Khulasa e Qur'an - Para 8 (walao annana) | Surah al anaam-al aeyraaf

 Khulasa e Qur'an - Para 8 (walao annana) | Surah al anaam-al aeyraaf

क़ुरआन सारांश [खुलासा क़ुरआन]
आठवां पारा - सयक़ूल
[सूरह अल अनआम-अल आराफ़]


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
(अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है)


पारा (08) व लौ अन्नना


 इस पारे में दो हिस्से हैँ-

(1) सूरह अल अनआम का बाक़ी हिस्सा
(2) सूरह अल आराफ़ का इब्तेदाई हिस्सा


(1) सूरह (006) अल अनआम का बाक़ी हिस्सा 


(i) रसूल की तसल्ली

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तसल्ली दी गई है, "ये लोग ज़िद्दी हैं, वह चमत्कार (miracle معجزہ) की मांग करते रहते हैं हालांकि अगर मुर्दे भी अपनी क़बरो से उठ कर उनसे बात करें या संसार की तमाम वस्तुएं उनकी ऑखों के सामने हाज़िर कर दी जाएं फिर भी यह विश्वास नहीं करेंगे, कुरआन के चमत्कार ईमान रखने वालों के लिए काफ़ी है। (111)


(ii) मुशरिकों के अजीब रस्मो रिवाज

◆ यह लोग चौपायों में अल्लाह तआला और जिन को अल्लाह के साथ साझी ठहराते हैं उनका हिस्सा अलग अलग कर देते हैं, शरीको के हिस्से को अल्लाह तआला के हिस्से में मिलने नहीं देते लेकिन अगर अल्लाह तआला का हिस्सा शरीक़ों के हिस्से में मिल जाता तो इसे बुरा नही समझते थे। (135)

◆ मुफ़लिसी या आर यानी बे इज़्ज़ती के खौफ़ से लड़कियों को जान से मार देते थे। (आयत 136) (आज की मुहज़्ज़ब (Civilized) दुनिया में औरत के पेट मे ही मार दिया जाता जाता है। केवल अपने देश भारत में हर साल लगभग दस लाख से ज़्यादा बच्चियों का गर्भपात (Abortion) के ज़रिए क़त्ल कर दिया जाता है)

◆ चौपायों की तीन क़िस्में कर रखी थीं

एक वह जो उनके पेशवाओं (उलेमाओं) के लिए मख़सूस थीं। दूसरे वह जिनपर सवारी करना मना था। तीसरे वह जिन्हें अल्लाह के इलावा किसी और के नाम पर ज़बह किया जाता था। (138)

◆ जानवर के पेट मे जो बच्चा पल रहा होता उसे अपने लिए हलाल और औरतों के लिए हराम समझते लेकिन अगर वह बच्चा मुर्दा होता तो मर्द व औरत दोनों उसमें शरीक होते। (139)


(iii) अल्लाह तआला की नेअमतें

ज़िंदगी, खेतियाँ, चौपाए, बाग़ात (खुजूर, अनार,ज़ैतून वग़ैरह (141)


(iv) सिराते मुस्तक़ीम क्या है?

1, अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराया जाय। 
2, माता पिता के साथ अच्छा बरताव (व्यवहार) 
3, अपने बच्चों को ग़रीबी और मुफ़लिसी के डर से क़त्ल न किया जाय। 
4, बुरे और गंदे कामों से दूर रहें। 
5, किसी को नाहक़ क़त्ल न किया जाय। 
6, यतीमों का मॉल न खाया जाए न दबाया जाय। 
7, नाप तौल में पूरा पूरा इंसाफ़ के साथ दिया और लिया जाय। 
8, बात करते वक़्त इंसाफ़ से काम लिया जाय। 
9, अल्लाह तआला के हक़ को पूरा किया जाय। 
10, सिराते मुस्तकीम पर ही चला जाय। 

 (151, 152)


(v) कुछ अहम बातें

(i) शैतान इन्सान और जिन्नात दोनों में होते हैं और जो नबी का विरोध करे वह शैतान है। (112, 113) 
(ii) जिन जानवरों पर ज़बह करते हुए अल्लाह का नाम लिया जाय सिर्फ़ उसे ही खाना हलाल है 119 से 121) 
(iii) खुले छुपे दोनों गुनाहों से बचें (151) 
(iv) अल्लाह जिसे हिदायत देना चाहता है उसका सीना इस्लाम के लिए खोल देता है। (125)

