Khulasa e Qur'an - Para 27 (qaala fama khatabokum)

 

Khulasa e Qur'an - Para 27 (qaala fama khatabokum)

क़ुरआन सारांश [खुलासा क़ुरआन]
सत्ताईसवां पारा - फ़मा ख़तबुकुम
[सूरह अज़ ज़ारियात से अल हदीद तक]


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
(अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है)


 पारा (27) फ़मा ख़तबुकुम


इस पारे में सात हिस्से है-

(1) सूरह (051) अज़ ज़ारियात (बाक़ी हिस्सा)
(2) सूरह (052) अत तूर मुकम्मल
(3) सूरह (053) अन नज्म मुकम्मल
(4) सूरह (054) अल क़मर मुकम्मल 
(5) सूरह (055) अर रहमान मुकम्मल
(6) सूरह (056) अल वाक़या मुकम्मल 
(7) सूरह (057) अल हदीद मुकम्मल


(1) सूरह (051) अज़ ज़ारियात (बाक़ी हिस्सा)


(i) पिछली क़ौमों पर अज़ाब

क़ौमे लूत, फ़िरऔन, उसके दरबारी और उसका दरया में डूबना, क़ौमे आद और उनपर आंधी का अज़ाब, क़ौमे समूद और उन पर बिजली और कड़क का अज़ाब, क़ौमे नूह की गुमराही, (32 से 46)


(ii) कुछ अहम बातें

◆ अल्लाह की तरफ़ दौड़ पड़ो और शिर्क से बचो, (50, 51) 

◆ एक दूसरे को नसीहत करते रहना चाहिए इस से मोमिन बंदों को फ़ायदा पहुंचता है,(55) 

◆ इंसान और जिन्नात की तख़लीक़ का मक़सद अल्लाह की इबादत है न कि माल समेटना, अल्लाह किसी का मोहताज नहीं है, वह तो ख़ुद लोगों को रिज़्क़ देने वाला है। (56 से 58)

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(2) सूरह (052) अत तूर मुकम्मल


(i) आख़िरत

आख़िरत की शहादत देने वाले कुछ तथ्यों (हक़ाएक़ व आसार) की क़सम खा कर पूरे ज़ोर के साथ यह यक़ीन दिलाया गया है क़यामत आ कर रहेगी और जब पेश आयेगी तो झुठलाने वालों का अंजाम जहन्नम होगा और तक़वा इख़्तियार करने वाले जन्नत के हक़दार होंगे। (1 से 20)


(ii) बैतूल मामूर (आबाद घर) 

इस से मुराद दुनिया का ख़ाना ए काबा भी है जो हज्ज, उमरा और ज़्यारत करने वालों से आबाद रहता है। और सातवें आसमान का वह काबा भी है जिस से मेअराज में अल्लाह के रसूल सल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को टेक लगाए हुए देखा था, उस की शान यह है कि प्रतिदिन सत्तर हजार फ़रिश्ते तवाफ़ के लिए दाख़िल होते हैं फिर कभी उनका नंबर दोबारा नहीं आता। (आयत 4, सहीह मुस्लिम 411)


(iii) क़ुरैश का रवैया और नबी को तसल्ली व नसीहत

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़ुरैश कभी काहिन, कभी मजनूं और कभी शायर कह कर लोगों को आप के ख़िलाफ़ भड़काते थे। और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बिन बुलाई आफ़त समझते थे चुनाँचे उनको जवाब देते हुए फ़रमाया गया कि आप अपने रब के फ़ज़ल से काहिन, मजनूं और शायर नहीं हैं, आप तो उनकी बातों पर सब्र करें और सुबह- शाम और रात में अल्लाह की प्रशंसा करते रहें। (29, 30 व 48, 49)


(iv) कुफ़्फ़ार को चैलेंज 

काफ़िर कहते थे कि इस क़ुरआन को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद ही घड़ लिया है तो क़ुरआन ने चैलेंज किया कि 

فَلۡيَأۡتُواْ بِحَدِيثٖ مِّثۡلِهِۦٓ إِن كَانُواْ صَٰدِقِينَ 

"अगर वह अपनी बात में सच्चे हैं ज़रा वह भी ऐसा ही कोई कलाम बना लाएं" (35)

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(3) सूरह (053) अन नज्म मुकम्मल


