हर उम्मत के लिए एक रसूल (messenger) के होने का क्या मतलब है?
अल्लाह ने इंसानों की हिदायत के लिए हर उम्मत में रसूल (messenger) को भेजा है और दुनिया में कोई भी उम्मत ऐसी नहीं गुजरी है जिसमे अल्लाह ने अपने रसूल (messenger) न भेजें हो। जैसाकी अल्लाह ने अपने आखिरी महफूज संदेश कुरआन में कहा है कि:
"हमने तुमको हक़ के साथ भेजा है ख़ुशख़बरी देनेवाला और डरानेवाला बनाकर। और कोई उम्मत ऐसी नहीं गुज़री है जिसमें कोई ख़बरदार करनेवाला न आया हो।"
[कुरआन 35:24]
ये बात क़ुरआन में कई जगहों पर कही गई है कि दुनिया में कोई उम्मत ऐसी नहीं गुज़री है जिसकी हिदायत के लिये अल्लाह ने नबी न भेजे हों।
सूरह-13 रअद, आयत-7 में फ़रमाया: "हर क़ौम के लिये एक हिदायत देनेवाला है।"
सूरा-15 हिज्र, आयत-10 में फ़रमाया: "तुमसे पहले बहुत-सी गुज़री हुई क़ौमों में हम (रसूल) भेज चुके हैं।"
सूरा-16 नहल, आयत-36 में फ़रमाया: "हमने हर उम्मत में रसूल भेजा।"
सूरा-26 शुअरा, आयत-208 में फ़रमाया: "हमने कभी किसी बस्ती को इसके बिना तबाह नहीं किया कि उसके लिये ख़बरदार करनेवाले, नसीहत का हक़ अदा करने को मौजूद हैं।"
इस सिलसिले में दो बातें समझ लेनी चाहियें, ताकि कोई ग़लतफ़हमी न हो-
1. एक नबी की तबलीग़ जहाँ-जहाँ तक पहुँच सकती हो, वहाँ के लिये वही नबी काफी है। ये ज़रूरी नहीं है कि हर-हर बस्ती और हर-हर क़ौम में अलग-अलग ही पैग़म्बर भेजे जाएँ।
2. एक नबी की दावत और हिदायत की अलामतें और उसकी रहनुमाई के नक़्शे-क़दम जब तक महफ़ूज़ रहें, उस वक़्त तक किसी नए नबी की ज़रूरत नहीं है। ये ज़रूरी नहीं है कि हर नस्ल और पीढ़ी के लिये अलग नबी भेजा जाए।
उम्मत का लफ़्ज़ सिर्फ़ क़ौम के मानी में नहीं है, बल्कि एक रसूल के आने के बाद उसकी दावत जिन-जिन लोगों तक पहुँचे वो सब उसकी उम्मत हैं। साथ ही इसके लिये ये भी ज़रूरी नहीं है कि रसूल उनके बीच ज़िन्दा मौजूद हो, बल्कि रसूल के बाद भी जब तक उसकी तालीम मौजूद रहे और हर शख़्स के लिये ये मालूम करना मुमकिन हो कि वो हक़ीक़त में किस चीज़ की तालीम देता था, उस वक़्त तक दुनिया के सब लोग उसकी उम्मत ही कहलाएँगे और उनपर वो हुक्म साबित होगा जो आगे बयान किया जा रहा है। इस लिहाज़ से मुहम्मद (सल्ल०) के आने के बाद सारी दुनिया के इंसान आप (सल्ल०) की उम्मत हैं और उस वक़्त तक रहेंगे जब तक क़ुरआन अपनी ख़ालिस सूरत (विशुद्ध रूप) में मौजूद रहेगा। इसी वजह से आयत में ये नहीं कहा गया कि हर क़ौम में एक रसूल है। बल्कि कहा ये गया है कि हर उम्मत के लिये एक रसूल है।
रसूल की दावत पहुंचने के बाद हुज्जत तमाम हो जाती है।
"हर उम्मत [समुदाय] के लिये रसूल है, फिर जब किसी उम्मत के पास उसका रसूल आ जाता है तो उसका फ़ैसला पूरे इंसाफ़ के साथ चुका दिया जाता है और उसपर ज़रा भी ज़ुल्म नहीं किया जाता।"
[कुरआन 10:47]
मतलब ये है कि रसूल की दावत का किसी इंसानी गरोह तक पहुँचना मानो उस गरोह पर अल्लाह की हुज्जत (दलील) का पूरा हो जाना है। उसके बाद सिर्फ़ फ़ैसला ही बाक़ी रह जाता है। किसी और तरह से हुज्जत पूरी करने की ज़रूरत बाक़ी नहीं रहती और ये फ़ैसला बहुत ज़्यादा इंसाफ़ के साथ किया जाता है। जो लोग रसूल की बात मान लें और अपना रवैया ठीक कर लें वो अल्लाह की रहमत के हक़दार ठहरते हैं और जो उसकी बात न मानें वो अज़ाब के हक़दार हो जाते हैं। चाहे वो अज़ाब दुनिया और आख़िरत दोनों में दिया जाए या सिर्फ़ आख़िरत में।
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