पारा (06) ला युहिबुल्लाहु
इस पारे में 2 हिस्से हैं
(2) सूरह अल मायेदा का इब्तिदाई हिस्सा
(1) सूरह (004) अन निसा का आख़िरी हिस्सा
(i) बुराई की तशहीर
किसी को खुल्लमखुल्ला बुरा कहने से मना किया गया मगर मज़लूम को अख़्तियार दिया गया कि ज़ालिम के ज़ुल्म को लोगों के सामने बयान करे ताकि वह ज़ुल्म से तौबा कर ले। (148, 149)
(ii) तमाम अंबिया पर ईमान
अल्लाह के रसुल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और उनसे पहले जितने भी अंबिया गुज़रे हैं उन पर ईमान लाना लाज़मी (अनिवार्य) क़रार दिया गया। उन के दरमियान किसी तरह की तफ़रीक़ (किसी को मानने और किसी को न मानने) को कुफ़्र क़रार दिया गया। (152)
(iii) यहूद की मुज़म्मत और उनके मुतालिबात
यहूदियों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुतालिबा (demand) किया कि हमारी तरफ़ आसमान से कोई तहरीर नाज़िल क्यों नहीं की जाती तो अल्लाह ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यक़ीन दहानी कराई कि यह आप से पहले भी इस से बड़ी बड़ी demand रख चुके हैं कि जबतक हम अल्लाह को अपनी आँखों से न देख लें ईमान नहीं लायेंगे। चुनांचे उनके फ़ालतू सवालात और सरकशी की वजह से उन पर बिजली का अज़ाब नाज़िल हुआ। (153)
(iv) यहूदियों के करतूत
(ii) मरयम अलैहस्सलाम पर बुहतान ए अज़ीम (झूठा इल्ज़ाम) बांधा,
(iii) ईसा अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने की कोशिश (मगर अल्लाह तआला ने ईसा अलैहिस्सलाम की हिफ़ाज़त फ़रमाई और उन्हें आसमान पर उठा लिया)
(iv) अल्लाह की आयात का इंकार और अंबिया का क़त्ल,
(v) सूद का लेन देन (जैसा आज हम में कुछ लोग हलाल कर रहे है और लंबे चौड़े दलाएल दे रहे हैं)
(vi) लोगों का माल बातिल तरीक़े से खाना,
(vii) दीन में ख़ुराफ़ात व बिदआत दाख़िल करना,
(viii) सब्त का क़ानून तोड़ना
(ix) कोई बात ख़ुद कह कर उसे अल्लाह की तरफ़ मंसूब करना। (x) बहुत सी हराम चीज़ों को जाएज़ ठहरा लेना।
(xi) जब जंग पर जाने के लिए आदेश दिया गया तो कहा "तुम जाओ और तुम्हारा ख़ुदा जाए हम तो यहीं बैठे रहेंगे'।
(155 से 161)
(v) ईमान के तक़ाज़े
पुख़्ता इल्म वाले, ईमानदार और अज्र ए अज़ीम के मुस्तहिक़ अल्लाह के नज़दीक वह लोग हैं जो कुछ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नाज़िल हुआ और जो कुछ पहले नाज़िल हुआ उस पर ईमान लाते हैं, नमाज़ और ज़कात की पाबंदी करते हैं और आख़िरत पर यक़ीन रखते हैं। (162)
(vi) ख़ुशख़बरी सुनाने वाले और डराने वाले
दुनिया में कोई क़ौम ऐसी नहीं गुज़री जहाँ नबी न भेजे गए हों ताकि कोई हुज्जत बाकी न रह जाय। सभी रसूल सच्चे और हक़ बात लेकर आए थे। वह ख़ुशख़बरी सुनाने वाले और डराने वाले थे। और जिस तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर वही (وحی) नाज़िल हुई वैसे ही नूह, इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक़ और दूसरे अंबिया पर नाज़िल हुई। आख़िर में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अल्लाह तआला ने तसल्ली दी है कि जो नहीं मानता न माने। जो कुछ आप पर नाज़िल किया गया है वह अल्लाह ने अपने इल्म से नाज़िल किया है उसपर फ़रिश्ते भी गवाह हैं और वैसे तो केवल अल्लाह की गवाही काफ़ी है। (163 से 166)
(vii) नसारा (christian) की मुज़म्मत
ईसाई ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में गुलु (Extreme) का शिकार हो (हद से आगे बढ़) कर अक़ीदा ए तस्लीस (Trinity = तीन ख़ुदा) के मानने वाले हो गए। हालांकि हक़ीक़त यह है कि अल्लाह एक है, उस का कोई बेटा नहीं है वह इन तमाम ऐब से पाक है। (171)
(viii) तकब्बुर (घमंड) करने वाले
