Kya Nabi (SAW) ne akhiri waqt mein rafaul yadain kiya tha

 

Kya Nabi (SAW) ne akhiri waqt mein rafaul yadain kiya tha

किया नबी ﷺ ने आख़िरी वक़्त तक रफ़ा यदैन किया?

रफ़ा यदैन न करने वाले हजरात को जब हम ये कहते है कि नमाज़ में रुकूअ जाते और रुकूअ से सर उठाते और तीसरी रकअत के लिए उठते वक़्त भी रफ़ा यदैन किया करो क्योंकि नबी ﷺ की वाज़ेह हदीस है (बुख़ारी, मुस्लिम, अबू दाऊद, इब्ने माजह, निसाई) एक नहीं दर्जनों किताबों में हदीस नक़ल हुई है कि नबी ﷺ इन 3 मुक़ामात पर भी रफ़ा यदैन किया करते थे।

तो न मानने वालो का एक पैंतरा इस्तेमाल करते हुए कहते हैं कि क्या नबी ﷺने रफ़ा यदैन वफ़ात तक किया? 


1. पहला जवाब

(i) पहले हम इन साहब को इल्ज़ामी जवाब में कहते हैं, क्या नमाज़ में दाएं हाथ को बाए हाथ पर रखना सुन्नत है?

वो कहते "जी हां" है।

कहा बांधना है इसपर बहस बाद में कम अज़ कम हम दोनों का मुश्तर्का (similar) अमल है की नमाज़ में हाथ बांधा जाए। (अल्हमदुलिल्लाह) [बुखारी :740]


(ii) अब उनसे मेरा दूसरा सवाल क्या नबी ﷺ ने वफ़ात तक नमाज़ हाथ बांध कर पढ़ते थे?

बहुत ही धड़ल्ले से कहेंगे, "जी हां क्यों नहीं एकदम नबी ﷺ ने अपनी वफ़ात तक हाथ बांध कर नमाज़ पढ़ें थें।"

(iii) अब आख़िरी सवाल उनसे मुझे कोई एक हदीस ऐसी दिखाओ जिसमें है कि नबी ﷺ वफ़ात तक नमाज़ हाथ बांध कर पढ़े हों?

तो जो जवाब उनका होगा वही हमारा। नबी ﷺ की कोई भी सुन्नत ता क़यामत तक लिए होती है जब तक की नबी ﷺ ख़ुद उस अमल को खुद से मंसूख न कर दे।


मिसाल: नबी ﷺ की हदीस है, "मैं तुम्हें पहले क़ब्रों पर जाने को मना करता था अब इजाज़त देता हूं तुम क़ब्रों पर जाया करो ताकि तुम्हें मौत याद आए।" [तिर्मिज़ी 1054]

जैसा की इस हदीस से वाज़ेह हुआ की जिस चीज़ को नबी ﷺ ने पहले मना किया फिर उसी अमल को साफ़ वाज़ेह तौर पर इजाज़त दे दी। लेकिन रफ़ा यदैन न करने वाले हजरात के पास ऐसी कोई हदीस नहीं है जहां रुकूअ जाते रुकूअ से सर उठाते और तीसरी रकअत के लिए खड़े होते इन अल्फाज़ के साथ रफ़ा यदैन मना हो। 


नोट: हमारा एक आख़िरी सवाल चलो आप में और हममें मुश्तर्का (similar) अमल नमाज़ के शुरू में रफ़ा यदैन करना तो है बस मुझे किसी एक सहीह हदीस से दिखा दे इन अल्फ़ाज़ के साथ की नबी ﷺ ने अपनी वफ़ात तक पहला रफ़ा दैन किया।

इंशाल्लाह जिस हदीस में ये अल्फ़ाज़ दिखायेंगे उसी हदीस में रुकूअ जाते रुकूअ से सर उठाते और तीसरी रकअत के बाद खड़े होते वक़्त का भी रफ़ा यदैन का ज़िक्र मौजूद होगा। (अल्हमदुलिल्लाह) 


2. दूसरा जवाब

एक मिसाल से समझाता हूं एक शख़्स का नाम अब्दुल्लाह है उनके मां बाप ने उनका नाम अब्दुल्लाह रखा यही नाम उनका लोगों में मशहूर था। कई सालों बाद उस अब्दुल्लाह का इंतक़ाल हो गया। उसके इंतक़ाल के कुछ दिन बाद एक शख्स ने आकर ये दावा किया की असल में उस अब्दुल्लाह ने अपनी वफ़ात से कुछ दिन या कुछ महीनों पहले अपना नाम बदल लिया था और अपना नाम ज़ैद रख लिया था।

अब मेरा सवाल ये है की लोगों को पता था की अब्दुल्लाह उसका नाम था। एक शख्स ने आकर दावा किया कि नहीं उसने अपना नाम बदल लिया था तो जिसने दावा किया दलील उसके ज़िम्मे है या हमारे?

