पारा-(07) व इज़ा समेऊ
इस पारे में 2 हिस्से हैं
(2) सूरह अल अनआम का इब्तेदाई हिस्सा
सूरह (005) अल माएदा का बाक़ी हिस्सा
(i) हब्शा (Ethiopia) के नसारा की तारीफ़
जब उनके सामने क़ुरआन की तिलावत की जाती है तो उसे सुन कर उनकी आंखों से आंसु टपकने लगते हैं और वह पुकार उठते हैं कि "ऐ पालनहार हमारा नाम भी गवाहों में लिख ले। (83)
(ii) हलाल व हराम के मसाएल
◆ हर चीज़ को ख़ुद से हलाल या हराम न बनाओ। (87)
◆ क़सम तोड़ने पर कफ़्फ़ारा है 10 मिस्कीनों को एक दिन का खाना खिलाना या एक ग़ुलाम आज़ाद करना अगर यह न हो सके तो फिर 3 दिन लगातार रोज़े रखना है। (89)
◆ शराब, जुआ, आस्ताने (वह जगह जहां अल्लाह के इलावा किसी और के नाम पर चढ़ावे चढ़ाये जाते हैं) और पांसा हराम हैं। इस के ज़रिए शैतान लोगों के दिलों में नफ़रत और दुश्मनी पैदा करता है। (90)
◆ अहराम की हालत में पानी के जानवर का शिकार हलाल और ख़ुश्की के जावर का शिकार हराम है और उसका कफ़्फ़ारा उसी जैसा एक जानवर देना होगा या कुछ मिस्कीनों को खाना खिलाना होगा या उसी मिक़दार में रोज़े रखने होंगे। (94, 95)
◆ हरम में दाख़िल होने वालों के लिए अमन है। (97)
◆ चार क़िस्म के जानवर मुशरिकों ने हराम कर रखे थे। बहीरा, सायबा, वसीला, हाम (103)
बहीरा: उस ऊंटनी को कहा जाता था जो पांच बार बच्चे दे चुकी हो और आख़िरी बार नर बच्चा हुआ हो उसका कान चीर कर आज़ाद छोड़ दिया जाता था, फिर न कोई उसपर सवारी करता, न दूध पिया जाता, न उसे ज़बह किया जाता, उसे हक़ था कि जहाँ चाहे चरे जिस घाट से चाहे पानी पिये।
सायबा: उस ऊंट या ऊंटनी को कहते थे जिसे किसी मन्नत के पूरा होने या किसी बीमारी से ठीक होने या किसी ख़तरा से बच जाने पर शुकराने के लिए आज़ाद कर दिया जाता था, या फिर अगर किसी ऊंटनी ने दस मादा बच्चे जन्म दिए हों उसे भी आज़ाद छोड़ दिया जाता था।
वसीला: अगर बकरी का पहला बच्चा नर होता तो वह ख़ुदाओं के नाम पर ज़बह कर दिया जाता था और अगर वह पहली बार मादा जन्म देती तो उसे अपने लिए रख लिया जाता था लेकिन अगर नर और मादा एक साथ जन्म लेते तो मादा को अपने पास रख लेते और नर को ज़बह करने के बजाय ऐसे ही ख़ुदाओं के नाम पर छोड़ दिया जाता था।
हाम: अगर किसी ऊंट का पोता सवारी के क़ाबिल हो जाता तो उस बूढ़े ऊंट को आज़ाद छोड़ दिया जाता था और अगर किसी ऊंट के नुत्फ़े से दस बच्चे पैदा हो जाते तो उसे भी आज़ादी मिल जाती थी।
(iii) ईसा अलैहिस्सलाम को दी गई निशानियां
◆ दूध पीने के दिनों में बात करना,
◆ किताब व हिकमत की तालीम,
◆ मिट्टी के परिंदे बनाना और उसमें फूंक मारने पर चिड़िया बनकर उड़ जाना,
◆ अंधे और कोढ़ी को अच्छा करना,
◆ मुर्दों को जिंदा करना।
(110)
(iv) क़यामत का तज़किरा और ईसा अलैहिस्सलाम
क़यामत के दिन अंबिया कराम अलैहिमुस्सलाम से पूछा जाएगा कि जब तुमने हमारा पैग़ाम लोगों को पहुँचाया तो तम्हें क्या जवाब मिला था? इसी तरह ईसा अलैहिस्सलाम पर किये गए एहसानात को अल्लाह तआला याद दिलायेगा। इन्हीं एहसानात में माएदा (दस्तरख़्वान) वाला वाक़िआ भी है कि "हवारियों ने ईसा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि ऐ मरियम के बेटे ईसा! क्या आप का ख़ुदा इस पर क़ादिर है कि हम पर आसमान से (नेअमत भरा) एक ख़्वान नाज़िल फरमाए" (112)
