Lailatul qadr (shab e qadr) ki nishaniya

Lailatul qadr (shab e qadr) ki nishaniya


क्या अहदीस में कुछ ऐसी अलामतें जाहिर हुई हैं जिन्हें देखकर यह अंदाजा लगाया जा सके कि आज ही लैलतुल क़द्र (शबे-क़द्र) है?

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने कुछ सहाबा को कुछ अलामतें बताई थीं, कुछ के साथ 21वीं शब को अलामत हुई तो कुछ के साथ 27वीं शब को लेकिन हमारे मुआशरे में 27वीं शब को बड़ी मजबूती के साथ पकड़ लिया गया है जबकि 21वीं शब की अलामत भी बड़ी वाज़ेह है।


अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (रज़ि०) इंशाअल्लाह कहे बग़ैर क़सम खा कर कहा: "वो सत्ताईसवीं रात ही है।"
[सहीह मुस्लिम 1785]


"एक साल नबी करीम (ﷺ) ने इन्ही दिनों में ऐतिकाफ़ किया और जब इक्कीसवीं तारीख़ की रात आई।"
[सहीह बुखारी 2027]

27वीं शब को मजबूती से पकड़ने वाले सिर्फ हम ही नहीं बल्कि रसूलुल्लाह (ﷺ) के ज़माने में भी बहुत से सहाबा (رضي الله عنهم) ने नबी करीम (ﷺ) से अपने ख़्वाब बयान किये कि लैलतुल कद्र (रमज़ान की) सत्ताइसवीं शब है। इस पर नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि,


أَرَى رُؤْيَاكُمْ قَدْ تَوَاطَأَتْ فِي الْعَشْرِ الْأَوَاخِرِ ، فَمَنْ كَانَ مُتَحَرِّيهَا فَلْيَتَحَرَّهَا مِنَ الْعَشْرِ الْأَوَاخِرِ .
"मैं देख रहा हूँ कि तुम सब के ख़्वाब रमज़ान के आख़िरी अशरे (दशक) मैं (शबे-क़द्र के होने पर) मुत्तफ़िक़ हो गए हैं। इसलिये जिसे शबे-क़द्र की तलाश हो वो रमज़ान के आख़िरी अशरे (दशक) मैं ढूँढे।"
[सहीह बुख़ारी 1158]


तो 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं शब में से कोई भी एक रात हो सकती है। सहाबा पूरी जिंदगी आखिरी अशरे में इन रातों को तलाश करते रहे और हम यह कह रहे हैं कि हम 27वीं को ही लैलतुल क़द्र मानेंगे। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, 


"शबे क़द्र को रमज़ान की आख़िरी दस रातों की ताक़ रातों में तलाश करो।" 
[सहीह बुख़ारी 813]

तो क्या हम 27वीं को पकड़ कर इस बात को साबित करना चाह रहे हैं कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हमें नहीं बताया लेकिन बाद में हमें पता चल गया? 

जब रसूलुल्लाह (ﷺ) ने वाज़ेह तौर पर कह दिया कि ताक रातों में तलाश करो तो हम कौन होते हैं 27 को शबे कद्र डिक्लेअर करने वाले। 27 भी हो सकती है लेकिन इस बात को हमें समझना चाहिए कि हमें इन पांच रातों में तलाश करना है यानी पांच रातों को जागना है और मगरिब से लेकर फ़ज्र तक इबादत करनी है ताकि हमारा रब हमसे राज़ी हो जाए और हमें हजार महीनों से ज्यादा इबादत का अजर और सवाब मिले।


لَيْلَةُ ٱلْقَدْرِ خَيْرٌۭ مِّنْ أَلْفِ شَهْرٍۢ 
"लैलतुल क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है'"
[क़ुरआन 97:3]

इस रात को हम मामूली समझ कर इसे ज़ाया ना करें बल्कि पहले से इसकी तैयारी करें और पांचों रातों को जागे जब हम पांचों रातों को जाग लेंगे तो उनमें से एक शबे कद्र है जो हमें मिल जाएगी।


लैलतुल क़द्र की निशानियों को जाने से पहले दो बहुत ही अहम बातों को जान लेना चाहिए-

