इस्तक्बाल ए रमज़ान
استقبال رمضان
रमज़ान इस्लामी कैलेंडर का 9 वां महीना है हम इसके इस्तक्बाल की बात क्यों कर रहे हैं? इस्लामी महीने तो और भी हैं फिर रमज़ान में ऐसा क्या ख़ास है? जो इसका बा-कायदा इस्तक्बाल होता है!
हम अपने घर आने वाले किस मेहमान का इस्तक्बाल करते हैं? ज़ाहिर उसी मेहमान का इस्तक्बाल जिनकी अहमियत का हमें अंदाज़ा होता है, फिर हम सब कुछ उनके पसंद के मुताबिक़ इज़्ज़त खातिर तवाज़ो करते हैं। तो हमें पहले रमज़ान की अहमियत और उसकी फज़ीलत जान लेनी चाहिए!
रमज़ान की अहमियत और उसकी फज़ीलत
रमज़ान वो महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया, जो इन्सानों के लिये सरासर रहनुमाई है और ऐसी वाज़ेह तालीमात पर मुश्तमिल (depend)है जो सीधा रास्ता दिखानेवाली और सच और झूठ का फ़र्क़ खोलकर रख देनेवाली हैं। इसलिये अब से जो शख़्स इस महीने को पाए, उसके लिये ज़रूरी है कि इस पूरे महीने के रोज़े रखे।
क़ुरआन 2.185
रमज़ान की सबसे बड़ी फज़ीलत यही है कि इस महीने में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरआन को नाज़िल किया, सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के लिए। क़ुरआन हक़ और बातिल में फर्क करने वाली, इंसानों को सही राह दिखाने वाली और ज़िंदगी की हर शोबे में हमारी तरबियत करने वाली किताब है। और जिसने ये (क़ुरआन) को अपनी हिदायत का ज़रिए बना लिया यकींनन वो कामयाब हो गया।
इसलिये अब से जो शख़्स इस महीने को पाए, उसके लिये ज़रूरी है कि इस पूरे महीने के रोज़े रखे।
- रोज़ा इस्लाम का चौथा रुकन है और रोज़े के ज़रिए हम अपने रब की कुरबत और उसका तक्वा हासिल कर सकते हैं।
रमज़ान का root word (رمضاء या رَمَضٌ)
- अहले इल्म रमज़ान के कई मायने (meanings) बताते हैं जैसे: इसका लफ्ज़ी माना, सख्त गर्मी और तपिश है। क्योंकि रोज़ेदार भूख प्यास की शिद्दत महसूस करता है।
- एक मायना जला देना ख़त्म कर देना, यानि बंदा रोज़े की हालत में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का तकवा इख्तियार करके ख़ुद को गुनाहों से रोकता और पाक कर लेता है।
- शरयी मायना रमज़ान वो महीना है जिसमें अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपनी एक इबादत (रोज़ा) को फर्ज़ बताया है। रोज़ा हम कभी भी रख सकते हैं लेकिन फर्ज़ सिर्फ़ रमज़ान के रोज़े हैं।
रोज़ा जिसे अरबी में (سوم) कहते हैं जिसका मतलब होता है ठहर जाना, यानि उन सब चीज़ों से जिससे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने कहा है।
रमज़ान की अहमियत और उसकी फज़ीलत का अंदाज़ा अब हो गया होगा मज़ीद ये कि अल्लाह रमज़ान में रोज़े क्यों फर्ज़ किए?
क़ुरआन और रोज़े का एक दूसरे से बहुत गहरा ताल्लुक़ है रोज़े को अल्लाह ने रमज़ान में फर्ज़ किया और क़ुरआन को रमाज़न में नाज़िल किया। क़ुरआन से हम तक़वा की तालीम हासिल करते हैं और रोज़े के ज़रिए तक़वा हासिल होता है।
मिसाल से समझते हैं रोज़े के ज़रिए कैसे तक़वा पैदा होता है;
जैसे हर गाड़ी/मशीन को सर्विसिंग की ज़रूरत पड़ती है हमारा जिस्म भी एक मशीन के मानिंद है जिसे साल में एक बार सर्विसिंग की ज़रूरत होती है। और अक्सर लोग साल भर यूं ही बेरवां दवां ज़िंदगी जीते हैं, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमारा खालिक है तो उसे पता है, इंसानों की सर्विसिंग कब होनी चाहिए?
