Namaz: sukoon e zindagi

Namaz ki ahmiyat (sukoon e zindagi)


नमाज़ सुकून ए ज़िन्दगी

पूरी दुनिया की दौलत आपके क़दमो में लाकर डाल दीं जाए बंगला, कार, बीवी, बच्चे माँ बाप सब आपके पास है लेकिन जो दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है वो हमारे पास नहीं है वो है "नमाज़"

  • कोई इंसान बिज़नेस के पीछे भागता है। 
  • कोई औरत /मर्द के पीछे भागते हैं। 
  • कोई औलाद की मुहब्बत में मुबालिग़ा (ग़ुलू) करता है। 

इन सब में बंदा इतना ख़ुश हो जाता है इतनी मुहब्बत इन चीज़ों और ज़ात से कर लेता है गोया सोचता है पूरी ज़िन्दगी का सुकून इसी मरहले में है लेकिन ये सच नहीं है बल्कि ये एक मकड़ी का जाल है जो उसने अपनी ख़्वाहिशात से बुना है जो की एक झटके में टूट जायेगा। असल सुकून रब के ज़िक्र में है। 

अल्लाह फ़रमाता है,

الَّذِينَ آمَنُوا وَتَطْمَئِنُّ قُلُوبُهُمْ بِذِكْرِ اللَّهِ ألا بِذِكْرِ اللَّهِ تَطْمَئِنُّ الْقُلُوبُ
 "जो लोग ईमान लाए अल्लाह के ज़िक्र से इत्मीनान पाते हैं और सुकून अल्लाह के ज़िक्र में है।" 
[सूरह रअद 28]

अल्लाह तआला ने सुकून सिर्फ़ अपने ज़िक्र में रखा हैं यक़ीन जानो ये तमाम दुनिया की मुहब्बतें और सुकून पा ले लेकिन जो सुकून अल्लाह के ज़िक्र में मिलता हैं पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। 

जहाँ तक मख़लूक़ से मुहब्बत की बात है तो अगर वो मुहब्बत अल्लाह की जारी करदा हुदूद के दायरे में रही तो ठीक अगर अल्लाह के क़ानून से आगे हुई तो अल्लाह तआला वो मुहब्बत वो नेअमत सब छीन लेता है क्यूंकि असल मुहब्बत वही हैं जो अल्लाह से की जाए मोमिन भी वही हैं जो अल्लाह से सबसे ज़्यादा मुहब्बत हैं। 

अल्लाह ताला फ़रमाता है,

ऐ नबी! लोगों से कह दो कि “अगर तुम हक़ीक़त में अल्लाह से *मुहब्बत* रखते हो तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा और तुम्हारी ग़लतियों को माफ़ कर देगा। वो बड़ा माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।”
[सूरह इमरान 31]

दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है,

ऐ नबी ! "कह दो कि अगर तुम्हारे बाप और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियाँ और तुम्हारे रिश्ते-नातेदार और तुम्हारे वो माल जो तुमने कमाए हैं, और तुम्हारे वो कारोबार जिनके ठंडे पड़ जाने का तुमको डर है और तुम्हारे वो घर जो तुमको पसन्द हैं, तुमको अल्लाह और उसके रसूल और उसकी राह में जिहाद से ज़्यादा प्यारे हैं तो इन्तिज़ार करो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला तुम्हारे सामने ले आए, और अल्लाह फ़ासिक़ लोगों [ नाफ़रमानों] की रहनुमाई नहीं किया करता।"
[सूरह तौबा 24]

मज़कूरा आयत से पता चला की अल्लाह से मुहब्बत करने का मेआर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इत्तेबाअ है तो अब ज़रा सोचें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इत्तेबाअ में सबसे अहम फ़रीज़ा नमाज़ नहीं तो क्या है? क्या कभी हमारे नबी अलैहिस्सलाम ने नमाज़ को तर्क किया? क्या किसी सहाबी ने नमाज़ को तर्क किया? तो हमें सोचना चाहिए हम कहाँ जा रहे हैं अल्लाह की नफ़रमानी करके दुनिया में सुकून देख रहें हैं हालांकि सुकून सिर्फ़ रब की रज़ामंदी में हैं

