15 shaban ki raat ki ibadat aur roze ki fazilat | Shab e barat

15 shaban ki raat ki ibadat aur roze ki fazilat | Shab e barat


15 शाबान के हवाले से गलत फहमी

माहे शाबान का आगाज़ होते ही शाबान की 15वीं रात की फज़ीलत और इसकी अज़मत बयान करना शुरू हो जाता है जबकि कुरान और हदीस इसकी किसी भी तरह की कोई फज़ीलत बयान नहीं हुई। 


लैलातुल मुबारक

बाज़ लोग सुरह दुखान की शुरुआती आयत से ये मसला निकालने की कोशिश करते हैं कि इसमें जो लैलतुल मुबारका का ज़िक्र है वह निस्फ शाबान की रात है। मगर ऐसा कहना बातिल है क्योंकि अल्लाह तआला सूरत दुखान में फरमाता है;


إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُّبَارَكَةٍ إِنَّا كُنَّا مُنذِرِينَ{3} فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ
"बेशक हमने इस कुरान को बा बरकत रात में नाजिल किया क्योंकि हम डराने वाले हैं यह वह किताब है जिसमें हर मामला का हकीमाना फैसला किया जाता है।" [सूरह दुखान : 04]

इस जगह लैलातुल मुबारका से जो मुराद है वह लैलातुल क़द्र है क्योंकि अल्लाह तआला ने इस लैलतुल कद्र में कुरान को नाजिल किया,


إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ
"हमने इस कुरान को लेलातुल क़द्र में नाजिल किया।" [सूरह क़द्र : 01]

और हमें यह मालूम होना चाहिए कि लैलतुल कद्र रमजान के महीने में होती है-


شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِيَ أُنزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ
"रमजान का महीना वह है जिसमें कुरान नाजिल हुआ।" [सुरह बक़रा 185]

इन तीनों आयात से पता चला की लैलातुल मुबारका से मुराद लैलातुल कद्र है जो कि रमजान के महीने में आती है और इसी महीने में क़ुरान का नुजूल हुआ।


इस महीने में की जाने वाली बिदात

क्या हमारा मुस्लिम घरानों में पैदा ही इस बात की दलील है कि हम मुसलमान हैं? 

जबकि हकीकत तो ये है कि हमें लफ्ज़ इस्लाम का ही नहीं पता। जबकि इस्लाम के मानने वालों को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने कुरआन में मुस्लिम कहा।


इस्लाम: 

इस्लाम एक दीन है यानि ज़िंदगी जीने का मुकम्मल तरीक़ा है। और जो तरीक़ा दीन ए इस्लाम हमें सिखाता है उस के मुताबिक़ ज़िंदगी जीने वालों को मुसलमान कहा गया है। लेकिन हमने इसी दीन के नाम पे इसे रस्मों रिवाजों और त्यौहारों का धर्म बना लिया। और ख़ुद को मुसलमान कहते हैं। 

क्या इस्लाम के सही मफहूम के मुताबिक़ हम मुसलमान हैं?


یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوا ادۡخُلُوۡا فِی السِّلۡمِ کَآفَّۃً ۪ وَ لَا تَتَّبِعُوۡا خُطُوٰتِ الشَّیۡطٰنِ ؕ اِنَّہٗ لَکُمۡ عَدُوٌّ مُّبِیۡنٌ 
"ऐ ईमान लानेवालो! तुम पूरे-के-पूरे इस्लाम में आ जाओ। और शैतान की पैरवी न करो कि वो तुम्हारा खुला दुश्मन है।" [क़ुरान 2: 202]

पूरे के पूरे इस्लाम में दाखिल हो यानि हमें सिर्फ़ उन्हीं बातों की पैरवी करनी चाहिए जिसे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने नबी करीम ﷺ के ज़रिए हमें बताया और सिखाया। एक तरफ़ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का दीन है जिस में हमारे लिए सिर्फ़ आसानी ही हैं और दूसरी तरफ़ शैतान की दुश्मनी जो हमें गुमराही की जानिब ले जाती है। और आसानी और दुश्मनी में फ़र्क करना कोई मुश्किल तो नहीं लेकिन हमनें इस दीन को ख़ुद के लिए मुश्किल बना लिया और शैतान को पूरा पूरा मौक़ा फराहम किया कि वो हम पे अपना ज़ोर आजमाएं। 


इस्लाम में सिर्फ़ दो त्यौहारों  (ईदैन: ईद दुल फितर और ईद उल अदहा): 

इसके मानाने का तरीक़ा भी दीन हमें बताता है। तीसरा कोई celebration नहीं है। लेकिन आज लोगों ने 14 शाबान को शबे बारात के नाम से मशहूर कर दिया और 15वीं शाबान को इबादतों की रात बता दिया।

अब आईए उस हदीस की तरफ चलते हैं जिसकी वजह से इस रात में होने वाली बिदात को तरजीह दी जाती है- 

ये हदीस इमाम तिर्मीजी अपनी किताब तिर्मीजी में लेकर आए हैं।

हजरत आयशा (रजि०) फरमाती हैं:

मैंने एक रात नबी करीम ﷺ को ग़ायब पाया। तो मैं (आप ﷺ की तलाश में) बाहर निकली तो क्या देखती हूँ कि आप बक़ीअ क़ब्रिस्तान में हैं। 
आप ने फ़रमाया: क्या तुम डर रही थीं कि अल्लाह और उसके रसूल ﷺ तुम पर ज़ुल्म करेंगे? 
मैं ने कहा: अल्लाह के रसूल ﷺ! मेरा गुमान था कि आप अपनी किसी बीवी के हाँ गए होंगे। 
आप ﷺ ने फ़रमाया: अल्लाह तआला पन्द्रहवीं शाबान की रात को आसमाने-दुनिया पर नुज़ूल फ़रमाता है। और क़बीला कल्ब की बकरियों के बालों से ज़्यादा तादाद में लोगों की मग़फ़िरत फ़रमाता है। 
[तिरमिज़ी :739]