(i) क्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेअराज में अल्लाह को देखा 

उम्मुल मोमेनीन आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया: जो शख़्स यह दावा करता है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने रब को देखा था वह अल्लाह पर झूठ मंसूब करता है। मसरूक़ कहते हैं यह बात सुन कर में उठ बैठा और पूछा, उम्मुल मोमेनीन जल्दी न कीजिए। क्या अल्लाह ने यह नहीं फ़रमाया وَلَقَدْ رَاٰہُ بالْاُفُقِ الْمْبِیْنِ؟  

"उसने उसे रौशन उफ़क़ (क्षितिज) पर देखा" और وَلَقَدۡ رَءَاهُ نَزۡلَةً أُخۡرَىٰ؟ 

"उसने दूसरी बार नाज़िल होते देखा" उम्मुल मोमेनीन ने जवाब दिया इस उम्मत में सबसे पहले मैंने ही अल्लाह के रसूल से सवाल किया था तो उन्होंने फ़रमाया कि वह तो जिब्रील थे। मैंने उनको उनकी असल सूरत में दो बार (नबूवत के इब्तेदाई ज़माने में और मेअराज में सिदरतुल मुंतहा के पास) देखा जिसपर अल्लाह ने उनको पैदा किया है। मैंने उनको आसमान से उतरते हुए देखा कि उनकी अज़ीम हस्ती ज़मीन व आसमान के दरमियान तमाम फ़िज़ा पर छाई हुई थी। उन दो मौक़े के इलावा कभी असली सूरत में नहीं देखा। (ब हवाला सही मुस्लिम हदीस नंबर 439/किताबुल ईमान, आयत 6 से 18)


(ii) कुफ़्फ़ार के दीन की बुनियाद केवल मफ़रूज़े (परिकल्पना= hypothesis) पर क़ायम और अन्यायिक बंटवारा है 

इंसान भी क्या अजीब मख़लूक़ है कि अपने लिए तो बेटे पसंद करता है और फ़रिश्तों को अल्लाह की बेटियां कहता है। मुशरेकीन ने तीन बड़ी मूर्तियां लात, उज़्ज़ा, और मनात के नाम से बना रखी थीं और उन्हें वह ख़ुदा तक पहुंचने का वसीला समझते थे। (18 से 23)


(iii) जैसी कोशिश वैसा फल

इंसान इस दुनिया में जैसा भी अमल करेगा अल्लाह के यहां पूरा पूरा बदला मिलेगा (39)

         

(iv) अल्लाह ही तमाम कायनात (universe) का मालिक व मुख़्तार है

आख़िरी मंज़िल रब की जानिब ही है, अल्लाह ही हंसाता और रुलाता है, मौत और ज़िंदगी देता है, मर्द व औरत के नुत्फ़े को मिलाकर इंसान की तख़लीक़ करता है, मालदार बनाता और दौलत अता करता है, वही शेअरा (Dog Star) का रब है।

[शेअरा Dog Star एक सितारा है जो सूरज से 23 गुना ज़्यादा रौशन है अहले अरब का अक़ीदा था कि यह लोगों की क़िस्मत पर प्रभाव डालता है इसलिए उन्होंने इसे भी अपने माबूदों में शामिल कर लिया था] (49)

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(4) सूरह (054) अल क़मर मुकम्मल 


(i) चांद के दो टुकड़े होने का बयान

शक़्क़ुल क़मर (चांद के दो टुकड़े होना) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नबी होने की निशानी और खुला हुआ मुअजिज़ा था। यह हैरत अंगेज़ वाक़िआ इस बात का प्रमाण था कि वह क़यामत जिसके आने की ख़बर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दे रहे थे वह वास्तव में होकर रहेगी और उसका वक़्त क़रीब ही है। हिजरत से पांच साल पहले चांद के महीने की चैदहवीं तारीख़ थी, चांद अभी निकला ही था यह महाविराट वृत्त (Sphere) उनकी आंखों के सामने फटा और उसके दोनों टुकड़े अलग अलग होकर एक दूसरे से इतनी दूर चले गए थे कि एक टुकड़ा मिना पहाड़ के एक तरफ़ और दूसरा दूसरी तरफ़ नज़र आया था। फिर वह दोनों टुकड़े कुछ समय बाद आपस मे मिल भी गए थे।

