरमियान एक घर की ज़मानत देता हूं जो जो मज़ाक में भी झूठ न बोले।" [अबू दाऊद 4800, हसन]

इसलिए हमें हमेशा झूठ बोलने से बचें, अगर किसी शख्स ने कभी झूठ बोला है तो अल्लाह तआला से पहली फुरसत में माफी मांग ले, क्योंकि कबीरा गुनाह होने की वजह से इसके लिए दिल से तौबा ज़रूरी है। झूठ बोल कर किसी शख्स को धोखा दिया गया है तो इसका गुनाह बन्दों के हक़ पर होने की वजह से और ज़्यादा बढ़ जाता है इसलिए लोगों से माफ़ी मांग लें और अल्लाह से भी मगफिरत की दुआ करें। 



Posted By: Islamic Theology


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