पैगम्बर की सच्चाई की पहचान कैसे करें। पार्ट-2
अगर कोई शख्स ये दावा करता है कि वो अल्लाह का पैगम्बर है तो हम उस शख्स की पहचान कैसे करें कि क्या वाकई ये शख्स अल्लाह का पैगम्बर है या नहीं? हम उस शख्स के दावे को परखने के लिए किन चीजों की तहकीक करें? हम उस शख्स में वो क्या चीज़ें देखें जिससे हमे वाजेह हो जाए कि ये शख्स वाकई अल्लाह का पैगम्बर है? तो आईए हम जानते है कि कोई भी शख्स अगर अल्लाह का पैगम्बर होने का दावा करता है तो हम उसमे क्या खूबियां देखें?
किसी भी शख्स के अल्लाह का पैगम्बर होने के लिए उसकी हम तीन तरह से पहचान कर सकते है-
- पैगम्बर की ज़िंदगी से पहचान।
- पैगम्बर जिस बात की तरफ लोगों दावत को देता है सबसे पहले उस पर खुद अमल करता है।
- पैगम्बर अपनी दावत और तबलीग का लोगों से कोई बदला नहीं मांगता है।
पिछले आर्टिकल में हमने जाना कि हम पैगम्बर की जिंदगी से उसकी सच्चाई का कैसे पता लगा सकते है कि वह अपने पैगंबरी के दावे ने सच्चा है या नहीं? आज के लेख में हम पैगम्बर की सच्चाई का एक और पहलू से पता लगाएंगे।
2. पैगम्बर जिस बात की तरफ लोगों दावत को देता है सबसे पहले उस पर खुद अमल करता है।
जो शख्स भी पैगम्बर होने का दावा करें तो सबसे पहले हम उस शख्स के सीरत और किरदार को देखें की वाकई ये शख्स अल्लाह का पैगम्बर है या नहीं? उस शख्स का सीरत और किरदार बेदाग होना चाहिए। सीरत और किरदार देखने के बाद आप ये देखें की वो शख्स जिस चीज की तरफ लोगों को बुला रहा है उस पर खुद कितना अमल कर रहा है?
जो अल्लाह का सच्चा पैगम्बर होगा उसका सीरत और किरदार बेदाग होगा और वह जिस चीज की तरफ लोगों को बुलाएगा उसपर सबसे पहले खुद अमल करेगा।
पैगम्बर की सच्चाई का आप इस बात से अन्दाज़ा कर सकते हो कि, जो कुछ वह दूसरों से कहता है उसी पर ख़ुद अमल करता है।
- अगर पैगम्बर तुमको ग़ैर-ख़ुदाओं के आस्तानों से रोकता और ख़ुद किसी आस्ताने का मुजाविर बन बैठा होता तो बेशक तुम ये कह सकते थे कि अपनी पीरी चमकाने के लिये दूसरी दुकानों की साख बिगाड़ना चाहता है।
- अगर पैगम्बर तुमको हराम के माल खाने से मना करता और ख़ुद अपने कारोबार में बेईमानियाँ कर रहा होता तो ज़रूर तुम ये शक कर सकते थे कि पैगम्बर अपनी साख जमाने के लिये ईमानदारी का ढोल पीट रहा है।
लेकिन तुम देखते हो कि पैगम्बर ख़ुद उन बुराइयों से बचता है जिनसे तुमको मना करता है। पैगम्बर की अपनी ज़िन्दगी उन धब्बों से पाक है जिनसे तुम्हें पाक देखना चाहता है। पैगम्बर अपने लिये भी उसी तरीक़े को पसन्द करता है जिसकी तरफ दावत लोगों को दे रहा होता है। ये चीज़ इस बात की गवाही के लिये काफ़ी है कि पैगम्बर अपनी दावत में सच्चा होता है। इसी बात को अल्लाह ने कुरआन में पैगंबरों के सच्चे होने पर दलील के तौर पर पेश किया है।
“भाइयो! तुम ख़ुद ही सोचो कि अगर मैं अपने रब की तरफ़ से एक खुली गवाही पर था और फिर उसने मुझे अपने यहाँ से अच्छी रोज़ी भी दी, (तो इसके बाद मैं तुम्हारी गुमराहियों और हरामख़ोरियों में तुम्हारा साथी कैसे हो सकता हूँ?) और मैं हरगिज़ नहीं चाहता कि जिन बातों से मैं तुम्हें रोकता हूँ, उन्हें ख़ुद करूँ। मैं तो सुधार करना चाहता हूँ जहाँ तक भी मेरा बस चले। और ये जो कुछ मैं करना चाहता हूँ उसका सारा दारोमदार अल्लाह की तौफ़ीक़ पर है। उसी पर मैंने भरोसा किया और हर मामले में उसी की तरफ़ मैं रुजू करता हूँ।"
[कुरआन 11:88]
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