इस हवाले से अवाम में एक बात मशहूर कर दी गई है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उंगली के इशारे से चांद दो टुकड़े हो गया था, और यह भी कि चांद का एक टुकड़ा आप के दामन में दाख़िल हो कर आस्तीन से निकल गया। यह बेबुनियाद बात है किसी विश्वसनीय (authentic) तारीख़ या रिवायत में ऐसा कहीं कोई ज़िक्र नहीं है। (1, 2)


(ii) क़ुरआन आसान है नसीहत हासिल करने वालों के लिए

क़ुरआन को अल्लाह ने आसान बनाया है और हमारे दरमियान यह मशहूर कर दिया गया है कि क़ुरआन आम इंसानों के लिए नहीं बल्कि सिर्फ़ उलेमा के लिए है। नतीजा यह हुआ कि लोगों ने क़ुरआन को किताबे हिदायत व नसीहत के बजाय सिर्फ़ सवाब और तावीज़ गंडों की किताब तक महदूद कर दिया। उसे ख़ूब चूमा गया, फ़ातिहा ख़ानी की गई, जुज़दान रेशमी और क़ीमती बनाये गए लेकिन उसका हक़ अदा नहीं किया गया जबकि क़ुरआन में आयत 17, 22, 32 और 40 में एक ही आयत दुहराई गई है 

وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ 

हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान बना दिया है। है कोई नसीहत हासिल करने वाला।


(iii) कुछ अहम बातें

◆ जब इंसान ज़ालिमों के दरमियान घिरा हुआ हो तो नूह अलैहिस्सलाम की तरह दुआ करे 

 رَبَّی اَنِّىْ مَغْلُوْبٌ فَانْتَصِرْ 

(मेरे रब मैं विवश हूं तू मेरी मदद कर और उनसे बदला ले। (10)

◆ प्रत्येक वस्तु एक तक़दीर के साथ क़ायम की गई है। (49)

◆ अल्लाह का हर आदेश पलक झपकने में ही लागू हो जाता है। (50)

◆ पांच क़ौमों (क़ौमे नूह, क़ौमे आद, क़ौमे समूद, क़ौमे लूत और फ़िरऔन) के करतूत और उनपर आने वाले दुनियावी अज़ाब का बयान इबरत के लिए हुआ है कि अगर किसी और ने भी वही करतूत किए तो उनका अंजाम भी उन्हीं क़ौमों जैसा होगा (51) 

◆ आख़िरत में बुरे लोगों के लिए जहन्नम और अज़ाब होगा जब कि नेक लोगों के लिए जन्नत और नेअमतें होंगी। (47,48 व 54,55)

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(5) सूरह (055) अर रहमान मुकम्मल


(i) अल्लाह की क़ुदरत, उसकी नेअमतें और करिश्मे (दुनिया में) 

मख़लूक़ पर सदैव रहम, क़ुरआन की तालीम, सूखी मिट्टी से इंसान की और आग के शोले से जिन्नात की तख़लीक़, इंसान को बयान की क़ुदरत, सूरज और चांद की तस्बीहात, सितारों और दरख़्तों का सज्दा करना, आसमान की बुलंदी, मख़लूक़ की आरामगाह ज़मीन, ज़मीन से मेवे और खुजूर, दाना और ग़ल्ला की पैदावार , पूरब और पश्चिम, आपस मे मिले हुए दो समुद्र फिर भी दोनों के बीच एक रुकावट, समुद्र में मोती और मूंगे, उसमें चलने वाली ऊंची ऊंची कश्तियाँ, आसमान और ज़मीन की तमाम मख़लूक़ात की मुहताजी वग़ैरह। (1 से 29 तक)


(ii) अल्लाह की क़ुदरत और उसकी नेअमतें और करिश्मे (आख़िरत में) 

हरे भरे घने बाग़ात, हर फल की दो क़िस्में (variety), मेवे, खुजूर और अनार , बाग़ों में फ़व्वारों की तरह उबलते हुए चश्मे, रेशम के असतर वाले फ़र्श, शर्मीली निगाहों वाली हूरें जिन्हें किसी इंसान या जिन्न ने पहले हाथ भी न लगाया होगा, हीरे और मोती, (46 से 77)


(iii) मीज़ान (न्याय का तराज़ू)