आज इंसान इतना गुनाह कर लेता है फिर डरता हैं मरने से कि अगर मरा तो क्या होगा। ख़ौफ़ दिल की बेचैनी का नाम है जब इंसान हराम काम करता है तो उसका दिल ख़ौफ़ से लरज़ जाता है। 

इसी तरह जिस काम को अल्लाह ने छोड़ने का हुक्म दिया है उसे छोड़ने से भी दिल बेचैन होता है, इसी का नाम अल्लाह का ख़ौफ़ है एक मोमिन को यह ख़ौफ़ करना भी चाहिए। क्योंकि अल्लाह का डर ही इबादत है और तौहीद में शामिल है। 

अल्लाह तआला फ़रमाता है,

اتقوا : فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُمْ
"जितनी ताक़त रखते हैं अल्लाह से डरो।" 
[सुरह तगाबुन 16]


डर की दो क़िस्में हैं-

 1. डरने का मुस्तहिक़ सिर्फ़ अल्लाह तआला है इसके अलावा किसी और से डरना अल्लाह के सामने शिर्क करना है। 

2. बंदे से डरकर दीन पर अमल करना छोड़ दें। मिसाल अगर आप कोई क़ुरआन या हदीस पर अमल कर रहे हैं और लोगो के डर से अमल करना छोड़ दें ये गुनाह है। 

अबू-ज़र कहते हैं कि रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया,

"जहाँ भी रहो अल्लाह से डरो; बुराई के बाद (जो तुम से हो जाए) भलाई करो जो बुराई को मिटा दे और लोगों के साथ अच्छे अख़लाक़ से पेश आओ।" 
[तिरमिज़ी 1987]

रहा ये की मौत से डर लगता है तो इस डर की वजह है हमारे गुनाह। हम यह सोचते हैं कि हमने इतने गुनाह किए हैं मरने के बाद हमारा क्या होगा। लेकिन याद रहे मौत को याद करना भी हमारी ज़िम्मेदारी है उसके साथ साथ अल्लाह से तौबा की जाए कि अल्लाह जो मैंने गुनाह किए हैं मरने से पहले उनको माफ़ फरमा दे बेशक अल्लाह तआला गुनाह माफ़ कर देगा। 

अगर आप ये सोचते हैं की मेरा क्या होगा मरने के बाद तो याद रहे आप तौबा करें अल्लाह के आगे रोयें और कहें या अल्लाह जो गलतियां हुई हैं उसको माफ़ कर दे इंशाअल्लाह जब रिश्ता अल्लाह से हो जाएगा तो सुकून महसूस करेंगी। साथ साथ अल्लाह ज़िक्र भी करें क्योंकि अल्लाह का जिक्र दिल को सुकून देता है। अल्लाह माफ़ कर देगा एक हदीस देखें,

मैंने रसूलुल्लाह (सल्ल०) को फ़रमाते हुए सुना, 

"अल्लाह कहता है: ऐ आदम के बेटे! जब तक तू मुझसे दुआएँ करता रहेगा और मुझसे अपनी उम्मीदें वाबस्ता रखेगा मैं तुझे बख़्शता रहूँगा चाहे तेरे गुनाह किसी भी दर्जे पर पहुँचे हुए हों मुझे किसी बात की परवाह और डर नहीं है। ऐ आदम के बेटे! अगर तेरे गुनाह आसमान को छूने लगें फिर तू मुझसे मग़फ़िरत तलब करने लगे तो मैं तुझे बख़्श दूँगा और मुझे किसी बात की परवाह न होगी। ऐ आदम के बेटे! अगर तू ज़मीन के बराबर भी गुनाह कर बैठे और फिर मुझसे (मग़फ़िरत तलब करने के लिये) मिले लेकिन मेरे साथ किसी तरह का शिर्क न किया हो तो मैं तेरे पास उसके बराबर मग़फ़िरत ले कर आऊँगा (और तुझे बख़्श दूँगा)।"
[तिरमिज़ी 3540]


जुड़े रहें इन शा अल्लाह "नमाज़ गुनाहो का कफ़्फ़ारा हैं". पर वज़ाहत की कोशिश करेंगे। 


आपका दीनी भाई 
मुहम्मद

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