1. शबे कद्र की अलामत के पीछे पड़ना और अपनी सारी कोशिश और तवज्जो उसी में लगा देना यह असलाफ (सलफ की जमा/plural) का तरीका नहीं है उनका अहम और असल तरीका यह था कि इस रात को इबादत करके हासिल करने की कोशिश किया करते थें। 

2. हमारी पूरी तवज्जो इस बात पर नहीं रहनी चाहिए कि हम किसी एक रात निशानी देख लें उस तो रात खूब इबादत करें, बाकी रातों को छोड़ दे और अलामत जाहिर ना हो तो हम दिल ना लगाए।

अगर अलामत जाहिर भी हो जाए तो यह जरूरी नहीं है कि हर इंसान अलामत को महसूस कर सके। 


मिसाल के तौर पर: एक डॉक्टर है जो चेहरा देखकर बीमारी का अंदाजा लगा लेता है और एक दूसरा डॉक्टर है जो बिना चेकअप किए कुछ नहीं बता पाता। डॉक्टर तो दोनों है जिस तरह से हम सारे के सारे इंसान हैं। इसी तरह कुछ अहले इल्म अलामतों को देखकर अंदाजा लगा लेते हैं कि आज लैलतुल कद्र है पर हम आम इंसान अंदाजा नहीं लगा सकते। 

आम लोगों की जो सारी तवज्जो होनी चाहिए वह इस पर होनी चाहिए कि वह ताक रातों में इबादत करके, अल्लाह ताला का ज़िक्र करके, दुआएं करके अपने लिए ज्यादा से ज्यादा ने नेकियां इकट्ठा करने की कोशिश करें और अपनी मगफिरत के बारे में सोचें। 


लैलतुल क़द्र की निशानियां 

लैलतुल कद्र से मुतालिक कुछ ऐसी अलामतें हैं जो अहदीस में बताई गई है-

1. मौसम खुशनुमा होता है। 


 هِيَ لَيْلَةٌ طَلْقَةٌ بَلْجَةٌ، لَا حَارَّةٌ وَلَا بَارِدَةٌ
"ये खुशगवार और रोशन रात होती है। इस में न तो ज्यादा गर्म होता है और न ही ज्यादा सर्दी होती है।" 
[सहीह इब्न खुज़ैमा 2190]  

इसका मतलब यह है कि ये रात एकदम वाज़ेह और साफ हुआ करती है। वाज़ेह और साफ होने का ताल्लुक मौसम से है। 

Lailatul qadr (shab e qadr) ki nishaniya

मिसाल के तौर पर: बरसात में मौसम साफ नहीं होता, बादल छाए होते हैं गर्मी में मौसम साफ होता है लेकिन गर्मी बहुत होती है उसी तरह सर्दी और गर्मी के बीच का जो मौसम होता है उसमें मौसम भी साफ होता है और ठंडा भी होता है तो हम यह नहीं कह सकते कि उसमें जितनी भी रातें होंगी सब लैलतुल कद्र की रात होंगी या बरसात में जितनी भी राते होंगी सब में मौसम छाए हुए होंगे तो हम उसमें कैसे पता लगाएंगे कि आज की रात लैलतुल कद्र है 


2. सूरज की पहली किरणों में तेज़ी नहीं होगी। 


 أَنَّهَا تَطْلُعُ يَوْمَئِذٍ لاَ شُعَاعَ لَهَا
"जिस रात लैलतुल क़द्र होगी उसके अगले दिन सूरज बिना किरन के निकलेगा।" 
[सहीह मुस्लिम, 1785]


الشَّمْسُ يَوْمَهَا حَمْرَاءَ ضَعِيفَةً
"लैलतुल कद्र की सुबह सूरज कमजोर होगा और लाल रंग का निकलेगा।" 
[इब्न खुज़ैमा 2192 सहीह] 

इसका मतलब यह है कि उस दिन सूरज के किरणों में तेजी नहीं होगी और इसकी वजह यह हो सकती है कि फरिश्ते जो अच्छी तादाद में आते हैं वह वापस जाते रहते हैं जिसकी वजह से सूरज की जो गर्मी होती है वह कम हो जाती है दिनों में तेजी नहीं रहती। 