ठीक उसी तरह नबी ﷺ ने रफ़ा यदैन किया अब जिन हज़रात ने ये दावा किया दलील उनके ज़िम्मे है कि वो दिखाए नबी ﷺ मे रुकूअ से सर उठाते और तीसरी रकअत के बाद खड़े होते तो इन जगहों पर रफ़ा यदैन छोड़ दिया था। वाज़ेह अल्फ़ाज़ के साथ जोकि था क़यामत तक नहीं दिखा सकते। (इंशाल्लाह)

लेकिन इंशाल्लाह हम ये साबित करेंगे की नबी ﷺ ने अपनी वफ़ात तक उन जगहों पर रफ़ा यदैन किए थे जो दर्जा ज़ेल बयां होगी। (बि हमदेही तआला)


3. तीसरा जवाब

(i) पहली हदीस

अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) कहते है, "नबी ﷺ ने अपनी वफ़ात के आख़िरी दिनों में हमें ईशा की नमाज़ पढ़ी।" [बुखारी :116]


नोट: हर बयां करदा हदीस में सहाबी का नाम याद रहे अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) ऊपर बयां करदा हदीस से वाज़ेह है की अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) ने नबी ﷺ साथ आख़िरी वक़्त तक नमाज़ पढ़ी और नबी ﷺ को नमाज़ पढ़ते हुए देखा।


(ii) अब दूसरी हदीस

अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) बयां करते है, "मैंने नबी ﷺ को देखा की आप नमाज़ तकबीर तहरीमा से शुरू करते और तकबीर कहते और अपने हाथों को कंधो तक उठा कर ले जाते यानि रफ़ा यदैन करते और जब रुकूअ के लिए जाते तब भी वैसा ही करते यानि रफ़ा यदैन करते और सज्दों से सर उठाते तो ऐसा न करते।" [बुखारी :738]


नोट: ऊपर बयां करदा हदीस में सहाबी का नाम याद रहे अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) उन्हों ने नबी ﷺ को नमाज़ पर रफ़ा यदैन किया करते थे। (अल्हमदुलिल्लाह)


अब आते है आख़िरी हदीस के तरफ;

नाफ़े (रहमतुल्लाह अलैह) कहते हैं कि मैंने देखा की जब अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) जब नमाज़ में दाख़िल होते तो पहले तकबीर तहरीमा कहते और साथ ही रफ़ा यदैन करते और जब रुकूअ करते तब भी रफ़ा यदैन करते और जब रूकूअ से सर उठाते तो भी रफ़ा यदैन करते और जब क़ाअदा अव्वल से उठते तो भी रफ़ा यदैन करते और ये अमल अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) नबी ﷺ तक पहुंचाते थे यानि नबी ﷺ भी इसी तरह नमाज़ पढ़ते।" [बुखारी 739]

अल्लाह हू अकबर


ऊपर तीनों हदीसो में वाज़ेह हो गया की अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) नबी ﷺ के साथ नमाज़ पढ़ते तो नबी ﷺ को रफ़ा यदैन करते देखते। अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) नबी ﷺ के साथ वफ़ात से कुछ दिन क़ब्ल यानि आख़िरी वक़्त में भी उनके साथ नमाज़ पढ़ा और फिर आप ﷺ के वफ़ात के बाद एक ताबई इमाम नाफ़े (रहमतुल्लाह अलैह) जो इब्ने उमर (रज़ी०) की ग़ुलामी में नबी ﷺ की वफ़ात के 40 साल बाद आए उन्हों ने अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज़ी०) को रफ़ा यदैन करते हुए देखा नमाज़ के शुरू में ररुकूअ जाते वक़्त रुकूअ से सर उठाते वक़्त और तीसरी रकअत के बाद खड़े होते वक़्त।


अल हमदुलिल्लाह साबित हुआ की नबी ﷺ ने अपनी वफ़ात तक रफ़ा यदैन किया था और ये सुन्नत हमेशा तक क़ायम रहेगी। (इंशाल्लाह)


अल्लाह करोड़ों रहमतें नाज़िल करे इमाम बुख़ारी (रहमतुल्लाह अलैह) पर उन्हों ने भी एक बहुत ज़बरदस्त चीज़ नक़ल की जो बहुत से लोगों के नज़र में न आई अपनी किताब सहीह अल बुख़ारी इब्ने उमर (रज़ी०) से ही पहले मरफ़ूअ हदीस लाई नबी ﷺ की अमल रफ़ा यदैन का उन मुक़ामात पर, फिर जिस सहाबी ने यही मरफूह हदीस बयां की उन्हीं का अमल आप ﷺ के वफ़ात के बाद भी वही अमल यानि रफ़ा यदैन करने का हदीस लाए [हदीस 739]। उन्होंने भी यही बताना चाहा की नबी ﷺ ने अपनी आख़िरी वक्त तक रफ़ा यदैन किया। (अलहमदुलिल्ला)


अल्लाह हम सबको नबी ﷺ की सुन्नत से मुहब्बत करने की और अमल करने की तौफ़ीक़ दे। (आमीन या रब्बिल आलमीन)


आपका दीनी भाई 
सरफराज़ आलम

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