इससे पहले हमने कई लफ्ज़ों के बारे में जाना जैसे सब्जेक्टिव, ऑब्जेक्टिव, और आर्बिटरी।
आज इस दफा हम सिर्फ एक लफ्ज़ को थोड़ा टटोलेंगे और पैमाने को और ज़्यादा समझने की कोशिश करेंगे।
Axiom/ स्वयंसिद्ध
इसको समझने के लिए एक उदाहरण देखते है-
अगर मैं आपसे सवाल करू की आपके हाथ में इस वक्त क्या है तो अधिकतर लोगों का जवाब होगा की हाथ में मोबाइल है।
लेकिन अगर मैं आपसे कहूं की आपके हाथ में इस वक्त जो चीज है वह मोबाइल नही बल्कि Tv है। तो आपका जवाब पहले तो यही होगा की क्या बेवकूफी की बात है लेकिन क्या आप यह सिद्ध कर सकते है किसी साइंटिफिक प्रूफ या किसी अन्य प्रूफ से की आपके हाथ में एक मोबाइल है?
किसी भी विषय के बारे में पढ़ने से पहले कुछ ऐसी जानकारी होती है जिसका कोई प्रमाण अर्थात प्रूफ नही होता और उसे हमे मानना ही होता है।
उदाहरण: हम जितनी भी साइंस पढ़ते है उसमें पहले से ये माना हुआ है कि हम सोचने समझने की ताकत रखते है यानी हमारे अंदर अक्ल हैं और ये दुनिया जिसमें हम रह रहे है वह असली है।
क्योंकि साइंस इन चीजों को प्रूव /सिद्ध नहीं कर सकती इसलिए ये कुछ ऐसी चीजे है जो हमे माननी ही होंगी। बिना इनको माने हम साइंस या किसी भी विषय में आगे बढ़ ही नहीं सकते।
ऐसी बातों को एक्सियम्स/axioms/स्वयंसिद्ध कहते है और इन बातो को सिद्ध करने की कोई अव्यशक्ता नहीं होती।
एक्सियम्स/axioms/स्वयंसिद्ध ऐसी चीज़ें होती है जो किसी बात का आधार बनाती हैं जैसे कोई बिल्डिंग बिना आधार के नही बन सकती उसी तरह कोई भी साइंस एक्सियम्स/axioms/स्वयंसिद्ध के बिना नहीं बन सकती।
कुछ न कुछ तो ऐसा होगा ही जो हमने माना हुआ होगा और उसका न हमे कोई प्रूफ चाहिए होगा न ही हमारे दिलों में कभी आयेगा क्योंकि अगर हम इन आधार वाली बातों पर सवाल उठायेंगे तो हम खुद के अस्तित्व पर सवाल उठायेंगे।-
- क्या हम जिंदा है ?
- क्या यह दुनिया असली है?
- कहीं हम किसी मैट्रिक्स/आव्यूह ( यानी ऐसी दुनिया जो असली न हो, बल्कि बस असली जैसी लग रही हो) में तो नहीं है?
क्योंकि अगर ऐसा है तो न तो ग्रेविटेशन/गुरुत्वाकर्षण असली है न ही हमें दिखाई देने वाले पहाड़ या नदियां और न ही हमारे सामने घूमने वाले लोग या दुनिया में एक्जिस्ट/मोजूद हर चीज, कुछ भी असली नहीं है और हम अगर कहे की सब असली है तो हम इसको प्रूफ/सिद्ध कैसे करेंगे?
किसी टेस्ट ट्यूब/परखनली की सहायता से?
या किसी गणित के सवाल से?
कैसे?
अब ज़रा हम वापस पहले वाले सवालों पर आते है।
क्या कोई ख़ुदा है?
इस सवाल को थोड़ा फिर से टटोल कर देखते है।
तो सवाल पूछने वाले के दिल में कोई न कोई पैमाना है जिसको लेकर वो ये सवाल पूछ रहा है?
कोई इस पैमाने पर खरा उतरे तो वो शख्स उसको अपना खुदा कहे।
अगर उस व्यक्ति का पैमाना साइंस है तो वह जान ले, और सोच ले की वह कैसा साइंटिफ प्रूफ तलाश कर रहा है?
ट्यूब/परखनली वाला या कोई मैथेमेटिक्स/गणित से संबंधित?
या किसी अन्य प्रकार का?
उस व्यक्ति को अपना पैमाना साफ होना चाहिए क्योंकि जितनी देर वह पैमाना ढूंढने में लगाएगा उतनी ही देर से उसको उसके सवालों का जवाब मिलेगा।
इसके आगे इन शाह अल्लाह हम पैमाने को और समझने की कोशिश करेंगे।
डॉ० ज़ैन ख़ान
2 टिप्पणियाँ
बेशक आपकी बात सही है, मुझे अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा, ज़ज़ा कल्लाह
जवाब देंहटाएंIn Sha ALLAH.... next thursday
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।