जो लोग घमंड करते हैं और अल्लाह की ग़ुलामी को अपने लिए शर्म का बाइस समझते हैं और उसके रास्ते से रोकते हैं तो एक वक्त आएगा जब अल्लाह सब को अपने सामने घेर लेगा। ईमान लाने वाले, नेक अमल करने वाले, और घमंड से बचने वालों के लिए बेहतरीन बदले का अल्लाह ने वादा किया है। (167 से 170)
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सूरह (005) अल माएदा का इब्तिदाई हिस्सा
(i) वादा व इक़रार को पूरा करना اوفوا بالعقود
तमाम् जाएज़ वादा और इक़रार जो मोमिन और रब के दरमियान हो या इंसान और इंसान के बीच हो उसे पूरा करना ज़रूरी है। (01)
(ii) नेकी और भलाई में सहयोग
नेकी के काम में एक दूसरे की मदद करना और गुनाह व दुश्मनी के कामों में किसी भी प्रकार का सहयोग न देने का आदेश। (02)
(iii) हराम चीज़ो से परहेज़
(2) सुअर का मांस,
(3) मुर्दार,
(4) जिस पर अल्लाह का नाम न लिया गया हो,
(5) जो गला घुटने से मरा हो,
(6) चोट खाकर मरा हुआ
(7) जो ऊंची जगह से गिरकर मर जाए,
(8) जो किसी के सींग मारने से मरा हो,
(9) जिसे दरिन्दे ने फाड़ खाया हो,
(10) जो जानवर बुतों (के थान) पर चढ़ा कर ज़िबह किया जाए,
(11) जिसपर क़ुरआ अंदाज़ी के तीरों की फ़ाल निकाली गई हो।
(आयत 03)
(iv) दीन मुकम्म्मल हो गया
क़ुरआन की आख़िरी नाज़िल होने वाली आयत है, अब दीन में कमी ज़्यादती की कोई गुजाइश नहीं है। "आज मैंने तुम्हारे दीन (जीवन विधान) को तुम्हारे लिए मुकम्मल कर दिया है और अपनी नेअमत तुम पर पूरी कर दी है और तुम्हारे लिए इस्लाम को तुम्हारे दीन की हैसियत से पसंद कर लिया है" (03)
(v) तहारत (पाकी)
(2) अद्ल व इंसाफ का हुक्म,
(3) दुश्मनों के साथ भी नाइंसाफी न हो।
(06 से 08)
(vi) हाबील और क़ाबील का वाक़िआ
क़ाबील ने हाबील को क़त्ल कर दिया, क़िसास में क़ाबील भी क़त्ल हुआ। (27 से 31)
(vii) यहूदियों और ईसाईयों की मुज़म्मत
यहूदियों और ईसाइयों की तरफ़ से जो सरकशियाँ हुईं उनपर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तसल्ली दी गई, मुसलमानों को उनसे दोस्ती रखने से मना किया गया, और दाऊद व ईसा अलैहिमस्सलाम की ज़बानी उन पर लानत का तज़किरा हुआ। और आख़िर में बताया गया कि यह तुम्हारे ख़तरनाक दुश्मन हैं और उनमें से ज़्यादा तर अल्लाह की इताअत से निकल चुके हैं। (57, 78)
(viii) अहले किताब की गुमराही
अहले किताब की गुमराही का सबब यह बयान किया गया है कि उनकी सोसायटी में गुनाह होते रहे लेकिन कोई रोकने वाला न था इसलिए हमारा फ़र्ज़ है कि امربالمعروف ونہی عن المنکر (भलाई का हुक्म देने और बुराई से रोकने) का फ़रीज़ा अंजाम दें और हर हाल में दामने मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वाबस्ता हो जाएं। (59 से 63)
(ix) बदला और क़िसास
बदला और क़िसास इंसाफ़ का तक़ाज़ा है। इसके द्वारा समाज में फैले हुए ज़ुल्म और ना बराबरी को दूर किया जा सकता है। इसीलिए इसे ज़िन्दगी कहा गया है। (45)
(x) चोरी की सज़ा
चोर का हाथ काटने का आदेश यदि चोर एक मिक़दार से ज़्यादा चोरी करे। लेकिन पहले उसकी चोरी के बारे में पता लगाया जाएगा कि उसने चोरी क्यों की? (38)
(xi) यहूदियों, ईसाइयों, मुनाफ़िक़ीन, और अहले ईमान की सिफ़ात का बयान
चारों की अनेक सिफ़ात गिनाई गई हैं और उनके अंजाम के बारे में सूचना दी गई है।
(xii) इस्लाम का आलमगीर (universal) शांति पैग़ाम
जिसने किसी इंसान को नाहक़ क़त्ल किया या ज़मीन में फ़साद फैलाया, उसने मानो तमाम इंसानों को क़त्ल कर दिया और जिसने किसी की जान बचाई उसने मानो तमाम इंसानों को ज़िन्दगी बख़्श दी। (32)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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