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(2) सूरह (007) अल आराफ़ के इब्तेदाई हिस्सा


(i) अल्लाह तआला की नेअमतें

क़ुरआन हक़ीम, ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाया जाना, इंसानों की तख़लीक़, इन्सानों को अफ़ज़ल तरीन मख़लूक़ बनाया कि इसे फ़रिश्तों से सज्दा कराया। (2, 10, 11)


(ii) चार वाणियां (निदायें)

इस सूरह में अल्लाह तआला ने इंसान को चार बार या बनी आदम يَا بَنِي آدَمَ कह कर पुकारा है। पहली तीन वाणियों में लिबास का ज़िक्र है। इस मामले में अल्लाह तआला ने मुश्रेकीन (बहुदेववादियों) के नंगे होकर तवाफ़ करने के दावे को अस्वीकार कर दिया कि ऐसा तरीक़ा ख़ुद उनका अपना ईजाद किया हुआ है। चौथी वाणी में रसूल की पैरवी करने का हुक्म दिया गया है। (26 से 28, 35)


(iii) हराम क़रार दिया गया

1. चौराहे या बंद कमरे में की गई गंदगी और बेशर्मी, 
2. गुनाह, 
3. सरकशी, 
4. शिर्क 

(आयत 33)


(iv) अल्लाह तआला की क़ुदरत के दलाएल (तर्क)

1, बुलंद व बाला (बहुत ऊंचाई वाला) आसमान. 
2, अति विशाल और अति व्यापक अर्श. 
3, रात और दिन का निज़ाम (system) 
4, चमकते सूरज, चांद और सितारे. 
5, हवाएं और बादल. 
6, मुर्दा पड़ी हुई ज़मीन का दोबारा ज़िंदा होना, 
7, ज़मीन से निकलने वाली वनस्पति (Plants) 

(54 से 57)


(v) पांच क़ौमों के क़िस्से

1. क़ौमे नूह, 
2.  क़ौमे आद, 
3. क़ौमे समूद, 
4. क़ौमे लूत, 
5. क़ौमे शुऐब


अंबिया के क़िस्से बयान करने की हिकमतें

1, रसुल को तसल्ली, 2, अच्छे और बुरे लोगों के अंजाम की ख़बर देना, 3, अल्लाह के यहां देर है अंधेर नहीं, 4, रिसालत की दलील कि उम्मी होने के बावजूद पिछली क़ौमों के वाक़यात बताना, 5, इंसान को इबरत व नसीहत कि कहीं आदम की तरह नस्ले आदम को भी शैतान न बहका दे।


(vi) झुठलाने वाले जन्नत में नहीं जा सकेंगे

यक़ीन जानो, जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और उनके मुक़ाबले में सरकशी की, उनके लिये आसमान के दरवाज़े हरगिज़ न खोले जाएँगे। उनका जन्नत में जाना उतना ही नामुमकिन है जितना सूई के नाके से ऊंट का गुज़रना। मुजरिमों को हमारे यहाँ ऐसा ही बदला मिला करता है। (आयत 40)


(vii) जन्नतियों और जहन्नमियोँ की बात चीत (dialogue)

जन्नती कहेंगे: "क्या तुमने अल्लाह के वादों पर यक़ीन आ गया?"
जहन्नमी इक़रार करेंगे।
जहन्नमी खाना पानी मांगेंगे, 
मगर जन्नती जवाब में उनसे कहेंगे: "अल्लाह ने काफ़िरो पर अपनी नेअमत हराम कर दी है।" 

(आयत 44)


(viii) आराफ़ वाले 

जन्नतियों और जहन्नमियोँ के बीच कुछ लोग होंगे जो असहाबुल-आराफ़ (आराफ़वाले) के नाम से पुकारे जाएंगे। यह वह लोग होंगे जिनकी ज़िन्दगी का न तो सकारात्मक पहलू ही इतना ताक़तवर होगा कि जन्नत में दाख़िल हो सकें और न नकारात्मक पहलू ही ऐसा ख़राब होगा कि दोज़ख़ में झोंक दिये जाएं लेकिन उन्हें इस बात की ख़ुशी होगी कि वह जहन्नम से बच गए। बाद में वह जन्नत में दाख़िल कर दिए जाएंगे। (आयत 46 से 48)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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