ये हदीस पर हम दो तरह से बात करेंगे एक तो सनद एक मतन (वाक़िया)

इमाम तिरमिज़ी कहते हैं,

1. आयशा (रज़ि०) की हदीस को हम इस सनद से सिर्फ़ हुज्जाज की रिवायत से जानते हैं। 

2. मैने मुहम्मद-बिन-इस्माईल बुख़ारी को इस हदीस को ज़ईफ़ ठहराते सुना है। इसी के साथ फ़रमाया: यहया-बिन-अबी-ज़्यादा का उरवा से और हुज्जाज-बिन-अरता का यहया-बिन-अबी-ज़्यादा से नहीं सुना। 

3. इस सिलसिले में अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि०) से भी रिवायत है।

लिहाज़ा इमाम तिरमिज़ी ने इसको ज़इफ कहा इमाम बुखारी के हवाले से बहुत से मुहद्दसीन ने इसको ज़ईफ कहा,

जैसे:

  1. इमाम दरक़ुतनी
  2. इमाम अयनी हंफी
  3. इमाम हाकिम
  4. शुएब अरनोत
  5. मुबारकफूरी
  6. इमाम बुखारी
  7. इमाम मुंज़िरी
  8. रहिमाउल्लाहम अजमाइन

लिहाज़ा सनद के ऐतिबार से हदीस ज़ईफ हुई। 

अब आते हैं हदीस के वाक़िये की तरफ-

इस हदीस में नबी करीम ﷺ ने कहा की 15वी शाबान की रात अल्लाह आसमान ए दुनिया पर नुज़ूल फरमाता है।

ये सहीह हदीस के खिलाफ है क्यूंकि अल्लाह तआला शाबान को नहीं बल्कि रोज़ाना रात को आसमान ए दुनिया पर आता है।

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

"हमारा परवरदिगार बुलन्द बरकत वाला है। हर रात को उस वक़्त आसमान दुनिया पर आता है जब रात का आख़िरी तिहाई हिस्सा रह जाता है। वो कहता है कोई मुझसे दुआ करने वाला है कि मैं उसकी दुआ क़बूल करूँ,  कोई मुझसे माँगने वाला है कि मैं उसे दूँ, कोई मुझसे बख़्शिश तलब करने वाला है कि मैं उसको बख़्श दूँ।" [सहीह बुखारी : 1145]

लिहाज़ा अल्लाह रोज़ाना नुज़ूल करता है ना की एक साल मे सिर्फ़ एक बार ही।

दूसरी इस हदीस मे कहा गया नबी करीम ﷺ शाबान को क़ब्रिस्तान गए हालांकि नबी करीम ﷺ रात मे क़ब्रिस्तान जाना तो साबित है लेकिन उसमे शाबान का ज़िक्र नहीं।

जैसा कि ख़ुद देख सकते हैं, सहीह मुस्लिम: 2256

लिहाज़ा मतन के ऐतिबार से भी ये हदीस सहीह नहीं।

अगर कोई फिर भी लोग इस हदीस पे अमल करते हैं तो उनसे कुछ सवाल हैं-

1. इस हदीस के कोनसे सहाबी है जिन्होंने शाबान की रात क़ब्रिस्तान का रुख किया?

2. इस हदीस मे नबी करीम ﷺ चुपके से क़ब्रिस्तान गए थे आप लोग चिराग़ जला के जाते हो दुनिया को दिखाते हो हदीस के खिलाफ क्यों?

3. इस हदीस मे नबी करीम ﷺ आधी रात को क़ब्रिस्तान गए थे वो भी एक बार आप हर साल क्यों जाते हैं?

4. अगर कोई कहता है नबी करीम ﷺ का एक बार जाना भी हमारे लिये दलील है तो सवाल फिर वही होगा किस सहाबी ने इस हुक्म की पैरवी करके अमल किया?

5. नबी करीम ﷺ के इस वाक़िये से साबित हो रहा है की नबी पहले सोये हुए थे रात में जागे सिर्फ़ गए क़ब्रिस्तान आप लोग भी सोते क्यों नहीं?

6. नबी करीम ﷺ इस रात सिर्फ़ कब्रिस्तान गए थे पूरी रात इबादत नहीं की आप पूरी रात मस्जिदों में इबादत क्यों करते हैं?

आप ये जो कुछ भी इबादत के नाम कर रहे हैं इनकी कोई सही सनद नहीं मौजूद है और जिसकी दलील हमें क़ुरआन, हदीस या नबी करीम ﷺ की सुन्नत से ना मिले तो वो बिदअत कहलाता है। 

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

"हर बिदअत गुमरही है और हर गुमराही जहन्नुम में ले लाएगी।" [सुन्न इब्ने माजा : 45]


एक सोच देखें ज़्यादा तर को उनके बुरे अमाल जहन्नुम में ले जाएंगे और आपके नेक अमाल (जो आप इबादत समझ कर कर रहें हैं) कहीं सबब ना बन जाएं।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त सही दीन समझने की समझ अता करे।


By: अहमद बज़्मी


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1 टिप्पणियाँ

  1. माशाल्लाह आपने बहुत अच्छी बात लिखी अल्लाह आपको दुनिया आखिरत में तमाम भलाई है नसीब फरमाए Aameen 🤲

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