इंसान जिस सन्तुलित (balanced) काएनात में रहता है उसका पूरा सिस्टम अदल (न्याय) पर क़ायम है इसलिए इंसान को भी न्याय पर क़ायम रहना चाहिए। इस कायेनात की फ़ितरत ज़ुल्म व बे इंसाफ़ी को क़ुबूल नहीं करती, यहां एक बड़ा ज़ुल्म तो दूर की बात है तराज़ू में डंडी मार कर किसी ग्राहक के हिस्से की एक ग्राम की चीज़ भी मार लेना मीज़ान में ख़लल पैदा कर देता है। (7 से 9)


(iv) दुनिया की तमाम मख़लूक़ फ़ना (ख़त्म) होने वाली है

كُلُّ مَنْ عَلَيْهَا فَانٍ وَيَبْقَىٰ وَجْهُ رَبِّكَ ذُو الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ

जो (मख़लूक) ज़मीन पर है सब फ़ना होने वाली है। और केवल परवरदिगार की ज़ात जो अज़मत और करामत वाली है बाक़ी रहेगी। (26, 27)


(v) तुम अपने रब की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे (فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ)

अल्लाह ने इस दुनिया में इंसान को अनगिनत नेअमतें अता की हैं जिसमें कुछ का तज़किरा यहां हुआ है और आख़िरत में भी बेशुमार नेअमतें अता करेगा जिसके सामने दुनिया के नेअमतों की कोई हैसियत नहीं होगी, आख़िरत की उन नेअमतों में से कुछ का ही तज़किरा किया गया है लेकिन जिन नेअमतों का भी ज़िक्र किया है उसके बाद बार बार इस आयत "तुम अपने रब की किन किन नेअमतों, करिश्मों, क़ुदरत के अजायब, और कमालात को झुठलाओगे (فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ)" दुहराया गया है ताकि इंसान ग़ौर करे कि इन नेअमतों को एक अल्लाह के इलावा भला कौन अता कर सकता है। चुनाँचे इस 78 आयात की सूरह में कुल 31 बार यह आयत दुहराई गई है।

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(6) सूरह (056) अल वाक़या मुकम्मल 


(i) क़यामत

क़यामत कैसे क़ायम होगी उसकी हल्की सी झलक दिखाई गई है जैसे ज़मीन अचानक हिला दी जाएगी, पहाड़ चूर चूर कर दिए जाएंगे वह धूल की तरह उड़ने लगेंगे, सब कुछ समाप्त हो जाएगा। (1 से 6)


(ii) आख़िरत के दिन तीन गिरोह और उनका अंजाम

【1] अस साबेक़ून (जन्नत का अपर क्लास)

【2】असहाबुल यमीन (जन्नत का लोवर क्लास

【3】असहाबुश शिमाल (जहन्नमी लोग) (7 से 48)


(iii) सबका मालिक कौन?

◆ जो वीर्य तुम टपकाते हो उससे बच्चा बनाने वाले तुम हो या हम हैं। 

◆ वह बीज जो तुम बोते हो उनसे खेतिया उगाने वाले तुम हो या हम हैं। 

◆ यह पानी जिसे से तुम अपनी प्यास बुझाते हो उसको आसमान से नाज़िल करने वाले तुम हो या हम हैं। 

◆ यह आग जिसे तुम सुलगाते हो उसका पेड़ पैदा करने वाले तुम हो या हम हैं। (59, 64, 69, 72)


(iv) क़ुरआन को पाक लोगों के इलावा कोई छू नहीं सकता

إِنَّهُۥ لَقُرۡءَانٞ كَرِيمٞ فِي كِتَٰبٖ مَّكۡنُونٖ لَّا يَمَسُّهُۥٓ إِلَّا ٱلۡمُطَهَّرُونَ تَنزِيلٞ مِّن رَّبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ 

बेशक यह क़ुरआन बहुत इज़्ज़त वाला है। एक महफ़ूज़ किताब (लौहे महफ़ूज़) है। इसे पाक लोगों के इलावा कोई छू नहीं सकता। तमाम संसार के परवरदिगार की जानिब से नाज़िल किया हुआ है। (77 से 80) 

यहां पाक लोगों से मुराद फ़रिश्ते हैं इंसान नहीं और किताबे मकनून से मुराद लौहे महफूज़ है।