इन एहसानात को याद दिला कर अल्लाह तआला पूछेगा "ऐ ईसा क्या तुमने उनसे कहा था कि तुझे और तेरी मां को माबूद बना लिया जाय। जवाब में ईसा अलैहिस्सलाम कहेंगे " तू पाक है। मैं ऐसी बात कैसे कह सकता हूँ जिसका मुझे हक़ नहीं पहुँचता।
مَا قُلۡتُ لَهُمۡ إِلَّا مَآ أَمَرۡتَنِي بِهِۦٓ أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمۡۚ
मैंने तो वही कहा था जिसका मुझे हुक्म दिया गया था कि अल्लाह की इबादत करो जो मेरा रब भी और तुम्हारा रब भी। (116, 117)
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(2) सूरह (006) अल अनआम का इब्तेदाई हिस्सा
(i) तौहीद
इस सूरह में अल्लाह की हम्द व सना (प्रशंसा) और अज़मत व किबरियाई (बड़ाई) और मुख़्तलिफ़ ख़ुसूसियात का तफ़्सीली बयान है। जैसे:
◆ जाहलियत के उन अंधविश्वास को रद्द किया गया जिनमे लोग पड़े हुए थे।
(ii) रिसालत
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तसल्ली के लिए अल्लाह तआला ने 18 अंबिया का ज़िक्र किया है
2- इब्राहीम अलैहिस्सलाम,
3- लूत अलैहिस्सलाम,
4- इस्माईल अलैहिस्सलाम,
5- इस्हाक़ अलैहिस्सलाम,
6- याक़ूब अलैहिस्सलाम,
7- यूसुफ़ अलैहिस्सलाम,
8- अय्यूब अलैहिस्सलाम,
9- मूसा अलैहिस्सलाम,
10- हारून अलैहिस्सलाम,
11- दाऊद अलैहिस्सलाम,
12- सुलैमान अलैहिस्सलाम,
13- इल्यास अलैहिस्सलाम,
14- यसा अलैहिस्सलाम,
15- यूनुस अलैहिस्सलाम,
16- ज़करिया अलैहिस्सलाम,
17- यहया अलैहिस्सलाम,
18- ईसा अलैहिस्सलाम
(iii) आख़िरत
1. आख़िरत के रोज़ अल्लाह तमाम इंसानों को इकठ्ठा करेगा (12)
2. आख़िरत के दिन किसी इंसान से अगर अज़ाब टाल दिया गया तो यह उस पर अल्लाह की बड़ी मेहरबानी होगी। (16)
3. आख़िरत के दिन मुशरिकों से मुतालिबा किया जाएगा कि कहां हैं वह जिन्हें तुम अल्लाह के साथ शरीक करते थे। (22)
4. आख़िरत के दिन जहन्नमी यह चाहेंगे कि काश उन्हें दुनिया मे लौटा दिया जाता ताकि वह अपने रब की आयात को अब नहीं झुठलाते और ईमान वाले बन जाते। (27)
5. दुनिया की ज़िंदगी तो बस खेल तमाशा है और आख़िरत की ज़िंदगी ही असल, बेहतर और ठोस है। (32)
(iv) अल्लाह की अज़मत की निशानियां
दाने और गुठली को फाड़ कर पौधे निकालना, जिंदगी और मौत देना, चांद और सूरज का हिसाब, समुद्र और ख़ुश्की में रहनुमाई के लिए सितारों की तख़लीक़, एक जान से इंसान को पैदा करना और मां के पेट से ज़मीन पर आने तक के मरहले से गुज़ारना, आसमान से पानी नाज़िल करना, हर क़िस्म के पेड़ पौधे उगाना, हरे भरे खेत और तह पर तह चढ़े हुए दाने, खजूर के शगुफ़ों से फलों के गुच्छे के गुच्छे निकालना, अंगूर, जैतून और अनार के बाग़ जो एक दूसरे से मिलते जुलते भी हैं और अलग-अलग भी, दरख़्तों में फल आने और उनके पकने की कैफ़ियत, ज़मीन और आसमान की ईजाद। (95 से 99)
(v) इंसान अल्लाह को इस दुनिया में नहीं देख सकता
"निगाहें उसको नहीं पा सकतीं और वह निगाहों को पा लेता है, वह निहायत बारीक बीं [सूक्ष्मदर्शी] और बाख़बर है"। (103)
(vi) मुशरेकीन के बनाये हुए ख़ुदाओं को गाली न दी जाए
"ऐ ईमान वालो यह लोग अल्लाह के सिवा जिनको पुकारते हैं उन्हें गालियाँ न दो, कहीं ऐसा न हो कि यह शिर्क से आगे बढ़कर जिहालत की बिना पर अल्लाह को गालियाँ देने लगें"। (108)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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1 टिप्पणियाँ
خوبصورت
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।