पारा (04) लन तनालुल बिर
इस पारे में 2 हिस्से हैं:
2- सूरह अन निसा का शुरुआती हिस्सा
सूरह (003) आले इमरान का आख़िरी हिस्सा
(i) नेकी क्या है?
नेकी यह है कि दुनिया में जिस चीज़ से भी मुहब्बत और लगाव है (जान, माल व दौलत, शुहरत, औलाद वगैरह) उसे अल्लाह की राह में बिला झिझक कुर्बान कर दिया जाय (92)
(ii) ख़ाना ए काबा के फज़ाएल
यह सबसे पहली इबादतगाह है और इसमें स्पष्ट निशानियां हैं जैसे मुक़ामे इब्राहीम, जो हरम में दाख़िल हो जाय उसे अम्न हासिल हो जाता है। (96)
(iii) फ़िरक़ा बंदी हराम है
अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो, और फ़िरक़ा में न बंटो। फ़िरक़ाबन्दी से बचने के लिए अल्लाह से डरो जैसा कि डरने का हक़ है, और पूरी ज़िंदगी डरते रहो यहां तक कि अंत भी ईमान पर ही हो। (103)
(iv) रसूल भी इंसान हैं और उन्हें भी मौत आती है
मुहम्मद इसके सिवा कुछ नहीं कि बस एक रसूल हैं, उनसे पहले और रसूल भी गुज़र चुके हैं। फिर क्या अगर उनका इंतिक़ाल हो जाए या उनको क़त्ल कर दिया जाए तो तुम लोग उलटे पाँव फिर जाओगे? याद रखो! जो उलटा फिरेगा, वह अल्लाह का कुछ नुक़सान नहीं करेगा। हाँ, जो अल्लाह के शुक्रगुज़ार बन्दे बनकर रहेंगे, उन्हें वह उसका बदला देगा। (144)
(v) भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना
हर दौर में मोमिनों का एक गिरोह रहा है जो भलाई की तरफ़ लोगों को बुलाता और बुराई से रोकता रहा है और इस दौर में मुसलमान ही वह बेहतरीन उम्मत हैं जिन्हें लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए निकाला गया है। यह उम्मत भलाई का हुक्म देती है, बुराई से रोकती है और अल्लाह पर ईमान रखती है। लेकिन इस समय यह उम्मत अपने फ़रीज़े से बहुत हद तक ग़ाफ़िल है। (110)
(vi) 3 ग़ज़वे (लड़ाइयां)
2, गज़वा ए उहद,
3 गज़वा ए हुमराउल असद
(vii) अच्छे लोगों की पहचान
अल्लाह के रास्ते मे ख़र्च करना, ग़ुस्सा पर कंट्रोल, लोगों को माफ़ कर देना।
(viii) कामयाबी के 4 उसूल
2, मुसाहिरा
3, मुराबिता,
4, तक़वा
(ix) क़ुरआन ग़ौर व फ़िक्र की दावत देता है
जो लोग उठते, बैठते और लेटते, हर हाल में अल्लाह को याद करते हैं और ज़मीन और आसमानों की बनावट में ग़ौर-फ़िक्र करते हैं तो वह बेइख़्तियार बोल उठते हैं, “हे पालनहार! ये सब कुछ तूने फ़ुज़ूल और बेमक़सद नहीं बनाया है, (चुनांचे इंसान भी बेकार और बे मक़सद नहीं बनाया गया है) इसलिये ऐ रब! हमें जहन्नम के अज़ाब से बचा ले। (आयत 191)
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सुरह (004) अन निसा का शुरुआती हिस्सा
(i) आलमी भाई चारे के पैग़ाम
दुनिया में जितने भी महिला पुरुष हैं सभी एक इंसान यानी आदम की संतान हैं। सभी बराबर हैं इसलिए कोई ऊंचा नीचा नहीं, (आयत 01)
(ii) बीवियों की तादाद
एक मर्द एक वक़्त में चार निकाह से ज़्यादा नहीं कर सकता, चार भी इस शर्त के साथ उनके हुक़ूक़ की अदायगी में इंसाफ़ से काम लिया जाय (03)
(iii) महर
औरतों के महर ख़ुशी ख़ुशी दो। (04)
(iv) यतीमों का हक़
यतीमों का माल उनके हवाले कर दिया जाय क्योंकि जो लोग यतीम का माल खाते हैं वह अपने पेट में जहन्नम की आग भरते हैं। (6, 10)