(v) मौत के समय स्वागत

अगर मरने वाला मुक़र्रेबीन में हो तो उसके लिए ख़ुशी, सर्वश्रेष्ठ रिज़्क़ और नेअमत भरी जन्नत है, अगर मरने वाला असहाबुल यमीन में से हो तो उसका स्वागत यूं होता है " सलाम है तुझे, तुम असहाबुल यमीन में से हो" और अगर मरने वाला झुठलाने वालों गुमराह लोगों में से हो तो उसके स्वागत के लिए खौलता हुआ पानी और जहन्नम की आग है। (88 से 94)

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(7) सूरह (057) अल हदीद मुकम्मल


(i) अल्लाह की सिफ़ात का बयान

अल अज़ीज़, अल हकीम, अल क़दीर, अल अव्वल, अल आख़िर, अज़ ज़ाहिर, अल बातिन, अल अलीम, अल बसीर, अर रऊफ़, अर रहीम, अल ख़बीर, अल अज़ीम, अल ग़नी, अल हमीद, अल क़वी, अल ग़फ़ूर वग़ैरह। (1 से 4, 9, 10, 24, 25, 28)


(ii) अल्लाह हमारे साथ कहाँ कहाँ होता है?

अल्लाह तुम्हारे साथ होता है जहाँ कहीं भी तुम होते हो (4)


(iii) फ़तह ए मक्का से पहले और बाद में ईमान लाने वालों में फ़र्क़

फ़तह ए मक्का से पहले जिन्होंने अपना माल ख़र्च किया और जिहाद किया उनके बराबर वह नहीं हो सकते जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और जिहाद किया। (आयत 10)


(iv) क़र्ज़े हसन

जो माल अल्लाह की राह, दीन की सुरक्षा और उसको संसार के तमाम इंसानों तक पहुंचाने हेतु ख़र्च किया जाय उसमें दिखावा या शुहरत शामिल न हो, एहसान न जताया जाय केवल उद्देश्य अल्लाह रज़ा हो तो अल्लाह ऐसे क़र्ज़ को क़र्ज़े हसन क़रार देता है। क़यामत के दिन अल्लाह तआला उसे कई गुना बढ़ा कर वापस करेंगे और अपनी तरफ़ से और भी इनआम देंगे। (11)


(v) मोमिनों के लिए नूर 

क़यामत के दिन मोमिनों को एक नूर दिया जाएगा जो उनके दाएं बायें और सामने दौड़ रहा होगा। इसकी रौशनी में वह चल रहे होंगे जबकि काफ़िर और मुनाफ़िक़ इस नूर से महरूम होंगे। (12)


(vi) दुनिया की ज़िंदगी एक धोखा है

जान रखो कि दुनिया की ज़िंदगी महज़ खेल और तमाशा और ज़ाहिरी ज़ीनत और आपस में एक दूसरे पर फ़ख्र क़रना और माल और औलाद की एक दूसरे से ज़्यादती की ख़्वाहिश है। दुनिया की ज़िंदगी की मिसाल बारिश की सी है जिस की वजह से किसानों की खेती लहलहाती और उनको ख़ुश कर देती है फिर सूख जाती है तो उसको देखता है कि पीली पड़ गई है फिर चूर चूर हो जाती है और आख़िरत में (कुफ़्फ़ार के लिए) सख़्त अज़ाब है और (मोमिनों के लिए) अल्लाह की तरफ़ से बख़्शिश और ख़ुशनूदी है और दुनियावी ज़िन्दगी तो बस धोखे का साज़ो सामान है। (आयत 20)


(vii) लोहे के फ़ायदे

लोहा से मुराद राजनीतिक और जंगी ताक़त है, इस के ज़रिए से अदल व इंसाफ़ क़ायम करना है। और हक़ व न्याय व्यवस्था से बग़ावत करने वालों को सज़ा देना है। (25)

  

(viii) रुहबानियत (monasticism) 

रुहबानियत से मुराद किसी ख़ौफ़ की वजह से दुनिया छोड़कर किसी कुटी या जंगल की पनाह लेना, या दुनिया की ज़िंदगी के कष्ट से भाग कर जंगलों और पहाड़ों में पनाह लेना सबसे तअल्लुक़ तोड़कर किसी जगह तन्हा बैठ जाना। यह एक ग़ैर इस्लामी चीज़ है और यह कभी दीन हक़ में शामिल नहीं रही। (27)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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