नमाज़ की अहमियत (इस्लाम का रुकन)
नमाज़
अरबी में नमाज़ को "सलात (صلاۃ)" कहते हैं। सलात के कई माना क़ुरआन मजीद में आएं हैं दुआ, दुरुद, सलाम, इत्यादि। सलात का लफ़्ज़ निकला है "सिलाह" से जिसका माना होता है "तअल्लुक़" यानी बंदा इस नमाज़ के ज़रिये से अल्लाह तआला से अपना तअल्लुक़ बना लेता है।
दूसरा माना उलेमा ने ये बयान किया है सलात का लफ़्ज़ निकला है "सलिया यसला" से जिसका माना होता है "एक तेढ़ा बाँस को आग में डालकर सीधा करना" यानी एक इंसान का किरदार, आमाल, अक़वाल, स्टाइल,, शमाईल, बातें बुरी हुई तो इस नमाज़ की वजह से उस इंसान की इस्लाह हो जाएगी या में यूँ कहु वो बंदा किरदार, आमाल, अक़वाल, स्टाइल, स्माइल, बातों में टेढ़ा था उसको नमाज़ ने सीधा कर दिया।
हम सबको को ये पता चल गया की नमाज़ का माना मतलब क्या है तो चलिए देखते हैं अल्लाह तआला क़ुरआन में नमाज़ के फ़र्ज़ होने को क्या कहता है?
क़ुरआन में नमाज़ की आहमियत
अल्लाह तआला फ़रमाता है,
इस आयत में अल्लाह ने नमाज़ की अहमियत बताई है। हर ईमान वाले पर नमाज़ का पढ़ना लाज़िम बताया गया है आइये एक और आयत देखे,
अल्लाह तआला फ़रमाता है,
अल्लाह तआला ने इसी आयत में वाज़ेह किया है की नमाज़ हर मोमिन पर फ़र्ज़ है। दूसरी बात ये पता चली कि नमाज़ अपने अपने वक़्तों में फ़र्ज़ है।
जब मुस्लिम इंसान बालिग़ हो जाता है उस पर ये क़ुरआन का हुक्म फ़र्ज़ हो जाता है की वो नमाज़ पढ़े। हम जानते हैं कि एक कितना ही बड़ा गुनहगार क्यों ना हो, कितना ही बड़ा शराबी क्यों ना हो ज़ब उसे कहा जाए की सूअर का गोश्त खा ले तुझे एक लाख रुपये दूंगा शायद ही कोई मुस्लिम उस खिंज़ीर के गोश्त को खायेगा। इल्ला माशाअल्लाह
पूछा गया क्यों नहीं खाया खिंज़ीर उसने कहा मेरे रब ने ये हरम क़रार दिया है मेरी ग़ैरत गवारा नहीं करेंगी की खिंज़ीर खाऊ। हालांकि वो है शराबी, जुवारी लेकिन इतना गुनहगार होने के बाद भी सूअर का गोश्त खाना पसंद नहीं कर रहा क्यों?
क्यूंकि उसके दिल में ख़ौफ़ तो है थोड़ा बहुत लेकिन सबसे ज़्यादा उसे अपने मज़हब ए इस्लाम से लगाव है, अल्लाह से लगाव है। उसने अल्लाह के ख़ातिर चंद पैसो के लिए खिंज़ीर नहीं खाया ये अल्लाह से मुहब्बत नहीं तो क्या है?
यानी अल्लाह से मुहब्बत होना बहुत बड़ी नेअमत है फिर चाहे वो इंसान को अल्लाह से डर कर हो या अल्लाह की ख़ातिर हो बंदा अल्लाह के क़रीब होता है।
मिसाल का मक़सद ये था की ये नमाज़ भी एक ऐसा फ़रीज़ा है कि ये अल्लाह के इतना क़रीब कर देता है की बंदा गोया अपने रब से बातें करके मेअराज जैसा अमल कर रहा हो।
ये तो अल्लाह का कलाम था अब चलते हैं हदीस में नमाज़ की क्या आहमियत आई है?
हदीस में नमाज़ की आहमियत
रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया,
एक महल है उस महल के 05 सुतून हैं जिस पर वो महल रुका हुआ है अगर एक सुतून भी महल का गिर जाए तो बतायें महल में तब्दीली आएगी या नहीं क्या महल हिल डुलने नहीं लगेगा?
ठीक उसी तरह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया इस्लाम के 05 सुतून हैं उसमे से एक नमाज़ है अब अगर कोई नमाज़ छोड़ दे तो ज़रा सोचें क्या इस्लाम में तब्दीली आएगी या नहीं??
और हमें ये जानना भी ज़रूरी है की ये नमाज़ एक ऐसा फ़र्ज़ है कि अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस फ़र्ज़ को देने के लिए आसमान पर बुलाया जिसको इसरा वल मेअराज कहते हैं।
हर फ़र्ज़ को अल्लाह ने ज़मीन पर उतारा लेकिन नमाज़ जैसा फ़र्ज़ इतना अहमियत रखता है की अल्लाह ने ख़ुद आसमान पर इसको देने के लिए बुलाया।
हदीस मुलाहिज़ा फरमाए,
तो हमने इस पोस्ट में जाना की नमाज़ का मतलब क्या है और ये फ़र्ज़ है या नहीं। इन शा अल्लाह बने रहें "नमाज़ सुकून ए ज़िन्दगी" है फिर वज़ाहत करेंगे।
मुहम्मद
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