रोज़ा गुनाहों और जहन्नुम की ढाल
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
रोज़ा गुनाहों और जहन्नुम की आग से बचाने वाली एक ढाल है।
सहीह बुखारी: 1904
रोज़ा के ज़रिए बंदा अपने रब का तक़वा हासिल करता है क्योंकि रोज़ा वो इबादत जिसका बारहे रास्त ताल्लुक़ रब से होता है यानि वो अल्लाह के हुक्म से तन्हाईयों में भी उन चीज़ों से भी दूर रहता है जो जायज़ हैं हत्ता कि उसके नफ्स को क्यों ना उसकी ख्वाहिश हो, उसे पता होता है कोई नहीं देख रहा है लेकिन उस तन्हाई में उसका ये यकींन, हमारा रब देख रहा है। यही ही तक़वा है।
अल्लाह की राह में एक दिन का रोज़ा रखने की फज़ीलत
नबी करीम ﷺ ने फरमाया:
जिसने अल्लाह की राह में एक दिन का रोज़ा रखा, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उसके चेहरे को (जहन्नुम की) आग से सत्तर साल के फासले तक दूर कर देता है।
सहीह मुस्लिम:1153
एक रोज़े पर सत्तर साल के फैसले पर कर देगा, और आखिरत में एक दिन 1000 साल के बराबर है। यानि जो रोज़ेदार होंगे वो जहन्नुम से 70 साल की दूरी पर होंगे और उस तक जहन्नुम की तपिश नहीं पहुंचेगी।
(अल्लाह ही बेहतर जनता है)
रोज़ा गुनाहों का कफ्फारा
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: इंसान के लिए उसके बाल, बच्चे उसके माल और उसके पड़ोसी फितना (आजमाइश और इम्तेहान) है जिसका कफ्फारा (जिससे गुनाह माफ हो जाते है) नमाज़, सदका और रोज़ा बन जाता है।
सहीह बुखारी:1895
एक रमज़ान दुसरे रमज़ान के दरमियान के बीच हुए छोटे छोटे गुनाहों का कफ्फारा बन जाता है लेकिन बड़े गुनाहों के लिए तौबा ज़रूरी है।
रोज़ा सिर्फ़ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के लिए ख़ास
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
इब्ने आदम (नेक) अमल को कई बढा दिया जाएगा, एक नेकी का दस से सात सौ गुना तक अर्ज मिलेगा।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फ़रमाया:
रोज़े के अलावा क्योंकि रोज़ा ये मेरे लिए किया गया है और मैं इसका अर्ज दूंगा, क्यों जा शख्स मेरी खातिर अपनी शहवत और खाना छोड़ देता है।
सहीह मुस्लिम:1151
रोज़े के अर्ज का अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने कोई हिसाब नहीं बताया है यानि उसे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने ख़ास रखा लेकिन रिवायात से पता चला है!
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने रोज़ेदार के बहुत से अज्र रखा है
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: जन्नत के आठ दरवाज़े हैं और इनमें से एक दरवाज़े का नाम रइय्यान है। जिससे दाखिल होने वाले सिर्फ़ रोज़ेदार होंगे। (सहीह बुखारी:3257)
जन्नत में बाक़ी सभी दरवाजों का नाम उसके अमल पर है लेकिन (रइय्यान - सैराब, यानि जब बंदा रोज़ा रख कर प्यास की शिद्दत को महसूस करता है) ये नतीजे पर है। जब रोज़ेदार उस दरवाज़े से दाखिला होंगे तो उन्हें एक मशरूब (drink) पिलाया जाएगा जिससे उन्हें कभी प्यास नहीं महसूस होगी।
क्या रइय्यान सिर्फ़ फ़र्ज़ रोज़ा रखने वालों के लिए ख़ास है?
नहीं! रमज़ान का रोज़ा तो फ़र्ज़ है ही लेकिन ये उन लोगों के लिए ख़ास होगा जा फ़र्ज़ के अलावा नफ्ली रोजो का भी एहतेमाम करते हैं।
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फ़रमाया: रोज़ेदार के लिए खुशी के दो मौक़े हैं, एक इफ्तार करते वक्त खुशी और दूसरा जब वो अपने मिलेगा और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के नज़दीक रोज़ेदार के मुंह बू आखिरत में मुश्क से ज़्यादा पसंद है। (सहीह मुस्लिम:1151)
रोज़ा और क़ुरआन कयामत के दिन बंदे की सिफ़ारिश करेंगे
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
रोज़ा और क़ुरआन क़यामत के दिन बंदे की सिफ़ारिश करेंगे रोज़ा कहेगा ऐ मेरे रब! मैंने उसे दिन में खाने पीने और शहवत के काम से रोके रखा था लिहाज़ा उसके बारे में मेरी शफाअत क़ुबूल फरमां। क़ुरआन कहेगा ऐ मेरे रब! मैंने उसे रात में सोने से रोका रखा था लिहाज़ा उसके बारे में मेरी शफाअत क़ुबूल फरमां। नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उन दोनों की सिफ़ारिश क़ुबूल फरमाएगा।(मिश्कात:1963)
रोज़े और क़ुरआन के ताल्लुक़ को हमें अपने लिए नफाबक्श बनाना चाहिए।
To be continue..........
By अहमद बज़्मी
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