शहरों में रहने वाले आदमी जो जल्दी सूरज को निकलता हुआ देख ही नहीं पाते हैं वह कैसे जान पाएंगे सूरज की किरणों में तेजी है या नहीं। 


3. चाँद पूर्ण रोशन (चमकदार) होगा।  


ليلة القدر يرتفع القمر مثل صفيحة
"जिस रात लैलतुल कद्र होगी उस रात चांद एक थाली की तरह निकलेगा।" 
[सहीह मुस्लिम 2779]


كَانَ فِيهَا فَمَرًا يَفْصَحُ كَرَاكِبَهَا
"इस रात में, चंद्रमा गोया अपने सितारों की रोशनी को मानिंद कर रहा होता है।" 
[सहीह इब्न खुज़ैमा 2190]  


लैलतुल कद्र की रात चाँद में चमक ज़्यादह होगी, साफ़ दिखेगा और तारों की रौशनी इसकी रौशनी के आगे फीकी पड़ेगी यानी रात में उजाला होगा के चीज़ें साफ़ दिखें जैसे पूर्णिमा के चाँद में होती है


 4. लैलत-उल-क़द्र वाले दिन को या रात में बारिश हो सकती है।


रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
मुझे ये रात (ख़्वाब में) दिखाई गई लेकिन फिर भुला दी गई। मैंने ये भी देखा कि उसी की सुबह को मैं कीचड़ मैं सजदा कर रहा हूँ, इसलिये तुम लोग उसे आख़िरी दस ताक़ रात में तलाश करो। चुनांचे उसी रात बारिश हुई, मस्जिद की छत चूँ कि खजूर की शाख़ से बनी थी इसलिये टपकने लगी और ख़ुद मैंने अपनी आँखों से देखा कि इक्कीसवीं की सुबह को रसूलुल्लाह (सल्ल०) की पेशानी मुबारक पर कीचड़ लगी हुई थी।
[सहीह बुखारी 813]

बारिश तो कभी भी हो सकती है अगर मान ले दो ताक रातों में बारिश हो जाएगी तो हम किस रात को लैलतुल कद्र समझेंगे?


5. सुबह सादिक़ तक शैतान नहीं निकलता।


 لَا يَخْرُجُ شَيْطَانُهَا حَتَّى يُضِيءٌ فَجُرُهَا
"शैतान उस वक्त तक नहीं निकलता जब तक कि सुबह सादिक़ नहीं हो जाती।" 
[सहीह इब्न खुज़ैमा 2190]


 تَنَزَّلُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ وَٱلرُّوحُ فِيهَا بِإِذۡنِ رَبِّهِم مِّن كُلِّ أَمۡرٖ سَلَٰمٌ هِيَ حَتَّىٰ مَطۡلَعِ ٱلۡفَجۡرِ  
"फ़रिश्ते और जिब्रईल अलैहिस्सलाम अपने रब के हुक्म से तमाम मामलात को ले कर उतरते है वह भोर होने तक सलामती है"
[क़ुरआन 97:4-5]

इस रात फरिश्तों के उतरने के दो मक़्सद होते हैं- 

1. इस रात जो लोग इबादत में मशगूल होते हैं फ़रिश्ते उनके हक़ में रहमत की दुआ करते हैं।

2. अल्लाह ताला इस रात साल भर के फैसले फरिश्तों के हवाले फरमा देते हैं, ताकि वो अपने अपने वक़्त पर उनकी तामील करते रहे।


इससे हमें यह पता चलता है कि अहदीस में लैलतुल कद्र की निशानियां बताई गई है जिनमें से कुछ निशानियां रात में जाहिर होती है और कुछ रात गुज़र जाने के बाद लेकिन इसके पीछे बहुत ज़्यादा नहीं पढ़ना चाहिए। अल्लाह ताला ने अगर हम पर इसे जाहिर नहीं किया है इसे छुपा कर रखा है तो इसके पीछे उसकी हिकमत है ताक रातों का एहतमाम कर सकें, अल्लाह को राज़ी और खुश कर सकें, अपनी मग़फिरत करवा सकें।


Posted By Islamic Theology


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