पारा (05) वल मुहसनात
सूरह 004 अन निसा
(i) गुनाह कबीरा
1, नाहक़ किसी का माल खाना या लेना, 2, अल्लाह के साथ शिर्क करना 3, जादू 4, किसी का नाहक़ क़त्ल करना 5, यतीम का माल खाना, 6, सूद (ब्याज) खाना 7, लड़ाई के दिन पीठ दिखाना 8, भोली और पाकदामन औरत पर इल्ज़ाम लगाना, 9, मां बाप की नाफ़रमानी, 10, झूठी गवाही और झूठी क़सम। (आयत 29, 36 और 37, सही मुस्लिम 89, सही बुख़ारी 6870)
(ii) ख़ानादारी की तदाबीर
पहली हिदायत तो यह दी गई है कि मर्द ही औरत का मुखिया है, फिर नाफ़रमान बीवी से मुतअल्लिक़ मर्द को 3 तदबीरें बतायी गयीं।
(2) समझाने और नसीहत करने पर न मानने पर बिस्तर से अलग कर दे।
(3) अगर फिर भी न माने तो अगला क़दम उठाते हुए (हद में रहते हुए) उसकी पिटाई भी की जा सकती है।
अगर उसके बाद भी बात न बने तो एक फ़ैसला करने वाला एक मर्द की तरफ़ से और एक औरत की तरफ़ से हो और वह दोनों बनाव और सुधार की पूरी कोशिश करें। (34, 35)
(iii) अदल व एहसान और ईमानदारी (इंसाफ़ और भलाई)
अद्ल व एहसान और अमानत को उनके मालिकों के हवाले करने का हुक्म दिया गया ताकि इज्तेमाई (सामुहिक) ज़िन्दगी भी दुरुस्त हो सके। (58)
(iv) शिर्क सबसे भयानक जुर्म है
अल्लाह मुशरिक को कभी माफ़ नहीं करेगा उसके इलावा जिसे चाहेगा माफ़ कर देगा। (48, 116)
(v) अल्लाह और उसके रसूल की इताअत फ़र्ज़ है
ईमान वालो! इताअत करो अल्लाह की और इताअत करो रसूल की और उन लोगों की जो तुममें से हुक्म देने का अधिकार रखते हों। फिर अगर तुम्हारे बीच किसी मामले में झगड़ा (इख़्तेलाफ़) हो जाए तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ़ फेर दो। अगर तुम हक़ीक़त में अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो। काम करने का यही एक सही तरीक़ा है और अंजाम के लिहाज़ से भी बेहतर है। (59)
(vi) जिहाद (संघर्ष) की तर्ग़ीब
जिहाद (हक़ के लिए लड़ने) की तर्ग़ीब दी कि मौत से न डरो वह तो बिस्तर पे भी आ सकती है। न जिहाद में निकलना मौत को यक़ीनी बनाता है न ही घर मे पड़े रहना ज़िन्दगी के सुरक्षा की ज़मानत है। (74, 78)
(vii) क़त्ल की सज़ाएं
क़त्ल की सज़ाएं बयान करते हुए बहुत सख़्त लहजा अख़्तियार किया गया हैं:
وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا
जो किसी मोमिन को जान बूझ कर क़त्ल कर दे तो उस का बदला जहन्नम है जिसमें वह हमेशा रहेगा। वह अल्लाह के गज़ब और लानत का मुस्तहिक़ हुआ और अल्लाह ने उस के लिए बड़ा अज़ाब तैयार कर रखा है। (93)
(viii) हिजरत और सलातुल ख़ौफ़
जिहाद की तर्ग़ीब दी गई थी। इसमें हिजरत (migrate) करना पड़ता है। लेकिन नमाज़ किसी भी हालत में माफ़ नहीं है यहां तक कि जिहाद व हिजरत के दौरान भी नहीं। चूंकि उस वक़्त नमाज़ पढ़ते हुए दुश्मन का खौफ़ होता है। इसलिए सलातुल खौफ़ कहा गया है। (101, 102)
(ix) एक वाक़िआ
क़बीला ए बनी ज़फ़र के एक आदमी तअमा या बशीर बिन उबैरिक़ ने एक अंसारी की ज़िरह (कवच) चुरा ली और जब उसकी छान-बीन शुरू हुई तो चोरी का माल एक यहूदी के यहां रख दिया। ज़िरह के मालिक ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सामने मसअला रखा और तअमा पर अपना शक ज़ाहिर किया। मगर तअमा और उसके भाई-बन्धुओं और क़बीला ए बनी-ज़फ़र के बहुत से लोगों ने आपस में साँठ गाँठ करके उस यहूदी पर इल्ज़ाम थोप दिया। यहूदी से पूछा गया तो उसने कहा कि मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं। लेकिन ये लोग तअमा की हिमायत में ज़ोर व शोर से वकालत करते रहे और कहा कि यह शरारती यहूदी, जो हक़ और अल्लाह के रसूल का इंकार करने वाला है, इसकी बात का क्या भरोसा, बात हमारी तस्लीम की जानी चाहिए क्योंकि हम मुसलमान हैं। क़रीब था कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस मुक़द्दमे की ज़ाहिरी रिपोर्ट को देखते हुए उस यहूदी के ख़िलाफ़ फ़ैसला कर देते और मुक़द्दमा करने वाले ज़िरह के मालिक को भी बनी-उबैरिक़ पर इल्ज़ाम लगाने पर ख़बरदार करते। इतने में वही नाज़िल हुई और मामले की सारी हक़ीक़त खोल दी गई। (105, सुनन तिर्मिज़ी 3036)
(x) मोमिन के लिए ईमान लाना जरूरी है
(2) रसूल पर
(3) आसमानी किताबों पर
(4) फरिश्तों पर
(5) आख़िरत के दिन पर।
(xi) मुनाफ़िक़ीन की मुज़म्मत और उनकी सिफ़ात
मुनाफ़िक़ीन की मुज़म्मत करके मुसलमानों को उन से होशियार किया गया है और उनका अंजाम बताया गया है कि वह जहन्नम के सबसे निचले हिस्से में होंगे। मुनाफ़िक़ीन की निम्नलिखित विशेषताएं गिनाई गई हैं:
(ii) वह ख़ुद को धोखा देते हैं हालांकि वह समझते हैं कि अल्लाह को धोखा दे रहे हैं।
(iii) नमाज़ के लिए जाते हैं तो कसमसाते हुए।
(iv) दिखावे के लिए नमाज़ पढ़ते हैं।
(v) अल्लाह को कम ही याद करते हैं।
(vi) तज़बज़ुब (शक) में पड़े रहते हैं यानी सही और ग़लत की तमीज़ नहीं होती।
(142 से 145)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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