(v) विरासत का क़ानून
◆ वारेसीन की तीन क़िस्में हैं
- ज़विल फुरूज़
- असबा,
- ज़विल अरहाम
◆ विरासत की तक़सीम मय्यत के क़र्ज़ और वसीयत की अदायगी के बाद होगी।
◆ मर्द का हिस्सा दो औरतों के बराबर है।
◆ अगर मय्यत की वारिस दो या दो से ज़्यादा लड़कियां हों तो विरासत के दो तिहाई (2/3) हिस्से में वह सब शामिल होंगी।
◆ अगर मय्यत के सिर्फ़ एक ही लड़की हो तो वह विरासत के आधा (1/2) हिस्सा की हक़दार होगी।
◆ अगर मय्यत के औलाद हो तो मां को छठा (1/6) और बाप को छठा (1/6) हिस्सा मिलेगा।
◆ अगर मय्यत के औलाद न हो और भाई बहन भी न हों तो मां तिहाई (1/3) की हकदार होगी बाकी विरासत का मालिक बाप होगा।
◆ अगर मय्यत के भाई बहन हों तो मां छठा (1/6) हिस्से की हक़दार होगी।
◆ अगर बीवी का इंतेक़ाल हो जाय और उसके औलाद हो तो शौहर को चौथाई (1/4) हिस्सा मिलेगा और अगर औलाद न हो तो आधा (1/2) हिस्सा होगा।
◆ अगर शौहर का इंतेक़ाल हो जाय और उसकी औलाद हो तो बीवी को आठवां (1/8) हिस्सा मिलेगा और अगर औलाद न हो तो चौथाई (1/4) हिस्सा होगा।
◆ कलालह: अगर मय्यत के केवल मां जाये एक भाई और एक बहन हों तो प्रत्येक को छठा (1/6) हिस्सा मिलेगा और अगर ज़्यादा हों तो तिहाई (1/3) में सभी शामिल होंगे।
◆ कलालह: अगर मय्यत के केवल सुल्बी (सगी) या अल्लाती (सौतेली) एक बहन हो तो उसे आधा (1/2) हिस्सा मिलेगा, अगर दो या दो से ज़्यादा बहनें हों तो दो तिहाई (2/3) में सभी शामिल होंगी। अगर मय्यत का एक ही भाई है तो वह कुल विरासत के वारिस होगा और अगर भाई बहन दोनों हों तो भाई का हिस्सा बहन से दुगना (double) होगा।
◆ गोद लिए हुए बच्चे (Adopted children) का विरासत में कोई हिस्सा नहीं होगा।
◆यह अल्लाह के मुक़र्रर किए हुए हिस्से हैं इसलिए विरासत के मामले में कोई कमी कमी बेशी न की जाय और न किसी को नुक़सान पहुंचाया जाय।
◆ किसी की विरासत की तक़सीम उसकी मौत के बाद होगी पहले नहीं।
◆ यह अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं जो अल्लाह और रसूल की नाफ़रमानी करेगा वह हमेशा जहन्नम में रहेगा। (11 से 14 और 176)
◆ अपनी मिल्कियत में से तिहाई (1/3) से ज़्यादा की वसीयत नहीं की जा सकती (सही मुस्लिम 4213, से 4215)
◆ वारिस को वसीयत नहीं की जा सकती। (सुनन अबी दाऊद 2870)
◆ काफ़िर का वारिस मोमिन और मोमिन का वारिस काफ़िर नहीं हो सकता। (सुनन अबी दाऊद 2911)
(vi) महरम औरतें
वह औरतें जिन से निकाह हराम है मां, बहन, बेटी, फूफी, ख़ाला, भतीजी, भांजी, रज़ाई माएं (दूध पिलाने वाली), रज़ाई बहन (दूध शरीक बहनें), सास, सौतेली बेटियां, बहु। (23)
(vii) मौत से पहले पहले तौबा
तौबा मौत से पहले होनी चाहिए, मौत के समय कोई तौबा क़ुबूल नहीं होती और जो बग़ैर तौबा के मर जाए उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है। (18)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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1 टिप्पणियाँ
Excellent work, it was so needed in Hindi
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।